40 दिन में राजस्थान में बदला जनता का मूड बीजेपी के लिए कहीं खतरे की घंटी तो नहीं?

3 दिसंबर को 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में से तीनों हिंदी प्रदेशों में भाजपा की बंपर जीत का असर अभी भी मीडिया की खुमारी तोड़ नहीं पाया था कि राजस्थान की 200वीं विधानसभा के चुनाव परिणाम ने आज उनकी बोलती बंद कर दी है। 2018 में राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव जीतकर सरकार बनाने वाली कांग्रेस पार्टी को चंद माह बाद लोकसभा चुनावों में इन तीनों राज्यों में करारा झटका मिला था, लेकिन दिसंबर, 2023 में भाजपा की जीत को गोदी मीडिया ने 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए 350+ सीट का दावेदार बता दिया है। 

लेकिन आज जैसे ही राजस्थान के श्रीकरणपुर विधानसभा सीट का चुनाव परिणाम घोषित हुआ, इसने एक बार फिर से मीडिया को अपने नैरेटिव में आवश्यक बदलाव करने के लिए मजबूर कर दिया है। बता दें कि इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी गुरमीत सिंह कुन्नर की असमय मृत्यु हो जाने के कारण चुनाव नहीं हो सका था। इस प्रकार राज्य की 200 सीटों में से 199 सीटों पर ही चुनाव संपन्न हुए थे, जिसमें भाजपा 115 सीट जीतकर सरकार बनाने में सफल रही थी।

जबकि कांग्रेस के हिस्से में मात्र 69 सीटें ही आई थीं। आज की जीत के साथ अब सदन में कांग्रेस विधायकों की संख्या 70 हो चुकी है। हालांकि इस जीत से राज्य विधानसभा में कोई परिवर्तन नहीं होने जा रहा है। सुरेंद्र पाल सिंह टीटी के लिए चुनाव प्रचार में भाजपा की ओर से खुद मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा मैदान में उतरे थे। उनके अलावा राज्य भाजपा अध्यक्ष सीपी जोशी एवं उप-मुख्यमंत्री दिया कुमारी तक ने अपनी ताकत झोंकी थी। लेकिन 40 दिन के भीतर ही हाथ में हार लगने को भाजपा के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। 

राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, गोविंद सिंह डोटासरा ने कांग्रेस उम्मीदवार की जीत पर अपनी टिप्पणी में भाजपा पर जमकर निशाना साधते हुए कहा है, “सरकार मंत्री बना सकती है, विधायक नहीं।” उन्होंने कहा है कि बहुमत के दम पर भाजपा द्वारा एक उम्मीदवार को मंत्री बना दिया गया। कांग्रेस ने इसकी शिकायत चुनाव आयोग से की थी, लेकिन चुनाव आयोग ने इस मामले पर चुप्पी साधकर बता दिया था कि वह किस प्रकार अपने कर्तव्य से लगातार मुंह चुरा रहा है। इसके बावजूद राज्य की जनता ने वोट की चोट कर भाजपा के मंसूबों पर पानी फेर दिया है।

श्रीगंगानगर जिले के अंतर्गत आने वाले इस विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस की जीत के बाद जिले की कुल 6 विधानसभा सीटों में कांग्रेस का अब 4 सीटों पर कब्जा हो गया है, जबकि 2 पर भाजपा काबिज है। कांग्रेस के उम्मीदवार गुरमीत सिंह कुन्नर की असमय मौत के बाद पार्टी ने उनके बेटे रुपिंदर सिंह कुन्नर को अपना प्रत्याशी बनाया था। पंजाब की सीमा से सटे होने एवं किसानों की बड़ी तादाद को भी उनकी जीत की एक बड़ी वजह बताया जा रहा है। लेकिन यहां पर इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि भाजपा ने इस सीट को जीतने के लिए एक ऐसे व्यक्ति को मंत्रिमंडल में जगह दे दी थी, जो स्वंय विधायक तक नहीं था। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान मतदाताओं से अपील की थी कि उन्हें दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय से आने वाली पर्ची को ख़ारिज कर अपने किस्मत का फैसला स्वंय लेना होगा। 

बता दें कि भाजपा की जीत के बाद जिस प्रकार से तीनों राज्यों में स्थापित नेतृत्व के बजाय दिल्ली से आई पर्ची के आधार पर मुख्यमंत्रियों का चुनाव किया गया है, उससे इन राज्यों में भाजपा कार्यकर्ता ही नहीं आम मतदाता भी सकते की स्थिति में हैं। कांग्रेस प्रत्याशी रुपिंदर सिंह कुन्नर को 94,761 मत हासिल हुए हैं, जबकि भाजपा प्रत्याशी सुरेंदर पाल सिंह को 83,500 वोट प्राप्त होने के साथ उन्हें 11,261 वोटों से हार का मुंह देखना पड़ा है।

इस उपचुनाव में कुल 13 प्रत्याशी हिस्सा ले रहे थे, जिनमें तीसरे स्थान पर आम आदमी पार्टी उम्मीदवार पृथ्वीपाल सिंह को 11,912 वोट प्राप्त हुए हैं। कुल 18 राउंड के वोटों की गिनती में पहले और 15वें राउंड को छोड़ दें तो कांग्रेस प्रत्याशी ने बाकी सभी राउंड में अपनी लीड बनाये रखी थी, इसलिए शुरुआती रुझानों के बाद ही मानकर चला जा रहा था कि यह सीट भाजपा हार चुकी है।

5 जनवरी को हुए उपचुनाव से चंद दिन पहले ही राजस्थान में एक माह बाद मंत्रिमंडल का गठन हुआ था, जिसमें बगैर विधायक बने ही सुरेंद्र पाल सिंह टीटी को कृषि विपणन सहित इंदिरा गांधी नहर एवं अल्पसंख्यक मामलों जैसे चार विभागों का स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया था। इसे भी भाजपा की रणनीति के तौर पर बताया गया, जिसे क्षेत्र की जनता को साफ़ इशारा किया गया था कि वे एक राज्य के मंत्री को अपना वोट दे रहे हैं, और उनके क्षेत्र का विकास प्राथमिकता पर रहने वाला है। लेकिन क्षेत्र की जनता ने इसे नकार कर भाजपा के रणनीतिकारों के माथे पर चिंता की लकीरें खड़ी कर दी हैं।

क्या लोकसभा चुनावों में यह जीत उलटफेर की संभावना पैदा करेगा?

2019 में राजस्थान की सभी 25 लोकसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा था। गंगानगर लोकसभा सीट के तहत 8 विधानसभा की सीटें आती हैं, जिनमें हनुमानगढ़ भी शामिल है। गंगानगर लोकसभा सीट एससी उम्मीदवार के लिए आरक्षित है, जिसे 1952 से ही कांग्रेस लगातार 5 बार जीतती आई थी। कांग्रेस को पहली बार 1977 में जनता पार्टी से इस सीट पर पटखनी मिली थी, लेकिन 1980 और 84 में एक बार फिर इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा हो गया था।

1989 में जनता दल की जीत के बाद 91 में फिर से कांग्रेस के कब्जे के बाद इस सीट पर पहली बार 1996 में भाजपा को जीत हासिल हुई। उसके बाद हर बार यहां की जनता ने कांग्रेस और भाजपा के बीच इस सीट की अदला बदली की थी। लेकिन 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव में लगातार भाजपा के निहालचंद मेघवाल को भारी मतों से जिताकर गंगानगर लोकसभा सीट भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित गढ़ बना दिया है। इस सीट पर 61.8% मत पाने वाली भाजपा के लिए क्या इस बार कांग्रेस कड़ी टक्कर दे पायेगी, इसका काफी दारोमदार इंडिया गठबंधन के मजबूत नैरेटिव पर ही निर्भर है। 

केंद्र सरकार की ओर से केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव सुधांशु पन्त को 1 जनवरी से राजस्थान का मुख्य सचिव नियुक्त किये जाने से ही इस बात के कयास लगने शुरू हो चुके थे कि राजस्थान राज्य की बागडोर असल में पीएमओ ही पूरी तरह से संभालने जा रहा है। इन तीनों राज्यों में नियुक्त मुख्यमंत्रियों का हाल बड़ी तेजी से आम लोगों के सामने स्पष्ट हो रहा है। पीएम मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में गुजरात कैडर के अधिकारियों की नियुक्ति की बात भी मीडिया में चर्चा का विषय बनी हुई है। लोगों में चर्चा है कि गुजरात, उत्तराखंड और हरियाणा की तरह अब इन तीनों राज्यों की कमान भी सीधे दिल्ली से चलाई जानी है। ऐसे में इतने बड़े राज्यों को राजनैतिक नेतृत्व के बजाय क्या प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा ही हांका जायेगा?

स्वयं उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को एक नई खींचतान से गुजरना पड़ रहा है, लेकिन उन्होंने अभी तक ओमप्रकाश राजभर के लिए मंत्रिमंडल में स्थान न बनाकर केंद्र के साथ एक प्रकार से शीतयुद्ध को फिर से जिंदा कर दिया है। लेकिन तीन राज्यों में अचानक से आये इस बदलाव को आम जन भी अब भांप रहे हैं, कि इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों के पास न ही अनुभव है और न ही राज्य के लोगों का विश्वास, ऐसे में ये लोग कैसे राज्य की समस्याओं का निराकरण कर सकते हैं। पीएमओ एवं गुजरात कैडर के प्रशासनिक अधिकारियों के मार्गदर्शन में रहकर इन राज्यों के विकास कार्यों की बागडोर संभालने का प्रहसन करने वाले इन मुख्यमंत्रियों से कितनी उम्मीद की जा सकती है, इसकी एक बानगी पिछले दिनों राजस्थान में देखने को मिली। 

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के एक भाषण का वीडियो आजकल राजस्थान में वायरल हो रहा है, जिसमें उन्होंने गलती से पूर्व प्रधानमंत्री के बजाय पीएम मोदी को ही श्रद्धांजलि अर्पित कर दी है। उनके द्वारा लिखित बयान को भी सही-सही न पढ़ पाने को लेकर भी चर्चा का बाजार गर्म है। वाकया यूं है कि करीब दो सप्ताह पूर्व, जयपुर के पास अजयराज पुरा गांव में विकसित भारत संकल्प यात्रा के अवसर पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई को याद करते हुए मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा के द्वारा पूर्व पीएम द्वारा चालू की गई योजनाओं का बखान किया जा रहा था। अपने भाषण में मुख्यमंत्री ने कहा, “पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी ने दुनिया के सामने भारत की ताकत को रखने का काम इस राजस्थान की वीर भूमि से ही किया था। उन्होंने पोखरन में 1998 में परमाणु विस्फोट कर दुनिया को अपनी ताकत दिखाने का काम किया। मैं ऐसे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।”

7.82 करोड़ की जनसंख्या वाले राजस्थान के मुख्यमंत्री के लिए रिमोट वाला सीएम का ठप्पा कितना उचित है यह तो समय ही बतायेगा, लेकिन 40 दिन के भीतर ही श्रीकरणपुर विधानसभा सीट पर हार से जमीनी हालात का कुछ-कुछ अंदाजा तो लगाया ही जा सकता है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधराराजे सिंधिया ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं, जबकि मध्यप्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बेचैनी रह-रहकर सामने आ रही है।

गोदी मीडिया भले ही 3 राज्यों के चुनावों में मिली जीत से पूरे देश का नैरेटिव बदल देने का मंसूबा पाले हों, लेकिन धीरे-धीरे साफ होने लगा है कि इंडिया गठबंधन बाहर से जो भी दिखता हो, लेकिन अंदर से मजबूत होता जा रहा है। दक्षिण से भाजपा साफ़ है और बंगाल, बिहार, कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र में उसके हाफ होने के पूरे आसार हैं। ऐसे में 355 सीटों पर राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ में अखिलेश यादव की रुचि और बसपा की ओर से इशारों-इशारों में कूट भाषा का इस्तेमाल किसी भारी अनिष्ट का सूचक तो नहीं? अगले एक महीने तक देश की राजनीति कितनी बार करवट लेती है, इसका अंदाजा चोटी के राजनीतिक पंडित भी नहीं लगा पा रहे हैं, श्रीकरणपुर विधानसभा सीट का परिणाम भी उनमें से एक है।

(रविंद्र सिंह पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।) 

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