सोनिया गांधी के डिनर से विपक्ष निडर तो बीजेपी में डर!

सोनिया गांधी के डिनर से विपक्ष होगा निडर तो बीजेपी में पैदा हो सकता है डर। अब तक अकेले राहुल गांधी ने बीजेपी को बैकफुट पर ला रखा था। बीजेपी एनडीए की बैठक बुलाने को मजबूर हो रही है, मोदी मंत्रिपरिषद का विस्तार रुका हुआ है, महाराष्ट्र की खिचड़ी जलती नज़र आ रही है, मणिपुर का मसला अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आ चुका है और यहां तक कि दुनिया भर में नरेंद्र मोदी को जवाब देना पड़ रहा है। अब सोनिया गांधी के डिनर पॉलिटिक्स ने भारत की सियासत में हलचल पैदा कर दी है।

सोनिया गांधी की सक्रियता को वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रमों के परिप्रेक्ष्य में ही समझना होगा। पटना में विपक्ष की बैठक में नीतीश कुमार ने ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं को इकट्ठा कर अपनी अहमियत जता दी। अब बेंगलुरू में कुछ बड़ा करना जरूरी हो गया। यहां से कांग्रेस की भूमिका शुरू हुई। मल्लिकार्जुन खड़गे ने छोटे-छोटे कई दलों को जोड़ते हुए यह कुनबा दो दर्जन दलों का बना डाला। सोनिया गांधी के डिनर में पटना में जुटे दलों के अलावा केरल कांग्रेस (जे), केरल कांग्रेस (एम), आईयूएमएल, वीसीके, एमडीएमके, केडीएमके, आरएसपी, फॉरवर्ड ब्लॉक भी शामिल होगी। जयंत चौधरी भी बेंगलुरू जाने वाले हैं।

पटना से बेंगलुरू में बैठक के दौरान घटी अहम घटनाएं

पटना से बेंगलुरू के बीच कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटी हैं जिनका जिक्र करना जरूरी है। एनसीपी में फूट, राहुल गांधी की सज़ा का गुजरात हाईकोर्ट द्वारा बरकरार रखना, तेजस्वी यादव के खिलाफ आरोप पत्र, तमिलनाडु में राज्यपाल की ओर से मंत्री सेंथिल बालाजी को बर्खास्त करने की पहल और फिर पीछे हटना, ईडी के विस्तार को सुप्रीम कोर्ट की ओर से गलत ठहराया जाना, जीएसटी को पीएमएलए के दायरे में लाने की पहल, मणिपुर मामले का यूरोपीय यूनियन में उठाए जाने की बात, राफेल मामले में फ्रांस में नया खुलासा कि अनिल अंबानी ने तत्कालीन वित्तमंत्री और वर्तमान राष्ट्रपति मैक्रां को चिट्ठी लिखी गयी थी जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हवाले से छूट मांगी गयी थी…। इस बीच पश्चिम बंगाल के चुनाव नतीजे भी विपक्ष में उत्साह भरते हैं।

ये तमाम घटनाएं विपक्ष पर हमला भी हैं और सत्ता पक्ष पर विपक्ष की ओर से एकजुट हमले की जरूरत को भी रेखांकित करती हैं। निस्संदेह सोनिया गांधी विपक्ष की हर नेता को जोड़ सकती हैं। वह शरद पवार के मनोबल को मजबूत कर सकती हैं। तेजस्वी और राहुल को उनकी मौजूदगी से ढांढस मिलेगी। तमिलनाडु की डीएमके भी सोनिया गांधी का साथ पाकर उत्साहित रहेगी। ममता बनर्जी को जोड़े रखने में भी सोनिया गांधी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

पश्चिम बंगाल से 2024 के लिए फॉर्मूला मिला

पश्चिम बंगाल चुनाव में कांग्रेस और लेफ्ट मिलकर लड़े। मगर, इसका फायदा टीएमसी को मिला जबकि बीजेपी की उम्मीदों पर पानी फिर गया। 2024 के लिए भी पश्चिम बंगाल के चुनाव से सबक मिलते हैं। आमने-सामने की टक्कर कहां जरूरी है और कहां तिकोने संघर्ष में बीजेपी को हराना आसान है, इस पर चर्चा करने के लिए मुफीद स्थिति बनी है। इसका मतलब यह है कि दोस्ताना संघर्ष भी अच्छे नतीजे दे सकते हैं।

दक्षिण के राज्यों जिनमें महाराष्ट्र सबसे बड़ा है और पूरब में जहां बिहार और बंगाल मिलाकर तीनों राज्यों में लोकसभा की 129 सीटें हैं। इनमें से बीजेपी ने बीते चुनाव में 97 सीटें जीती हैं। केवल इन तीन राज्यों में अगर विपक्षी एकता रंग दिखाती है तो बीजेपी सत्ता से बाहर हो सकती है। कांग्रेस ने जिन छोटे दलों को जोड़ा है वे केरल और तमिलनाडु में विपक्ष को मजबूत करता है। आरएलडी के साथ आने का असर राजस्थान, यूपी, हरियाणा और दिल्ली तक पर पड़ सकता है। आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन या दोस्ताना संघर्ष हो तो पंजाब, राजस्थान और मध्य प्रदेश तक में बीजेपी विरोधी बंटने से रह जाएंगे।

सोनिया गांधी में एकीकरण की क्षमता

सोनिया गांधी में वह क्षमता है जो क्षेत्रीय दलों को एक मंच पर ला सकती हैं। बीजेपी की सियासत को यूपीए बनाकर चुनौती देने वाली सोनिया गांधी का कर्नाटक जीत से ऐतिहासिक वजह भी जीवंत हो गयी हैं जिसने कांग्रेस को दोबारा खड़ा किया था। 1999 में सोनिया गांधी राजनीति में आईं और कर्नाटक के बेल्लारी से चुनाव लड़ने का फैसला किया। सोनिया गांधी को हराने के लिए सुषमा स्वराज को बीजेपी ने चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन सोनिया गांधी ने न सिर्फ वेल्लारी सीट जीती, बल्कि यूपीए की बुनियाद भी आगे चलकर रखा।

इंदिरा गांधी को इमर्जेंसी के बाद कर्नाटक के चिकमंगलूर ने ही राजनीति में पुनर्स्थापित किया था। ‘एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमगलूर-चिकमगलूर’ के नारे ने न सिर्फ इंदिरा गांधी को, बल्कि पूरी कांग्रेस को दोबारा खड़ा कर दिया था। कांग्रेस ने जनता पार्टी को हराकर दोबारा सत्ता हासिल की थी। यही वजह है कि सोनिया गांधी ने एक बार फिर कर्नाटक से ही बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने की मुहिम को आगे बढ़ाने का फैसला किया है।

कांग्रेस के लिए चुनौती बड़ी है। राहुल गांधी ने कांग्रेस में नयी जान फूंकी है। अगर कांग्रेस ने मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेशों में बीजेपी को मात दे दी और लोकसभा चुनाव में भी अपनी ताकत को बचाए रखा, तो बीजेपी के लिए 2024 का चुनाव बेहद मुश्किल साबित होगा। ऐसी स्थिति में विपक्षी एकता बाकी प्रदेशों में इतना काम जरूर कर देगी कि बीजेपी सत्ता से बाहर हो जाए। यही वजह है कि विपक्षी एकता और कांग्रेस के लिए सोनिया गांधी ने 77 साल की उम्र में कमर कस ली है।

(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और दिल्ली में रहते हैं।)

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