INDIA गठबंधन की बैठक से निकले संदेश उम्मीद जगाने वाले

19 दिसम्बर को INDIA ब्लॉक की बैठक 3 राज्यों में भाजपा की अप्रत्याशित जीत के साये में हुई, जिसके बाद से सत्तापक्ष अभूतपूर्व आक्रामकता का प्रदर्शन कर रहा है। आलम यह है कि संसदीय लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाते हुए डेढ़ सौ के आसपास विपक्षी सांसद सदन से निलम्बित किये जा चुके हैं, ताकि वे सवाल न पूछ सकें। विपक्षी बेंच करीब करीब खाली हो चुकी हैं।

बहरहाल, इसने शायद विपक्षी एकता को और सुदृढ़ करने का ही काम किया। इसने विपक्ष को भविष्य का आईना दिखा दिया है कि अगर वे सम्भले और एकजुट न हुए तो आगे संसद का नजारा क्या होगा। संसद से बाहर किये जाने के बाद जब वे सड़क पर उतरेंगे तो अगला ठिकाना पूरे विपक्ष के लिए wholesale जेल भी हो सकती है।

विपक्षी सांसदों के विरुद्ध अभूतपूर्व कार्रवाई के खिलाफ INDIA की ओर से 22 दिसम्बर को राष्ट्रव्यापी विरोध दिवस का ऐलान किया गया है।

बैठक में 31 दिसम्बर तक सीट sharing को अंतिम रूप देने की बात हुई है, जिसे राज्यों के अंदर सम्बन्धित घटक दलों के नेता तय करेंगे। जरूरत होने पर केंद्रीय स्तर पर इसे हल किया जाएगा। सबसे बड़ी बात यह कि अब यह understanding बन गयी लगती है कि हर राज्य में सबसे बड़ा दल ही lead role में होगा और वह अन्य दलों को accomodate करेगा।

कांग्रेस ने सीट बंटवारे की urgency के अनुरूप पहल करते हुए INDIA की बैठक के ठीक पहले मुकुल वासनिक की अध्यक्षता में अपनी National Alliance Committee का एलान कर दिया, जिसके अन्य सदस्य सलमान खुर्शीद, अशोक गहलोत, भूपेश बघेल और पुराने समाजवादी मोहन प्रकाश हैं।

30 जनवरी को पटना में महारैली से INDIA के संयुक्त अभियान का आगाज़ होने की उम्मीद है।

बताया जा रहा है कि आने वाले दिनों में देश के प्रमुख केंद्रों में INDIA की ऐसी 8 से 10 संयुक्त रैलियां होंगी। जिसमें गठबंधन के नेताओं का भी प्रोजेक्शन होगा और देश के लिए उनके साझा कार्यक्रम और एजेंडा का भी उद्घोष होगा।

बताते हैं कि मीटिंग में स्टालिन ने यह सवाल भी उठाया कि विधानसभा चुनाव INDIA के बैनर पर लड़ा जाना चाहिए था। ऐसा कई विश्लेषकों का मानना है कि भले ही विधानसभा चुनावों में मुख्य मुकाबला कांग्रेस-भाजपा के बीच ही था, पर अगर इन्हें INDIA के बैनर को आगे कर के लड़ा गया होता- तीनों चुनावी राज्यों में छोटे बड़े जो भी दल साथ आ सकते थे, उनके साथ चुनावी तालमेल बनाया गया होता, भोपाल में होने वाली INDIA की रैली कैंसिल न की गई होती, बल्कि वैसी रैलियां और संयुक्त चुनाव अभियान सभी चुनावी राज्यों में हुआ होता, तो चुनावों का नतीजा शायद अलग होता।

यह गौरतलब है कि तीनों राज्यों में कांग्रेस नहीं ‘अन्य’ के मतों की कीमत पर भाजपा बढ़ी है। INDIA के पार्टनर्स एक साथ लड़ते तो ‘अन्य’ को मिले मतों का एक हिस्सा भाजपा की बजाय गैर-भाजपा गठबंधन को मिला होता।

मोदी जिस तरह स्थानीय नेताओं को दरकिनार करके अपने चेहरे और योजनाओं के नाम पर चुनाव लड़ रहे थे, उसमें अगर INDIA गठबंधन के नेता भी मैदान में एक साथ उतरते तो लड़ाई अधिक राजनीतिक होती, विपक्ष मोदी-भाजपा को घेरने में अधिक सफल होता। सबसे बड़ी बात यह कि INDIA के राजनीतिक अभियान की निरंतरता बनी रहती और भाजपा तथा गोदी मीडिया को INDIA के बिखराव का नैरेटिव बनाने का मौका न मिलता।

19 दिसम्बर की बैठक में INDIA के convenor और प्रधानमंत्री के चेहरे के सवाल पर गठबंधन पुराने फैसले पर कायम रहा कि इसका फैसला चुनाव बाद किया जाएगा।

ममता बनर्जी ने बैठक से एक दिन पहले भी पत्रकारों से यही कहा था। लेकिन अचानक बैठक में PM face के बतौर उन्होंने मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम का जिस तरह प्रस्ताव रखा और केजरीवाल ने उसके समर्थन में अपनी बात रखी तथा 10-12 पार्टियों ने उसका समर्थन कर दिया, वह इस बैठक से निकलने वाली सबसे बड़ी खबर बन गयी।

उधर पटना में नीतीश के पक्ष में लगे पोस्टर चर्चा में थे- “2024 चुनाव में जीत चाहिए, तो एक निश्चय चाहिए, एक नीतीश चाहिये।”

क्या ममता और केजरीवाल द्वारा अचानक खड़गे के नाम का प्रस्ताव नीतीश कुमार को convenor बनाने के किसी सम्भावित प्रस्ताव की पेशबन्दी थी? कहा जा रहा है कि खड़गे के प्रस्ताव के पीछे ममता की बंगाल और केजरीवाल की पंजाब-दिल्ली की बड़ी दलित आबादी को एड्रेस करने की अपनी रणनीति भी हो सकती है।

बहरहाल, खड़गे का नाम डिस्कोर्स में आने से हलचल पैदा हुई है और विश्लेषकों का मानना है कि देश के पहले दलित प्रधानमंत्री के बतौर खड़गे- जिन्होंने अपने 50 साल के बेदाग राजनीतिक जीवन, प्रशासनिक अनुभव और कांग्रेस अध्यक्ष के बतौर अपनी भूमिका से छाप छोड़ी है- का चेहरा INDIA ब्लॉक के लिये बड़ा दांव हो सकता है। यह न सिर्फ कर्नाटक, तेलंगाना और पूरे दक्षिण में INDIA की संभावनाओं को बढ़ा देगा, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर दलितों-आदिवासियों और हाशिये के तबकों के बीच पूरे देश में इसका असर होगा और यह गेम-चेंजर साबित हो सकता है।

मोदी राज की तबाही के सबसे बदतरीन शिकार हुए वंचित तबकों में, जो डॉ आंबेडकर के संविधान की रक्षा को लेकर भी बेहद संवेदनशील हैं, वहां मोदी भाजपा के खिलाफ विपक्ष के साथ खड़े होने का पहले से जो रुझान मौजूद है उसे खड़गे का प्रोजेक्शन जबरदस्त आवेग दे सकता है।

सबसे बढ़कर चुनाव की दृष्टि से देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में जहां दलितों के राजनीतिक जागरण के साथ बसपा बड़ी राजनीतिक ताकत बनी थी, लेकिन अभी कमजोर और राजनीतिक रूप से unpredictable है, वहां खड़गे के प्रोजेक्शन से दलित वोट की shifting प्रदेश की राजनीति को उलट-पुलट सकती है, जैसा पिछले दिनों घोसी और इसके पहले खतौली उपचुनाव में दिखा।

बसपा के कमजोर होने से पैदा vacuum में दलित वोटों को भाजपा द्वारा हड़पे जाने की मुहिम को खड़गे का projection ब्लॉक कर सकता है।

21% दलित और 19% अल्पसंख्यक आबादी वाले उत्तर प्रदेश में इन तबकों के sizable हिस्से का INDIA के पक्ष में मतदान, विशेषकर बड़ी अल्पसंख्यक व दलित आबादी वाली सीटों पर, भाजपा का पूरा खेल बिगाड़ सकता है। यह गठबंधन में बसपा की अनुपस्थिति की भरपाई भी कर सकता है और किसी सरप्राइज development में बसपा को साथ आने के लिए भी मजबूर कर सकता है।

बहरहाल, गठबंधन को मोदी-राज के खिलाफ एक बड़ा सोशल coalition बनाना होगा। इसके लिए सबसे जरूरी यह है कि INDIA अपना ठोस एजेंडा पेश करे, जो देश की व्यापक जनता को मोदी राज की तबाही से उबारने और जीवन की बेहतरी का आश्वासन दे सके। यह चुनाव मोदी की विनाशकारी कॉरपोरेटरस्त नीतियों और तानाशाही के खिलाफ आम जनता की बेहतरी और लोकतंत्र की रक्षा का चुनाव बने- इस नैरेटिव को ही केंद्र बिंदु बनाना होगा।

इसलिये, किसी एक नाम की बजाय, INDIA के सम्भावित प्रधानमन्त्री के चेहरे के बतौर ऐसे set of leaders का projection जो जनपक्षीय एजेंडा के इर्द गिर्द एक बड़ा सामाजिक समीकरण बनाने में मददगार हो सकें, ही सही रणनीति होगी। कोई एक चेहरा प्रोजेक्ट करने से पूरा फोकस नीतियों और एजेंडा से शिफ्ट होकर व्यक्तियों पर केंद्रित हो जाएगा, जो नुकसानदेह होगा, साथ ही PM पद के अन्य आकांक्षियों के समर्थक सामाजिक आधार के alienate होने का भी खतरा बढ़ जाएगा।

बताया जा रहा है कि INDIA ब्लॉक की 19 दिसम्बर की बैठक में मोदी को बनारस में घेरने के लिए वहां से प्रियंका गांधी या नीतीश कुमार को उतारने पर भी चर्चा हुई।

नीतीश कुमार UP को explore कर रहे हैं। इलाहाबाद के फूलपुर व कुछ अन्य सीटों पर भी उनके लिए सम्भावनायें तलाशी जा रही हैं। वे अपने अभियान की शुरुआत बनारस के विशाल स्वजातीय आबादी वाले रोहनियां से करने वाले थे लेकिन उसके लिए कॉलेज ग्राउंड का परमिशन खारिज कर दिया गया है। जाहिर है सत्तारूढ़ खेमा इसे लेकर डरा हुआ है।

 पूरे देश की निगाहें लगी हैं कि आने वाले दिनों में INDIA गठबंधन किस तरह अपने राजनीतिक अभियान को दिशा देता है।

(लाल बहादुर सिंह, इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

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