स्वामी प्रसाद मौर्य गलत नहीं, कभी बौद्ध मठ था बदरीनाथ

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भारत में विभिन्न सभ्यताओं, साम्राज्यों और धार्मिक परंपराओं का एक प्राचीन और समृद्ध इतिहास है। कई धार्मिक स्थल सदियों से विभिन्न समुदायों के लिए पूजा स्थल रहे हैं। उपासना स्थलों को लेकर भी लोगों की अपनी-अपनी मान्यताएं होने के कारण अपने-अपने दावे रहे हैं। इन स्थलों का ऐतिहासिक स्वामित्व और नियंत्रण परस्पर विरोधी दावों और विवादों को जन्म देता रहा है। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की अवधि के दौरान, विभिन्न प्रशासनिक और कानूनी निर्णय लिए गए जिन्होंने धार्मिक स्थलों के प्रबंधन और स्वामित्व को प्रभावित किया। इनमें से कुछ निर्णय भारत के स्वतंत्र होने के बाद भी विवाद का विषय बने हुए हैं।

राजनीतिक लाभ उठाने के लिये इन धार्मिक स्थलों के विवादों को तूल दिया जाता रहा है। इन विवादों के पिटारे पर ढक्कन लगाने के लिये नरसिम्हाराव सरकार के कार्यकाल में उपासना स्थल अधिनियम 1991 आया था, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि अयोध्या विवाद के अलावा देश के सभी धार्मिक स्थलों की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 के दिन थी वही भविष्य में भी बरकरार रहेगी। यानी कि आयोध्या के अलावा किसी भी धार्मिक स्थल की स्थिति में बदलाव नहीं हो सकेगा।

लेकिन बावजूद इसके धर्म स्थलों की मुक्ति का अभियान चल रहा है जिसमें से एक ज्ञानव्यापी मस्जिद का भी है। लेकिन हाल ही में सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने सनातन धर्मावलम्बियों के सर्वोच्च तीर्थ बदरीनाथ का मुद्दा उठा कर एक नये विवाद को जन्म दे दिया है। उनका कहना है कि बदरीनाथ वास्तव में हिन्दू मंदिर नहीं बल्कि एक प्राचीन बौद्ध मठ है जिसे आठवीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य ने पुनः हिन्दू मंदिर में बदला था।

स्वामी प्रसाद मौर्य के दावे से करोड़ों सनातन धर्मावलम्बियों की आस्थाओं को ठेस लगनी स्वाभाविक ही है लेकिन अगर उनके दावे का ऐतिहासिक दस्तावेजों के नजरिये से या सबूतों के आधार पर देखा जाये तो मौर्य का दावा गलत नहीं हैं। सनातन और बौद्ध धर्म, दोनों का मूल भारत ही है और दोनों ही भारत के प्रचीन धर्म हैं। बौद्ध धर्म भारत से ही श्रीलंका, तिब्बत, चीन, जापान और दक्षिण पूर्व देशों तक गया। ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में गौतम बुद्ध द्वारा बौद्ध धर्म का प्रवर्तन किया गया।

गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में लुंबिनी (वर्तमान नेपाल में) में हुआ, उन्हें बोध गया में ज्ञान की प्राप्ति हुई, जिसके बाद सारनाथ में प्रथम उपदेश दिया और उनका महापरिनिर्वाण 483 ईसा पूर्व भारत के कुशीनगर हुआ। लेकिन वैदिक या सनातन धर्म वेद पर आधारित दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है। यह धर्म ज्ञात रूप से लगभग 12000 वर्ष पुराना है। इसलिये सनातन धर्मावलम्बियों का मत है कि बौद्ध धर्म से पहले बदरीनाथ और केदारनाथ हिन्दू मंदिर ही रहे होंगे जिनका आदि गुरु शंकराचार्य ने पुनरुद्धार किया।

विभिन्न धर्मों की प्राचीनता के विवाद में पड़े बिना अगर हम भारत के प्रचलित इतिहास के आईने से देखें तो वैदिक धर्म से पहले मौर्यकाल में बौद्ध धर्म अपने चरम पर था। स्वयं सम्राट अशोक एक बौद्ध भिक्षु बन गये थे। उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून के ही निकट कालसी में आज भी अशोक का शिलालेख मौजूद है, जो कि उत्तराखण्ड में बौद्ध धर्म की सम्पूर्ण उपस्थिति का जीता जागता प्रमाण है।

मौर्यकाल के बाद पुष्यमित्र का शासन आया तो बौद्ध धर्म के महापतन की शुरूआत हो गयी। बौद्ध मठों को मंदिरों में बदला गया। जिनमें विख्यात हिमालयी मठ बदरीनाथ भी एक है। बौद्धकाल के बाद आदि गुरु शंकराचार्य ने तो देश के चारों कोनों में चार सर्वोच्च धार्मिक पीठें स्थापित कर वैदिक धर्म का एकछत्र राज स्थापित कर दिया था।

हिन्दू राजाओं द्वारा बहुत से बौद्ध मंदिरों का स्वरूप बदले जाने की घटनाएं इतिहास में दर्ज हैं। हिन्दुओं के सर्वोच्च हिमालयी तीर्थ बदरीनाथ, जिसे बैकुण्ठ धाम भी कहा जाता है के बारे में भी इतिहासकारों ने कहा है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने स्वयं इस बौद्ध मठ को भगवान विष्णु के मंदिर में बदला।

ई.टी. एटकिंसन ने डॉ. टेलर, डॉ बर्नेल, विल्सन और हाॅजसन द्वारा किये गये चीनी यात्री ह्वेन त्सांग के यात्रा विवरण के अध्ययन का हवाला देते हुये अपने विख्यात “गजेटियर ऑफ हिमालयन डिस्ट्रिक्ट” के ग्रन्थ दो के भाग 2 (बुद्धिज्म इन कुमाऊं इन द सेवन्टीन्थ सेंचुरी) के पृष्ठ 463 से लेकर 465 में बदरीनाथ और केदारनाथ के प्राचीन बौद्ध स्वरूप और शंकराचार्य द्वारा उनके परिवर्तन का विस्तृत वर्णन किया है। यह भी माना गया कि इन्हीं हिमालयी तीर्थों से बौद्ध धर्म तिब्बत गया।

हिमालयन गजेटियर के उपरोक्त भाग के पृष्ठ 463 में बौद्ध धर्म का विनाश (एन्निहिलेशन और बुद्धिज्म) में लिखा है कि कुमाऊं में 7वीं सदी तक काफी हद तक बौद्ध धर्म स्थापित हो चुका था। लेकिन सातवीं शताब्दी के मध्य में ह्वेन त्सांग की यात्रा की तारीख और शंकराचार्य का बोलबाला स्थापित होने के बाद इस क्षेत्र में शायद ही कोई बौद्ध मठ बचा हो।

इसी पृष्ठ पर एटकिन्सन लिखता है कि चूंकि शंकराचार्य द्वारा स्थापित धर्मस्थल और परम्परायें आज भी अस्तित्व में हैं इसलिये बौद्ध धर्म या तो उनके युग से पहले नष्ट हो चुका होगा या उनके प्रभाव के कारण बौद्ध समाप्त हो चुके होंगे। एटकिन्सन ने पृष्ठ 464 पर बौद्धों की तलाश करते हुये बृखदेव की मृत्य के बाद उसके भाई के रिजेंट रहते हुये शंकराचार्य के नेपाल पहुंचने का जिक्र किया है, जिसमें कहा गया है कि शंकराचार्य ने पहले शास्त्रार्थ से बौद्धों को हराया फिर पशुपतिनाथ के मंदिर से उन्हें मार भगा कर दक्षिण के ब्राह्मणों द्वारा वहां वैदिक रीति से पूजा की व्यवस्था कराई।

भारत के चौथे सर्वेयर जनरल जाॅन हाॅजसन और विल्सन के अनुसंधान का हवाला देते हुये एटकिन्सन ने पृष्ठ 466 पर लिखा है कि सर्वविदित ही है कि शंकरा (शंकराचार्य) ने कुमाऊं में आ कर बौद्धों और नास्तिकों को भगा कर सनातन धर्म की पुनर्स्थापना की। ऋंगेरी मठ में शंकराचार्य के पूर्ववर्ती कुमालि भट्ट भी उन्हीं की तरह सनातन धर्म के कट्टर उपासक थे।

शंकराचार्य ने नेपाल की ही तरह कुमाऊं (उस समय प्रशासनिक दृष्टि से ब्रिटिश गढ़वाल कुमाऊं कमिश्नरी का हिस्सा था।) में भी केदार में पशुपत और बदरीनाथ में नारायण के बौद्धमार्गी पुजारियों को हटा कर उनके स्थान पर दक्खिन (दक्षिण) के पुजारी तैनात किये, जिनके वंशज अभी भी उन मंदिरों की व्यवस्था संभालते हैं।

इस व्यवस्था पर श्रद्धालुओं का अटूट विश्वास बनाये रखने के लिये शंकराचार्य ने अपने अनुयायियों के माध्यम से हर जगह प्रचारित किया कि इन पवित्र स्थानों की यात्रा करने से बहुत पुण्य मिलता है। इस व्यवस्था के साथ ही कुमाऊं में बौद्ध धर्म के वर्चस्व पर रोक लग गयी। इस प्रकार शंकराचार्य के प्रयासों से सातवीं सदी के अंत और आठवीं सदी के प्रारम्भ में बौद्ध धर्म का उन्मूलन हो सका। पृष्ठ 467 में एटकिन्सन लिखता है कि कुमाऊं के कत्यूरी शासक वर्ग ने बौद्ध मठों के विध्वंस और बौद्धों के परिवारों की बर्बादी से होने वाले राजनीतिक लाभ का पूरा आनन्द लिया।

आज अगर हिन्दुओं के इन सर्वोच्च तीर्थों पर कोई अन्य दावा करता है तो समाज में एक नयी अव्यवस्था फैल जायेगी। जैन सम्प्रदाय के लोग बदरीनाथ को आदिनाथ भी मानते हैं। उत्तराखण्ड राज्य गठन के तत्काल बाद बदरीनाथ धाम में श्वेतांबर जैन संस्थापक ट्रस्ट द्वारा स्थापित धर्मशाला एवं उपासना स्थल के निर्माण का प्रयास किया गया था। इसके विरोध में बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति जब अदालत गयी तो चमोली के जिला जज की अदालत ने समिति की याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया था कि बदरीनाथ के लिए ऐसा कोई कानून नहीं है जो यहां भवनों, धर्मशालाओं अथवा मंदिर के निर्माण पर रोक लगाता हो।

अदालत ने जैन धर्म को सनातन धर्म की ही एक धारा बताते हुए श्वेतांबर जैन संस्थापक ट्रस्ट द्वारा स्थापित धर्मशाला एवं उपासना स्थल के निर्माण को जायज ठहराया था। इस प्रस्तावित मंदिर के निर्माण के लिये पत्थर भी बदरीनाथ पहुंचने लगे थे। बाद में आपसी सौहार्द को महत्वपूर्ण मानते हुये जैनियों ने वहां मंदिर निर्माण का इरादा त्याग दिया।

(जयसिंह रावत वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

18Comments

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  1. 5
    Vikram maurya

    बहुत सटीक ज्ञान दिया है आपने ऐसे ही यदि 10% भी लोग जागरूक हो जाए तो भारत अंध विश्वास मुक्त हो जायेगा।

    • 6
      Namo narayan dubey

      Hamare tirtho ko baudho ki gand dhone vale ashok ne dukandari chalanr k liye diya jaha pavitra dhtalo pe vajrayan 14 saal ki ladki ka balatkar krte the bosdivale bodh jhaant

  2. 8
    Sangeeta

    ठीक है इसका अर्थ यह है कि सनातन धर्म के आधार को बस किसी तरह मिथ्या सिद्ध करने में रहिये । धन्य है सनातन धर्म जो इतनी सहिष्णुता से सदियों से यह सह कर भी अस्तित्व में है

  3. 9
    संजय

    केवल भारत के सनातनी ही ऐसी प्रजाति हैं कि, जिनके वे गुलाम रहे उनके लिखे इतिहास को ही प्रमाणिक मानते हैं। क्या हम वास्तव में आजाद हुए हैं?

  4. 10
    आचार्य श्री

    मान्यवर,
    प्रथम दृष्टया तो यह तथ्य काल्पनिक ही प्रतीत होता कि बद्रीनाथ मंदिर प्राचीन काल में बौद्ध मतावलंबियों का बौद्ध मंदिर था ।
    क्या कोई बतायेगा कि बौद्ध धर्म के जनक महात्मा बुद्ध के पूर्वज किस धर्म के अनुयाई थे ? 🙂

  5. 11
    Anirudh

    सम्राट अशोका के 84 हजार स्तूपं, विहार और मठ आज कहाँ है….?
    ज्यादातर परिवर्तित कर दिए गये……।

  6. 12
    Anirudh

    सम्राट अशोका के 84 हजार स्तूप, विहार और मठ आज कहाँ है……..???
    ज्यादातर को तो परावर्तित किया गया.

  7. 13
    Subhash Chandra Nautiyal

    यदि आपकी बात को सच मान लिया जाए तो क्या महात्मा बुद्ध के जन्म से पूर्व यानि 563 ईसा पूर्व से पहले वहाँ कोई मन्दिर का ढांचा था?
    बदरीनाथ पूजा स्थल कब व कैसे बना?
    बदरीनाथ में सर्वप्रथम मन्दिर ढांचा कब व कैसे बना?
    वहाँ पर सर्वप्रथम मन्दिर का ढांचा किसने बनवाया?
    क्या मन्दिर का ढांचा वहाँ बौद्ध अनुयायियों ने बनवाया था? यदि हां तो कब व कैसे? किसने बनवाया?
    ऐतिहासिक तथ्यों पर आधी अधूरी जानकारी से लिखना सदैव खतरनाक होता है, पूर्ण तथ्यों के साथ लिखें। अन्यथा यह माना जायेगा कि आप एक नये विवाद को जन्म दे रहे हैं।

  8. 18
    अवधेश

    बामपंथी इतिहासकारों ने इतिहास का सत्यानाश किया है। इनकी बात तो न ही कियाजाये।

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