2024 लोकसभा चुनाव से पहले पुलवामा-2 हो सकता है : सत्यपाल मालिक

नई दिल्ली। 14 फरवरी, 2019 को पुलवामा में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CPRF) के काफिले में विस्फोटक लेकर जा रहे एक वाहन ने टक्कर मार दी थी। इस दुर्घटना में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे। तब सुरक्षा चूक और जवानों को एयरलिफ्ट न मिलने का मुद्दा उठा था। इस चूक के लिए कौन-कौन दोषी है, साढ़े चार साल से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी इसका खुलासा नहीं हो पाया है।

मंगलवार को राजधानी दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में “राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले: चिंताएं एवं जवाबदेही” विषय पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ। सम्मेलन में राजनेताओं, सेना के पूर्व अधिकारियों और सिविल सोसायटी के लोगों के बीच सत्यपाल मलिक ने पुलवामा की दुर्घटना पर मोदी सरकार को सवालों के कटघरे में खड़ा किया है। पुलवामा अटैक के दौरान जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक इस आतंकी घटना की जांच की मांग करते रहे हैं। एक बार फिर से उन्होंने पुलवामा में 40 जवानों के शहीद होने की जांच की मांग करने के साथ देश के नागरिकों को सतर्क रहने की नसीहत दी है। उन्होंने कहा कि 2024 लोकसभा चुनाव के पहले देश में पुलवामा की तरह एक और घटना होने से इनकार नहीं किया जा सकता है। मुझे कई स्रोतों से पता चला है कि अयोध्या, काशी या मथुरा के मंदिरों पर हमला हो सकता है।

पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा कि पुलवामा हमला के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने मुझे फोन कर इस मुद्दे पर चुप रहने को कहा था। उससे पहले हमने दो न्यूज चैनलों पर इसकी जांच की मांग करते हुए इंटरव्यू दे चुका था। लेकिन अब जब हमने इस हमले की जांच की मांग की तो मेरी जेड प्लस सुरक्षा हटा ली गई है, और मेरे साथ सिर्फ एक सिपाही तैनात है। जबकि जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटाने के दौरान मैं वहां तैनात था। और मेरे ऊपर खतरा होने से इनकार नहीं किया जा सकता है। जम्मू-कश्मीर का पूर्व राज्यपाल होने के नाते मैं दिल्ली में सरकारी आवास पाने का हकदार हूं, लेकिन मैं किराए के घर में रह रहा हूं।

सेमिनार में वक्ताओं ने कहा कि तब सत्तारूढ़ बीजेपी ने इसके लिए पाकिस्तान समर्थित जैश-ए-मोहम्मद के आत्मघाती हमलावरों को जिम्मेदार बताया था। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इस आत्मघाती हमले की जांच के लिए अभी तक सरकार ने कोई जांच समिति नहीं बनाई है। पीएम मोदी ने घटना के कुछ दिनों बाद ही लोकसभा चुनाव में इस हमले का जमकर राजनीतिक उपयोग किया। मोदी दोबारा सत्ता में आए लेकिन पुलवामा का सच अभी तक देश के सामने नहीं आ सका है।

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि “वर्तमान समय में देश की सत्ता पर जो लोग काबिज हैं, उनकों लेकर मेरे मन में कोई शक नहीं है। 1925 से ही ये लोग देश में नफरत फैलाने का काम कर रहे हैं। समाज में फूट डालो और राज करो की नीति पर ये चल रहे हैं। पहले ये नीति अंग्रेज अपनाते थे।”

समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद जावेद अली खान ने कहा कि “पूरे देश में इस समय नफरत का माहौल है। मणिपुर जल रहा है। हमने उत्तर प्रदेश और देश के अन्य कई हिस्सों में हुए दंगों में पीड़ित लोगों से मिलकर उनके दुख को सुना था। लेकिन मणिपुर का मामला अलग है। मणिपुर में दोनों समुदाय एक दूसरे के साथ रहने को तैयार नहीं है। मणिपुर ऊपर से लेकर नीचे तक दो भागों में विभाजित हो गया है। वर्तमान सरकार ने समाज को इस कदर बांट दिया है।”

मेजर जनरल (रिटायर्ड) विशंबर दयाल ने कहा कि जिस देश में इतनी असमानता हो, और हमारे अस्थिर पड़ोसी हों, वहां की सुरक्षा के चिंता करना वाजिब है। लेकिन समाज और नागरिकों को अंदर से सुरक्षित किए बिना हम देश की सुरक्षा नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि देश की सुरक्षा का जिम्मा भले ही सेना पर है, लेकिन सुरक्षा संबंधित किसी कमेटी में सेना के अधिकारी नहीं है। यहां तक की कई बार से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी गैर सैन्य अधिकारियों को बनाया जा रहा है। सेना सिर्फ सुरक्षा संबंधी आदेश को लागू करती है। उसे सुरक्षा संबंधी योजना बनाने से दूर रखा गया हैा।

सांसद दानिश अली ने कहा कि उत्तर प्रदेश से लेकर हरियाणा तक में नफरत और घृणा फैलाकर दंगा कराया जा रहा है। जनता को आपस में धर्म, जाति और क्षेत्र के आधार पर बांटा जा रहा है। इन सबके बीच आश्चर्य की बात ये है कि जनता फिर उन्हीं को चुन रही है।

सीमा सुरक्षा बल के अतिरिक्त महानिदेशक (रिटायर्ड) संजीव के सूद ने पुलवामा हमले के दौरान की परिस्थितियों, सिक्योरिटी एलर्ट को नजरंदाज करने और हमले के बाद उसके राजनीति उपयोग का हवाला देते हुए पुलवामा हमले को संदिग्ध बताते हुए जांच की मांग की।

भाकपा-माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि देश की सीमाओं की सुरक्षा तभी हो सकती है जब देश के अंदर रहने वाला हर व्यक्ति अपने को सुरक्षित महसूस करे। साथ ही जिस देश आर्थिक असमानता, सामाजिक गैर-बराबरी, बेरोजगारी और उत्पीड़न होगा, वह देश सुरक्षित नहीं रह सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ एडवोकेट प्रशांत भूषण ने पुलवामा हमले के साथ ही देश भर में मानवाधिकार हनन की घटनाओं का उल्लेख करते हुए वर्तमान सरकार पर निशाना साधा।

सम्मेलन में जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा, 2024 के चुनावों से पहले, राष्ट्र को सतर्क रहना चाहिए क्योंकि राम मंदिर, काशी और मथुरा के मंदिरों को नष्ट करने की धमकियां मिल रही हैं, साथ ही मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए पाकिस्तान के साथ फिक्स युद्ध हो सकता है।  

सम्मेलन में पुलवामा त्रासदी की जांच करने और तथ्यों को सामने लाने और दोषियों को सजा की मांग करने के लिए एक पीपुल्स एक्सपर्ट्स कमेटी का गठन का प्रस्ताव पेश किया गया। जिसे उपस्थित लोगों ने सर्वसम्मति से पास किया। और पुलवामा सत्य आंदोलन की स्थापना की गई। यह देश भर के राज्यों में सम्मेलन आयोजित करेगा।

सम्मेलन में निम्न संकल्प लिए गए:

• राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों, चिंताओं और जवाबदेही पर राष्ट्रीय सम्मेलन उन सभी शहीदों को श्रद्धांजलि देता है जिन्होंने हमारे देश की रक्षा के लिए अपनी जान गंवाई है।

▪सम्मेलन देश की रक्षा करते हुए सीमा पर लगातार शहीद हो रहे जवानों के प्रति चिंता व्यक्त करता है और सरकार से अपील करता है कि सीमाओं को सुरक्षित किया जाए ताकि फिर कभी एक भी जवान को शहीद न होना पड़े।

▪सम्मेलन का मानना ​​है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित प्रश्न केंद्र सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।

▪ पुलवामा त्रासदी: सम्मेलन केंद्र सरकार से जांच के निष्कर्षों और परिणामों को सार्वजनिक करने का आह्वान करता है, जिसके कारण आतंकवादी हमला हुआ और पुलवामा त्रासदी में 40 जवानों की शहादत हुई।

• राष्ट्रीय हित में, सम्मेलन पुलवामा त्रासदी के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों, मंत्रियों, नेताओं, अधिकारियों और नौकरशाहों के खिलाफ यथासंभव कड़ी कार्रवाई करने और उन्हें जवाबदेह ठहराने का आह्वान करता है।

• सम्मेलन की मांग है कि केंद्र सरकार पुलवामा त्रासदी से जुड़े सभी मुद्दों पर श्वेत पत्र जारी करे।

• सम्मेलन में पुलवामा त्रासदी की सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में जांच (या एक संयुक्त संसदीय समिति) की मांग की गई है ताकि मामले की जांच की जा सके और सभी तथ्यों को पारदर्शी, ईमानदार तरीके से सामने लाया जा सके। इसकी समयबद्ध जांच होनी चाहिए।’

• केंद्र सरकार को तुच्छ चुनावी लाभ के लिए ऐसे संवेदनशील और गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए, जैसा कि पुलवामा त्रासदी के मामले में किया गया था।

▪ हम इस बात से भी चिंतित हैं कि अल कायदा और आईएसआईएस ने अयोध्या में राम मंदिर को उड़ाने की धमकी दी है। इसलिए हम सरकार से अयोध्या, काशी और मथुरा में पवित्र मंदिरों की सुरक्षा दोगुनी और तिगुनी करने की अपील करते हैं। इन और अन्य पवित्र धार्मिक पूजा स्थलों पर आतंकवादी हमले से हमारे देश में सांप्रदायिक सद्भाव और शांति के लिए विनाशकारी परिणाम होंगे। इस प्रकार, भारत सरकार को उक्त पवित्र स्थानों और सभी धर्मों के अन्य सभी प्रमुख पूजा स्थलों को उच्चतम स्तर की सुरक्षा सुनिश्चित और प्रदान करनी चाहिए।

▪यह विधिवत ध्यान दिया जाना चाहिए कि अप्रैल-मई में हुए महत्वपूर्ण आम चुनावों से ठीक 2 महीने पहले 14 फरवरी, 2019 को हुए पुलवामा आतंकी हमले का स्पष्ट रूप से अंतिम परिणामों पर निर्णायक प्रभाव पड़ा। इसने निश्चित रूप से मतदाताओं का ध्रुवीकरण किया और दक्षिणपंथी अति-राष्ट्रवादी वोट बैंक के एकीकरण को बड़ा बढ़ावा दिया, जिसके परिणामस्वरूप इसकी भारी जीत हुई।

▪ इस प्रकार जब हम 2024 के महत्वपूर्ण आम चुनावों की ओर बढ़ रहे हैं, हम भारत के लोगों से अत्यधिक सतर्क रहने और एकजुट रहने की अपील करते हैं क्योंकि नफरत, भय और सांप्रदायिक हिंसा फैलाने और इस प्रकार हमारे लोगों को ध्रुवीकृत और विभाजित करने के कई प्रयास किए जा रहे हैं। सम्मेलन में देश के लोगों को एकजुट रहने और अपने महान राष्ट्र के खिलाफ ऐसी सभी विभाजनकारी नापाक साजिशों को हराने की अपील की गई।

सर्वदलीय बैठक की अध्यक्षता सत्यपाल मलिक और संचालन सुनीलम ने किया। अन्य वक्ताओं में दिग्विजय सिंह (सांसद, पूर्व मुख्यमंत्री), कुमार केतकर (सांसद), भक्त चरणदास (पूर्व मंत्री) कांग्रेस पार्टी, जॉन ब्रिटास (सांसद, सीपीएम, केरल), जावेद अली खान (पूर्व सांसद, समाजवादी पार्टी, उ.प्र.), दीपंकर भट्टाचार्य (जनरल सेक्रेटरी सीपीआई-एमएल-लिबरेशन), विद्या चव्हाण (अध्यक्ष, महिला विंग एनसीपी महाराष्ट्र), दानिश अली (एमपी, बीएसपी, यूपी), बी आर पाटिल (एमएलए, कांग्रेस, कर्नाटक) और भालचंद्र मुंगेकर (पूर्व- मप्र, कांग्रेस, महाराष्ट्र) शामिल थे।

बैठक को वक्ताओं के एक विशेषज्ञ पैनल ने संबोधित किया। इसमें मेजर जनरल बिशंबर दयाल (सेवानिवृत्त), संजीव के सूद (रिटायर्ड अतिरिक्त महानिदेशक, बीएसएफ), प्रशांत भूषण (एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट), सुदेश गोयत (युद्ध विधवाओं के अधिकार और सामाजिक कार्यकर्ता), फिरोज़ मीठीबोरवाला (शोधकर्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता) और अरुण श्रीवास्तव जैसे लोग शामिल थे।

(प्रदीप सिंह जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।)

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