MP-MLA का सदन में ‘वोट के बदले नोट’ अपराध है या नहीं, 25 साल बाद सुप्रीम कोर्ट करेगा पुनर्विचार

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 1998 के फैसले की सत्यता पर पुनर्विचार के लिए इसे सात सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह राजनीति की नैतिकता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालने वाला एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। कोर्ट यह तय करेगा कि अगर सांसद या विधायक सदन में मतदान के लिए रिश्वत लेते हैं तो क्या तब भी उस पर मुकदमा नहीं चलेगा?

पीठ ने कहा, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्य परिणामों के डर के बिना स्वतंत्रता के माहौल में अपने कर्तव्यों का पालन करें। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव से जुड़े बहुचर्चित कैश फॉर वोट (जेएमएम घूसकांड) मामले में पांच-जजों की संविधान पीठ के फैसले के 25 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इसे सात सदस्यीय संविधान पीठ को रेफर कर दिया। 1998 के उस फैसले में कहा गया था कि सांसद व विधायक को अभियोजन से छूट है, भले ही उन्होंने सदन में वोट देने के लिए पैसे लिए हों।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 1998 के फैसले की सत्यता पर पुनर्विचार के लिए इसे सात सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजा। पीठ ने कहा, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्य परिणामों के डर के बिना स्वतंत्रता के माहौल में अपने कर्तव्यों का पालन करें। सांविधानिक प्रावधानों का उद्देश्य स्पष्ट रूप से संसद या विधानसभा के सदस्य, (जो सामान्य कानून से प्रतिरक्षा के मामले में उच्च विशेषाधिकार प्राप्त करते हैं) को देश के दूसरे नागरिकों से अलग करना नहीं है।

पीठ ने कहा, कानूनी स्थिति यह दर्शाती है कि नरसिंह राव मामले में निर्णय गलत है। एकमात्र सवाल यह है कि क्या हमें भविष्य में किसी समय इस मुद्दे के उठने का इंतजार करना चाहिए या कोई कानून बनाना चाहिए। हमें अपना फैसला भविष्य में अनिश्चित दिन के लिए नहीं टालना चाहिए।

अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा, यह मामला अपने तथ्यों पर आधारित होना चाहिए, अभियोजन जारी रहना चाहिए। यह संदर्भ आदेश संविधान के अनुच्छेद 105 और अनुच्छेद 194 के तहत संसदीय विशेषाधिकार से संबंधित कानून के एक महत्वपूर्ण प्रश्न से निपटने के दौरान आया था, जिसे तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) विधायक सीता सोरेन की याचिका पर विचार करते हुए मार्च, 2019 को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेज दिया था। राज्यसभा चुनाव के दौरान रिश्वत लेने का आरोप लगने के बाद सीता सोरेन ने नरसिंह राव के मामले में फैसले के तहत सुरक्षा का दावा किया था।

न्यायमित्र वकील पीएस पटवालिया ने तर्क दिया कि सांसद या विधायक मतदान के लिए या सदन में भाषण देने के लिए रिश्वत लेने के मामले में अभियोजन से छूट का दावा नहीं कर सकते। यह बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसे ऐसे ही नहीं छोड़ दिया जाना चाहिए।

अनुच्छेद 105(2) के अनुसार, संसद का कोई भी सदस्य संसद या उसकी किसी समिति में अपनी कही गई किसी बात या दिए गए वोट के संबंध में किसी भी अदालत में किसी भी कार्यवाही के लिए उत्तरदायी नहीं होगा। वहीं अनुच्छेद 194(2) राज्य विधानसभा के सदस्यों को ऐसी सुरक्षा प्रदान करता है।

CJI चंद्रचूड़ ने क्या कहा?

संविधान पीठ ने कहा कि पीठ झारखंड मुक्ति मोर्चा सांसदों के रिश्वत मामले में फैसले की नए सिरे से जांच करेगी। इसमें 1993 में राव सरकार के खिलाफ विश्वास प्रस्ताव के दौरान सांसदों ने कथित तौर पर किसी को हराने के लिए रिश्वत ली थी। चीफ जस्टिस ने कहा कि विधायिका के सदस्यों को परिणामों के डर के बिना सदन के पटल पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए, जबकि अनुच्छेद 19(1)(ए) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के व्यक्तिगत अधिकार को मान्यता देता है।

105(2) और 194(2) का उद्देश्य प्रथम दृष्टया आपराधिक कानून के उल्लंघन के लिए दंडात्मक कार्यवाही शुरू करने से प्रतिरक्षा प्रदान करना नहीं लगता है, जो संसद के सदस्य के रूप में अधिकारों और कर्तव्यों के प्रयोग से स्वतंत्र रूप से उत्पन्न हो सकता है। ऐसे मामले में, छूट केवल तभी उपलब्ध होगी जब दिया गया भाषण या दिया गया वोट देनदारी को जन्म देने वाली कार्यवाही के लिए कार्रवाई के कारण का एक आवश्यक और अभिन्न अंग है।

ये मामला सीता सोरेन बनाम भारत संघ है। मामला जनप्रतिनिधि की रिश्वतखोरी से संबंधित है। इस मामले के तार नरसिंहराव केस से जुड़े हैं जहां सांसदों ने वोट के बदले नोट लिए थे। ये मसला अनुच्छेद 194 के प्रावधान 2 से जुड़ा है जहां जन प्रतिनिधि को उनके सदन में डाले वोट के लिए रिश्वत लेने पर मुकदमे में घसीटा नहीं जा सकता। उन्हें छूट दी गई है।

इस मामले में याचिकाकर्ता सीता सोरेन झारखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी हैं और राज्यसभा चुनाव में हुए वोट के लिए नोट लेने की आरोपी रही हैं। उन्हें इसी आधार पर छूट मिली थी। सीता के खिलाफ सीबीआई जांच कराने की गुहार लगाते हुए 2012 में निर्वाचन आयोग में शिकायत दर्ज कराई गई थी।

सीता सोरेन को जन सेवक के तौर पर गलत काम करने के साथ आपराधिक साजिश रच कर जन सेवक की गरिमा घटाने वाला काम करने का आरोपी बनाया गया था। झारखंड हाईकोर्ट ने 2014 में केस को रद्द कर दिया था। तब हाईकोर्ट ने कहा कि सीता ने उस पाले में वोट नहीं किया था जिसके बारे में रिश्वत की बात कही जा रही है।

1998 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों के संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 105 के तहत सांसदों को इस तरह की छूट दी गई है। ये फैसला 1993 के ‘झामुमो रिश्वत घोटाले’ से जुड़ा था। इसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के कई सांसदों और जनता दल के अजीत सिंह के गुट पर आरोप लगे थे कि उन्हें लोक सभा में तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार को संकट से उबारने में मदद करने के लिए रिश्वत दी गई थी।

दरअसल 1991 के आम चुनाव में कांग्रेस (आई) सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर सामने आई थी और कई क्षेत्रीय दलों के समर्थन से कांग्रेस ने पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में सरकार बनाई थी। जुलाई 1993 में, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने मानसून सत्र में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव रखा, लेकिन यह अविश्वास प्रस्ताव आखिर में 14 मतों के अंतर से गिर गया था।

1996 में, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को एक शिकायत मिली और आरोप लगाया गया था कि झामुमो के कुछ सांसदों और जनता दल के अजीत सिंह के गुट को राव की सरकार को वोट देने के लिए रिश्वत दी गई थी। तब कथित रूप से मामले में शामिल सांसदों ने आपराधिक मुकदमे से छूट की मांग की क्योंकि यह मतदान संसद के अंदर हुआ था।

संविधान का अनुच्छेद 105 संसद के सदनों, उनके सदस्यों और समितियों की शक्तियों और विशेषाधिकारों के बारे में प्रावधान करता है। प्रावधान में कहा गया है कि संसद का कोई भी सदस्य संसद, उसकी किसी समिति में उसके द्वारा कही गई किसी भी बात या दिए गए किसी भी वोट के संबंध में किसी भी अदालत में किसी भी कार्यवाही के लिए उत्तरदायी नहीं होगा। अनुच्छेद 194 विधायकों को भी इसी तरह की छूट प्रदान करता है।

1998 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने सांसदों के पक्ष में फैसला सुनाया था। अपने 3:2 के फैसले में अदालत ने अपने फैसले में कहा कि जिन सांसदों ने रिश्वत स्वीकार की और अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान किया, वे आपराधिक मुकदमे से मुक्त होंगे क्योंकि कथित रिश्वत ‘संसदीय वोट के संबंध में’ थी। अदालत ने फैसला सुनाया कि अजीत सिंह, जो कथित तौर पर साजिश में शामिल थे, लेकिन उन्होंने वोट नहीं डाला है, इसलिए वह समान संरक्षण के हकदार नहीं हैं।

वर्ष 2019 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पीठ ने इस अहम प्रश्न को पांच सदस्यीय पीठ के पास भेजते हुए कहा था कि इसके व्यापक प्रभाव हैं और यह सार्वजनिक महत्व का सवाल है। तीन सदस्यीय पीठ ने तब कहा था कि वह झारखंड में जामा निर्वाचन क्षेत्र से झारखंड मुक्ति मोर्चा की विधायक सीता सोरेन की अपील पर झामुमो रिश्वत मामले में अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगी। सीता सोरेन पर 2012 में राज्यसभा चुनाव में एक विशेष उम्मीदवार को मत देने के लिए रिश्वत लेने का आरोप था।उन्होंने दलील दी थी कि सांसदों को अभियोजन से छूट देने वाला संवैधानिक प्रावधान उन पर भी लागू किया जाना चाहिए।

तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने तब कहा था कि वह सनसनीखेज झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) रिश्वतखोरी मामले में अपने फैसले पर फिर से विचार करेगी, जिसमें झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री शिबू सोरेन तथा पार्टी के चार अन्य सांसद शामिल हैं, जिन्होंने 1993 में तत्कालीन पी वी नरसिम्हा राव सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में वोट देने के लिए रिश्वत ली थी। सीबीआई ने सोरेन और झामुमो के चार अन्य लोकसभा सांसदों के खिलाफ मामला दर्ज किया था, लेकिन न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत उन्हें अभियोजन से मिली छूट का हवाला देते हुए इसे रद्द कर दिया था।

झारखंड में राज्यसभा चुनाव हमेशा विवादित रहे हैं। कभी नोट के बदले वोट तो कभी हॉर्स ट्रेडिंग, राज्य में अब तक हुए चुनाव हर हार चर्चा में रहे हैं। और तो और, चुनाव में धनबल के इस्तेमाल के कारण चुनावी प्रक्रिया रद्द करने की पहली घटना भी देश में यहीं हुई थी।

भारत के निर्वाचन आयोग ने झारखंड में वर्ष 2012 में राज्यसभा की दो सीटों के लिए चुनाव प्रक्रिया को धनबल के इस्तेमाल के आरोपों के कारण रद्द कर दिया था। राज्यसभा चुनाव इससे पहले भी रद्द किये गये थे, लेकिन पहली बार ऐसा हुआ जब धनबल के बूते चुनाव प्रक्रिया को नुकसान पहुंचने का हवाला देते हुए यह कदम उठाया गया था। आयोग ने तब यह कदम मतदान की सुबह भारी मात्रा में नकदी जब्त होने के बाद उठाया था। निर्दलीय उम्मदवार आरके अग्रवाल के छोटे भाई सुरेश अग्रवाल की कार से 2.15 करोड़ की राशि बरामद की गयी थी। आयोग ने पूरी चुनाव प्रक्रिया को रद्द करने का फैसला तब लिया था, जब मतदान की प्रक्रिया खत्म हो चुकी थी। तब विधानसभा के 81 में से 79 सदस्यों ने मतदान में हिस्सा लिया था।

झारखंड में 2010 में हुआ राज्यसभा चुनाव भी हॉर्स ट्रेडिंग के कारण चर्चा में रहा था और इसकी जांच की जिम्मेदारी सीबीआई को सौंपी गयी थी। सीबीआई ने ‘वोट के बदले नोट’ मामले में वर्ष 2013 में जांच करते हुए चार्जशीट दाखिल की थी। यह मामला आज भी अदालत में विचाराधीन है।

यह मामला उस वक्त सुर्खियों में आया था जब एक निजी टीवी चैनल ने राज्यसभा चुनाव के दौरान किये गये स्टिंग ऑपरेशन का प्रसारण किया था। इसमें खुफिया कैमरे से रिकॉर्ड कर यह दिखाया गया था कि चुनाव में मत की कीमत के तौर पर झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और भाजपा के विधायक ने 50 लाख से एक करोड़ रुपये की मांग की थी। शुरुआत में इसकी जांच विजिलेंस को सौंपी गई थी जिसे बाद में सीबीआई ने अपने हाथों में ले लिया था।

वर्ष 2008 के राज्यसभा चुनाव के पहले रिलायंस इंडस्ट्रीज से जुड़े चर्चित उद्योगपति परिमल नथवाणी एक केस के सिलसिले में झारखंड हाईकोर्ट आये थे। उसी दौरान उन्होंने यहां से राज्यसभा चुनाव लड़ने का इरादा किया और निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीतने में सफल रहे।

(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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