भगवान राम के नाम पर ‘मोदी नाम केवलम’ की दुंदुभि

तो सच यही है कि 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होगी। मंदिर के भीतर और बाहर की तस्वीर जिस तरह से सामने आ रही है उससे साफ़ लगता है कि प्राण प्रतिष्ठा की पूरी तैयारी कर ली गई और जो तैयारी बची है उसे अंतिम रूप दिया जा रहा है। अब तो गर्भ गृह में प्रभु राम की श्याम मूर्ति भी स्थापित कर दी गई है।

पूरा देश राममय हो गया है। देश के किसी भी कोने में चले जाइये बस एक ही चर्चा चल रही है राम आ रहे हैं। अब देश का कया पलट हो जाएगा। यह भी कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी प्रभु राम को अयोध्या ला रहे हैं। जिस तरह के पोस्टर और कट आउट देश भर में लगाए गए हैं वे यही बता रहे हैं कि भगवान राम पहली बार देश में आ रहे हैं और भगवान को लाने में मोदी की बड़ी भूमिका है।

यानी हर जगह मोदी ही मोदी। मोदी नाम केवलम का जाप सबसे ज्यादा है। मोदी के नाम का जाप होगा तो मोदी का इकबाल बढ़ेगा। देश ही नहीं विदेशों में भी मोदी के जयकारे लग रहे हैं। ये जयकारे कौन लगा रहे हैं कोई नहीं जानता लेकिन देश के अखबारों और चैनलों में इसकी खूब चर्चा भी हो रही है। देश के समाचार पत्रों में कई-कई पेज के विज्ञापन चल रहे हैं। सभी पन्नों में मोदी का नाम चल रहा है उनकी तस्वीरों को चस्पा किया जा रहा है।

देश के मानस को यह बताने की कोशिश की जा रही है कि देखो इस मोदी को जिसने क्या से क्या कर दिया। जो पांच सौ साल में नहीं हुआ वह मोदी ही तो कर रहे हैं। कह सकते हैं कि यही समय असली मोदी काल का अमृत काल है। इस अमृत काल को अगर ठीक से उपयोग कर लिया गया तो बीजेपी की सत्ता फिर से लौट सकती है।

बीजेपी और बीजेपी के लोगों के मन में यह बात बैठाई जा रही है कि मोदी नाम की दुंदुभि जितनी तेज होगी, विस्तारित होगी, बीजेपी का विस्तार भी उतना ही होगा। और यही वजह है कि तमाम सवालों के बाद भी विपक्ष, शंकराचार्यों, धर्म ज्ञाताओं की बात को कौन सुन रहा है?

मीडिया ऐसे सवालों से सरकार को घेर सकती थी लेकिन वह तो पहले ही चाकरी के दौर में है। जब बिना आदेश के ही वह सब कुछ करने को पहले से तैयार है तो फिर सवाल कौन करेगा? देश का यह मौजूदा समय भले ही जो भी कर जाए लेकिन इतना सच है कि हमारी आने वाली पीढ़ी जब हमसे ऐसे समय के बारे में सवाल करेगी तब शायद हम उत्तर देने लायक ही नहीं रहेंगे।

गांव-गांव तक अक्षत चावल तेजी से बांटे जा रहे हैं। सबको अयोध्या बुलाया जा रहा है लेकिन अक्षत बांटने वाले राम भक्त जनता के कान में एक बात ज़रूर फूंक रहे हैं कि बीजेपी ने मंदिर बनाया और मोदी प्रभु राम को स्थापित कर रहे हैं। बाकी के विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं। हिन्दुओं का अपमान कर रहे हैं और सनातन के खिलाफ कुछ हिन्दू काम कर रहे हैं। गांव-गांव और जन-जन तक अक्षत बांटने का जो खेल चल रहा है वह बड़ा ही रोचक है। अक्षत के बहाने सनातन वोट बैंक को एक साथ हो जाने का यह न्योता भर है।

लेकिन इस पूरे खेल में गोदी मीडिया की कहानी अचरज से भरी हुई है। गोदी मीडिया देश के शंकराचार्यों के साथ बात तो कर रही है लेकिन शंकराचार्य जिन मुद्दों को उठा रहे हैं, उसको लेकर सत्ता और सरकार से सवाल नहीं कर रही है। शंकराचार्य को मोदी विरोधी कहा जा रहा है, जबकि शंकराचार्य के सवाल कुछ और ही हैं।

शंकराचार्य तो यही कह रहे हैं कि निर्माणाधीन मंदिर का उद्घाटन ठीक नहीं है। यह शास्त्र के खिलाफ है। शंकराचार्य उस प्रभु राम विराजमान मूर्ति पर भी सवाल उठा रहे हैं जो अब तक टेंट में रहते रहे हैं। उस विराजमान मूर्ति के बारे में यही कहा जाता है कि उनका प्रकटीकरण खुद ही हुआ था और उसी मूर्ति को लेकर पूरी लड़ाई लड़ी गई। कोर्ट में मुक़दमे चले और गवाही भी हुई।

फिर उन रामलला विराजमान मूर्ति का क्या होगा? शंकराचार्य यह भी कहते हैं कि बेहतर तो यही होता कि उस मूर्ति को ही मंदिर के भीतर प्रतिष्ठित किया जाता। ऐसे बहुत से सवाल हैं, लेकिन शंकराचार्यों के सवाल को मान कौन रहा है?

उलटी कहानी यह है कि जो सवाल उठा रहा है उसे ही मोदी विरोधी और धर्म विरोधी कहा जा रहा है। यह देश के भीतर की अद्भुत कहानी है। इससे पहले आजतक राजनीति और धर्म के बीच इतना बड़ा द्वन्द नहीं दिखा था। ऐसे में बड़ा सवाल तो यह भी है कि जिस सनातन परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए आदि गुरु शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की थी, आज उन मठों और धर्मरक्षकों पर ही सवाल उठ रहे हैं।

लगता है मानो देश के चारों शंकराचार्य ही सनातन विरोधी हैं और राम विरोधी भी। तो सवाल यह है कि क्या शंकराचार्य सनातन विरोधी हैं? और अगर सनातन विरोधी हैं तो फिर चार मठों की जरूरत क्या है? जब सब कुछ बीजेपी, संघ और विहिप के अनुसार होना है तो फिर शंकराचार्यों की जरूरत क्या है? लगता आने वाले समय में यह भी एक विवाद का कारण बन सकता है।

इधर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने एक बड़ा सवाल खड़ा किया है। उन्होंने कहा है कि हिन्दुओं को मार्ग कौन दिखायेगा? शंकराचार्य या फिर चंपत राय? उन्होंने कहा है कि आज जनमानस में कुछ सवाल खड़े हो गए हैं। भगवान बड़े हैं या मोदी जी? सनातन धर्म की मान्यताओं का पालन किसने किया? महात्मा गांधी ने या नाथू राम गोडसे ने? क्या निर्माणाधीन मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की जा सकती है? राम भगवान का जन्म रामनवमी पर हुआ था क्या प्राण प्रतिष्ठा उसी दिन नहीं हो सकती थी?

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने आगे कहा है कि “मैं शुरू से कह रहा हूं कि जिस रामलला की मूर्ति रखे जाने से विवाद खड़ा हुआ था, फिर विध्वंस हुआ, वह कहां है? दूसरी मूर्ति की क्या आवश्यकता थी?हमारे गुरु द्वारिका और जोशीमठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद महाराज ने सुझाव दिया था कि राम जन्म भूमि मंदिर में राम की मूर्ति बाल स्वरूप होकर मां कौशल्या के गोद में होना चाहिए। लेकिन जो मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है, वह तो बाल स्वरूप की नजर नहीं आती है।”

अब जब सब कुछ साफ हो गया है कि अभी नहीं तो कभी नहीं वाली राजनीति को आगे बढाती हुई बीजेपी धर्म की राजनीति को आगे बढ़ा रही है तब यह भी कह देना जरूरी है कि आज भले ही हम धर्म शास्त्रों, शंकराचार्यों की अवहेलना कर रहे हों लेकिन जब सत्ता कभी बदल जाएगी तो फिर जो समाज में देखने को मिलेगा उसकी कल्पना भी तो नहीं की जा सकती।

(अखिलेश अखिल पत्रकार और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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