न्यूजक्लिक पर हमला, भारत के किसान आंदोलन पर हमला है

3 अक्टूबर 2023 को दिल्ली पुलिस के पांच सौ अधिकारियों ने लगभग सौ पत्रकारों और शोधकर्ताओं के घरों पर छापे मारे। दिल्ली पुलिस ने इन पत्रकारों व शोधकर्ताओं के लैपटॉप, सेल फोन और हार्ड ड्राइव जब्त कर लिए। मीडिया पर हुए इस भयावह हमले का निशाना 2009 में शुरू हुई एक समाचार वेबसाइट न्यूज़क्लिक थी। 3 अक्टूबर की शाम ढलने तक दिल्ली पुलिस ने न्यूज़क्लिक के संस्थापक एवं मुख्य संपादक, प्रबीर पुरकायस्थ और न्यूज़क्लिक के मानव सम्बंध प्रमुख, अमित चक्रवर्ती को गिरफ्तार कर लिया था।

दिल्ली पुलिस की तहकीकात एक खास मुद्दे के इर्द-गिर्द ज्यादा घूमती रही- 2020 से 2021 तक चला ऐतिहासिक किसान आंदोलन। पुलिस ने पत्रकारों से पूछा कि क्या उन्होंने मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की केंद्रीय सरकार द्वारा पारित तीन कानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली की सड़कों पर किसानों के एक साल लंबे विरोध प्रदर्शन पर कोई रिपोर्ट की थी।

पुलिस ने पूछा कि क्या उन्हें इस रिपोर्टिंग के लिए उनके नियोक्ता, न्यूज़क्लिक से कोई बोनस मिला था? यह पूछताछ पत्रकारों या न्यूज़क्लिक द्वारा किसी कानून के उल्लंघन के विषय में नहीं की जा रही थी। बल्कि, इस पूछताछ का मकसद यह जानना था कि क्या पत्रकारों ने किसानों के आंदोलन, या भारतीय सरकार के कोविड​​-19 प्रबंधन आदि पर कोई रिपोर्टिंग की थी या नहीं।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) में सीधे तौर पर भले ही प्रेस या समाचारपत्रों का उल्लेख नहीं है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से भारत के नागरिकों को “भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” प्रदान करता है। इसके बावजूद विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक (2023) में भारत 180 में से 161वें स्थान पर जा चुका है। दिल्ली पुलिस का इन पत्रकारों को डराना-धमकाना इस सूचकांक में भारत की निम्न स्थिति को उचित ठहराता है।

गिरफ्तारी के बाद जब पुलिस की प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) – जिसके आधार पर न्यायपालिका ने पुरकायस्थ और चक्रवर्ती की गिरफ्तारी को सही ठहराया था- सामने आई तो इन दोनों व्यक्तियों को हिरासत में लेने के लिए इस्तेमाल किए गए तर्क भी सामने आ गए। यह एफ़आईआर एक भ्रामक दस्तावेज है, और गिरफ्तार किए गए दोनों लोगों के अपराधों को स्पष्ट रूप से उजागर नहीं करती है।

न्यूज़क्लिक ने एफ़आईआर पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे “पूर्व दृष्टया कपोल-कल्पित और फर्जी” बताया। तमाम द्वेषपूर्ण दावों में एक दावा यह किया गया है कि न्यूज़क्लिक चीन के निजी और सरकारी धन से चलता है। न्यूज़क्लिक ने स्पष्ट रूप से कहा, “न्यूज़क्लिक को चीन या चीनी संस्थाओं से कोई फंडिंग या निर्देश नहीं मिला है।”

न्यूज़क्लिक के इस दावे के तुरंत बाद, जेसन फ़ेचर ने वर्ल्डवाइड मीडिया होल्डिंग्स (जिसने 2019 में न्यूज़क्लिक में निवेश किया था) की ओर से एक बयान जारी किया। फ़ेचर ने कहा कि, 2017 में ‘थॉटवर्क्स’ नाम की इन्कॉर्पोरेटेड कंपनी को यूनाइटेड किंगडम के एपैक्स पार्टनर्स को बेचा गया था, और उस बिक्री से प्राप्त धन से वर्ल्डवाइड मीडिया होल्डिंग्स नामक कंपनी चलती है। चीनी धन का दावा नए शीत युद्ध की मानसिकता से प्रेरित है, और तथ्यों से बिलकुल परे है।

इसके अलावा एफ़आईआर में लिखा गया है कि:

आरोपी व्यक्तियों ने इस तरह की अवैध विदेशी फंडिंग के माध्यम से भारत में समुदाय के जीवन के लिए आवश्यक आपूर्ति और सेवाओं को बाधित करने तथा किसानों के विरोध की अवधि को बढ़ाकर संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और नष्ट करने की भी साजिश रची है। यह पता चला है कि इस उद्देश्य के लिए कुछ भारतीय संस्थाओं और शत्रु विदेशी प्रतिष्ठानों के बीच एक पारस्परिक रूप से लाभप्रद गठजोड़ स्थापित किया गया था। उपरोक्त गठजोड़ का उद्देश्य था भारतीय अर्थव्यवस्था को कई सौ करोड़ का भारी नुकसान पहुंचाना और आंतरिक कानून व्यवस्था बिगाड़ने के लिए एक दूसरे का समर्थन करते हुए किसानों के आंदोलन को फंड देना और मज़बूत करना।

निराधार आरोपों की बाढ़ के बीच न्यूज़क्लिक और उसके पत्रकारों पर कई गंभीर आरोप भी लगाए गए हैं:

  • कि न्यूज़क्लिक और/या उसके पत्रकारों ने रिपोर्टिंग के लिए नहीं, बल्कि आंदोलनकारी के तौर पर संघर्ष में शामिल होने के लिए “शत्रु विदेशी प्रतिष्ठानों” से विदेशी धन लिया।
  • कि न्यूज़क्लिक और/या उसके पत्रकारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाने और आंतरिक क़ानून व्यवस्था को बाधित करने के लिए आंदोलन की अवधि को बढ़ाया।
  • कि न्यूज़क्लिक और/या उसके पत्रकारों ने किसानों के विरोध की अवधि को बढ़ाकर भारत की खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल दिया।

सरकार के इस तरह के दावे 2020-21 में हुए ऐतिहासिक आंदोलन में किसानों की वास्तविक भूमिका पर कुठाराघात करते हैं। इस आंदोलन का एक लंबा इतिहास है। यह वास्तव में 2009 में न्यूज़क्लिक की स्थापना से कहीं पहले शुरू हुआ था। यह कहना कि न्यूज़क्लिक ने किसानों को आंदोलन में उतारा था, भारत के किसानों, उनके परिवारों और इस आंदोलन के सूत्रधार बने ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले लगभग एक अरब लोगों का अपमान है।

आत्महत्या से प्रतिरोध तक

1995 से 2018 के बीच, भारत के लगभग चार लाख किसानों ने आत्महत्या की है (इनमें से एक चौथाई आत्महत्याएं 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद की गईं)। इसका मुख्य कारण 1991 से लागू नवउदारवादी कृषि नीतियां हैं, जिनके परिणामस्वरूप कृषि में लागत लगातार बढ़ी है और फसलों की कीमतें कम हुई हैं। नवउदारवादी नीतियों ने जलवायु आपदा सहित अन्य संकटों को विकराल बनाया है।

इस दौरान किसानों के लिए उपलब्ध सरकारी ऋण योजनाएं ख़त्म हुईं, सरकार की कृषि खरीद योजना (जिससे किसानों को फसल का उचित मूल्य और जनता को उचित मूल्य पर भोजन मिलता है) पंगु हुई, और कृषि क्षेत्र में बड़े-बड़े कॉरपोरेट घरानों का प्रवेश शुरू हुआ। इन सब कारणों से भारत के कृषीय समुदायों में लगातार निराशा बढ़ रही थी। यही कारण है कि कर्ज में डूबे किसानों ने वही उर्वरक पीकर आत्महत्या करना शुरू कर दिया, जो फसल की कीमत में गिरावट के बीच लगातार महंगा हो रहा था।

हालांकि, पिछले एक दशक में, किसानों और खेत-मजदूरों के वामपंथी व अन्य संगठनों के नेतृत्व में किसानों ने देश भर में बड़ी लामबंदी के साथ लड़ाई लड़ी है। पहली प्रतीकात्मक लामबंदियों में से एक थी मार्च 2018 में किसानों का लॉन्ग मार्च, जब अखिल भारतीय किसान सभा के नेतृत्व में पचास हजार किसान 2017 में बाढ़ और कीट संक्रमण से नष्ट हुई फसलों के लिए बेहतर मुआवज़े की मांग के साथ महाराष्ट्र राज्य में नासिक से दो सौ किलोमीटर से भी ज़्यादा की पैदल यात्रा कर मुंबई गए थे।

11 मार्च को देर रात जब किसान मुंबई में दाखिल हुए तो उन्हें पता चला कि अगले दिन शहर में छात्रों की एक महत्वपूर्ण परीक्षा है। परीक्षा के दिन छात्रों को परेशानी से बचाने के लिए थके हुए किसानों ने रात के आराम के बाद दिन में मुंबई शहर में कूच करने की बजाय रात भर चलने का निर्णय लिया। जब इस दयालुता की खबर शहरवासियों तक पहुंची तो बड़ी संख्या में लोग आज़ाद मैदान में किसानों के समर्थन में उतर आए।

इस लंबे मार्च के पहले भी कई बड़े विरोध प्रदर्शन हुए थे: 2015 में नए “भूमि हड़पो अध्यादेश” के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन; ऋण माफी, भूमि अधिकार और बेहतर पेंशन की मांग को लेकर 2016 में संसद तक राष्ट्रव्यापी मार्च; और 2017 में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में ऋण माफी के लिए किसानों की हड़ताल।

2020 की गर्मियों में, प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने संसद में तीन विधेयक पास किए, जिनसे किसानी में ठेकाप्रथा बढ़ती। किसान मोदी सरकार द्वारा पारित तीनों कानूनों को अपने अस्तित्व के लिए खतरे के रूप में देख रहे थे, और इसलिए 26 नवंबर 2020 को किसानों ने 25 करोड़ श्रमिकों व किसानों की एक आम हड़ताल में भाग लेने का और उसके अगले दिन से, दिल्ली के बोर्डरों पर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठने का फैसला किया था।

कई मीडिया संस्थानों से रिपोर्टर दिल्ली के बॉर्डरों पर बसी इस नई दुनिया पर रिपोर्टिंग करने पहुंचे, लेकिन उनमें से अधिकांश वापस चले गए। जबकि न्यूज़क्लिक के रिपोर्टर किसानों के विरोध के हर पहलू पर रिपोर्ट करने के उद्देश्य से वहां टिके रहे। इसका एक उदाहरण है, न्यूज़क्लिक वेबसाइट देखने वालों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि। लाखों लोग किसानों के साथ छोटे वीडियो साक्षात्कार देखने के लिए न्यूज़क्लिक वेबसाइट पर आ रहे थे और किसानों का विरोध भी पुलिस के दमन, सरकार के द्वेषपूर्ण हमलों और कठोर मौसम के बावजूद जारी रहा।

बॉर्डरों पर टेंटों में रहते हुए सात सौ लोग मारे गये। आंदोलन के एक साल पूरे होने से एक सप्ताह पहले, 19 नवंबर 2021 को, मोदी ने अपने घुटने टेक दिए और कानूनों को वापस लेने का वादा किया। सात साल में यह केवल दूसरी बार हुआ था, जब मोदी सरकार को कोई कानून वापस लेना पड़ा था।

न्यूज़क्लिक और किसान

फरवरी 2021 में भारत सरकार के प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने न्यूज़क्लिक के संस्थापक पुरकायस्थ के घर पर छापा मारा और उन्हें पांच दिनों के लिए उनके घर में हिरासत में रखा। अधिकारियों ने उनके सभी उपकरण हटा दिए और भारी मात्रा में सामग्री जब्त कर ली। यह तभी स्पष्ट था कि भारत सरकार किसानों के विद्रोह पर रिपोर्टिंग करने या किसान आंदोलन के विश्लेषण तथा अध्ययन के लिए न्यूज़क्लिक और (ट्राईकॉन्टिनेंटल रिसर्च सर्विसेज सहित) अन्य शोधकर्ताओं को निशाना बना रही थी। इस छापेमारी के कुछ दिन बाद प्रोफेसर अपूर्वानंद ने द वायर में लिखा था,

न्यूज़क्लिक किसान आंदोलन की रिपोर्टिंग में बहुत सक्रिय रहा है। इसकी ग्राउंड रिपोर्ट और विश्लेषणात्मक वीडियो लाखों लोग देख रहे हैं। जो सरकार एक ऐसा बुलबुला बनाने पर आमादा है जिसमें किसी भी जानकारी या विचार की अनुमति नहीं है, ताकि उसके राष्ट्रवादी चरित्र से पर्दा न हट जाए, वह इस बुलबुले में दरार को रोकने के लिए सभी तरीकों का सहारा लेगी।

यह स्पष्ट था कि इस कार्रवाई का मनी लॉन्ड्रिंग, विदेशी प्रभाव, चीनी हस्तक्षेप आदि बातों से कोई लेना-देना नहीं था, जैसा कि अधिकारी अफवाह फैलाना चाह रहे थे, बल्कि लेना-देना था तो सिर्फ़ किसानों के आंदोलन से।

पुरकायस्थ और चक्रवर्ती के ख़िलाफ़ दिल्ली पुलिस की एफ़आईआर सामने आने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने किसान आंदोलन के अपमान और न्यूज़क्लिक पर हुए हमले के बारे में एक बयान जारी किया है। उन्होंने लिखा कि “किसानों ने संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में ‘शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन’ किया था। किसानों द्वारा कोई आपूर्ति बाधित नहीं की गई थी। किसानों ने किसी संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाया था। किसानों की वजह से अर्थव्यवस्था को कोई नुकसान नहीं हुआ था। किसानों द्वारा कोई कानून-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न नहीं की गयी थी। किसानों को चिलचिलाती गर्मी की धूप, मूसलाधार बारिश और जमा देने वाली सर्दी के बीच 13 महीनों तक विरोध प्रदर्शन में बैठना पड़ा।”

संयुक्त किसान मोर्चा ने आगे कहा कि “यह केंद्र सरकार और (सत्तारूढ़ दल) है जिसने लखीमपुर खीरी में किसानों को चलते वाहनों से कुचलकर कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा की, जिसमें चार किसानों और एक पत्रकार की मौत हो गई। इस तरह के बलिदान पर विदेशी वित्त पोषण और आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने का आरोप लगाकर उसे कमतर करना, केंद्र सरकार के अहंकार, अज्ञानता और जन-विरोधी मानसिकता को उजागर करता है।”

संयुक्त किसान मोर्चा किसानों व उनके जारी संघर्षों का अपमान करने वाली सरकार के खिलाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन करेगा। संयुक्त किसान मोर्चा ने अपने संघर्ष को न्यूज़क्लिक के पत्रकारों जैसे पत्रकारों के संघर्ष से जोड़ लिया है, जो लोगों के संघर्ष की कहानियां बताना चाहते हैं। यह तय है कि न्यूज़क्लिक का मुकदमा अब केवल अदालतों में नहीं चलेगा। यह मुकदमा पूरे भारत में चलेगा, जब छापेमारी, गिरफ़्तारियों और मौजूदा दौर की महान घटनाओं पर रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों को चुप कराने की तमाम कोशिशों के ख़िलाफ़ बोल रहे लोगों के साथ किसान भी सड़कों पर उतर आएंगे।

(ट्राइकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के निदेशक विजय प्रसाद का लेख।)

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