सुप्रीम कोर्ट पेगासस पर केंद्र के जांच समिति के प्रस्ताव पर सहमत नहीं, सरकार नहीं ले रही है कोई स्टैंड

पेगासस पर मोदी सरकार उच्चतम न्यायालय में घिरती नजर आ रही है। सरकार चाहती है कि उच्चतम न्यायालय सरकार द्वारा प्रस्तावित जांच समिति की बात मान ले, लेकिन उच्चतम न्यायालय इसमें झोल होने और याची वकीलों द्वारा इस पर अविश्वास करने के कारण इस प्रस्ताव पर राजी नहीं हुआ। यही नहीं उच्चतम न्यायालय ने आज इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि पेगासस घोटाले की जांच की मांग करने वाली याचिकाओं के जवाब में केंद्र सरकार द्वारा दायर हलफनामे में यह नहीं बताया गया कि उसने स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया है या नहीं।

चीफ जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस सूर्यकांत और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने यह भी देखा कि केंद्र शीर्ष अदालत के समक्ष एक स्टैंड लेने के लिए अनिच्छुक था। पीठ ने कहा कि आप जो कुछ भी कहना चाहते हैं, आप एक हलफनामा क्यों नहीं दाखिल करते? हमें एक स्पष्ट तस्वीर भी मिलेगी।

केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने कहा कि मैं खुद से पूछता हूं कि अगर एक पेज का हलफनामा यह कहते हुए दायर किया जाता है कि पेगासस का इस्तेमाल नहीं किया गया तो क्या वे दलीलें वापस ले लेंगे? जवाब न है। इस पर पीठ ने जवाब दिया, “हम देख रहे हैं कि आप कोई स्टैंड नहीं लेना चाहते हैं”।

एसजी ने जवाब दिया कि अगर यह तथ्य खोजने के लिए है, तो मैं इसके लिए हूं। लेकिन अगर यह सनसनीखेज है जो अनुच्छेद 32 के लिए अलग है तो मैं इसकी मदद नहीं कर सकता। ऐसा लगता है कि याचिकाकर्ता, अदालत जो देखना चाहते हैं, उसके अलावा कहीं और जाना चाहते हैं।

पीठ विशेष जांच दल (एसआईटी), न्यायिक जांच और सरकार को निर्देश देने सहित विभिन्न प्रार्थनाओं की मांग वाली याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई कर रही थी कि क्या उसने नागरिकों की जासूसी करने के लिए पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया था या नहीं।

एसजी मेहता ने केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के माध्यम से दायर एक हलफनामे का हवाला दिया जिसमें सरकार पर लगाए गए सभी आरोपों का खंडन किया गया था। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मुद्दे को देखने के लिए सरकार द्वारा विशेषज्ञों की एक समिति का गठन किया जाएगा। मेहता ने कहा कि यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है। अगर यह मामला चला गया तो इसका राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव पड़ेगा। इस मामले में हलफनामा आदि प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसमें रखे गए तथ्यों आदि से राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताएं होंगी।

मेहता ने कहा कि हमने सभी आरोपों से इंकार किया है। मंत्री ने स्पष्ट किया है कि संसद सत्र शुरू होने से पहले एक वेब पोर्टल ने एक सनसनीखेज कहानी प्रकाशित की है। इसमें छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है या इसकी जांच की जरूरत है। इस बिंदु पर जस्टिस बोस ने कहा कि मैंने एक बार दो याचिकाकर्ताओं – परंजॉय गुहा ठाकुरता और एक अन्य के साथ बातचीत की थी। अगर मैं इस मामले को सुनता हूं तो क्या आप सभी को कोई समस्या है? किसी भी वकील ने इसका विरोध नहीं किया।

इसके बाद वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने एक याचिकाकर्ता की ओर से अपना पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि यह हलफनामा हमारे द्वारा उठाए गए मुद्दों का जवाब नहीं देता। हलफनामे के पैरा 3 में कहा गया है कि याचिकाएं अनुमानों और अनुमानों पर आधारित हैं। अब यदि उन्होंने वास्तव में उत्तर नहीं दिया है तो वे यह कैसे कह सकते हैं? बता दें कि पेगासस से केंद्र का कोई लेना-देना नहीं है। सिब्बल ने कहा कि याचिकाकर्ता नहीं चाहते थे कि सरकार घोटाले की जांच के लिए विशेषज्ञों की समिति का गठन करे।

हम सरकार नहीं चाहते हैं, जिसने शायद पेगासस का इस्तेमाल एक समिति के गठन के लिए किया हो। केंद्र का कहना है कि कुछ स्पाइवेयर ने व्हाट्सएप को संक्रमित कर दिया था। इसका मतलब है कि उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया था। यह भी स्वीकार किया गया कि भारत के 119 उपयोगकर्ता स्पाइवेयर से संक्रमित थे। क्या वे इस्राइली सरकार के संपर्क में हैं? इसलिए वे तथ्यों पर प्रतिक्रिया नहीं देते हैं। एफआईआर दर्ज नहीं हुई। फ्रांस ने अदालती प्रक्रियाओं के जरिए राष्ट्रीय स्तर पर जांच शुरू की है, इस्राइल भी जांच कर रहा है। भारत सरकार का कहना है कि सब ठीक है।

 एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि मंत्री के बयान में कुछ भी नहीं है कि सरकार पेगासस का उपयोग नहीं कर रही है। ऐसा कुछ भी नहीं है जो कहता है कि उन्होंने सुविधा का उपयोग नहीं किया है और एजेंसियां इसका उपयोग नहीं कर रही हैं। उन्होंने कहा कि पेगासस या किसी अन्य निगरानी सॉफ्टवेयर के उपयोग को संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा अधिकृत किया जाना है।

राकेश द्विवेदी ने कहा कि यहां इस हलफनामे में ऐसा कुछ नहीं कहा गया है। निजता एक मौलिक अधिकार है और अगर इसका उल्लंघन किया जा रहा है या नहीं, तो यह देखना होगा कि यह संसद के कानून के माध्यम से है या नहीं। ऐसा कोई बयान नहीं है कि मेरे खिलाफ इसका इस्तेमाल किया गया या नहीं किया गया। उन्हें समय मिलने दें और जवाब दें।

सरकार द्वारा परिकल्पित समिति के गठन पर, द्विवेदी ने निष्कर्ष निकाला कि उन्होंने यह भी नहीं बताया है कि इस समिति के सदस्य कौन होंगे। इसे एक तटस्थ स्वतंत्र समिति होनी चाहिए। इसकी निगरानी इस न्यायालय द्वारा की जानी चाहिए।

जब पहली बार मामले की सुनवाई हुई, न्यायालय ने पाया कि पेगासस विवाद के संबंध में समाचार रिपोर्टों में आरोप गंभीर प्रकृति के हैं, यदि यह सच है कि प्रभावित व्यक्तियों द्वारा शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने से पहले पुलिस के साथ आपराधिक शिकायत दर्ज करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया है।

द वायर सहित दुनिया भर में सोलह अंतरराष्ट्रीय मीडिया आउटलेट्स ने भारत सरकार सहित दुनिया भर में विभिन्न सरकारों द्वारा नियोजित किए जा रहे पेगासस सॉफ्टवेयर की जांच प्रकाशित की थी। यह पता चला कि विभिन्न राजनीतिक विरोधियों, पत्रकारों और संवैधानिक पदाधिकारियों की संख्या पेगासस सूची का हिस्सा थी।

पेगासस स्पाईवेयर से जासूसी के मामले में केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया जिसमें कहा गया है कि इसके लिए सरकार विशेषज्ञों की एक कमेटी बनाएगी जो इस मामले में लगे आरोपों की जांच करेगी। याचिकाओं में लगाए गए आरोपों को भी केंद्र सरकार ने नकार दिया है। दो पेज के हलफ़नामे में केंद्र सरकार ने कहा है कि इस मामले में दायर याचिकाएं अनुमानों, अप्रमाणित मीडिया रिपोर्टों या अपुष्ट सामग्री पर आधारित हैं।

कुछ दिन पहले पेगासस जासूसी मामले में सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि यदि मीडिया में छपी ख़बरें सही हैं तो ये आरोप गंभीर हैं। तब सीजेआई एनवी रमना ने कहा था कि यह आश्चर्य की बात है कि पेगासस स्पाईवेयर से जासूसी का मामला 2019 में सामने आया था और किसी ने इस बारे में सत्यापन योग्य सामग्री एकत्र करने की कोई गंभीर कोशिश नहीं की। बता दें कि यह मामला संसद से सड़क तक मोदी सरकार के लिए मुसीबत का सबब बन चुका है।

एम. एल. शर्मा, राज्यसभा सदस्य जॉन ब्रिटस, पत्रकार एन. राम और शशि कुमार, जगदीप छोकर, नरेंद्र मिश्रा, रूपेश सिंह, परंजय गुहाठाकुरता, एस. एन. एम. आब्दी और एडिटर्स गिल्ड की ओर से इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई थीं।

गोविंदाचार्य की याचिका

पेगासस स्पाईवेयर से जासूसी के मामले में आरएसएस के पूर्व विचारक केएन गोविंदाचार्य भी सामने आ गए हैं। गोविंदाचार्य ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि वह उनके द्वारा 2019 में दायर की गई याचिका पर नए सिरे से सुनवाई करे। गोविंदाचार्य ने मांग की है कि इस मामले में मुक़दमा दर्ज किया जाए और एनआईए फ़ेसबुक, वॉट्स एप और पेगासस स्पाईवेयर को बनाने वाली कंपनी एनएसओ के ख़िलाफ़ जांच करे। गोविंदाचार्य की नई याचिका में मांग की गयी है कि पेगासस मामले में सही, निष्पक्ष और एक जिम्मेदार जांच होनी चाहिए जिससे भारत में पेगासस के इस्तेमाल और इसके लिए जिम्मेदार लोगों के बारे में पता लग सके।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments