घोटाले और तमाशे: आप क्रोनोलॉजी समझिए

बात बन नहीं रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर पूर्ण बहुमत हासिल करने के लिए दो लोगों के नेतृत्व वाली भाजपा और आरएसएस की पूर्व निर्धारित पटकथा के अनुसार तो बिल्कुल नहीं। “मोदी है तो मुमकिन है”, 2019 के नारे से लेकर “अबकी बार, 400 पार” तक उनकी गाड़ी दलदल में फंसी हुई दिखती है और वह इसके लिए विपक्ष को दोष भी नहीं दे सकते। याद करने वाली बात है कि, देश, खासकर वह पत्रकार जो “सिस्टम” को समझते हैं, समझ रहा था कि पूर्ण बहुमत तो उस समय भी मोदी के लिए “नामुमकिन” था, कम से कम पुलवामा होने तक।

अचानक घटी त्रासद घटना-पुलवामा के निकट एक गांव में श्रीनगर-जम्मू हाइवे पर 14 फरवरी, 2019 को काफिले पर हमले में 40 सीआरपीएफ जवानों की मौत-अब भी देश के विवेक और चेतना में गहरे धंसी हुई है। उनके परिजनों की आंखों के आंसू अभी सूखे नहीं हैं।

हमला दोपहर में 3 बजे के कुछ पल बाद ही हुआ। उस घटना के बारे में कई अनसुलझे सवाल हैं कि कैसे इतनी मात्रा में विस्फोटक एक अकेला व्यक्ति, बेहद उच्च सुरक्षा वाले संवेदनशील क्षेत्र जिसे “संघर्ष क्षेत्र” माना जाता था, में एक वाहन में ले आया। इन सवालों का जवाब तभी मिल सकता था जब “निष्पक्ष और स्वतंत्र” जांच होती, जो कि वर्तमान हालात में अकल्पनीय है।

पूर्व कश्मीरी राज्यपाल, सत्यपाल मलिक के खुलासे स्तब्ध करने वाले हैं और मीडिया में आ चुके हैं। संभावना यही है कि उनका कथन सही है, हालांकि सही ढंग से जांच ही वास्तविक घटनाक्रम और समाचार सुनने के बाद खुद प्रधानमंत्री की तरफ से उन्हें दिए कथित निर्देशों को पुष्ट कर सकती है।

वैसे, हमले के दौरान, या उससे पहले, प्रधानमंत्री “पीआर मोड” में थे और एक एडवेंचर शृंखला “मैन वर्सज़ वाइल्ड” के लिए सफारी जंगल जैकिट पहने जिम कॉर्बेट नैशनल पार्क में शूटिंग कर रहे थे।

तब से बहुत पानी बह चुका है। सोचिए, भाजपा, अपनी तेल पिलाई और समृद्ध चुनावी मशीन और संगठित आरएसएस काडर के साथ और बड़े पैमाने पर पिट्ठू मीडिया के बावजूद इस समय भी बुरी स्थिति में है तो तब यानि पुलवामा त्रासदी के पहले कैसी हालत में होगी। राम मंदिर ‘प्राण प्रतिष्ठा” का शोर, जो एक सोचा समझा हिन्दुत्व कार्ड था और जिसे दिन-रात मीडिया कवरेज मिली थी, कपूर की तरह उड़ चुका है और घरों व वाहनों पर भगवा झंडे भी गायब हो चुके हैं। एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र को अर्ध-धार्मिक राज्य बनाने का प्रयास जिसमें प्रधानमंत्री खुद अयोध्या में कर्मकांड का नेतृत्व कर रहे थे और देश भर के मंदिरों की यात्रा कर रहे थे, कहीं फंस गया है।

वास्तव में, उन्हें पिछली बार गुजरात तट पर समुद्र के अंदर, स्कूबा डाइविंग करते, मिथकीय द्वारका नगरी की पूजा करते हुए देखा गया था और उन्होंने, जैसाकि ट्रोल दावा करते हैं, एक स्पेस हेलमेट पहना हुआ था ताकि पानी के अंदर पूजा करते हुए भी उनका चेहरा देखा जा सके। यह एक और रोमांचक तमाशा था जिसमें धर्म, और तमाशाई फोटो शूट का मिश्रण था।

इस तरह तमाशे करने के लिए जाना जाने वाला एकमात्र दूसरा नेता है, जो अक्सर अपनी मर्दानगी का प्रदर्शन करता है वह है रूसी तानाशाह व्लादमीर पुतिन, जिसने हाल में एक और चुनाव जीता है बिना किसी विपक्षी दल से मुकाबले के। जबकि उनके प्रबल विरोधी और प्रतिरोध करने वाले एलेक्सी नवालनी (47) की मास्को से कहीं दूर किसी जेल में हत्या कर दी गई।

शुक्र है, भारत अब भी अर्ध-लोकतंत्र बना हुआ है, डॉ. बीआर अम्बेडकर के बनाए धर्मनिरपेक्ष संविधान में ठोस विश्वास, मूल रूप से सांस्कृतिक बहुलतावाद के साथ इसके दिल और रूह में स्वतंत्रता और समानता के पवित्र विचार गहरे धंसे हैं। राहुल गांधी की दूसरी भारत जोड़ो यात्रा सफल रही है, इंडिया समूह ने एक रणनीतिक गठजोड़ तैयार कर लिया है, दक्षिण, बंगाल और पंजाब भाजपा या हिन्दुत्व को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं, और सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा, न्यायिक और ऐतिहासिक फैसला दिया है, ऐसे माहौल में जब अन्याय रोजमर्रा की बात हो गई लगती थी। जाहिर है, इस बदलाव ने नकली मसीहा और उनके अनुयाइयों को निराश और हताश कर दिया है।

चुनावी बॉन्ड घोटाले ने एक ऐसे नियोजित, अकल्पनीय रूप से बड़े, संदेहास्पद और साज़िशाना ऑपरेशन का खुलासा किया है जो बेहद प्रभावी और क्रूर माफिया को भी शर्मसार कर दे। यह एक अरबों रुपये का महाघोटाला है और दुनिया के किसी भी लोकतंत्र के इतिहास में अभूतपूर्व है। इसमें ईडी छापों से लेकर, ठेके देकर चन्दा लेना और भाजपा को बड़े चंदे मिलना, कभी कभी तो ऐसी कंपनियों से जिनकी अपनी माली हालत खराब है लेकिन करोड़ों में चुनावी बॉन्ड के जरिए चन्दा देना, आदि  शामिल है। इसने ऐसी अटकलों को भी जन्म दिया है कि इनमें से कुछ कंपनियां बड़े उद्योगपतियों या बड़े कारोबारियों के ‘प्रॉक्सी’ के रूप में होंगी, जो बड़ी परियोजनाओं या सार्वजनिक इकाइयों/उपक्रमों जैसे हवाई अड्डे, खनन और बंदरगाहों में हिस्सेदारी चाहते होंगे। इसीलिए, अब, ‘ना खाऊंगा, न खाने दूंगा’ का नारा एक खोखला नारा दिखने लगा है जिसमें प्रधानमंत्री के अन्य अधिकांश नारों की तरह ही कोई नैतिक मूल्य नहीं हैं।

वकील हसन नाम का शख्स याद है? वह उन रैट-माइनर में से एक थे जिन्होंने पिछले साल नवंबर अपनी जानें दांव पर लगाकर सिलक्यारा सुरंग के सुराख में प्रवेश किया था और 41 श्रमिकों की जान बचाई थी। वह भी तब जब राष्ट्रीय और विदेशी तकनीक हस्तक्षेप और आपदा प्रबंधन के उपाय विफल हो चुके थे। यह समाचार सातों दिन चौबीसों घंटे प्रसारित हो रहा था।

बचाव अभियान के बाद प्रधानमंत्री ने रैट माइनर से “लाइव” चैट शो किया। लेकिन बाद में इन लोगों को वैकल्पिक नौकरियां या पुरस्कार स्वरूप कोई आर्थिक सहायता तक नहीं दी गई और वह बाकी ज़िंदगी के लिए रैट-माइनर के रूप में ही जीने के लिए छोड़ दिए गया। उनके जख्मों पर नमक छिड़कने के अंदाज में वकील हसन का दिल्ली स्थित घर डीडीए ने जमींदोस्त कर दिया। बिल्कुल, अलग-अलग लोगों के लिए आभार मानने का तरीका अलग-अलग है।

इसके अलावा, विडंबना ही कही जाएगी कि 12 नवंबर 2023 को उत्तरकाशी में ढही सिलक्यारा सुरंग बनाने वाली कंपनी नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड ने 55 करोड़ रुपये के बंन्ड खरीदे। खबरों के अनुसार उन्होंने एक करोड़ रुपये के 30 बॉन्ड 18 अप्रैल 2019 को लोकसभा चुनाव से जरा पहले खरीदे थे। वर्ष 2020 के मध्य आंध्र की इस फर्म को अन्य परियोजनाओं के साथ विवादास्पद ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लिंक परियोजना मिली।

विवादास्पद इसलिए, क्योंकि, प्रधानमंत्री की ‘चार धाम’ योजना की तरह, जिसमें बड़े पैमाने पर पेड़ कटाई हुई, मिट्टी धंसी और उत्तराखंड के हिमालियाई क्षेत्र में भूस्खलन की आशंकाएं पैदा हुईं, उसी तरह रेल लिंक परियोजना का भी पर्यावरणविदों ने पर्यावरणीय आपदा को आमंत्रण देने की आशंका जताकर विरोध किया था। उससे पूर्व  जोशीमठ में रिसाव इसके अलावा 26 अक्टूबर 2018 को आयकर विभाग अधिकारियों ने इसके कार्यालयों पर आयकर नियमों के उल्लंघन और मनी लॉन्ड्रिंग  के आरोप में छापे मारे थे।

जैसा कि सोशल मीडिया में चुटकुला छाया हुआ है”, ‘आप क्रोनोलॉजी समझिए – प्लीज’। क्यों नहीं, एक दूसरा घिसा-पिटा नारा भी तो फिजां में गूंज ही रहा है: ‘मोदीजी हैं, तो सब मुमकिन है।’

(अमित सेनगुप्ता का लेख लोकमार्ग से साभार।) 

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