पेंडोरा पेपर्स ने भी की अडानी से जुड़ी ओसीसीआरपी रिपोर्ट की पुष्टि

नई दिल्ली। अडानी मामले में हिंडनबर्ग और ओसीसीआरपी की रिपोर्ट के आने के बाद अब एक और रिपोर्ट ने उसकी पुष्टि कर दी है। कुछ महीनों पहले इंडियन एक्सप्रेस समेत तमाम अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठनों की ओर से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काले धन के जाल की जांच के लिए एक टीम गठित की गयी थी। पेंडोरा पेपर्स के नाम से सामने आयी उसकी रिपोर्ट में भी हिंडनबर्ग और ओसीसीआरपी की रिपोर्ट की पु्ष्टि होती है। इसमें दिखाया गया था कि अडानी समूह द्वारा बनायी गयी शेल कंपनियों के कर्मचारी किस तरह से इस पूरे फ्राड के कर्ताधर्ता हैं।

कल सामने आयी फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट में बताया गया है कि अडानी के शेयरों में रफ्तार लाने और ट्रेडिंग करने के लिए, ग्लोबल अपॉर्चुनिटीज फंड (बरमूडा) के तहत ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड (बीवीआई) शेल कंपनियों द्वारा इमर्जिंग इंडिया फोकस फंड्स (मॉरीशस) और ईएम रिसर्जेंट फंड (मॉरीशस) के माध्यम से अज्ञात स्रोतों से धन जुटाया गया था।

एक ताजी रिपोर्ट में इस बात का दावा किया गया है कि फाइनेंशियल टाइम्स (एफटी) की रिपोर्ट में जिन ऑफशोर शेल कंपनियों का उल्लेख किया गया है, वे कंपनियां हकीकत में पेंडोरा पेपर्स जांच के तहत प्राप्त रिकॉर्ड के अनुसार अडानी समूह से जुड़ी हुई हैं। हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद ताजातरीन ओसीसीआरपी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ऑफशोर फंडिंग में शामिल संयुक्त अरब अमीरात के नागरिक नासिर अली शाबान अहली और ताइवान के नागरिक चांग चुंग-लिंग, दोनों व्यक्ति अडानी समूह के अध्यक्ष गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी के सहयोगी थे। इस रिपोर्ट के उजागर होने के बाद कल गुरुवार को अडानी ग्रुप के शेयरों में भारी गिरावट का रुख देखने को मिला है।

ओसीसीआरपी के इस दावे कि अडानी समूह सार्वजनिक रूप से कारोबार वाले शेयरों में भारी मात्रा में निवेश करने के लिए “अपारदर्शी” मॉरीशस फंड का इस्तेमाल कर रहा है, के एक दिन बाद ही एक अन्य रिपोर्ट में अब यह बात कही जा रही है कि फाइनेंशियल टाइम्स द्वारा जिन ऑफशोर शेल कंपनियों का उल्लेख अपनी रिपोर्ट में किया गया है, वे वास्तव में भारत के अडानी समूह से सम्बद्ध हैं। अंग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, पेंडोरा पेपर्स जांच का हिस्सा रह चुकी ऑफशोर कॉर्पोरेट सेवा प्रदाता ट्राइडेंट ट्रस्ट ने भी फाइनेंशियल टाइम्स द्वारा नामित ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स (बीवीआई) में पंजीकृत दो ऑफशोर शेल कंपनियों के अडानी समूह से जुड़े होने की पुष्टि की है।

फाइनेंशियल टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इन फर्मों के पीछे जो दो व्यक्ति हैं, वे अडानी समूह के अध्यक्ष गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी के सहयोगी थे। उनमें से एक संयुक्त अरब अमीरात के नागरिक नासिर अली शाबान अहली और दूसरे ताइवान के नागरिक चांग चुंग-लिंग हैं। इसके लिए अहली ने जहां गल्फ एशिया ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट लिमिटेड का इस्तेमाल किया, वहीं चांग ने लिंगो इन्वेस्टमेंट लिमिटेड का इस्तेमाल किया। 2013 से दोनों की ओर से अडानी के स्टॉक्स में पैसा लगाना शुरू किया गया।

एफटी की रिपोर्ट से पता चलता है कि अडानी के शेयरों में तेजी और ट्रेंडिंग के पीछे ग्लोबल अपार्चुनिटीज फंड (बरमूडा) के तहत इमर्जिंग इंडिया फोकस फंड्स (मॉरीशस) और ईएम रिसर्जेंट फंड (मॉरीशस) का हाथ रहा है, जिसके माध्यम से बीवीआई शेल कंपनियों द्वारा अज्ञात स्रोतों से धन जुटाया गया था। रिपोर्ट में साफ़ कहा गया है कि यूएई से नासिर अली शाबान अहली और ताइवान से चांग चुंग-लिंग ने सिर्फ अडानी समूह के स्टॉक में ट्रेडिंग करने के लिए बरमूडा स्थित ग्लोबल अपॉर्चुनिटीज फंड के भीतर श्रृंखलाबद्ध निवेश ढांचों का इस्तेमाल किया।

यहाँ पर इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि भारतीय पूंजी बाजार की नियामक संस्था सेबी के द्वारा स्टॉक मार्केट में सूचीबद्ध कंपनियों के प्रमोटर्स के लिए कंपनी में हिस्सेदारी की अधिकतम सीमा 75% निर्धारित है। ऐसे में इन ऑफशोर कंपनियों के साथ किसी भी प्रमोटर के साथ लिंक होने का मतलब है कि अडानी कंपनियों द्वारा प्रमोटर शेयरहोल्डिंग के लिए निर्धारित 75 प्रतिशत की तय सीमा का उल्लंघन किया है। इसका दूसरा मतलब यह है कि किसी कंपनी की कम से कम 25 प्रतिशत इक्विटी पब्लिक के पास होनी चाहिए।

इंडियन एक्सप्रेस को हासिल कॉरपोरेट दस्तावेज इस बात का खुलासा करते हैं कि नेटवर्क का जाल है जिसके जरिये अडानी कंपनी के कर्मचारी और पदाधिकारी इन दोनों बीवीआई शेल कंपनियों को नियंत्रित करते हैं। 

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के नियमों के तहत, सेबी के रिकॉर्ड से पता चलता है कि इमर्जिंग इंडिया फोकस फंड्स एवं ईएम रिसर्जेंट फंड ने ट्राइडेंट ट्रस्ट कंपनी लिमिटेड को इसका लाभकारी मालिक घोषित किया है। जबकि 31 जुलाई को ओसीसीआरपी ने दावा किया कि “अपारदर्शी” मॉरीशस फंड के माध्यम से अडानी समूह के कुछ स्टॉक्स में लाखों-लाख डॉलर का निवेश किया गया था, जिसके चलते अडानी परिवार के कथित बिजनेस पार्टनर्स की भागीदारी “ढंक-छिप” जाती है।

गल्फ एशिया ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट लिमिटेड (बीवीआई) को मई 2011 में शामिल कर लिया गया है। दस्तावेज दिखाते हैं कि दुबई स्थित एक चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्म ने ट्रिडेंट ट्रस्ट को पत्र लिखकर पूछा कि क्या कंपनी के “शेयर ट्रांसफर के समय हस्तलिखित दस्तावेज स्वीकार किए जाएंगे?”

शेयर ट्रांसफर समझौते का नत्थी दस्तावेज कहता है कि नासिर अली शाबान अहली अपना 100 फीसदी शेयर होल्डिंग राकेश शांतिलाल शाह को बेचने का इच्छुक है जिसकी पहचान उसके भारतीय पासपोर्ट नंबर से की गयी थी। इसके साथ ही इसमें पावर ऑफ एटार्नी का ड्राफ्ट भी उसमें शामिल था जिसको कंपनी के नाम पर स्टाक और प्रापर्टीज में निवेश के लिए अकेले इस्तेमाल किया जा सकता था।

जैसा कि इंडियन एक्सप्रेस ने पेंडोरा पेपर्स जांच मामले में रिपोर्ट किया था 1996 में राकेश शांति लाल शाह ने इंटरनेशनल इंक (बाहमास) कंपनी के निदेशक के तौर पर विनोद अडानी की पत्नी रंजनाबेन को प्रतिस्थापित किया था। आपको बता दें कि इस कंपनी को विनोद और रंजनाबेन ने 1994 में स्थापित किया था। इसके अलावा राकेश शांतिलाल शाह अडानी ग्लोबल एफजेडई (जेबेल अली, दुबई) में विनोद के साथ निदेशक के तौर पर अपनी सेवाएं दिए थे।

जहां तक लिंगो इन्वेस्टमेंट लिमिटेड कंपनी की बात है तो अगस्त 2010 में इसकी स्थापना के दिन का रिकार्ड बताता है कि इसने स्टाक, प्रापर्टी और अन्य जगहों पर निवेश के सिलसिले में बैंक एकाउंट आपरेशन के लिए निदेशक चांग के साथ तेजल रमनलाल देसाई को पावर ऑफ अटार्नी दिया।

अप्रैल 2022 के आर्डर में अहमदाबाद स्थित कस्टम के प्रिंसिपल कमिश्नर ने तेजल देसाई को अडानी ग्लोबल एफजेडई का कर्मचारी बताया था।

रिकार्ड के मुताबिक गल्फ एशिया ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट लिमिटेड के लिए शेयर ट्रांसफर का दस्तावेज तैयार करने वाली दुबई आधारित चार्टर्ड एकाउंट फर्म ने ही ट्रिडेंट ट्रस्ट फॉर लिंगो इन्वेस्टमेंट लिमिटेड (बीवीआई) को कारपोरेट फीस अदा की थी। 

अपनी जांच में ओसीसीआरपी को कम से कम दो ऐसे मामले मिले हैं जिसमें देखने को मिला है कि निवेशकों ने ऐसी ऑफशोर संरचनाओं के माध्यम से अडानी का स्टॉक खरीदा और बेचा है। यह रिपोर्ट अमेरिका स्थित शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडानी समूह पर अनुचित व्यापारिक लेनदेन का आरोप लगाने के कम से कम आठ महीने बाद आई है, जिसमें टैक्स हैवन में अपतटीय संस्थाओं का उपयोग भी शामिल है।

अडानी ग्रुप ने हिंडनबर्ग के बाद एक बार फिर से ओसीसीआरपी द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट का खंडन किया है। अडानी समूह के बयान में कहा गया है कि वे इन आरोपों को स्पष्ट रूप से ख़ारिज करते हैं। अडानी समूह के अनुसार, “ये न्यूज़ रिपोर्ट एक बार फिर से बेकार हिंडनबर्ग रिपोर्ट को पुनर्जीवित करने के लिए विदेशी मीडिया के एक वर्ग द्वारा समर्थित सोरोस-वित्त पोषित हितों द्वारा एक और ठोस प्रयास लगता है।”

बता दें कि ओसीसीआरपी खोजी पत्रकारों का एक वैश्विक नेटवर्क है, जिसका उद्देश्य भ्रष्टाचार को उजागर करने पर केंद्रित है। इसे जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (ओएसएफ) एवं रॉकफेलर ब्रदर्स फंड सहित विभिन्न संगठनों द्वारा वित्त पोषित किया जाता है। ओसीसीआरपी रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद 31 अगस्त को अडानी ग्रुप के शेयरों में भारी नुकसान देखने को मिला है। समूह के सभी 10 शेयरों का कुल बाजार पूंजीकरण (एमकैप) सिर्फ एक दिन में ही 35,000 करोड़ रुपये से अधिक गिर गया था।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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