संघ से जुड़े संगठनों को राजनीतिक बताकर अधिकारियों ने बैठक में जाने से किया इनकार

नई दिल्ली। मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार और संघ से जुड़े संगठन देश में लोकतंत्र, भाईचारा और धर्मनिरपेक्ष संविधान पर हमला करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते हैं। पिछले नौ सालों से अल्पसंख्यकों, प्रगतिशील संस्थाओं और व्यक्तियों पर हमला करना और उन्हें झूठे मामले में फंसाकर जेल भेजना तो सरकारी काम की तरह संचालित किया जाता रहा है। लेकिन अब मोदी सरकार सरकारी संस्थाओं को कमजोर और अप्रासंगिक करने के लिए कानूनी तौर-तरीकों का भी इस्तेमाल करने लगी है।

अब संघ की दो संस्थाओं- ‘अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम’ और ‘सहकार भारती’ ने जनजातीय मामलों के मंत्रालय को पत्र लिखकर दो अधिकारियों पर कार्रवाई करने की मांग की है। दोनों संस्थाओं का आरोप है कि उक्त दोनों अधिकारियों ने एक पत्र में उनपर राजनीतिक संगठन होने का आरोप लगाया है।

मामला कुछ यूं है। जनजातीय मामलों के मंत्रालय से जुड़ी सहकारी संस्था ट्राइफेड (ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड) के अध्यक्ष रामसिंह राठवा है, जो गुजरात के छोटा उदयपुर से लोकसभा सदस्य रह चुके हैं। रामसिंह राठवा ने बतौर अध्यक्ष 23 मार्च को ट्राइफेड (TRIFED) की प्रबंध निदेशक गीतांजलि गुप्ता सहित सहकारी अधिकारियों को पत्र लिखकर पांच दिन बाद वनवासी कल्याण आश्रम और सहकार भारती के साथ होने वाली प्रधानमंत्री जनजातीय विकास मिशन (PMJVM) बैठक में उपस्थित रहने के लिए कहा था। वनवासी कल्याण आश्रम आदिवासियों के साथ काम करता है, वहीं सहकार भारती सहकारी क्षेत्र में सक्रिय है।

लेकिन पत्र मिलने के बाद भी ट्राइफेड के अधिकारी ट्राइफेड अध्यक्ष द्वारा आरएसएस के दो सहयोगियों के साथ बुलाई गई बैठक से दूर रहे थे।

ट्राइफेड के महाप्रबंधक, अमित भटनागर ने 24 मार्च को राठवा के पत्र का जवाब देते हुए एक पत्र लिखा, जिसमें कहा गया था कि यह पत्र सहकारी संस्था ट्राइफेड के कर्मचारियों को “राजनीतिक चरित्र वाले संगठनों की बैठक में” भाग लेने का निर्देश देता है। भटनागर ने कहा, यह सेवा नियमों के खिलाफ था, “जो अन्य बातों के साथ-साथ यह प्रावधान करता है कि प्रत्येक सरकारी कर्मचारी को हर समय राजनीतिक तटस्थता बनाए रखनी होगी।”

जब 28 मार्च को बैठक हुई, तो वनवासी कल्याण आश्रम और सरकार के बीच कड़ी निभाने वाले शरद चव्हाण और सहकार भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष डीएन ठाकुर दोनों उपस्थित थे। ट्राइफेड की ओर से केवल अध्यक्ष रामसिंह राठवा उपस्थित थे।

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक बैठक के मिनट्स से पता चलता है कि बैठक में वनवासी कल्याण आश्रम और सहकार भारती दोनों के साथ सहयोग पर चर्चा की गई, उन्हें सामाजिक गतिविधियों में लगे गैर सरकारी संगठन के रूप में वर्णित किया गया, जिन्होंने पहले भी सरकार के साथ मिलकर काम किया था। राठवा ने कहा कि महासंघ का मुख्य उद्देश्य अपनी योजनाओं को आदिवासियों तक पहुंचाना है और आरएसएस से जुड़े दो संगठन इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

विवरण से पता चलता है कि चव्हाण और ठाकुर ने यह जानना चाहा कि सरकारी अधिकारियों के साथ अगले दौर की बातचीत कब होगी। तब राठवा ने कहा था कि उन्होंने बैठक में सभी संबंधित विभागों के प्रमुखों की भागीदारी के लिए कहा था, लेकिन भटनागर ने सेवा नियमों का हवाला देते हुए और वनवासी कल्याण आश्रम और सहकार भारती को राजनीतिक संगठन बताते हुए उन्हें ऐसा नहीं करने के लिए कहा था। चव्हाण और ठाकुर ने अपने संगठनों के इस पहचान पर अपना विरोध दर्ज कराया।

30 जून को, वनवासी कल्याण आश्रम ने ट्राइफेड के प्रबंध निदेशक गुप्ता को एक कानूनी नोटिस भेजा, जिसमें कहा गया कि इसे “गलत तरीके से एक राजनीतिक संगठन” माना गया है, और भटनागर द्वारा 24 मार्च के पत्र को तत्काल वापस लेने की मांग की गई है।

24 जुलाई को, वनवासी कल्याण आश्रम के शरद चव्हाण ने केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा को पत्र लिखकर कहा कि ट्राइफेड पत्र “हमारी राष्ट्रव्यापी छवि को खराब करता है” और जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ जांच और कानूनी कार्रवाई की जाए।

मामला बिगड़ता देख इस बीच, 22 जुलाई को भटनागर ने राठवा को पत्र लिखकर कहा कि 24 मार्च को उनके द्वारा भेजा गया पत्र “गलतफहमी पैदा करता है और इसे तत्काल प्रभाव से वापस लिया जाना चाहिए”। उन्होंने लिखा, “उपरोक्त पत्र वापस लिया जाता है।”

हालांकि, राठवा ने मीडिया को बताया कि विवाद “अभी तक हल नहीं हुआ है”। विवाद के पीछे अधिकारियों की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा, ‘यह पत्र (22 जुलाई को) अधिकारियों द्वारा केवल कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए लिखा गया है। उनका दृष्टिकोण अभी भी बदलना बाकी है।”

चव्हाण ने कहा कि वनवासी कल्याण आश्रम को भटनागर से कोई पत्र नहीं मिला है और वे “उचित मंचों पर” अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।

सहकार भारती के डीके ठाकुर ने कहा कि वे लड़ाई में वनवासी कल्याण आश्रम के साथ हैं। “हमारे खिलाफ ट्राइफेड का आदेश एक मजाक की तरह था… ट्राइफेड के साथ मिलकर, हम जनजातीय लोगों की अधिक सेवा कर सकते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से वह ऐसा नहीं चाहता है।”

28 मार्च को राठवा को लिखे पत्र में भटनागर द्वारा उद्धृत सेवा नियमों में कहा गया है कि, “कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी भी राजनीतिक दल या राजनीति में भाग लेने वाले किसी भी संगठन का सदस्य नहीं होगा, या अन्यथा उससे जुड़ा नहीं होगा और न ही वह इसमें भाग लेगा। किसी भी राजनीतिक आंदोलन या गतिविधि की सहायता नहीं ले सकता, या किसी अन्य तरीके से सहायता कर सकता है।”

वन धन कार्यक्रम के कार्यान्वयन में ट्राइफेड की भूमिका विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जिसका उद्देश्य आदिवासियों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करना है। इस योजना में जनजातीय समुदायों के स्वामित्व वाले वन धन विकास केंद्र समूहों की परिकल्पना की गई है, जिनमें से प्रत्येक में लगभग 300 लाभार्थी हैं, जिसमें ट्राइफेड प्रत्येक को 15 लाख रुपये प्रदान करता है।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments