राहुल का मुकदमा राजनीतिक प्रतिद्वंदिता को कानून के रास्ते निपटाने की एक साजिश है!

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद राहुल गांधी की “सभी चोरों का उपनाम मोदी क्यों होता है” वाली टिप्पणी पर आपराधिक मानहानि मामले में उनकी सजा पर रोक लगा दी है। इस दोषसिद्धि पर रोक के साथ राहुल गांधी की सांसद के रूप में अयोग्यता भी अब स्थगित हो जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बीआर गवई, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति संजय कुमार की तीन-न्यायाधीशों की पीठ, राहुल गांधी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ‘मोदी चोर’ टिप्पणी पर आपराधिक मानहानि मामले में उनकी सजा पर रोक लगाने से गुजरात उच्च न्यायालय के इनकार को चुनौती दी गई थी, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें लोक सभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। शीर्ष अदालत ने पिछले महीने 21 जुलाई को कांग्रेस नेता की याचिका पर नोटिस जारी किया था।

अब यह घटनाक्रम पढ़िए-

एक राजनीतिक रैली में दिए गए चुनावी भाषण की व्हाट्सएप पर देखी गई एक क्लिप के कुछ अंशों को देखकर, मोदी सरनेम के लोग ही चोर क्यों होते हैं, के प्रश्नवाचक तेवर को ही, मोदी समाज का मान मर्दन मान लिया गया। इसी पर सूरत के एक बीजेपी विधायक पूर्णेश मोदी ने सूरत में मैजिस्ट्रेट की अदालत में मुकदमा कर दिया। फिर शिकायतकर्ता ने इस आधार पर गुजरात हाईकोर्ट से स्थगन ले लिया कि उसे कुछ सुबूत जुटाने हैं।

फिर पूर्णेश मोदी ने खुद ही स्टे खारिज करा कर मुकदमा लड़ना शुरू कर दिया और सीजेएम अदालत ने मानहानि के जुर्म में राहुल गांधी को उक्त अपराध में प्राविधित अधिकतम दो साल की सजा दे दी गई। दो साल की सजा के आदेश के बाद आनन फानन में ही, लोकसभा के स्पीकर ने राहुल गांधी को सजा के आधार पर लोकसभा की सदस्यता रद्द कर दी। और राहुल एक झटके में ही संसद से सड़क पर आ गए।

मजिस्ट्रेट कोर्ट का फैसला, सेशन और गुजरात हाईकोर्ट से भी बहाल रहा और अब यह मामला निर्धारित न्यायिक प्रक्रिया के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में गया जहां से राहुल गांधी की सजा पर रोक लगी है।

राहुल की अपील पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है, “भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के तहत दंडनीय अपराध के लिए अधिकतम सजा दो साल की कैद, या जुर्माना या दोनों है। विद्वान ट्रायल जज ने अपने द्वारा पारित आदेश में अधिकतम दो साल की सजा सुनाई है।”

आगे कहा गया कि, “विद्वान ट्रायल जज द्वारा दो साल की अधिकतम सजा सुनाते समय कोई अन्य कारण नहीं बताया गया है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यह केवल दो साल की अधिकतम सजा के कारण ही, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(3) के प्रावधान लागू हो गये। यदि सज़ा एक दिन की भी कम दी गई होती तो, यह प्रावधान लागू नहीं होते। विशेष रूप से जब अपराध गैर-समझौता योग्य, जमानती और संज्ञेय था, तो विद्वान ट्रायल न्यायाधीश से कम से कम यह अपेक्षा की जाती थी कि वह अधिकतम सजा देने के लिए कारण बताए। हालांकि विद्वान अपीलीय अदालत और उच्च न्यायालय ने आवेदनों को खारिज करने में काफी पन्ने खर्च किए हैं, लेकिन इन पहलुओं पर विचार नहीं किया गया है।”

साथ ही, पीठ ने यह भी कहा कि “राहुल गांधी के बयान ‘अच्छे स्वाद’ (good taste शब्द का प्रयोग किया गया है) में नहीं थे और यह भी कहा कि, सार्वजनिक जीवन में एक व्यक्ति को सार्वजनिक भाषण देते समय अधिक सावधान रहना चाहिए। रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट की धारा 8(3) के व्यापक प्रभाव को ध्यान में रखते हुए, न केवल याचिकाकर्ता के लोकतांत्रिक अधिकार, बल्कि निर्वाचन क्षेत्र में उसे अपना प्रतिनिधि चुनने वाले मतदाताओं के अधिकार भी, इस फैसले से प्रभावित होते हैं और यह तथ्य भी कि, ट्रायल कोर्ट द्वारा उक्त आपराधिक धारा के अंतर्गत प्राविधित अधिकतम दंड देने के लिए ट्रायल कोर्ट द्वारा कोई कारण नहीं बताया गया है।” 

सजा के रोक की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए सस्पेंस खत्म कर दिया कि “अदालत, सजा पर रोक लगा रही है।” पीठ ने अपील के लंबित होने पर विचार करते हुए मामले के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी करने से परहेज किया। यानी यह एक अंतरिम राहत है। सजा पर रोक लग गई है और इस अंतरिम राहत के कारण राहुल गांधी की संसद की अयोग्यता अब समाप्त हो जायेगी और वे आगामी लोकसभा का चुनाव भी लड़ सकेंगे। लेकिन यह मुकदमा अभी चलता रहेगा। अदालत ने अगली तारीख की घोषणा नहीं की है।

राहुल गांधी की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने शुरुआती बहस में कहा कि, “शिकायतकर्ता भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी मोध वनिका समाज से आते हैं, जिसमें अन्य समुदाय भी शामिल हैं। रिकॉर्ड बताते हैं कि, मोदी उपनाम कई अन्य जातियों के अंतर्गत भी आता है। मोदी समुदाय के 13 करोड़ सदस्यों में से केवल मुट्ठी भर भाजपा सदस्यों ने आपराधिक मानहानि का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई है। मोदी उपनाम साझा करने वाले व्यक्तियों का वर्ग आईपीसी की धारा 499/500 के अर्थ में एक पहचान योग्य वर्ग नहीं है जो मानहानि की शिकायत दर्ज कर सकता है।”

इसके बाद एडवोकेट सिंघवी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि “अदालत द्वारा आपराधिक मानहानि के लिए अधिकतम दो साल की सजा देना एक अत्यंत दुर्लभ उदाहरण है।”

अभिषेक मनु सिंघवी आगे इस तर्क को और स्पष्ट करते हैं, “मैंने अभी तक कोई भी संज्ञेय, जमानतीय और समझौता योग्य (Compoundable) अपराध नहीं देखा है, जो समाज के खिलाफ की प्रकृति का नहीं है, अपहरण, बलात्कार और हत्या जैसा अपराध नहीं है, जिसमें अधिकतम सजा दी गई हो। यह अपराध, नैतिक अधमता (moral turpitude) से जुड़ा अपराध कैसे बन सकता है?” 

उन्होंने आगे तर्क दिया कि, “अधिकतम सजा का प्रभाव गांधी को आठ साल के लिए चुप कराने जैसा होगा, क्योंकि यह उन्हें, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार चुनाव के लिए अयोग्य घोषित कर देगा।”

सिंघवी के इस तर्क के बाद न्यायमूर्ति गवई ने उनसे पूछा, “विद्वान न्यायाधीश आपके आपराधिक इतिहास के बारे में भी बात करते हैं।” 

तब सिंघवी ने पीठ के समक्ष अपनी बात कही कि, “राहुल गांधी के लिए कोई अन्य पूर्व दृष्टांत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में अवमानना ​​का एक मामला था जिसमें उन्होंने माफ़ी मांगी थी। अन्य मामले भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा दायर लंबित शिकायतें हैं। वह कोई पेशेवर अपराधी नहीं हैं। किसी भी मामले में कोई दोषसिद्धि भी नहीं है। राजनीति में कुछ आपसी सम्मान होना चाहिए। मैं अपराधी नहीं हूं। उच्च न्यायालय ने भी फैसला सुरक्षित रखने के 66 दिन बाद सजा का आदेश पारित किया है।”

राहुल गांधी को मिली सजा के परिणाम के बारे में सिंघवी ने कहा कि, “सजा का परिणाम यह होगा कि, वायनाड निर्वाचन क्षेत्र के लिए उपचुनाव को अधिसूचित करना होगा। मैं (राहुल गांधी) पहले ही (लोकसभा के) दो सत्र खो चुका हूं। अगर सुप्रीम कोर्ट ‘नहीं’ कहता है, तो मैं पूरा कार्यकाल खो दूंगा।” 

वरिष्ठ वकील ने यह भी पूछा कि अपनी अयोग्यता सुनिश्चित करने में शिकायतकर्ता की क्या रुचि है, क्योंकि उसकी चिंता केवल दोषसिद्धि की होनी चाहिए।

उन्होंने मामले में सबूतों पर भी सवाल उठाए और कहा, 

  • शिकायतकर्ता ने सीधे तौर पर भाषण नहीं सुना है और उसकी जानकारी का स्रोत एक व्हाट्सएप संदेश और एक अखबार का लेख है।
  • शिकायतकर्ता ने भाषण साबित नहीं किया है। 
  • शिकायतकर्ता ने खुद यह कहते हुए मुकदमे पर रोक लगाने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था कि वह साक्ष्य प्राप्त करना चाहता है। एक साल बाद वह खुद ही स्टे हटवा लेता है और एक महीने बाद सजा हो जाती है।

उन्होंने लोक प्रहरी मामले में 2018 के फैसले पर उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि, “अपीलीय अदालत द्वारा दोषसिद्धि पर रोक लगाने से अयोग्यता पर भी रोक लग जाएगी।” एक आपराधिक मामले में पूर्व कांग्रेस और वर्तमान भाजपा सदस्य हार्दिक पटेल की सजा पर रोक लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी संदर्भ दिया गया।

शिकायतकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने कहा कि “भाषण के वीडियो कोर्ट के सामने सबूत के तौर पर पेश किए गए। बैठक में राहुल गांधी का भाषण सुनने वाले एक व्यक्ति को गवाह के रूप में भी पेश किया गया जिसने वीडियो की पुष्टि की। साथ ही भाषण को कभी भी अस्वीकार नहीं किया गया।

वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने राहुल गांधी के भाषण को उद्धृत करते हुए कहा, “अच्छा एक छोटा सा सवाल, इन सब चोरों का नाम, मोदी, मोदी, मोदी कैसे हैं…ललित मोदी, नीरव मोदी…और थोड़ा ढूंढ़ोगे तो और सारे मोदी निकल आएंगे।”

महेश जेठमलानी ने कहा कि, “राहुल गांधी का इरादा पूरे मोदी समुदाय को सिर्फ इसलिए बदनाम करना था क्योंकि यह प्रधानमंत्री का उपनाम था। ट्रायल कोर्ट के समक्ष धारा 313 के अपने बयान में राहुल गांधी ने कहा कि, उन्हें अपना भाषण याद नहीं है।”

इस मौके पर न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि, एक राजनेता जो एक दिन में कई कई सार्वजनिक बैठकों को संबोधित करते रहते हैं, उन्हें अपने भाषण याद नहीं रह सकते हैं।”

महेश जेठमलानी ने बताया कि वह (राहुल गांधी) एक ऐसे आरोपी हैं जो ढेर सारे सबूतों के खिलाफ मुकदमे का सामना कर रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट की एक मिसाल का हवाला देते हुए जेठमलानी ने तर्क दिया कि “मोदी’ एक पहचान योग्य वर्ग है और ‘मोदी’ उपनाम वाले प्रत्येक व्यक्ति को शिकायत दर्ज करने का अधिकार है।”

इसके बाद, एडवोकेट महेश जेठमलानी ने तर्क दिया कि, “जन प्रतिनिधित्व अधिनियम “नैतिक अधमता” की अवधारणा का उल्लेख नहीं करता है और केवल यह कहता है कि, दो साल या उससे अधिक की सजा, अयोग्यता को आकर्षित करेगी। 2013 के लिली थॉमस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 8 (4) को रद्द कर दिया, जिसमें अपील के लंबित रहने के दौरान अयोग्यता को स्थगित रखने का प्रावधान था। उन्होंने तर्क दिया कि दोषसिद्धि पर रोक लगाने का मौजूदा प्रयास एक प्रावधान को “पिछले दरवाजे से लाने” का प्रयास था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था।”

न्यायमूर्ति गवई ने पूछा, “क्या यह तथ्य कि एक निर्वाचन क्षेत्र जो किसी व्यक्ति को चुनता है, प्रतिनिधित्वहीन हो जाता है, एक प्रासंगिक कारक है? इसके अलावा जब आप अधिकतम सज़ा देते हैं, तो उसके कारण होने चाहिए। लेकिन ट्रायल कोर्ट द्वारा इस पर कोई सुगबुगाहट नहीं है..।”

आगे जस्टिस गवई कहते हैं, “आप न केवल एक व्यक्ति के अधिकार को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि पूरे निर्वाचन क्षेत्र के अधिकारों को प्रभावित कर रहे हैं। इसलिए विद्वान एकल न्यायाधीश का कहना है कि केवल इसलिए कि कोई संसद सदस्य है, रियायत देने का आधार नहीं है, दूसरे पहलू को नहीं छुआ गया है। विद्वान एकल न्यायाधीश ने जो 125 पन्ने लिखे हैं, यह एक दिलचस्प अध्ययन है।”

न्यायमूर्ति गवई ने यह भी टिप्पणी की कि “विद्वान सॉलिसिटर जनरल के राज्य” से आने वाले निर्णयों को पढ़ना दिलचस्प है।”

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से अनुरोध किया कि “वह उच्च न्यायालय पर ‘अनावश्यक टिप्पणियां’ न करें। कभी-कभी, सुप्रीम कोर्ट पर्याप्त कारण नहीं बताने के लिए उच्च न्यायालयों की आलोचना करता है और इसलिए, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश विस्तृत आदेश पारित करते हैं।” 

न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि “उन्हें उच्च न्यायालय के दो हालिया आदेश मिले हैं।”

महेश जेठमलानी ने बताया कि “सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना ​​मामले में राहुल गांधी के माफी मांगने के बाद उन्हें फटकार लगाई थी और कहा, यह पूर्व दोषसिद्धि के समान है। उन्होंने गांधी के खिलाफ पिछले अवमानना ​​​​मामले का हवाला दिया, जिसमें गलत तरीके से कहा गया था कि, सुप्रीम कोर्ट ने राफेल मामले में प्रधानमंत्री को दोषी ठहराया था। जेठमलानी ने बताया कि राफेल समीक्षा याचिकाओं को खारिज करते समय सुप्रीम कोर्ट ने गांधी को चेतावनी देते हुए कहा था, “निश्चित रूप से श्री गांधी को भविष्य में अधिक सावधान रहने की जरूरत है।”

सिंघवी ने यह स्पष्ट करने के लिए हस्तक्षेप किया कि “सुप्रीम कोर्ट का आदेश विवादित भाषण की तारीख के बाद 14 नवंबर, 2019 को आया था।” 

न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “अगर फैसला पहले आया होता तो आपका मुवक्किल अधिक सावधान रहता।”

जेठमलानी ने कहा कि जिस व्यक्ति का अनाप-शनाप भाषण देने का इतिहास हो, उसे रियायत मांगने का कोई अधिकार नहीं है।  उन्होंने कहा, ”वर्तमान मामले में भी उन्होंने कोई पछतावा नहीं दिखाया है।”

रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट में दो साल की सजायाबी पर, विधायिका की अयोग्यता का प्राविधान, इस उद्देश्य से लाया गया था जिससे पेशेवर अपराधी, विधायिका में प्रवेश न पा सके। पर मानहानि का अपराध किसी पेशेवर अपराध जिसे सुप्रीम कोर्ट में moral turpitude यानी नैतिक अधमता कहा गया है, की कोटि में नहीं है। अब यदि राहुल गांधी के ही मामले को लें तो, यह एक प्रकार से राजनीतिक प्रतिद्वंदिता को निपटाने के लिए न्यायालय या कानून का रास्ता अख्तियार करने जैसा है। नीरव मोदी और ललित मोदी दोनों भगोड़े हैं और वे अरबों रुपये की धोखाधड़ी में देश छोड़ कर भाग गए। उनके राजनीतिक संपर्क किन किन से हैं और किस स्तर तक गहराई से हैं, यह सभी को पता है।

पर पुर्णेश मोदी को इन अपराधियों के मोदी सरनेम होने से मोदी समाज का अपमान नहीं दिखता है और जब यह स्वाभाविक सवाल “सारे चोर मोदी सरनेम के ही क्यों है” पूछ दिया गया, और यह सवाल भी जनसभा में पूछा गया, जहां एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का आवेशित वातावरण है तो, पुर्णेश मोदी सर आहत हो गए। समाज में कोई व्यक्ति, अपराधी हो जाय, जो समाज आहत या अपनी मानहानि नहीं मानता पर दूसरे यह सवाल उठा दें, कि अमुक समाज में ही भगोड़े अपराधी क्यों होते हैं, तो समाज अपनी मानहानि समझ लेता है।

(विजय शंकर सिंह पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं।)

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