राजस्थान: पेपर लीक से पस्त होते परीक्षार्थियों के हौसले

जयपुर शहर के प्रतियोगी छात्रों में लोकप्रिय इमली फाटक के जनकपुरी-2  इलाक़े की इस तीन मंज़िला इमारत के 80 स्क्वायर फ़ीट की हरी दिवारों और दिवारों पर लटकते विश्व, भारत और राजस्थान के राजनीतिक नक्शों वाला यह कमरा पिछले 31 महीनों से सुरेन्द्र सहित उनके दो साथियों का अस्थाई पता बना हुआ है। हमेशा से पढ़ने में मेधावी रहे सुरेन्द्र बताते हैं कि “जब बारहवीं में अच्छे अंकों से पास हुआ तो पैसों की कमी के चलते इंजीनियरिंग के बजाय सरकारी नौकरी के लिए तैयारी करने का रास्ता चुना, क्योंकि ग्रेजुएशन और बीएड के लिए घर से बाहर रह कर पढ़ने की आवश्यकता नहीं थी, बस परीक्षा से पहले कुछ महीने की कोचिंग की मदद की ज़रूरत थी, लेकिन जब से पहली रीट की तैयारी करने आया, लगता है किसी ट्रैप में फंस गया हूं, पहले वाली रीट के लिए जी-तोड़ पढ़ाई की, नम्बर भी अच्छे थे लेकिन वह वैकेंसी कैंसल हो गयी। उसके बाद धीरे-धीरे चिंता और अवसाद बढ़ता रहा, कई बार लगा की जीवन को ख़त्म कर दें लेकिन फिर दोस्त हिम्मत दिलाते, कुछ दिनों बाद फिर से आत्मविश्वास होना शुरू हुआ, अगली वैकेंसी सैकण्ड ग्रेड की तैयारी शुरू की, परीक्षा देकर आया, अब इसका भी पहला पेपर आउट होने की वजह से कैंसल हो गया है, अगर हमेशा पहली बार में पेपर आउट होना ही है तो दूसरी बार की ही तैयारी की जाए।”

यह व्यथा अकेले सुरेन्द्र की नहीं है, यह पूरे राजस्थान में सरकारी नौकरी के आकांक्षी परीक्षार्थियों की सामूहिक चिंता की अभिव्यक्ति है। राज्य के कर्मचारियों की भर्ती करवाने वाली संवैधानिक संस्था राजस्थान पब्लिक सर्विस कमीशन (RPSC) परीक्षार्थियों के बीच अपनी साख खोती जा रही है। हालांकि RPSC को लेकर विवाद, पारदर्शिता की कमी, पक्षपाती व्यवहार, लुंझ-पुंझ व्यवस्था जैसे आरोप तो हमेशा से लगते रहे हैं, पहले भी कई भर्तियों में पेपर लीक, अनियमितता रही है लेकिन पिछले कुछ सालों में RPSC ने नागरिकों के बीच अपनी पूरी पैठ खो दी है।

राजस्थान की सबसे बड़ी भर्ती परीक्षा रीट 2021 के पर्चा लीक का मामला सामने आने पर वह भर्ती निरस्त करके एक बार फिर से रीट को दो चरणों में; प्री और मेन्स की परीक्षा आयोजित करवाई गई। वहीं 889 पदों के लिए हुई भर्ती परीक्षा पर भी ना केवल छात्र बल्कि विपक्ष के नेता सवाल उठा रहे हैं, इन 889 पदों में हुई भर्ती में से 100 से भी अधिक पद जालोर ज़िले के सांचौर तहसील के लोगों ने प्राप्त किए हैं, इन 100 लोगों में से 20 ने टॉप 50 में जगह बनाई तो 50 से अधिक लोग टॉप 100 में शामिल रहे, इन सबको नियुक्ति मिल गई है, इससे यह अंदेशा लगाया जा रहा है कि इस क्षेत्र के लोगों के बीच पेपर लीक हुआ था। इस पर ही बात करते हुए माकपा के विधायक बलवान पूनिया ने विधानसभा में सवाल उठाया, “एक ही गांव से 100 लोग थानेदार बन गए, मैं तो कहता हूं उस गांव में जाओ और उसकी मिट्टी को पूरे राजस्थान में फैला दो।”

सेकेंड ग्रेड शिक्षक भर्ती मामला

वहीं सेकेंड ग्रेड भर्ती परीक्षा 21 दिसम्बर से 27 दिसम्बर 2022 को होनी तय थी, 24 दिसम्बर के दिन पहली पारी में होने वाला जीके का पेपर पहले ही इन्टरनेट पर वायरल हो गया, जिसके अस्सी सवाल हुबहू पेपर में छपे थे, साथ ही परीक्षा से पहले 44 परीक्षार्थियों को एक बस में पेपर के साथ पकड़ा गया, जिनके साथ एक्सपर्ट भी थे जो उन्हें पेपर सॉल्व करवा रहे थे, जिसके बाद सेकेंड ग्रेड का जीके का पेपर रद्द कर दिया गया।

पुलिस जांच में मालूम चला कि RPSC के सदस्य बाबूलाल कटारा, जिन पर पेपर सेट करने की ज़िम्मेदारी थी, वह परीक्षा से दो महीने पहले ही पेपर अपने घर लेकर आ गया था, वहां से उन्होंने 1 करोड़ रूपए में पेपर शेर सिंह मीणा नाम के आदमी को बेचा, और वहां से यह पेपर माफिया गिरोह तक पहुंचा। माफिया गिरोह ने ये पेपर आगे 8-10 लाख रूपये में अलग-अलग अभ्यर्थियों को बेचें।

अभ्यर्थियों को परीक्षा से कई घंटे पहले बुलाया गया, और एक बस में बिठाकर सारे सवाल हल करवाए जा रहे थे, बस के ठीक आगे एक गाड़ी उन्हें एस्कॉर्ट कर रही थी, पुलिस की दबिश में वे पकड़े गए। ग़ौर करने वाली बात यह है कि यह सारे अभ्यर्थी और पेपर माफिया के लोग जालोर के उसी सांचौर से जुड़े हैं जहां के सौ से अधिक लोगों ने SI भर्ती परीक्षा पास की।

पेपर ऑउट के बाद, ओएमआर इन

बीते 14 मई को नगरीय स्वायत्त संस्था EO पद के लिए RPSC ने परीक्षा आयोजित की, उसी परीक्षा में एक युवक को OMR शीट बदलवाकर पास कराने के लिए दलालों ने 40 लाख रूपये की मांग की, 25 लाख में सौदा तय होने के बाद ACB ने 18.5 लाख रूपये लेते हुए चार लोगों को अलग-अलग जगहों में ट्रैप किया गया, अनिल कुमार, ब्रह्मप्रकाश, रवींद्र कुमार के साथ पकड़े गए चौथे आरोपी गोपाल केसावत पहले घुमंतू एवं अर्द्ध घुमंतू बोर्ड के अध्यक्ष (राज्य मंत्री दर्जा प्राप्त) रह चुके हैं।

इन आरोपियों का RPSC सदस्य मंजू शर्मा से जुड़ा होने को लेकर भी जांच चल रही है। ऐसे में पेपर ऑउट के बाद OMR बदल कर परीक्षा को प्रभावित करने का नया तरीक़ा उजागर होता दिख रहा है। 

समस्या सिर्फ़ पेपर ऑउट तक सीमित नहीं

RPSC की समस्या केवल पारदर्शी ढंग से परीक्षा नहीं करवा पाने तक सीमित नहीं है, हालांकि बड़ी ख़ामियों के चलते कई ज़रूरी बिन्दुओं पर ध्यान नहीं रहता, लेकिन परीक्षार्थियों के जीवन पर उसका गहरा प्रभाव पड़ता है। इसमें सबसे अहम है वार्षिक कैलेंडर की कमी, जब तक रिक्त पदों की विज्ञप्ति के साथ घोषणा ना हो जाए तब तक अभ्यर्थी अंदाज नहीं लगा पाते कि परीक्षा होनी है या नहीं, और होगी तो कब तक होगी।

एक बार विज्ञप्ति आ जाने के बाद भी परीक्षा की नियत तिथियों में परिवर्तन होने लगता है, एक से अधिक चरणों में होने वाली परीक्षाओं की अवधि लम्बी खिंचती रहती है। प्रतियोगी परीक्षा की प्रकृति मनुष्य के सीखने की सहज प्रवृति के साथ मेल नहीं खाती, वह छंटनी करने की ऐसी प्रक्रिया है जिसमें ज्ञान-समझदारी-चेतना के परीक्षण के बजाय इस बात का परीक्षण होता है कि आपने अपने दिमाग़ को परीक्षा के अनुरूप बाक़ी प्रतियोगियों की तुलना में कितना अनुकूल बनाया है, ऐसे में परीक्षाओं का लम्बा खिंचना काफ़ी थका देने वाला साबित होता है।

इसके साथ ही भारत जैसी अनियोजित अर्थव्यवस्था में एक नियमित रोज़गार निजी जीवन के भी कई सारें फ़ैसलों को प्रभावित करता है, इस कभी ना ख़त्म होने वाली परीक्षा प्रक्रिया में उलझकर व्यक्ति अपने जीवन का नियोजन आसानी से नहीं कर पाते हैं। 

राजस्थान के सुदूर हिस्से से आयी एक महिला प्रतियोगी बताती हैं, “मेरे समाज में अगर किसी महिला को आत्मनिर्भर होना है तो उसके लिए केवल सरकारी महिला शिक्षिका के पद को ही अच्छा समझा जाता है, महिला के लिए प्राइवेट नौकरी या किसी और प्रकार की नौकरी को अच्छा नहीं समझा जाता। मेरे जीवन का एक ही सपना है कि मैं आत्मनिर्भर हो जाऊं, इस सपने के साथ ही मेरी उम्र (26 वर्ष) बढ़ रही है, मुझ पर घर वालों का और घर वालों पर समाज का शादी को लेकर दबाव बढ़ने लगा है, किसी दूसरे घर (‘संभावित ससुराल’) में जाकर यह आशा रखना कि वहां जाकर मुझे पढ़ने का पर्याप्त मौक़ा मिल सकेगा, व्यर्थ बात है। ऐसे में मेरे पास यह अंतिम महीने ही है जिसमें नौकरी लगी तो ठीक है, वर्ना सारा जीवन ग़ुलामी करके बिताना पड़ेगा।”

इस महिला अभ्यर्थी की बात से हमें रोज़गार के साथ जेण्डर संरचना के जुड़ाव और पितृसत्ता में ही रोज़गार के ज़रिए आंशिक स्वायत्तता प्राप्त करने की सम्भावना की प्रक्रिया को समझने का एक पहलू मिलता है। लाखों की संख्या में भरे जाने वाले आवेदन पत्र और कुछ हज़ार और कई बार उससे भी कम सफल होने वाले प्रतियोगी, शासक वर्ग के लिए भले ही महज़ एक आंकड़ा भर हों, लेकिन उस हर आवेदन पत्र के पीछे सम्मानजनक जीवन जीने और अपने परिवार को आर्थिक सम्बल देने की चाह छिपी है, जिसे सुनने और समझने में आज की राजनीतिक व्यवस्था असमर्थ है।

(विभांशु कल्ला ने मॉस्को के हायर स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से डेवलपमेंट स्टडीज़ में मास्टर्स किया है, और सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर लिखते रहे हैं।)

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