आई-फोन का नोश फरमाते युवाओं में विकसित भारत की तस्वीर ढूंढता देश?

पीरामल फाइनेंस की वेबसाइट पर जाने पर आपको आईफोन खरीदने का आईडिया आसानी से मिल सकता है। आईफोन 15 प्रो मैक्स का दाम 1,60,999 रुपये दर्शाया गया है, जिसमें 256 जीबी मेमोरी है। इसकी वेबसाइट पर आप पाएंगे कि बिना जेब में इतने पैसे होने के बावजूद आप कैसे 5 वर्षों की आसान किश्तों पर आईफोन के मालिक बन सकते हैं।

इसके लिए आपको चाहिए मात्र 24,305 रुपये और 19,371 रुपये ब्याज की रकम और डेढ़ लाख रुपये फोन के मालिक हो गये आप। बस आपको अगले 60 महीने तक 3,640 रुपये प्रति माह ईएमआई की किश्त चुकानी होगी। 60 महीने 3,640 रुपये की किश्त का हिसाब होता है 2,18,400 रुपये। इसके उपर 43,676 रुपये आप पहले ही चुका रहे हैं। कुल मिलाकर आईफोन के लिए आपको चुकाने होंगे 2.62 लाख रुपये।

भारतीयों को अमेरिकियों से 60% महंगा आई-फोन बेचा गया, क्योंकि हम टशन वाले हैं

पिछले वर्ष 22 सितंबर के दिन जब आईफोन-15 की भारत में लॉन्चिंग हुई थी तो युवाओं में इस फोन को लेने के लिए होड़ मची हुई थी। भारत में असेंबल और बिक्री के लिए तैयार आईफोन को अमेरिका में 1 लाख रुपये और भारत में 1.60 लाख रुपये में बेचने का कोई तुक आम उपभाक्ताओं को समझ नहीं आया। आई-फोन की लागत क्या है और वह अमेरिका में अपने उपभाक्ताओं को कितने ऊंचे दामों पर बेच रहा है, यह एक अलग कहानी है। लेकिन भारत जैसे गरीब देश के अमीरजादों के पास आम अमेरिकी से भी 60% अधिक दाम पर आईफोन के नए ब्रांड को लेकर मारामारी की स्थिति ही इस फोन की सफल मार्केटिंग की असली कहानी है।

मुंबई के बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स में अहमदाबाद से मुंबई आकर 17 घंटे लाइन में लगने वाले एक युवा ने बेहद उत्साह के साथ बताया कि पहले ही दिन आईफोन पाकर वह बेहद खुश है। लेकिन यही हाल दिल्ली में भी साकेत के सेलेक्ट सिटी-वाक माल में भी देखने को मिला, जिसमें भीड़ को नियंत्रित करने के लिए सुरक्षाकर्मियों को लोगों को लगातार कतार में रहने के लिए निवेदन करते देखा गया था। आईफोन की सफलता का एक राज यह भी है कि मांग से कुछ कम ही लांच करो, ताकि लोगों में इस फोन को लेकर स्टेटस सिंबल का क्रेज बना रहे।

20-25,000 रुपये मासिक तनख्वाह पाने वाले भारतीय युवाओं के हाथों में आप आईफोन को देख सकते हैं। 2017 से ही फॉक्सकान के चेन्नई प्लांट में आईफोन11 की असेंबली से भारत में इसकी शुरुआत हो चुकी थी। इसके पहले भारत में आईफोन मुख्यतया चीन से आयातित किया जाता था। 2023 में दुनिया में सबसे मूल्यवान कंपनी की लिस्ट में अमेज़न के बाद एप्पल है, जो 2022 में पहले स्थान पर थी। शुद्ध बिक्री के मामले में भी 2022 की तुलना में एप्पल उत्पादों की बिक्री में गिरावट का रुख है। 2022 में जहां 394.33 बिलियन डॉलर की रिकॉर्ड सेल हुई थी, वर्ष 2023 में घटकर यह 383.29 बिलियन डॉलर हो चुकी थी। लेकिन बाजार पूंजीकरण के मामले में इसे दुनिया की सबसे मूल्यवान कंपनी होने का गौरव हासिल है। एप्पल वह पहली कंपनी है जिसका बाजार पूंजीकरण 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक है।

अमेरिका की शान को अपनी शान बताता नया देशभगत

इस लेख का मकसद आईफोन का प्रचार नहीं बल्कि इस बात की ओर ध्यान दिलाने का है कि कैसे अमेरिका जैसे विकसित देश, जिसके देश की प्रति व्यक्ति आय एक आम भारतीय से बीस गुना अधिक है, के महंगे उत्पादों को भारत में हाथों हाथ लिए जाने को भारत में तेजी से विकसित बताने में इस्तेमाल किया जा रहा है। कंपनी अपने उत्पाद के लिए भारत को एक नए अवसर के रूप में देखती है, और वह अपनी कुल बिक्री में 7 फीसदी हिस्से को भारत में देखती है। हालाँकि अभी भी भारत में एप्पल को अपना 5% बाजार ही मिल सका है। इसके बावजूद कहा जा सकता है कि यूरोप और अमेरिका में एप्पल की बिक्री में कमी को भारत जैसे उभरते देश की बढ़ती उपभोक्तावादी संस्कृति से पूरा किया जा सकता है।

कल तक भारत में प्रीमियम स्मार्टफोन का बाजार बेहद सीमित था। 2019 में यह मात्र 0.8% आंका गया था, जो 2023 में बढ़कर 6.1% हो चुका है, जिसका सबसे बड़ा श्रेय एप्पल की सफलता को जाता है। जून 2023 में ही भारत को एप्पल उत्पादों की बिक्री के लिए पांचवा सबसे बड़ा बाजार घोषित किया जा चुका था। अमेरिका, ब्रिटेन, चीन और जापान के बाद भारत अब पांचवें पायदान पर पहुंच चुका है। हालांकि एप्पल के माकेट शेयर को देखने पर पता चलता है कि अभी भी मात्र यह 5.1% है, लेकिन पिछले वर्ष के 3.4% की तुलना में इसे बड़ी छलांग कहा जाना चाहिए।

सरकार भी चाहती थी कि लोग बड़ी संख्या में कर्ज लेकर फील गुड महसूस करें

ऊपर पीरामल फाइनेंस का उदाहरण कोई अपवाद नहीं है। आज देश में एनबीएफसी फाइनेंस (नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनीज) के तहत क्रिप्टो करेंसी, तीन पत्ती, रम्मी, लूडो, क्रिकेट गेम खिलाकर करोड़ों-अरबों की लूट करने वाले कई महादेव एप्स मैदान में हैं। पीरामल जैसे सैंकड़ों एनबीएफसी कंपनियों की बाढ़ करोड़ों युवाओं को ऋण के जाल में फांसने के लिए दिन-रात जुटी हुई हैं। विकास की अंधी दौड़ में अब महानगर या शहर का युवा ही नहीं शामिल है, बल्कि गांव-देहात और छोटे-छोटे कस्बों तक में जहां भी इंटरनेट उपलब्ध है, वहां आपको यूपीआई पेमेंट और बाइक में अपनी पीठ पर लादे डिलीवरी बॉय की उपस्थिति मिल जायेगी। कुलमिलाकर विकास की गंगा-जमुना चारों ओर बह रही है, और पिज्जा, बर्गर या केक के लिए अब महानगरों का मुहं ताकने की जरूरत नहीं रही।

एनबीएफसी बैंकों की बढ़ती भूमिका के कारण आज पर्सनल लोन और क्रेडिट कार्ड लोन में तेजी से वृद्धि हुई है। ऐसे कर्ज के लिए कोई जमानती कागज या मकान के कागज बंधक पर रखने की जरूरत नहीं है। हर महीने लाखों करोड़ रूपये एनबीएफसी संस्थाओं के द्वारा सार्वजनिक एवं निजी बैंकों से उधार पर लेकर कर्ज बांटे जा रहे हैं, जिनके एनपीए होने की स्थिति में बैंक बड़े पैमाने पर तबाह हो सकते हैं। ये लोन लाखों की संख्या में उन लोगों को बांटे जा रहे हैं, जो इक्विटी मार्केट में नौसिखिये होने के बावजूद झट से करोड़पति बनने के ख्वाब पाले हुए हैं। 2016 के बाद से एमएसएमई क्षेत्र में आये संकट और आयातकों द्वारा चीन से सस्ते उत्पाद की भरमार ने अब छोटे उद्योग-धंधों की गुंजाइश को ही खत्म कर दिया है।

ऐसे में शेयरों, म्युचुवल फंड और एसआईपी में निवेश के विकल्प के अलावा करोड़ों लोगों के पास यही विकल्प बचता है। लंबी अवधि वाले निवेशकों की बजाय स्टॉक मार्केट में चंद महीनों में करोड़पति बनने का ख्वाब देखने वाले लोगों का जमावड़ा तेजी से बढ़ा है। यही लोग आईफोन भी खरीद रहे हैं, और यूट्यूब, इन्स्टाग्राम और टेलीग्राम जैसे सोशल मीडिया चैनलों के माध्यम से अधकचरा ज्ञान हासिल कर रातों-रात करोड़पति बनने के लिए पर्सनल लोन या विभिन्न बैंकों से दर्जन भर क्रेडिट कार्ड्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। एक अनुमान है कि ऐसे सक्रिय निवेशकों की संख्या 2019 की तुलना में छह गुना बढ़ गई है। क्रिप्टोकरेंसी में भी 160% की बढ़ोत्तरी हुई है। ऑनलाइन गेमिंग उद्योग भी 2023 में 16,428 करोड़ रुपये के कारोबार के स्तर पर पहुंच गया है। ऐसा अनुमान है कि भविष्य में बैंकों को एनपीए का खतरा अब इन छोटे असुरक्षित ऋण धारकों से है।

एनबीएफसी लोन का आंकड़ा 50 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। करोड़ों की संख्या में नए निवेशक आज बैंकों से ऋण लेकर शेयर बाजार में कूद रहे हैं। वर्ष 2023 में शायद ही कोई आईपीओ रहा हो, जिसे बाजार से निराशा हाथ लगी हो। यही वजह है कि अब बड़े उद्योगों के द्वारा बैंकों से लिए कर्जों को बिना किसी देरी के चुकाया जा रहा है, जबकि दूसरी ओर छोटे कर्ज लेकर लाखों निवेशक इन्हीं उद्योगपतियों के शेयरों में निवेश कर इन्हें मालामाल का रहे हैं।

उत्तर प्रदेश का विकास एक नया अजूबा है

उत्तर प्रदेश से निवेशकों की संख्या में 34% का उछाल बताता है कि शेयर बाजार अब सिर्फ गुजरात या महाराष्ट्र के निवेशकों तक सीमित नहीं रहा। वर्ष 2023 में कुल 1.6 करोड़ नए निवेशक बाजार में आ चुके हैं। 2023 में महाराष्ट्र से 22 लाख नए निवेशक जुड़े हैं, जिनकी कुल संख्या अब बढ़कर 1.49 करोड़ हो चुकी है। महाराष्ट्र के बाद गुजरात से 89 लाख और उत्तर प्रदेश से कुल 77 लाख निवेशक शेयर बाजार में अपना भविष्य आजमा रहे हैं। ऐसे नए निवेशकों की लूट पर ही किसी क्रोनी कैपिटलिस्ट को दुनिया मुट्ठी में करने की सनक सवार होती है।

आरबीआई की हाल की रिपोर्ट में एनबीएफसी को लेकर चिंता बताती है कि देश की वित्तीय स्थिति किस हाल में है। एक तरफ एनबीएफसी बैंकों के द्वारा बड़ी मात्रा में राष्ट्रीय बैंकों से कर्ज लिया जा रहा है, जिसे पर्सनल लोन जैसे असुरक्षित ऋण की शक्ल में इन वित्तीय संस्थाओं द्वारा बड़े पैमाने पर वितरित किया जा रहा है। सितंबर 2021 तक जहां एनबीएफसी के द्वारा अपने कुल रकम में से बैंकों से 37% जुटाया जाता था, सितंबर 2023 में यह बढ़कर 41.1% हो चुका है। एनबीएफसी बैंकों के द्वारा जिन क्षेत्रों में रिटेल में उधार दिया जाता है, उनमें वाहन ऋण 36.2% और अन्य रिटेल ऋण (क्रेडिट कार्ड) 49.5% के उच्चतम स्तर पर बने हुए हैं।

आरबीआई की चिंता पर वोट बैंक भारी

आरबीआई की रिपोर्ट बताती है कि सितंबर 2020 से लेकर सितंबर 2023 के बीच में बैंकों द्वारा एनबीएफसी को दिए गये उधार में 70.7% तक का इजाफा हुआ है। आरबीआई की बढ़ती चिंता के बावजूद नवंबर 2023 की रिपोर्ट बताती है कि बैंकों का एनबीएफसी पर क्रेडिट एक्सपोजर पिछले साल की तुलना में 21.5% बढ़कर 14.9 लाख करोड़ रुपये हो चुकी थी। वित्तीय वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही के आंकड़ों पर नजर डालें तो बैंकों द्वारा एनबीएफसी को करीब 57%, जबकि म्यूचुअल फंड्स 18.6% और बीमा कंपनियों को 16.6% ऋण मुहैया कराया गया।

इन आंकड़ों के जाल से क्या बात निकलकर आती है? मोटे तौर पर इसे ‘कर्ज लो और घी पियो’ की नीति का अनुसरण कहना चाहिए। हमारी केंद्र सरकार के लिए जीडीपी और शेयर बाजार की बढ़त सबसे महत्वपूर्ण संकेतक है, जिसे मोटे तौर पर पश्चिमी देशों के द्वारा भी महत्वपूर्ण मानक माना जाता है। लेकिन जीडीपी तो तब भी बढ़ती है जब देश में जबर्दस्त महंगाई हो और उत्पादन में बढ़ोत्तरी के बगैर भी जीएसटी कलेक्शन में 10-15% की बढ़ोत्तरी देखने को मिले। इसी प्रकार जीडीपी में तो तब भी वृद्धि होती है जब एक आम इंसान अपनी नेट वर्थ को आईफोन या एसयूवी कार से आंकने की भूल कर, एनबीएफसी से बिना किसी जमानती गारंटी के कर्ज हासिल कर लेता है, या शेयर बाजार में इंट्रा-डे ट्रेडिंग करते हुए निवेशित रकम से भी कई गुना गंवा बैठता है। किसी का नुकसान किसी अन्य के लिए फायदे का सौदा बन जाता है। इन सबमें रियल ग्रोथ कहां है?

ध्यान से देखें तो पूरा देश ही तेजी से स्पेकुलेटिव मार्केट बनता जा रहा है, केंद्र और राज्य सरकारों के द्वारा भी भारी मात्रा में कर्ज लेकर विकास की दुंदुभी बजाने का क्रम जारी है। आज एनएचएआई का हाल किस कदर बिगड़ चुका है कि उसके द्वारा टोल टैक्स में बेतहाशा बढ़ोत्तरी के बावजूद वह रकम मूल ब्याज के सूद चुकाने से आगे नहीं जा पा रही है। भारतीय अर्थव्यस्था अपने गर्भ में एक ऐसे अंधे विकास को पालने पोसने को विवश है, जो जन्मांध तो है ही, उसके पाँव कभी जमीन पर रहे ही नहीं और कल जब भारत में पश्चिमी देशों की तरह का देशी लेहमेन मोमेंट आएगा तो उसके पास बचने का कोई रास्ता नहीं होगा, क्योंकि हम दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश हैं।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।) 

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