सिपाही भर्ती परीक्षा में पर्चा लीक की घटना कहीं यूपी का गणित न बिगाड़ दे  

मात्र 60, 244 पदों के लिए 48.17 लाख आवेदक। 21,700 रुपये प्रति माह की शुरुआती नौकरी के लिए उत्तर प्रदेश के सभी 75 जिलों के 2,385 परीक्षा केन्द्रों पर 17-18 फरवरी को रेला सा लगा रहा। आखिर हो भी क्यों नहीं। पिछली बार सिपाही भर्ती की कवायद पूरे 6 साल पहले हुई थी। 24 करोड़ की आबादी वाले प्रदेश की तुलना वैसे भी दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों से की जाती है। राज्य में इतनी बड़ी आबादी के लिए कानून एवं व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए यूपी पुलिस के पास दुनिया में किसी भी राज्य से अधिक संख्या में पुलिसकर्मी (2.25 लाख) तैनात हैं। स्थायी रोजगार के नाम पर अब यही एक परीक्षा है, जिसमें हजारों की संख्या में आज भी सरकार को युवाओं की आवश्यकता है। 

लेकिन इस परीक्षा के अभ्यर्थी सिर्फ उत्तर प्रदेश से ही नहीं थे। करीब 43 लाख परीक्षार्थी उत्तर प्रदेश से, जबकि दूसरे स्थान पर पड़ोसी राज्य बिहार से लगभग 2.5 लाख युवा अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इसके बाद मध्य प्रदेश से 98,400, हरियाणा से 74,769 और दिल्ली से 43,259 अभ्यर्थियों ने जॉब के लिए अप्लाई किया था। हालांकि पंजाब से सिर्फ 3,404 युवा ही इसमें हिस्सा लिए। 

युवा एक बार फिर खुद को ठगा महसूस कर रहे 

पिछले कई वर्षों से एक अदद सरकारी नौकरी की आस में दिन-रात एक करते लाखों युवाओं को पिछले हफ्ते किन-किन तकलीफों से दो-चार होना पड़ा, इस बारे में सूचनाएं सोशल मीडिया के जरिये राज्य ही नहीं देशभर में चर्चा का विषय बनी हुई थीं। कानपुर रेलवे स्टेशन पर ट्रेन पकड़ने के लिए परीक्षार्थियों के रेले को काफी सुर्खियां मिलीं। लखनऊ और प्रयागराज में कई लाख अभ्यर्थियों का परीक्षा केंद्र होने की वजह से दोनों शहरों की व्यवस्था चरमरा गई थी। ऑटो और रिक्शा चालकों के लिए यह किसी अवसर से कम नहीं था, जबकि दोनों ही शहरों में अभ्यर्थियों को रेलवे स्टेशन से परीक्षा केन्द्रों पर ले जाने के लिए दर्जनों बसों का इंतजाम प्रशासन की ओर से किया गया था। 

आज उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग, प्रयागराज के मेन गेट के बाहर दसियों हजार की संख्या में आक्रोशित युवाओं के धरने में एक ही बात नारे की शक्ल में गूंज रही थी कि उन्हें तत्काल पुनः-परीक्षा से नीचे प्रशासन की कोई बात मंजूर नहीं है। इससे पहले ही यूपी के तमाम जिलों में युवा भाजपा सरकार के मंत्रियों और नेताओं के आवास पर घेराव के लिए कूद पड़े, जिसमें उप-मुख्यमंत्री, केशव प्रसाद मौर्य के आवास के बाहर धरने पर बैठे छात्रों को पुलिस के द्वारा जबरन घसीटकर उन्हें हिरासत में लिया गया। लेकिन जितनी बड़ी संख्या में प्रदेश भर में युवा आज आक्रोशित हैं, ऐसा लगता है कि सरकार चुनाव की इस बेला में उन्हें नाराज करने का खतरा मोल लेने की हालत में नहीं लगती। 

लोगों में आक्रोश, हताशा और गहरी निराशा के भाव एक साथ नजर आ रहे हैं। एक ऐसी बेबसी जो लगता है इस पूरी पीढ़ी को ही खा जायेगी। भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी जी की कल रात से ही वाराणसी दौरे की तस्वीरें राष्ट्रीय मीडिया पर मुख्यपृष्ठ पर नुमाया हो रही हों, और गोदी एंकरों की ओर से रात के समय फ्लाईओवर पर पीएम मोदी के आगे-आगे और उनसे कुछ कदमों की दूरी बनाये मुख्यमंत्री योगी की तस्वीरों को साझा कर यह बताने की भरसक कोशिश चल रही हो कि कैसे 18-18 घंटे कर्मयोगी की तरह आज भी हमारे पीएम देश सेवा में लगे हुए हैं। लेकिन इन तस्वीरों का अब युवाओं पर उल्टा असर पड़ने लगा है। 

वे इसे अब फोटो ऑप से अधिक कुछ नहीं समझ रहे। कभी इन्हीं अदाओं पर फ़िदा इन करोड़ों युवाओं को लग रहा है कि यही सब दिखा-दिखाकर उनके भविष्य के साथ पिछले 10 साल से छल किया गया। उन्हीं कोशिशों को बार-बार देखने, लेकिन अपने जीवन में बढ़ते अन्धकार को देखकर उनका यकीन टूटता जा रहा है। सोशल मीडिया प्लेटफार्म X पर #UPP_REEXAM हैशटैग टॉप पर ट्रेंड कर रहा है। एक लड़की जो शायद परीक्षा पेपर लीक की वजह से कई बार रोकर वीडियो बना रही है, का साफ़ कहना है कि, “योगी बाबा तुम्हरे राज में हम युवाओं की जिंदगी बर्बाद है। अब आपकी सत्ता भी नहीं रहने वाली, जिस पर आप कुंडली मारकर बैठे हो। हम लोग पढ़-पढ़कर मर गये, लेकिन जो लोग नहीं पढ़े उन्होंने पेपर लीक के कारण शत-प्रतिशत सही जवाब लिखे। राम मंदिर पर तो खूब हाई सिक्यूरिटी लगा दी, यहां पर क्यों नहीं लगा सके।”  

सपा-कांग्रेस के बीच सीट समझौते के बाद सत्ता संतुलन बदल रहा है 

सरकार की ओर से पेपर लीक धांधली पर जांच की बात कही गई है, लेकिन परीक्षार्थी रि-एग्जाम से नीचे कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं हैं। हालत यह है कि मीडिया की सुर्ख़ियों में भले ही यूपी इन्वेस्टर्स समिट या बनारस में 13,000 करोड़ रूपये का निवेश छाया हुआ हो, लेकिन केंद्र की मोदी सरकार को राज्य में बदलते हालात का अंदाजा है। दो दिन पहले ही समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच सीट समझौते पर मुहर की खबर के बाद से ही सियासी हलचल तेज हो गई है। हिंदी समाचारपत्र तक आकलन करने में जुटे हुए हैं कि 30-40% मुस्लिम बहुल संसदीय क्षेत्रों की यूपी में संख्या कितनी है, और उनमें सपा और कांग्रेस के खाते में कितनी सीटें आई हैं।

हाल के वर्षों में, मुसलमानों का जो भरोसा सपा और बसपा से टूट रहा था, वह कांग्रेस की ओर तेजी से एकजुट हो रहा था।  लेकिन अखिलेश यादव की ओर से सीट समझौते में हो रही देरी पर बार-बार खीझ, और कांग्रेस को नीचा दिखाने के लिए एकतरफा कांग्रेस के लिए सीटों की घोषणा से आम लोगों में संदेश जा रहा था कि शायद इस बार चतुषकोणीय मुकाबला ही देखने को मिलेगा। लेकिन अब जबकि समझौते पर मुहर लग चुकी है, और कांग्रेस की ओर से अभी भी बसपा को गठबंधन में शामिल होने का न्योता दिया जा रहा है, वह जमीन पर एकजुट रहने का संदेश बखूबी दे रहा है। ऐसे में यदि बसपा अंत तक एकला चलो की नीति पर जाती है, और कांग्रेस, सपा के उम्मीदवारों के बरक्श वोट कटुआ उम्मीदवार खड़ा करने की कोशिश करती है, तो उसे स्पष्ट भाजपा की बी टीम के रूप में देखा जायेगा। 

ये वे कुछ चीजें गठबंधन की ओर से की जा रही हैं, जिसे नैरेटिव बिल्डिंग के रूप में पिछले चुनावों से अलग करके देखना होगा। इस बार आम अवाम भी नंगी आखों से राजनीति का पटाक्षेप देखेगी। राहुल गांधी अपनी यात्रा में लगभग खुद को हर बार दुहराते हुए ओबीसी, दलित और आदिवासी की बात कर रहे हैं। लगता है, उन्होंने अच्छी तरह से समझ लिया है कि जैसे-जैसे वे इस पिच पर खड़े होकर 85% अवाम को झकझोरते रहेंगे, भाजपा के लिए उन पर वार करना मुश्किल होता जायेगा। ऐसा लगता है, वे पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों की अब तक रहनुमाई करने का दावा करने वाले नेताओं से परे आर्थिक रूप से कमजोर लोगों और विशेषकर शिक्षित युवाओं को इस मुद्दे पर आंदोलित करने पर तुले हुए हैं।

राहुल अपनी सभाओं में अक्सर किसी युवा को माइक पकड़ाकर उससे जवाब मांगते हैं। पिछले वर्ष की यात्रा के अनुभव में राहुल ने लोगों के दिलों तक कैसे पहुंचा जाता है, उसकी कला लगता है काफी हद तक सीख ली है। 

अभी से यूपी में कांग्रेस-सपा के लिए 25 सीटों पर मजबूत दावेदारी की चर्चा होने लगी है। उधर भाजपा भले ही 370 सीटों का दावा कर रही हो, लेकिन उसे अच्छी तरह से मालूम है कि सत्ता में तीसरी बार आने के लिए उसे हर हाल में हिंदी भाषी प्रदेशों में अपने 2019 के प्रदर्शन को दोहराना होगा। यदि ऐसा हो जाता है तो उसे 272+ सीट हासिल हो सकती हैं, क्योंकि महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, असम, पश्चिम बंगाल, हरियाणा और बिहार में सारे दांव-पेंच के बावजूद उसे अच्छा-खासा नुकसान होने जा रहा है। उसकी एकमात्र आशा यूपी से थी, जिसमें 62 सीट को इस बार बढ़ाकर 72 करने पर नुकसान की कुछ हद तक भरपाई की जा सकती थी। तीन राज्यों में जीत के बाद जिस तरह से सारे बदल दो की तर्ज पर सारे पुराने भाजपाई क्षत्रपों को किनारे कर दिया गया, यूपी में भी उसकी धमक का अहसास भाजपा के अन्तःपुर में चल रही है। 

उत्तर प्रदेश वह राज्य है, जो अंदर से तो खदबदा रहा है, लेकिन बाहर से पूरी तरह से शांत है। अमेठी में राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दिन केंद्रीय मंत्री और अमेठी सांसद का भी मुकाबले में आना, और क्षेत्र की जनता की कुशल-क्षेम के दौरान पीएम आवास को ही यूपी प्रशासन के द्वारा बुलडोज किये जाने पर असहाय महिलाओं का क्रंदन, माननीय सासंद स्मृति ईरानी के लिए हक्का-बक्का कर देने वाली स्थिति थी। ऊपर से राहुल गांधी का प्रदेश के युवाओं-पिछड़ों को लगातार चैलेंज करना, उन्हें अपने हक के लिए आवाज उठाने के लिए ताना और उलाहना देना, एक विस्फोटक स्थिति को जन्म दे रहा है। भले ही फिलवक्त इसका बड़ा फायदा, राज्य में समाजवादी पार्टी को होने जा रहा है, लेकिन सबसे अच्छी बात तो यह होगी कि जनसंख्या के लिहाज से विश्व का सबसे बड़ा राज्य, उत्तर प्रदेश यदि बोल पड़ा तो बड़ा भूकंप निश्चित तौर पर आ जाने वाला है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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