ग्राउंड रिपोर्टः बनारस के जयापुर में असलियत से कोसों दूर है पीएम मोदी के ‘ग्राम स्वराज’ का नारा

वाराणसी शहर से करीब एक घंटे का सफर करने के बाद जयापुर पहुंचने पर बीएसएनएल का एक बड़ा विशाल टावर, सोलर लैंप, डाकघर, आधुनिक सुविधाओं से लैस राष्ट्रीयकृत बैंकों की दो-दो शाखाएं और धूप से बचने के लिए विश्रामालय देखकर दूर से नए भारत की तस्वीर उभरती है। जयापुर पीएम नरेंद्र मोदी के उन आठ गांवों में शामिल है जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में गोद लिया था। जयापुर देश का पहला दुलारा गांव है जिसे बीजेपी ने मॉडल विलेज के रूप में पेश करते हुए ‘ग्राम स्वराज’ का नारा था। मोदी ने जयापुर के बाद नागेपुर, ककरहिया, डोमरी, परमपुर, पूरी बरियार, पूरी गांव और कुरहुआ को मोदी ने गोद लिया। जयापुर को छोड़ दें तो बाकी सभी गांवों की तस्वीर यूपी के दूसरे गांवों से अलग नहीं है।

वाराणसी रेलवे स्टेशन से करीब 21 किमी दक्षिण-पश्चिम में बसे जयापुर पहुंचने के लिए आपको कोई साधन नहीं मिलेगा। निजी वाहन नहीं है तो इस गांव में पहुंचने के लिए आपको काफ़ी मशक़्क़त करनी पड़ेगी। बनारस कैंट रेलवे स्टेशन से करीब 16 किलोमीटर दूर राजातालाब तक आप आसानी से पहुंच सकते हैं, लेकिन उसके बाद जयापुर पहुंचने के लिए आपको दो-तीन घंटे से ज्यादा देर तक ऑटो का इंतज़ार करना पड़ सकता है। दरअसल, जयापुर से करीब छह किमी दूर राजातालाब सबसे नजदीकी बाजार है। यहां जयापुर जाने के लिए इकलौता साधन सिर्फ ऑटो है और वहां तक पहुंचने में करीब 20 से 25 मिनट लग सकता है। इस गांव के लोग रोडवेज बस का इंतजार नहीं करते। कुछ निजी वाहनों का इस्तेमाल करते है तो कुछ ऑटो से राजातालाब अथवा बनारस पहुंचते हैं।

लेखक को दुखड़ा सुनाती जयापुर की महिलाएं

जयापुर बस स्टैंड के पास खड़े नौजवान जयेश वर्मा ने कहा, “इस गांव में सिर्फ एक बस आती है। यह बस अलसुबह जयापुर से शहर जाती है और देर शाम वही बस लौटकर यहीं रुक जाया करती है। इस बस के आने-जाने का कोई समय तय नहीं है। यह पता ही नहीं चलता कि रोडवेज बस कब आती है और कब चली जाती है? अगर जयापुर से बाहर जाना है और खुद की गाड़ी नहीं है तो राजातालाब तक की दूरी पैदल नापनी पड़ेगी। जब भी कोई चुनाव आता है तो महीने भर पहले अफसरों की गाड़ियां इस गांव की सड़कें नापने लगती हैं। जयापुर की जो सड़कें बदहाल हो गई थीं, चुनाव आते ही उन्हें सड़कों दुरुस्त करने का काम शुरू करा दिया गया है। दुनिया जानती है कि पीएम मोदी ने हमारे गांव को गोद लिया है। आप की तरह और पत्रकार यहां आते-जाते रहते हैं। हमारी बातें लिख-पढ़कर चले जाते हैं और उसके बाद फिर सन्नाटा खिंच जाया करता है।”

जयेश यह भी कहते हैं, “जयापुर का पूर्व माध्यमिक विद्यालय चंदापुर गांव के आखिरी छोर पर है, जहां आठवीं तक की पढ़ाई होती है। इससे आगे की पढ़ाई के लिए गांव में कोई इंतजाम नहीं है। जयापुर के बच्चों को मैट्रिक में दाखिला लेने के लिए जक्खिनी अथवा राजातालाब जाना पड़ता है। दोनों स्थानों से जयापुर की दूरी तकरीबन छह किमी है। सार्वजनिक यात्री वाहन की सुविधा नहीं होने के कारण स्कूली बच्चे साइकिल से पढ़ने जाते हैं। जिनके पास साइकिल नहीं है वो पढ़ाई छोड़कर खेती-किसानी करते हैं।”

कन्या विद्यालय के पास जल-जमाव

जयापुर की कुल आबादी इस समय 4500 है। हालांकि साल 2011 की जनगणना के अनुसार, आबादी 3100 है। कुल 2700 वोटर हैं। यहां पटेल, ब्राह्मण, भूमिहार, कुम्हार, दलित आदि जातियों के लोग रहते हैं। सर्वाधिक आबादी पटेलों की है। ग्रामीण मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर हैं। यहां गेहूं, धान और तरह-तरह की सब्ज़ियों की खेती होती है। कुछ लोग सरकारी तो कुछ प्राइवेट नौकरी करते हैं। राष्ट्रीय साक्षरता दर 73 फीसदी है, लेकिन यूपी की दर 53 फ़ीसदी है।

सरकारी अभिलेखों में जयापुर की साक्षरता दर 76 फ़ीसदी है। सौ पुरुषों के मुकाबले 62 महिलाएं साक्षर हैं। मोदी के गोद लेने के बाद जयापुर में जो बड़ा अंतर दिखाता है, वह है जमीनों की कीमत का। एक-डेढ़ लाख रुपये बिस्वा वाली खेती की जमीन चार-पांच लाख रुपये बिस्वा हो हई। सड़क पर चार-पांच लाख रुपये वाली प्रापर्टी 12-14 लाख बिस्वा में बिक रही है। जयापुर में सर्वाधिक आबादी पटेल समुदाय की है। इस गांव के लोग मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर हैं। यहां पर गेहूं, धान और तरह-तरह की सब्ज़ियों की खेती होती है। सबसे बड़ी बात यह है कि जयापुर बनारस का इकलौता ऐसा गांव है जहां किसान समूचे पूर्वांचल को हर सीजन में गन्ने का जूस पिलाते हैं।

जयापुर के लोग पूरे साल करते हैं गन्ने की खेती

जयापुर ने 7 नवंबर 2014 को उस समय सुर्ख़ियां बटोरी थीं जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसदों से गांवों को गोद लेने का अनुरोध किया और ख़ुद जयापुर को गोद लिया था। उसके बाद जयापुर के दिन ही बदल गए। देखते ही देखते दो-दो सोलर प्लांट लग गए। पानी की टंकी बन गई। दो-दो बैंक खुल गए। एटीएम चालू हो गया। एंबुलेंस की तैनाती कर दी गई। कम्प्यूटर सेंटर और सिलाई केंद्र भी खुल गए।

सांसद आदर्श ग्राम योजना ने लेकर मोदी सरकार ने भले ही राजनीतिक गलियारे में सुर्खियां बटोरी, लेकिन हकीकत कुछ और है। मोदी के गोद लिए गांव जयापुर की तरक्की के लिए 52 विभागों को जिम्मेदारी सौंपी गई थी, वो अब इस गांव में झांकना ही भूल गए हैं। जय़ापुर सीन अब पूरी तरह से बदल गया है। यहां न अफसर आते हैं और न नेताओं का हुजूम जुटता है। पेयजल और बैंक के अलावा सब कुछ पहले जैसा हो गया है। कुछ साल पहले बनारस की एक शैक्षणिक संस्था ने एमबीए के स्टूडेंट्स से जयापुर में कॉर्पोरेट घरानों के धन से कराए गए विकास कार्यों की पड़ताल कराई तो नतीजा यह सामने आया कि यह गांव आज भी उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी जैसी समस्याएं अभी तक नहीं सुलझ पाई हैं।

नहीं खुलती जयापुर की लाइब्रेरी

जयापुर गांव में थोड़ा आगे बढ़ते हैं तो एक लाइब्रेरी दिखाई देती है। लाइब्रेरी की दीवार पर अच्छी-अच्छी बातें तो लिखी हैं, मगर वो सब शायद दिखावे के लिए ही है, क्योंकि उस पर सालों से ताला लगा हुआ है। किसी को यह पता नहीं है कि यह लाइब्रेरी आख़िरी बार कब खुली थी? लाइब्रेरी से किसी ने कभी कोई किताब ली हो, ऐसा कोई शख्स नहीं मिला। लाइब्रेरी की दीवार पर कुछ स्लोगन लिखे हुए हैं। लेकिन सब कुछ दिखावे के तौर पर है। लाइब्रेरी में कई सालों से ताला लगा है। ये कब से बंद है, किसी को पता नहीं। लाइब्रेरी आख़िरी बार कब खुली थी, गांव में किसी को जानकारी नहीं है? यहां से किसी ने कभी कोई किताब ली हो, ऐसा कोई व्यक्ति भी गांव में नहीं मिला।

जयापुर के नौजवान सुनील बताते हैं, “प्राथमिक विद्यालय के छात्रों के लिए खोली गई लाइब्रेरी का प्रबंध ‘रूम टू रीड’ नाम के एक गैर सरकारी संस्थान को सौंपा गया था। लाइब्रेरी को चलाने के लिए ‘पुस्तकालय बाल प्रबंधन समिति’ गठन किया गया था। दावा किया गया था कि एक महीने में सबसे अधिक किताब पढ़ने वाले छात्र को पुरस्कृत किया जाएगा। गरीब तबके के छात्रों को बेहतर शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त ट्यूशन का इंतजाम ‘नन्हीं कली’ नाम की एक गैर सरकारी संस्था ने किया था।”

सुनील के मुताबिक, “नन्हीं कली के संचालकों ने यहां बच्चों को दो घंटे अतिरिक्त ट्यूशन देने की बात कही थी। साथ ही यह भी जिम्मेदारी ओढ़ी थी कि बच्चों के अंदर बोलने की शैली विकसित की जाएगी, ताकि वे युवा संसद चला सकें।” गांव के लोगों ने बताया कि बच्चों के लिए स्मार्ट क्लासेज की सुविधा देने का दावा किया गया तो जयापुर के लोगों ने ढेरों सपने बुन लिए। टेबलेट से पढ़ाई कराने का जिम्मा ‘यूनियन बैंक आफ इंडिया’ और बेंगलुरु की एक गैर सरकारी संस्था ‘क्रेया’ ने मिलकर ओढ़ा था, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।”

सीवर न होने से खुले में बहता गंदा पानी

कुछ दूर आगे बढ़ने पर दिखाई देती हैं बैंकों की दो शाखाएं जिनमें एक सिंडीकेट बैंक और दूसरी यूनियन बैंक है। यहां एक पोस्ट ऑफिस भी है। गांव की एक बुजुर्ग महिलाए ने थोड़ा सकुचाते हुए कहा, “बैंक खुलने से आसानी हो गई है। जयापुर वालों को किसी दूसरे गांव में नहीं जाना पड़ता है।”

जयापुर में कोई अस्पताल नहीं है। गर्भवती महिलाओं अथवा बीमार लोगों को क़रीब छह किमी दूर राजातालाब, पांच किमी दूर जक्खिनी अथवा चार किमी दूर महगांव स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर जाना पड़ता है। चमेली देवी नामक महिला ने जनचौक से कहा, “जयापुर अथवा इस गांव के आसपास कोई सरकारी अस्पताल नहीं होने के कारण महिलाओं को सबसे ज्यादा दिक्कतें उठानी पड़ती है। कई बार लोगों को महंगे निजी अस्पतालों में जाना पड़ता है।”

गुजरात के सांसद सीआर पाटिल ने जयापुर में चार सौ शौचालय बनवाए थे। “क्लीन इंडिया कैंपेन” के तहत बनाए गए ज्यादातर शौचालय कबाड़ में तब्दील हो गए हैं। कुछ स्टोर रूम में बदल गए हैं तो कुछ के दरवाजे आंधी में उड़ गए हैं। मोबाइल टायलेट की हालत तो पूरी तरह जर्जर है। जयापुर में बड़े पैमाने पर शौचालयों की दशा देखकर लगता है कि यह अभियान यहां फिसड्डी साबित हो रहा है। ज्यादातर शौचालयों के दरवाजे टूट गए हैं और बहुत से लोग इनका इस्तेमाल उपला वगैरह रखने के लिए कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार द्वारा बनवाए गए सभी शौचालयों मानक के अनुरूप हैं ही नहीं। गांव के आख़िरी छोर पर बसे अटल नगर में जितने भी शौचालय बने हैं उनमें उसमें उपले ही रखे हुए हैं।

पानी निकासी का इंतजाम नहीं

जयापुर के किसानों का रंज यह है कि गांव में सीवर और नाली का कोई इंतजाम नहीं है। वो कहते हैं कि जयापुर गांव की गलियां संकरी हैं और नलों का पानी इन्हीं गलियों में सारा पानी इधर-उधर सड़क पर बहता और फैलता रहता है। बारिश के दिनों में स्थिति तब बद से बदतर हो जाती है जब लोगों के घरों में पानी घुसने लगता है। हम सालों से गुहार लगा रहे हैं, पर कोई सुनता ही नहीं है। इस गांव में जब भी कोई सरकारी मुलाजिम आता है तो ग्रामीण सीवर और पानी निकासी की मांग प्रमुखता से उठाते हैं।

जलनिकासी का कोई प्रबंध नहीं

लालमन कहते हैं, “जयापुर में विकास तो बहुत हुआ, लेकिन पानी निकासी का इंतजाम नहीं हो सका। जयापुर समीपवर्ती गांव- चंदापुर, महगांव में भी सीवर और नाली का इंतजाम नहीं है। मोदी के गोद लेने के बाद अफसरों ने वादा किया था कि इस गांव में जलनिकासी का इंतजाम सबसे पहले किया जाएगा, लेकिन दस साल गुजर जाने के बाद भी हमारी मुश्किलें जस की तस हैं।”

प्रदीप कुमार गोड़ ने हमें जयापुर के बदहाल रास्ते को दिखाया और साफगोई से कहा, “हम नर्क में जी रहे हैं। छोटे लोग हैं साहब ! हमारी कोई औकात नहीं। पूर्व ग्राम प्रधान नारायन पटेल ने सिर्फ पैसे वालों को सरकारी आवास दिया। हमारी हालत कोई बदलाब नहीं हुआ है। हम जैसे पहले थे, वैसे अभी भी हैं। सिर्फ हमारे गांव के नाम के साथ पीएम नरेंद्र मोदी के नाम का तमगा भर जुड़ गया है।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गोद लेने के बाद जयापुर की सड़कों और गलियों में सोलर लाइटें लगवाई गईं। ठकुरान बस्ती की लाइटें तो जलती हैं, लेकिन पटेलों और अन्य पिछड़ों की बस्ती की खराब सोलर लाइटों को सुधारने की सुधि नहीं ली गई। जयापुर के लोगों का कहना है कि लाइट लगाने वाले ही बैटरी उठा ले गए, जबकि कुछ लोगों ने कहा कि बैटरियां गांव के कुछ मनबढ़ युवकों ने ही चुराई है।

ग्राम प्रधान राजकुमार यादव कहते हैं, “यहां बिजली का कोई संकट नहीं है। जब से मोदी जी ने इस गांव को गोद लिया है, तब से बिजली समय पर आती है। पीने के पानी के लिए भी किसी को परेशान नहीं होना पड़ता है। पहले बिजली और पानी का पुख्ता इंतजाम जयापुर में नहीं था।” जयापुर का नंदघर दूर से हर किसी को लुभाता है, लेकिन पास जाने पर पता चलता है कि कई कमरों में न जाने कब से ताला बंद है। मार्बल उखड़े हैं और खिड़कियों के शीशे भी टूटे हुए हैं। अंदर झांकने पर ढेरों सामान बिखरा हुआ दिखता है। ग्राम प्रधान राजकुमार दावा करते हैं कि नंदघर रोज खुलता है।

जयापुर के अंतिम छोर पर स्थित अटल नगर जाने का रास्ता ठीक नहीं है। यहां दलित समुदाय के लोगों को मुफ्त में आवास आवंटित किए गए हैं। यहां पहुंचने पर पता चलता है कि मोदी सरकार की उज्ज्वला योजना फेल है। औरतें चूल्हे पर खाना पकाती नजर आती हैं। यहां पर क़रीब एक दर्जन आवास बनाए गए हैं। आंचल नामक महिला बताती हैं, “सरकार ने हमें मुफ्त में गैस सिलेंडर और चूल्हा दे दिया, लेकिन हमारी माली हालत ऐसी नहीं है कि नौ सौ रुपये खर्च कर हर उसमें रसोई गैस भरवा सकें। हमारा परिवार दिन भर मेहनत-मजूरी करता है, तब मुश्किल से सौ-दो सौ रुपये मिल पाते हैं। बच्चों का किसी तरह से पेट पाल लें, हमारे लिए यही बड़ी बात है।

जयापुर की मीना गुप्ता अधेड़ महिला हैं। इनका बेटा सुजीत और बहू कंचन दोनों ही विकलांग हैं। वो हमें अपने घर ले गईं। एक झोपड़ी और उससे सटी पांच-छह फीट ऊंची छत वाले कमरे में कुछ बर्तन रखे थे। झोपड़ी में एक चारपाई और लकड़ी की चौकी थी। वह कहती हैं, “पीएम मोदी ने जयापुर को गोद लिया तो लगा कि हम सभी की हैसियत बढ़ गई है। सरकारी मुलाजिम रोज घर आकर हालचाल पूछा करते थे। सबको पता था जयापुर की तरक्की पक्की है। मगर अफसोस, सालों गुजर गए। अब न अफसरों की गाड़ियां आती हैं और न ही सरकारी नुमाइंदे। जननिकासी का पुख्ता इंतजाम नहीं होने के कारण बारिश के दिनों हम विकास का खामियाजा भुगतते हैं। हमारी स्थिति तो वैसी ही है कि अब हम न घर के रहे, न घाट के।”

सोलर चरखा ने किया बर्बाद

हम जयापुर पहुंचे तो कई महिलाएं अपना दुखड़ा सुनाने आ गईं। प्रमिला नामक महिला ने एक ही सांस में शिकायतों की झड़ी लगा दी। कहा, “हमें सोलर चरखा नहीं मिला। हमारे साथ धोखाधड़ी की गई और हमारे सिर पर बेवजह बैंक का हजारों रुपये का कर्ज लाद दिया गया। हम पाई-पाई के लिए मोहताज हैं। बैंक वाले जबरिया कर्ज वसूलने आ रहे हैं। मोदी के फेर में जिस कंपनी ने हम सभी को बुरी तरह फंसाया, वो गायब है। कहां ढूंढें उसे? ” जयापुर की महिलाओं ने गांव में बांटे गए सोलर चरखे को नाम दिया है “मोदी चरखा”।

सोलर चरखा प्रशिक्षण एवं प्रसार केंद्र

जयापुर की एक महिला हैं प्रमिला। इनके पति सुनील मजूरी करते हैं। मुश्किल से दो वक्त की रोटी जुटा पाते हैं। दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। इन्हें इस बात का रंज है कि जिस मशीन को उन्होंने कभी देखा भी नहीं, उसका कर्ज उन्हें जबरिया चुकाने के लिए कहा जा रहा है। प्रमिला ने गुस्से में कहा, ” हमें आज तक सोलर “मोदी चरखा” नहीं मिला। फिर भी हम हजारों की कर्जदार हैं। बैंक वालों की धमकी से उनकी रातों की नींद गायब बच्चों को का पेट भरें, पढ़ाएं या फिर कर्ज भरें? वह कर्ज जिसके बदले उन्हें आज तक चरखा मिला ही नहीं। हमारा गुनाह सिर्फ इतना है कि हम पढ़े-लिखे नहीं हैं। मोदी आए और हमें सपना दिखा गए। उनके साथ आए लोगों ने रोजगार दिलाने के बहाने अनगिनत कागजों पर हमारे दस्तखत कराए और आधार कार्ड ले गए। हजारों का लोन चढ़ाकर “मोदी चरखा” चलवाने वाले चंपत हो गए। यह धोखा नहीं तो और क्या है? “

गीता की कहानी भी प्रमिला की तरह ही है। वह खेतों में काम करती हैं। पति विजय कुमार वर्मा विकलांग हैं। कहती हैं, “हमारे साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है। मोदी ने जयापुर को गोद क्या लिया, हम तबाह हो गए। सोलर चरखे से आज तक धेले भर की कमाई नहीं हुई। कहां से अदा करें हजारों रुपये का बैंक लोन? हमारी तो मति मारी गई थी जो “मोदी चरखे” की लालच में आ गए। बैठे-ठाले मुसीबत गले पड़ गई। जिन लोगों ने हमसे कई सादे पन्नों पर दस्तखत कराए थे, उन्होंने हमें यह नहीं बताया था कि सारा कर्ज हमें अपने पास से चुकाना पड़ेगा।”

गीता बताती हैं, “हमारे घर में तीन “मोदी चरखे” हैं। चार-चार हजार नकद देकर लिया था। बताया गया था कि चरखा कीमती है। कोई लोन नहीं भरना होगा। सारा पैसा सरकार देगी। चरखा चलाने के लिए न तो रूई-पूनी दी जा रही, और न ही दूसरी सुविधाएं। बहलाकर हमसे कागज ले गए। कुछ रोज बाद आए और हमारे माथे पर कर्ज लादकर चले गए।” कुछ ऐसी ही कहानी सीता देवी, गीता, बिंदू, रीना और ज्ञानती देवी की भी है।

रुआंसे स्वर में जयापुर की महिलाओं ने कहा कि मोदी चरखे ने जयापुर के गरीब घरों की औरतों की जिंदगी में चिंता की गहरी लकीरें खींच दी है। राजेश वर्मा बताते हैं, “जिन लोगों “मोदी चरखा” लिया उन सभी के ऊपर हजारों के कर्ज लदे हैं। जिन लोगों ने सूत कातने के लिए कच्चा माल घर तक पहुंचाने की बात कही थी, वह सभी गायब हैं। हमसे अच्छा तो पास के गांव चंदापुर, कचरहिया, महगांव, जक्खिनी, गजापुर, मिल्कीपुर, वीरसिंहपुर और पचाई के लोग हैं। कम से कम उन्हें चैन की नींद तो आती है। कर्ज के बोझ के चलते कई महिलाएं अधकपारी जैसी घातक बीमारी की चपेट में आ गई हैं। जिन महिलाओं ने एक दिन भी “मोदी चरखा” नहीं चलाया, वो भी हजारों रुपये की कर्जदार हैं।”

जयापुर में गरीब महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए दो बुनकर केंद्र स्थापित किए गए हैं। एक केंद्र का संचालन खादी ग्रामोद्योग विभाग करता है और दूसरा गांव के निछद्दम में स्थापित गोशाला में। यहां भारती हरित खादी संस्था के जरिए मुद्रा लोन स्कीम के तहत डेढ़-दौ सौ महिलाओं को सोलर चरखा बांटा गया था। शुरुआत में बताया गया था महिला सशक्तिकरण मुहिम के तह भाजपा सरकार औरतों को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है। भारती हरित खादी संस्था ने जयापुर, डोमरी और ककरहिया में करीब पांच सौ महिलाओं को सोलर से चलने वाला चरखा बांटा था। इनमें डेढ़-दो सौ महिलाएं जयापुर की हैं, जिन्हें आत्मनिर्भर बनाने का सपना दिखाया गया था।

कबाड़ में तब्दील चरखा प्रशिक्षण केंद्र

मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करने वाली जयापुर की महिलाएं बताती हैं कि भारती हरित खादी के प्रबंध निदेशक विजय पांडेय ने उन्हें झांसा दिया और वह उनके जाल में फंस गईं। दूसरी ओर, विजय पांडेय जयापुर की महिलाओं के आरोपों को सिरे से खारिज करते हैं। वह कहते हैं, “हमने जयापुर की महिलाओं को अपने पास से वर्किंग कैपिटल दिया है। साथ ही सोलर चरखे पर सरकारी छूट भी दिलाई है। यह आरोप झूठा और बेबुनियाद है कि सभी महिलाएं हजारों-हजार की कर्ज में डूब गई हैं। हमारी संस्था जयापुर से भागी नहीं है। जिन कंपनियों को हमने धागा और कपड़ा दिया उन्होंने हमारा करोड़ों रुपये दबा रखा है। हमारे प्रोजेक्ट में पूरा दम है। जल्द ही हम नए सिरे से चरखे के जरिये सूत बनाने का काम शुरू कराएंगे।”

सोलर चरखा दिए बगैर बैंक का कर्जदार बनाए जाने के बाबत पूछे जाने पर भारती हरित खादी के पूर्व प्रबंध निदेशक विजय पांडेय कहते हैं, ” संभव है कि कुछ महिलाएं चरखा न ले गई हों। जिन महिलाओं को सोलर चरखा नहीं मिला है उन्हें प्रधानमंत्री रोजगार गारंटी योजना के तहत सूक्ष्म, लघु मध्यम उद्यम मंत्रालय की ओर से यह मशीन उपलब्ध कराई जाएगी। प्रधानमंत्री के गोद लिए गांवों में बने धागे को देश-विदेश में निर्यात करने की योजना है।”

सालों से बंद पड़ी है गोशाला

जयापुर में आदर्श भारती संस्था ने एक काऊशाला खेली थी, जो इन दिनों बंद पड़ी है। ग्रामीण मेखुर सिंह की जमीन तीस हजार रुपये सालाना के दर से तीस साल तक के लिए लीज पर ली गई थी। काऊशाला में गांव के कुछ लोग अपने मवेशी बांध रहे हैं। काऊशाला के बगल में सोलर चरखा प्रशिक्षण एवं प्रसार केंद्र है। एक कमरे में 24 और दूसरे में 15 सोलर चरखे जंग खा रहे हैं। गोशाला परिसर में उगे घास-फूस और झाड़ियों को दिखाते हुए नीरज कहते हैं, “इसे आप क्या कहेंगे, विकास या विनाश? हम मोदी को दोष नहीं देंगे, लेकिन उन्होंने जब जयापुर को गोद लिया तो यहां कई फ्राड घुस आए।”

बदहाली की कहानी सुनाती गोशाला

नीरज कहते हैं, “जमीन का लीज लेते समय भारती हरित खादी के प्रबंध निदेशक विजय पांडेय ने हमसे दो लोगों को नौकरी देने की बात कही थी, मगर वादा पूरा नहीं किया। जैसे ही सरकार की नजर हटी, संस्था के लोग गाय-भैंस बेचकर खा गए। अब तो यह बताने में हमें शर्म आती है कि हमारे जयापुर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोद लिया था। बकाया बिल के चलते गोशाला परिसर की बिजली कटी हुई है। बात इतनी ही नहीं। अखबारी सुर्खियां बटोरने के लिए जयापुर में सेब का पेड़ लगाने के लिए हिमाचल से हवाई जहाज से पौधे मंगाए गए थे। जयापुर में सेब के पौधे रोपे भी गए, लेकिन ज्यादातर पौधे लू की चपेट नहीं झोल पाए। सब खत्म हो गए। मोदी की नेक पहल से हमारे गांव में एक झटके में तरक्की पहुंची। हमारे हिस्से में जो भी विकास आया, प्रचार उससे अधिक किया गया।”

“जयापुर की भूल-कमल का फूल”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दुलारा गांव जयापुर की पड़ताल करने यह बात साफ हो जाती है कि उनका “ग्राम स्वराज” का नारा असलियत से कोसों दूर है। जयापुर के समीपवर्ती गांव चंदापुर महगांव, जक्खिनी आदि में भी सीवर की व्यवस्था नहीं है। प्रधानमंत्री के जयापुर गांव को गोद लेने के बाद डीएम, सीडीओ, एसडीएम, ब्लॉक प्रमुख सभी ने वादा किया था कि आसपास के सभी गांवों में नाली-सीवर की मुकम्मल व्यवस्था कराएंगे, लेकिन वक्त बीतने के साथ सभी इस गांव को भूल गए।

जयापुर में बारिश के दिनों में सड़कों पर यूं बहता है गंदा पानी

सेवापुरी विधानसभा सीट से तीन बार विधायक रहे पूर्व मंत्री सुरेंद्र पटेल तंज कसते हुए कहते हैं, “अब हर किसी को समझ में आ गया है “जयापुर की भूल-कमल का फूल।”जयापुर को मोदी ने जिस दिन गोद लिया, उस रोज प्रधानमंत्री ने हमें भी अपने बगल में बैठाया था। भाषण दिया कि जयापुर को इसलिए गोद लिया कि यहां आकाशीय बिजली से छह लोग मर गए थे। मोदी को कौन समझाने जाए कि जयापुर में ऐसी कोई घटना आज तक नहीं हुई है। झूठ से जयापुर का नया अवतार हुआ। किसी से पूछ लीजिए क्या इस गांव के नौजवानों की बेरोजगारी और भ्रष्टाचार दूर हुई? मोदी सरकार ने कितनों को रोजगार दिया?”

सुरेंद्र यह भी कहते हैं, “जो लोग कह रहे थे कि देश को झुकने नहीं देंगे, बिकने नहीं देंगे। जयापुर में देश झुका भी और बिका भी। इनका बस चले तो वो जयापुर को भी बेच देंगे। जयापुर के नाम पर जितना धन जारी हुआ, उसका बंदरबांट हुआ। सब अफसरों की जेब में चला गया। यहां विकास हुआ तो सिर्फ भ्रष्टाचार का, बेरोजगारी का और झूठ का। मोदी से पहले ककरहिया, नागेपुर, सूजाबाद और डोमरी को गोद हमने लिया था। लोहिया ग्राम घोषित कराया था, जिस पर मोदी ने अपना ठप्पा ठोंक दिया। जयापुर के पड़ोसी गांव चंदापुर में जाइए। उस गांव को हमने गोद लिया था। वहां न ठग मिलेंगे, न बैंक लोन से सिसकते और कराहते लोग। विकास कैसे होता है, चंदापुर में सब दिख जाएगा।”

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments