ग्राउंड रिपोर्टः जिस गांव को पीएम मोदी ने लिया गोद, वहां के लोगों ने उनके दावों की पोल खोल दी…!

डोमरी (बनारस)। पीपल के पेड़ के नीचे चबूतरे पर बैठे कुछ लोग बहस कर रहे थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गोद लेने के बाद डोमरी कितना बदला? सेवालाल यादव लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रहे थे, “मोदी ने पहले अच्छे दिन का नारा दिया और अब न जाने किस बात की गारंटी दे रहे हैं। अब बहुत हो चुका। मोदी के पीछे मत भागिए। इस गांव के बाशिंदों ने ढेरों सुनहरे सपने बुने, लेकिन मिला क्या? सिर्फ बदनसीबी, बेरोजगारी और सरकारी कर्ज…..! ” 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत डोमरी, नागेपुर, ककहरिया के बाद साल 2018 में डोमरी गांव को गोद लिया था। बाद में दो और नए गांव पूरे बरियारपुर (सेवापुरी) और परमपुर (अराजीलाइन) भी इस फेहरिश्त में जुड़ गए हैं। डोमरी को गोद लेने की घोषणा की तो ग्रामीणों की खुशी सातवें आसमान पर पहुंच गई। गोद लिए जाने के शुरुआती दिनों में धूल उड़ाते-हिचकोले खाती गाड़ियों से अफसर गांव में आए। इस गांव की तरक्की के लिए डोमरी के गले की नाप-जोख कराई और बाद में चलते बने। शुरू में कुछ कोशिशें जरूर हुईं, लेकिन भ्रष्टाचार से छीजती सरकारी योजनाएं हकीकत में नहीं उतर पाईं। हाल यह है कि अब डोमरी में विकास के नाम पर कुछ भी ढूंढ पाना असंभव सा लगता है।

सड़क के किनारे खुला सीवर लाइन

बनारस जिला मुख्यालय के करीब 12 किमी दूर है डोमरी, जिसका क्षेत्रफल 486 हेक्टेयर है। यहं 50 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है। करीब साढ़े सात सौ परिवार के तकरीबन 5 हजार लोग यहां रहते हैं। इनमें करीब सौ किसान परिवार हैं। सरकारी दस्तावेजों में डोमरी आदर्श गांव है, लेकिन इस गांव की दशा भारत के बाकी गांवों से बदतर है। पटेल, राजभर, मल्लाह और दलितों की एक बड़ी आबादी तंगहाली में जिंदगी की चुनौतियों से मुकाबला करती नजर आती है।

गंगा कटान

बनारस शहर के ठीक सामने गंगा नदी के पूर्वी छोर पर गड्ढेनुमा भूखंड पर बसा करीब 15 हजार आबादी वाला डोमरी गांव। यह गांव पहले ग्राम पंचायत और बाद में नगर पंचायत और अब नगर निगम के एक वार्ड का हिस्सा भर है। बनारस और चंदौली की सीमा को लांघते हुए हर रोज लाखों लोग राजघाट पुल से डोमरी के लोगों को निहारते हैं। वो पुल जिसे मोदी ने नहीं, ब्रितानी हुकूमत ने बनवाया था, जिसके ऊपर सड़क है और नीचे रेल की पटरी है। इस पुल से हजारों गाड़ियां और तमाम ट्रेनें गुजरती हैं। पूर्वांचल में ऐसा पुल आज तक कहीं नहीं बना। तरक्की की उम्मीद लगाए डोमरी के लोग इस पुल से आते-जाते लोगों को कातर नजरों से निहारते रहते हैं।

इसे विकास कहें या भद्दा मजाक

राजघाट पुल से आसमानी रंग की पानी के एक टंकी, बदहाल सड़क और इस सड़क के किनारे तमाम झुग्गी-झोपड़ियों में मुश्किल भरी जिंदगी गुजारते हुए लोगों को देखकर डोमरी की असल तस्वीर हर किसी का ध्यान अपनी तरफ खींचती है। इस गांव को करीब से देखने की कोशिश करेंगे तो पाएंगे कि डोमरी की हकीकत वाकई काफी निराश करने वाली है। करीब पांच हजार की आबादी वाला यह गांव पहले मठिया न्याय पंचायत का हिस्सा था। साल 1978 में यहां भीषण बाढ़ आई थी। उस समय भी बाढ़ का पानी गांव में नहीं घुस पाया था। वक्त बदला और सरकारें भी बदलीं, लेकिन डोमरी वालों का नसीब नहीं बदला। एक दशक पहले कोलेनाइजरों ने यहां प्लाटिंग शुरू कर दी। कौड़ियों के दाम बिकने वाली जमीनों के भाव आसमान छूने लगे। पांच हजार रुपये प्रति बिस्वा की जमीनें 40 से 50 लाख में बिकने लगीं।

सड़क पर फैलता है गंदा पानी

पीएम नरेंद्र मोदी के दुलारे गांव डोमरी के पश्चिम में गंगा का विशाल रेत, नदी के करार पर जहां-तहां सरकारी जमीन घेरकर बनाए गए तमाम मठ-मंदिर वाराणसी विकास प्राधिकरण को मुंह चिढ़ाते नजर आते हैं। इस गांव में तालाबनुमा गड्ढे के ठीक नीचे अवैध तरीके से निर्मित कुछ नई-कुछ पुरानी इमारतें बारिश के दिनों में ताल-तलैया में तब्दील हो जाया करती हैं। गंगा तट किनारे इंसानों की बस्तियां पेड़ और झाड़-झंखाड़ के बीच आधी दिखती हैं। दक्षिणी सीमा पर आधा-अधूरा बना एक हेलीपैड है, जिसका काम रोक दिया गया है।

पीएम नरेंद्र मोदी ने जब आदर्श गांव बनाने के लिए डेमरी को गोद लिया तो लोगों में ढेरों उम्मीदें जगी थी। अब यहां के बाशिंदों को यह एहसास होने लग गया है कि उनके साथ भद्दा मजाक किया गया। सेवालाल यादव को इस बात से रंज है कि डोमरी के लोग तमाम मुश्किलों से घिरे हुए हैं। वह कहते हैं, “पीएम मोदी ने डोमरी को गोद लिया तो लगा कि हम सभी की हैसियत बढ़ गई है। सरकारी मुलाजिम रोज घर आकर हालचाल पूछा करते थे। सालों गुजर गए। अब न अफसरों की गाड़ियां आती हैं और न ही सरकारी नुमाइंदे। विकास की आंधी में हमने अफसरों और नेताओं पर आंख बंद करके भरोसा किया। सबको पता था डोमरी की तरक्की पक्की है। अब हम उसी विकास का खामियाजा भुगत रहे हैं। न घर के रहे, न घाट के।”

सेवालाल यादव

वह कहते हैं, “पांच बरस पहले खूबह शोर हुआ हुआ कि बनारस शहर की तरह डोमरी भी चमचमाने लगेगा। हकीकत में कुछ नहीं हुआ। यहां न ट्यूबवेल है, न ही सिंचाई का कोई दूसरा साधन। डोमरी के नौजवानों की हालत खराब है। बेरोजगारी और महंगाई चरम पर है। टूटी सड़कें, कच्ची पगडंडियां, उखड़े और टूटे हुए ईंट के खड़ंजे, बदहाल हैंडपंप, पावरलूम और पंखे के जाली के कारखानों को आखिर कब रफ्तार मिलेगी। खाली पड़े रसोई गैस के सिलेंडर, अंधाधुंध बिजली कटौती के बीच इस गांव के लोगों की हर सुबह मजदूरी की कभी न खत्म होने वाली तलाश आखिर कब पूरी होगी? “

खेती की जमीनें लील गए माफिया

डोमरी में गंगा के किनारे तमाम बच्चे बकरी और गाय-भैंस चराते नजर आते हैं तो महिलाएं उपले के लिए गोबर पाथते हुए। यह गांव भले ही बनारस शहर का हिस्सा है, लेकिन तस्वीर गांव जैसी ही है। बिहार, झारखंड के अलावा गाजीपुर, बलिया से आकर तमाम लोगों ने यहां जमीनें खरीदी है। कुछ लोगों ने यहां चमचमाती दुकानें भी खोल ली है। आरसीएम के सामानों की बिक्री करने वाले अंगद प्रसाद मौर्य से हमारी मुलाकात हुई तो वो काफी निराश नजर आए। बोले, “हम अपने सुनहरे भविष्य का सपना संजोकर यहां आए थे। तब हमें हकीकत पता नहीं थी। पिछले पांच-छह सालों से अब यहां कोई भी काम ठीक से नहीं चल पा रहा है। पीएम मोदी के गोद लेने के बाद गांव में बिजली के खंभे गड़ गए और ट्रांसफार्मर लगा दिए गए। अमूमन दिन में स्ट्रीट लाइटें जलती नजर आती हैं। डोमरी को सिर्फ बिजली ही नहीं, अच्छी सड़कें भी चाहिए। गांव में नालियां नहीं बनी हैं। घर का गंदा पानी भी सड़क पर जाता है या खेत में। मरम्मत के अभाव में सड़कें भी बदहाल हैं।”

डोमरी गांव की अधिकतर औरतें रुद्राक्ष की माला गूथतीं हैं अथवा बिंद बनाने का काम करती हैं। आजीविका चलाने के लिए कुछ पुरुष हथकरघे पर साड़ियां बीनते हैं। यहां पंखे की जाली बनाने का काम कुटीर उद्योग की तरह चलता था, जो अब दम तोड़ चुका है। इस धंधे से लंबे समय से जुड़े रहे राम किशुन कहते हैं, “चाइना मेड पंखों ने हमारे कारोबार का भट्ठा बैठा दिया। नतीजा, काले पंखों की जाली बनाने का काम लगभग ठप हो गया हैं। कुछ ही लोग यह काम कर रहे हैं। यही हाल हथकरघे का भी है। हमारे पास हुनर तो है, लेकिन काम नहीं है। समझ में यह नहीं आ रहा है कि हमारे पीएम किस बात की गारंटी दे रहे हैं?”

डोमरी गांव के संतोष पटेल शिकायती लहजे में कहते हैं, “डोमरी गांव में करीब 50 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि थी, लेकिन अब करीब 20 हेक्टेयर ही बची है। खेती लायक सारी जमीनें भूमाफिया लील गए। बचे हुए खेतों में अब किसानी करना आसान नहीं है। छुट्टा पशुओं का आतंक है। गांव में जल निकासी, सीवर और सड़कों की स्थिति बदहाल है। पानी निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है। जब बारिश होती है तो पानी घर में घुसने लगता है। बारिश के दिनों में उल्टी-दश्त की बीमारी फ़ैलने की आशंका बढ़ जाती है। हम क्या करें, ऐसे ही रहते हैं। गांव भर का गंदा पानी इधर-उधर सड़क पर बहता रहता है। कई बार लिखकर दिया गया, अधिकारी आए भी, लेकिन देखकर लौट गए। कोई सुनवाई ही नहीं हो रही है।” इनके साथ बैठे कई लोग उनकी हां में हां मिलाने लगते हैं।”

डोमरी के अंदर जाने पर साफ दिखता है कि गांव के बेहतरी के लिए कोई खास काम नहीं हुआ है। कुछ गलियों में खड़ंजे लगे हैं और कुछ गलियां अभी कच्ची हैं। घटिया निर्माण और रख-रखाव ठीक न होने के कारण सड़कों का पुरसाहाल नहीं है। कई शौचालयों में खिड़की-दरवाजे तक नहीं हैं। कई लोगों ने उसे गोदाम बना रखा है। भाजपा का झंडा लगाकर घूम रहे एक नौजवान ने कहा, “मोदी जी की पहल पर लोगों को शौचालय मिला। लाभार्थियों ने ख़्याल नहीं रखा तो क्या किया जाए। सरकार तो उनके शौचालय का ख़्याल रखेगी नहीं।”

विनोद पांडेय

गंगा किनारे हमें मिले विनोद पांडेय। उन्होंने दावा किया, “डोमरी में बहुत सारा काम हुआ है। कोई उपेक्षित नहीं है। साठ फीसदी लोगों को राशन मिल रहा है। पहले जो सरकारें थी, तब यहां बिजली के खंभे-तार तक नहीं थे। अब बिजली की समस्या नहीं है। सड़क और स्वच्छता का काम उम्दा है। सड़कों का काम क्यों रोका गया, इसकी जानकारी हमें नहीं है। शायद पीएम नरेंद्र मोदी को भी नहीं होगी, अन्यथा सड़कें ऊबड़-खाबड़ नहीं दिखतीं। मोदी जी के गोद लेने के बाद ही यहां बिजली के खम्भे लगाए गए। पानी व शौचालय की सुविधा बढ़ी है। रोजाना सड़क पर झाड़ू लगता है। प्राइमरी और मिडिल स्कूल में व्यवस्था पहले से बेहतर है।”

आखिर कब आएंगे अच्छे दिन

हमारी गाड़ी पर “प्रेस” लिखा देखकर डोमरी में सड़क के किनारे रुद्राक्ष की माला पिरो रहीं कुछ महिलाओं ने हमें रोका और कहा, “मीडिया से आए हो?” जवाब देने से पहले ही फुलमत्ती कहने लगीं, ” पांच-सात साल में बहुतै मीडिया वाले अइलन। पांच बरिस पहिले रोड डोमरी का चर्चा होत रहल। अब अखबार और टीवी से डोमरी ओझल हो गइल। तनिक दूइ मिनट बदे हमरे घरे भी चला। घूम के देख ला, तोहके सच पता चल जाई। हम लोगन वैसहीं हैं, जइसन पहिले रहली। महगाई एतना बढ़ गइल की रोटी-भात क इंताजम मुहाल हो गईल बा। मोदी जी उज्ज्वला रसोई गैस क सिलेंडर दिहले रहलैं, लेकिन गैस क टंकी खरीदै बदे पैसा नाहीं हौ। मजबूरी में गांव भर क औरत धुआं में खाना बना रहल बाटीं। कई बार त सांस फूले लगैला।”

डोमरी में रुद्राक्ष की माला पिरोती महिलाएं

फुलमत्ती के साथ बैठीं ममता, कलावती, मुन्नी कहती हैं, “अच्छे दिनों की उम्मीद पर हमने बीजेपी को वोट दिया। फिर भी हमारे अच्छे दिन नहीं आए। अबकी मोदी की गारंटी पर उन्हें वोट देंगे। शायद कोई लाभ मिल जाए। राधा कहती हैं, “हथकरघे बंद हुए तो डोमरी के ज्यादातर नौजवान मजूरी के लिए भटकने लगे। कोई ईंट-पत्थर का काम करता है तो कोई टोटो चलाता है। मुफ्त में राशन मिल रहा है, इसलिए किसी तरह से दिन कट जाता है। हमें नहीं पता कि ऐसा कब तक चलेगा। डोमरी को मोदी जी ने गोद लिया तो लगा कि हमारे दिन फिर जाएंगे, लेकिन हालत तो बद से बदतर हो गए। दिन भर रूद्राक्ष की माला गूथने पर पचास-साठ रुपये मुश्किल से मिल पाते हैं। इसके अलावा कमाई का कोई और जरिया नहीं है।”

मानसा देवी

डोमरी की पटेल बस्ती में जिस पेड़ के नीचे नौजवानों और महिलाओं के बीच गर्मा-गरम बहस चल रही थी, वहां सड़क टूटी हुई थी। लोगों की शिकायत यह थी कि जिनके पास पहले से अच्छी खेती की जमीन थी और घर बने थे, सरकारी पैसे से उनके नए आवास दोबारा बन गए। हमारी हालत ठन-ठन गोपाल जैसी है। क्या यही है सबका साथ-सबका विकास? डोमरी की बदहाली से नाखुश मानसा देवी कहती हैं, “डोमरी में विकास सपना है। यहां रहने वाले लोगों की मुश्किलों का कोई ओर-छोर नहीं है। नौजवानों के पास कोई रोजगार नहीं है। हम यहां रहते हैं और हमारे बच्चों को कोल्हापुर जाकर काम करना पड़ रहा है। डोमरी में पांच-छह सालों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। कोई भी सड़क और गली सही-सलामत नहीं है। हमारे दरवाजे पर आज तक कोई नहीं आया, न अफसर और न ही नेता। हम कैसे मान लें कि डोमरी को प्रधानमंत्री ने गोद लिया है। अगर ऐसा हुआ होता तो कोई विकास यहां क्यों नहीं दिख रहा है।”

सपना है डोमरी में विकास

डोमरी गांव के तिराहे पर हमें मिले गिरीश चंद्र उपाध्याय। वह कहते हैं, “हमारे गांव में स्ट्रीट लाइट लगी है, पर हमारे घर के आसपास खंभे लगे ही नहीं। बिजली विभाग के मुलाजिम सुनते ही नहीं। कहने को हम वाराणसी नगर निगम के हिस्से हैं, लेकिन सभासद भी हमारी नहीं सुन रही हैं। हम अंधेरे में रहते हैं। आधा-अधूरा हेलीपैड हमारे गांव के बदहाली की कहानी कहता है। विकास तो आज भी हमसे कोसों दूर है। वोट मांगने सभी आ जाते हैं, लेकिन उसके बाद हमारे जख्मों पर मरहम लगाने भी कोई नहीं आता।”

गिरीश चंद्र उपाध्याय

डोमरी गांव के जागरूक नागरिक छेदी बाबा डोमरी के विकास पर बड़ा सवाल खड़ा करते हैं। व्यवस्था की पोल खोलते हुए कहते हैं, “हमें नहीं लगता कि पीएम नरेंद्र मोदी ने हमारे गांव को गोद लिया है। इस गांव में तो उनके नाम का कहीं कोई शिलापट्ट तक नहीं लगा है। कागज पर तो वो कुछ भी लिख देते हैं, लेकिन हकीकत में कुछ नहीं दिखता। हमारी नजर में किसी नौजवान को सरकारी नौकरी नहीं मिली। हमने मांग उठाई थी कि रामनगर से राजघाट तक पुल बनाया जाए। आज तक यहां सड़क नहीं है। रामनगर तक पैदल जाने का कोई रास्ता नहीं है। पूरे गांव की रजिस्ट्री बंद है। हमें लगता है कि वो डोमरी के लोगों की सारी जमीन हथिया लेना चाहते हैं।”

छेदी बाबा

डोमरी की पूर्व प्रधान श्रीमती चंपा देवी के पति राजेंद्र पटेल मोदी सरकार की नीतियों से आहत नजर आते हैं। वो कहते हैं, “डोमरी के विकास पर जितना पैसा जारी हुआ, उसका बंदरबांट हुआ। सब अफसरों की जेब में चला गया। यहां विकास हुआ तो सिर्फ भ्रष्टाचार का, बेरोजगारी का और झूठ का। डोमरी जब लोहिया गांव बना था तब स्थिति ज्यादा बेहतर थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने इसे लोहिया ग्राम घोषित कराया था, जिस पर मोदी ने अपना ठप्पा ठोंक दिया। हमें यह बताते हुए शर्म आती है कि हम मोदी के दुलारे गांव डोमरी में रहते हैं।”

राजेंद्र यह भी कहते हैं, “चार साल पहले सीएम योगी आदित्यनाथ डोमरी आए थे। उस समय गांव में सड़कों की मरम्मत हुई थी। उसी समय बिजली के खंभे भी गाड़े गए थे। डोमरी और सूजाबाद को मिलाकर एक नई नगर पंचायत बनाई गई। उस समय भी उम्मीद की किरण जगी। अधिशासी अधिकारी अजीत सिंह ने डोमरी आकर काम शुरू करा दिया। नगर पंचायत का भवन निर्माण शुरू हो गया। आधी-अधूरी सड़कें बनी, कुछ इलाकों में बिजली के खंभे गाड़े गए। इसी बीच वाराणसी नगर निगम के चुनाव की घोषणा हुई और बीजेपी सरकार ने एक झटके में डोमरी और उससे सटे सूजाबाद को मिलाकर बने नगर पंचायत का दर्जा छीन लिया। इस इलाके को नगर निगम में शामिल करते हुए वार्ड नंबर-48 बना दिया गया।”

बीरेंद्र पटेल

“मोदी सरकार ने तो डोमरी के विकास पर ग्रहण लगा दिया है। सिर्फ डोमरी ही नहीं, सूजाबाद, कटेसर, कोदोचक से लगा रामनगर तक रजिस्ट्री पर रोक लगा दी गई है। करीब तीन साल पहले सरकार का फरमान आया और जमीनों की खरीद-फरोख्त बंद हो गई। किसान अब न जमीन बेच पा रहे हैं और न ही खरीद पा रहे हैं। बताया जा रहा कि मोदी सरकार ने डोमरी की जमीनों को कारपोरेट घरानों के हवाले करने की योजना बनाई है। शायद हमारी जमीनों पर अडानी-अंबानी की नजर लग गई हो। यहां के किसान तो दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। किसी गांव को मोदी जब गोद लेते हैं वहां जमीनों की रजिस्ट्री बंद करा देते हैं और खेती-किसानी चौपट हो जाया करती है।”

पास में चबूतरे पर बैठे रामलाल ने भी राजेंद्र की बातों का समर्थन किया और कहा, बनारस के पिंडरा इलाके में अमूल डेयरी का शिलान्यास करने आए तो वहां भी किसानों की तमाम जमीनों की रजिस्ट्री बंद हो गई। इस क्षेत्र में काशी द्वार हाईटेक आवासीय योजना के लिए दस गांवों की करीब 957 एकड़ ज़मीन, वैदिक सिटी के लिए सारनाथ के आसपास के पांच गांवों की 109 हेक्टेयर (269 एकड़) ज़मीन का अधिग्रहण किया जाना है। दोनों टाउनशिप परियोजना में होटल, रिजॉर्ट, आवासीय भवन, कमर्शियल भवन, शॉपिंग मॉल, कन्वेंशन सेंटर, योग केंद्र के अलावा विभिन्न देशों के धार्मिक स्थल बनाए जाएंगे।

विकास के दावे हवा-हवाई

कबीर मठ के जनेश्वर स्वामी का दर्द दूसरा है। वह कहते हैं, “हमने मठ के लिए किसानों से जमीनें खरीदी थीं। हमारे पास रजिस्ट्री के अभिलेख भी हैं। साल 2007 में बसपा के शासन में तत्कालीन कलेक्टर वीणा ने अराजी नंबर-310  और 311 के दायरे में रहने वाले लोगों और मठ-मंदिरों से सभी का नाम हटा दिया। यह भी बता दिया गया कि वो जमीन सरकारी है और कछुआ सेंचुरी के दायरे में आती है। इस इलाके में सिर्फ कबीर मठ ही नहीं, सतुआ बाबा का आश्रम, जनार्दन स्वामी और स्वामी रामानंद महाराज के मठ-मंदिर हैं। सरकारी नुमाइंदों ने तहसील के अभिलेखों से करीब 32 मठ-मंदिरों का नाम हटा दिया है।”

कबीर मठ के जनेश्वर स्वामी

जनेश्वर स्वामी कहते हैं, “सरकार किसानों, संतों, केवटों को उज़ाड़ने पर तुली है। अब किसान न खेती कर सकते हैं और न ही मल्लाह गंगा में मछली पकड़ सकते हैं। सब कुछ रोक दिया गया है। इस मुद्दे को लेकर 06 दिसंबर 2011  को डोमरी के लोगों ने प्रशासन के खिलाफ लंबी लड़ाई छेड़ी थी। निर्दोष लोगों को पीटा गया। कई साधु-संत जेल भी गए। आठ लोगों के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज हुआ जो अभी अदालतों में विचाराधीन है। हमारी चिंता इस बात को लेकर है कि हम इस जमीन पर करोड़ों रुपये खर्च कर चुके हैं। हमने जमीन खरीदी है, हड़पी नहीं है। फिर भी हमारे जमीनों का ब्योरा तहसील के अभिलेखों से गायब कर दिया गया है। हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि सरकार हमें वाजिब मुआवजा दे, हम इस डोमरी छोड़कर चले जाएंगे।”

डोमरी के मठ-मदिरों को हटाने का सरकार ने जारी कर दिया है फरमान

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार राजीव मौर्य कहते हैं, “साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र-निर्माण के हिस्से के रूप में सांसद आदर्श ग्राम योजना का ऐलान किया था। इस योजना के तहत लोकसभा सांसदों को वर्ष 2016 तक अपने निर्वाचन क्षेत्र में एक आदर्श ग्राम का विकास और साल 2019 तक तीन और साल 2024 तक पांच आदर्श ग्रामों का निर्माण करना था। इस योजना का मकसद हर ज़िले में न्यूनतम एक आदर्श ग्राम का विकास करना था ताकि निकटवर्ती ग्राम पंचायतों को उन उपायों को अपनाने के लिए प्रेरित कर सके, लेकिन मोदी के संसदीय क्षेत्र में उनके गोद लिए गांवों की दशा काफी खराब है।

पीएम मोदी ने कहा था कि साफ-सफाई, आजीविका, पर्यावरण, शिक्षा आदि क्षेत्रों में सशक्त बनाना है। इस योजना में शुरुआत के कुछ महीनों के बाद से ही संसद के सदस्यों की भागीदारी में कमी देखी गई है। कोई सांसद अपने काम के बल पर लोकसभा चुनाव में वोट मांगने की स्थिति में नहीं है। सांसदों के काम से अगर वोट मिल रहा होता तो शायद उनके गोद लिए गांव बदहाली की दास्तां नहीं सुना रहे होते। जरूरत इस बात की है कि ग्रामीण विकास की नवीन योजनाओं की परिकल्पना के साथ ही उनके क्रियान्वन पर भी गंभीरता से ध्यान दिया जाए। जहां तक पीएम मोदी का सवाल है तो उनके अच्छे दिन का नारा धोखा साबित हुआ और अब उनकी गारंटी का दावा भी खोखला साबित होगा।”

‘सिर्फ नारे गढ़ते हैं मोदी’

कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष विश्वविजय सिंह कहते हैं, “पीएम के गोद लिए गांवों में विकास न होना सबसे बड़ा धोखा है। सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत किसी भी गांव के चरित्र में कोई बदलाव नहीं हुआ। अलग से कोई विकास नहीं हुआ। सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक मुद्दे पर काम कोई ठोस नहीं हुआ। जो गोद लिए गए गांवों थे, उनका सामान्य गांवों से कोई अंतर नहीं दिखा। ये ब्रांडिंग का जरिया था, जिसका विकास से कोई लेना नहीं था। लोग जानते हैं कि बड़ा काम हुआ होगा। कोई सांसद किसी गांव को गोद लेने की बात प्रचारित नहीं करता है, क्योंकि उन गावों में कोई विकास हुआ ही नहीं। इस बात से अंदाज लगाया जा सकता है कि बीजेपी सरकार देश-प्रदेश में कितना काम कर रही है और इस सरकार की कार्य संस्कृति क्या है? “

डोमरी में यहां लगता है ग्रामीणों का जमघट

“अगर आप पीएम नरेंद्र मोदी के काम का बारीकी से अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि वो काम के बजाय सिर्फ नारे गढ़ते हैं। सच यह है कि धरातल पर उनका कहीं कोई काम दिखता ही नहीं है। पहले उन्होंने अच्छे दिन की बात कही, जो आज तक आया नहीं। जब लोग अच्छे दिन के बारे में पूछने लगे तो पिछले नारों को छोड़कर वे ‘मोदी की गारंटी’ का प्रचार करने लगे। मोदी ने बनारस को ‘क्योटो’ बनाने का दावा किया और उन्होंने यह भी कहा था कि गंगा मैया ने उन्हें बुलाया है। न गंगा ठीक हुई, न बनारस की गलियां। सड़कें तो रोज ही धंस रही हैं। ऐसे में उन गांवों का हाल क्या होगा, जिन्हें उन्होंने गोद लिया था। जो हाल डोमरी है, वही हाल दूसरे सभी मोदी के गोद लिए गांवों का है।”

सचमुच, डोमरी से लौटते वक्त हमने कुछ इसी तरह की कठिनाइयों को चुनौती समझ कर पूरा रास्ता पार किया। चुनाव का अलार्म बज गया है तो भाजपा के नेता दावा कर रहे हैं कि डोमरी गांव को पीएम मोदी कुछ बहुत बड़ा सौगात देने वाले हैं। अब ये सौगात क्या है? इससे डोमरी वाले वाकिफ नहीं है। इतना जरूर है कि इस गांव में सारे विकास कार्य ठप हैं। इस गांव के विकास की जितनी बातें कही गई हैं, वो सिर्फ हवा-हवाई नजर आती हैं।

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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