मणिपुर हिंसा: कर्फ्यू के बीच संगठित हो रहे मैतेई, क्या कुकी पर हमले की है योजना?

नई दिल्ली। मणिपुर के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब तक मौन हैं। लेकिन मणिपुर की हिंसा पर उनकी क्या राय है, यह उनकी चुप्पी बताने लगी है। पीएम मोदी संघ की शाखाओं में दीक्षित स्वयंसेवक हैं। किसी भी मुद्दे पर संघ का विचार धर्म और जाति देखकर तय होता है। मणिपुर में भी यही हो रहा है। पांचवे महीने में भी मणिपुर सरकार और वहां की पुलिस-प्रशासन हिंसा रोकने और शांति बहाली का वादा तो दूर दावा भी नहीं कर पा रहा है कि राज्य में जल्द ही शांति बहाल होगी।

मणिपुर के चप्पे-चप्पे पर हिंसा ने अपना पांव पसार लिया है। हिंसा को सरकारी संरक्षण मिल रहा है। यह अनायास नहीं है कि हिंसक भीड़ पुलिस स्टेशनों से अति-आधुनिक हथियारों को लूट ले गई। सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ राज्य सरकार को हथियारों को बरामद करने वाली योजना पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कह रही है, तो राज्य सरकार सरकारी, अवैध या उग्रवादियों के पास मौजूद हथियारों में किसे बरामद करें, यह सवाल पूछ रही है। चीफ जस्टिस को बड़े खीझ के साथ कहना पड़ा कि हम अवैध औऱ लूटे हुए हथियारों की बरामदगी की बात कर रहे हैं, वह चाहे जिस पक्ष या व्यक्ति के पास हो। राज्य सरकार अवैध और लूटे हुए हथियारों को बरामद करने की कार्ययोजना बनाए।

फिलहाल राज्य में हिंसा शुरू होने के बाद बीरेन सिंह सरकार ने हिंसा रोकने के लिए कोई कारगर प्रयास नहीं किया। उल्टे उन्होंने मैतेई समुदाय को हथियारबंद करने और मुद्दे को भटकाने का काम किया। मैतेई समुदाय के लोगों के तथाकथित सिविल सोसायटी और संगठनों को आगे कर यह कहलवाया कि कुकी राज्य को तोड़ने की बात कर रहे हैं।

चार महीने में यह साफ हो चुका है कि भीड़ ने सरकारी हथियारों को ही नहीं लूटा वरन राज्य सरकार ने झूठा माहौल बनाकर मैतेई समुदाय को हथियार बांटे। अब मैतेई समुदाय के लोग राज्य से सेना और असम राइफल्स के जवानों को हटाने की बात कर रहे हैं। यानि चार महीने में हुई रक्तपात से बीरेन सिंह सरकार और मैतेई समुदाय का कलेजा ठंडा नहीं हुआ है। एक बार फिर वह कुकी जनजाति को सबक सिखाने के लिए लामबंद हो चुके हैं। राज्य सरकार उनके साथ है, लेकिन सेना औऱ असम राइफल्स उनके राह का रोड़ा बन रही है।

मैतेई समुदाय की भीड़ लामबंद होकर जगह-जगह सेना और सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी कर रहे हैं। सीमा पर लगाए बैरिकेड्स को तोड़ने की सार्वजनिक अपील कर रहे है। कभी मैतेई महिला संगठन मीरा पैबिस कोई मांग कर रही है तो कभी मणिपुर की अखंडता की रक्षा करने के नाम पर बनी मैतेई लोगों की संस्था मणिपुर इंटीग्रिटी समन्वय समिति (COCOMI) बैरिकेड्स तोड़ने की अपील कर रहा है। इन सबके बीच राज्य सरकार ऐसे संगठनों पर कार्रवाई करने के बजाए उनसे बयान वापस लेने का अनुरोध कर रहे हैं।

घाटी के पांच जिलों में कर्फ्यू

मणिपुर के घाटी में स्थित सभी पांच जिलों में कर्फ्यू लगाया गया है। लेकिन कर्फ्यू के अंदर मैतेई समुदाय के लोग लामबंद हो रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि कहीं सरकार यह सब दिखाने के लिए तो नहीं कर रही है कि राज्य में शांति स्थापित करने के लिए राज्य सरकार बहुत चिंतित है। फिलहाल, कर्फ्यू लगाए जाने के एक दिन बाद, अधिकारियों ने आम जनता को दवाओं और भोजन सहित आवश्यक वस्तुओं की खरीद की सुविधा के लिए कर्फ्यू में छूट के समय की घोषणा की।

बुधवार को जारी एक आधिकारिक आदेश में कहा गया है कि गुरुवार को इंफाल पूर्व, इंफाल पश्चिम और काकचिंग जिलों में सुबह 5 बजे से शाम 6 बजे तक कर्फ्यू में ढील दी गई है। थौबल जिले में कर्फ्यू में छूट सुबह 5 बजे से रात 8 बजे तक है।

इसमें कहा गया है कि बिष्णुपुर जिले में कर्फ्यू में छूट सुबह पांच बजे से 11 बजे तक है। बुधवार को बिष्णुपुर जिले के फौगाकचाओ इखाई में सुरक्षा बैरिकेड्स को तोड़ने की कोशिश करने वाले हजारों प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए सुरक्षा बलों द्वारा कई राउंड आंसू गैस के गोले दागे जाने के बाद 40 से अधिक लोग घायल हो गए, जिनमें ज्यादातर महिलाएं थीं।

आधिकारिक आदेश में कहा गया है, “इस छूट में सक्षम प्राधिकारी से अनुमोदन प्राप्त किए बिना कोई सभा या विरोध प्रदर्शन या रैली आदि शामिल नहीं होगी।”

मंगलवार को राज्य सरकार ने कानून-व्यवस्था के उल्लंघन की आशंका में घाटी के पांच जिलों में अगले आदेश तक जल्दबाजी में पूर्ण कर्फ्यू लगा दिया।

इस बीच इंफाल में सबसे अधिक मुखर संस्था का नाम मणिपुर इंटीग्रिटी समन्वय समिति (COCOMI) है। संगठन के प्रवक्ता अथौजम खुराइजम का दावा है कि मणिपुर हिंसा मैतेई लोगों की एसटी स्थिति के बारे में नहीं है, बल्कि एक अलग एजेंडा है।

उनका कहना है कि अगर आप कुकी समुदायों के नैरेटिव पर गौर करें, तो उन्होंने सबसे पहले एसटी मुद्दे के माध्यम से आदिवासी बनाम मैतेई, चिन-कुकी-ज़ो-मिज़ो बनाम मैतेई शुरू किया, फिर कुकी जातीय सफाए में बदल गया, फिर हिंदू-ईसाई संघर्ष में बदल गया। अब अलग प्रशासनिक व्यवस्था की मांग कर रहे हैं। लेकिन मणिपुर इंटीग्रिटी समन्वय समिति (COCOMI) के प्रवक्ता हिंसा पर बात नहीं करना चाहते हैं।

मणिपुर हिंसा पर जब-जब विपक्षी दलों ने या यूरोपीय सांसदों के समूह या संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार समिति ने कुछ बयान दिया सबसे पहले मणिपुर इंटीग्रिटी समन्वय समिति (COCOMI) के पेट में दर्द हुआ। संगठन ने राज्य में हिंसा को सिरे से नकार दिया। COCOMI की किसी मुद्दे पर राय मणिपुर सरकार के राय से शत-प्रतिशत मिलती दिखी।

अब COCOMI ने आरोप लगाया है कि आम जनता का सुरक्षा कर्मियों पर से भरोसा उठ रहा है और उन्हें राज्य से बाहर किया जाए। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मैतेई समुदाय सरकारी हथियारों को लूट कर और चार महीने के लंबी तैयारी कर एक बार फिर कुकी समुदाय को सबक सिखाने का इंतजार नहीं कर रहा है?

मणिपुर इंटीग्रिटी पर समन्वय समिति (COCOMI) इम्फाल स्थित कई नागरिक समाज संगठनों की एक छत्र संस्था है। यह संस्था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अवैध अप्रवासियों की पहचान करने के लिए पूर्वोत्तर राज्य में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को लागू करने का आग्रह भी कर चुकी है। COCOMI की यह भी मांग है कि कुकी विधायकों की मांग के अनुरुप उनको अलग प्रशासन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

COCOMI की यह भी मांग है कि “मणिपुर में क्षेत्रीय अखंडता और प्रशासन प्रणाली में बदलाव नहीं किया जाना चाहिए… क्षेत्रीय अखंडता और प्रशासन में कोई भी बदलाव कई छोटे आदिवासी समुदायों के लिए मौत की घंटी ला सकता है, जो एक बड़ा नुकसान होगा क्योंकि अब भी वे अत्यधिक हाशिए पर हैं।”

मणिपुर में जातीय-संघर्षों में नवीनतम विकास के रूप में, सैकड़ों प्रदर्शनकारी बुधवार को मणिपुर के बिष्णुपुर जिले के फोगाकचाओ इखाई में एकत्र हुए और टोरबुंग में अपने निर्जन घरों तक पहुंचने के प्रयास में सेना के बैरिकेड्स को तोड़ने की कोशिश कर रहे थे।

अधिकारियों के अनुसार, आरएएफ, असम राइफल्स और मणिपुर पुलिस के जवानों सहित सुरक्षा बलों द्वारा आंसू गैस के गोले दागे जाने से क्षेत्र में तनाव काफी बढ़ गया था।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

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