यदि कोई व्यक्ति ऐसी जानकारी फैलाने की कोशिश करता है, जिससे नफरत और विद्रोह हो तो यह एक अपराध है। अल्प ज्ञान बहुत खतरनाक है। इसलिए, अगर आप सच्चाई जाने बिना गलत जानकारी फॉरवर्ड करते हैं, तो आप मुसीबत में पड़ सकते हैं। किसी भी मुद्दे पर फर्जी संदेश फैलाना, जो उत्तेजना, दंगे, सामूहिक हत्या का कारण बनता है, कानून के तहत दंडनीय है। यह आज एक गंभीर मुद्दा बन गया है क्योंकि हर किसी की पहुंच सोशल मीडिया तक है।
मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में महिला पत्रकारों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी के लिए अभिनेता और भाजपा नेता एसवी शेखर के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया है। अप्रैल 2018 में शेखर ने अपने फेसबुक अकाउंट से अपमानजनक और अश्लील टिप्पणी की थी, जिसके बाद उन पर यह मामला दर्ज किया गया था। जस्टिस आनंद वेंकटेश ने कहा कि शेखर ऊंचे व्यक्ति है और उनके कई फॉलोअर हैं, और उन्हें मैसेज करते समय अधिक सावधानी बरतनी चाहिए थी।
कोर्ट ने कहा, “कोई व्यक्ति समाज में जितना अधिक लोकप्रिय होता है, वह समाज को जो संदेश देता है, उसमें उतनी ही अधिक जिम्मेदारी भी होती है। याचिकाकर्ता, मौजूदा मामले में, कई फॉलोअर्स के साथ ऊंचे कद वाले व्यक्ति की श्रेणी में आता है और उसे अपने फेसबुक अकाउंट से संदेश को अग्रेषित करने से पहले अधिक सावधानी बरती चाहिए। यदि ऐसी सावधानी की अनदेखी की गई है और परिणामस्वरूप, इसका बहुत गंभीर प्रभाव पड़ा है, तो याचिकाकर्ता को अनिवार्य रूप से इसका सामना करना होगा और वह बिना शर्त माफी मांगने से परिणाम से भागने की कोशिश नहीं कर सकता है।”
हालांकि शेखर ने दावा किया कि उन्होंने श्री थिरुमलाई से प्राप्त संदेश को बिना उसकी सामग्री पढ़े केवल अग्रेषित किया था, और बाद में उसी दिन अपमानजनक पोस्ट हटा दी थी और माफी मांगी थी, अदालत ने कहा कि इन कृत्यों से शेखर को अपमानजनक संदेश अग्रेषित करने के परिणाम से बचने में मदद नहीं मिलेगी। अदालत ने कहा कि हम एक ऐसे युग में रहते हैं जहां सोशल मीडिया ने वस्तुतः हर व्यक्ति के जीवन पर कब्जा कर लिया है, जहां प्रत्येक संदेश कुछ ही समय में दुनिया के कोने-कोने तक पहुंच सकता है। अदालत ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को संदेश लिखते या अग्रेषित करते समय सामाजिक जिम्मेदारी निभानी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया पर भेजा या अग्रेषित किया गया संदेश एक तीर की तरह है, जिसे पहले ही धनुष से छोड़ा जा चुका है। जब तक वह संदेश प्रेषक के पास रहता है, तब तक वह उसके नियंत्रण में रहता है। एक बार जब इसे भेजा जाता है, तो यह उस तीर की तरह होता है, जिसे पहले ही चलाया जा चुका है और संदेश भेजने वाले को उस तीर (संदेश) से होने वाले नुकसान के परिणामों को भुगतना होगा। एक बार क्षति हो जाने के बाद माफीनामा जारी करके उससे उबरना बहुत मुश्किल होगा।
अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में, शेखर द्वारा अग्रेषित संदेश से पत्रकारों और विशेषकर महिला पत्रकारों का अपमान हुआ, जिसके परिणामस्वरूप उनके घर के सामने प्रदर्शन हुआ और हिंसा हुई। इस प्रकार, अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) के अपराध को पूरा करने के लिए आवश्यक सभी घटक मौजूद थे और अपराध बनता है। अदालत ने कहा कि शेखर द्वारा भेजे गए संदेश ने सार्वजनिक शांति के खिलाफ अपराध को प्रेरित किया क्योंकि घटना के तुरंत बाद राज्य भर में हंगामा मच गया था। इस प्रकार अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 505(1)(सी) के तहत भी अपराध बनता है।
चूंकि शेखर द्वारा पोस्ट किया गया संदेश वस्तुतः महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाता है और चूंकि इसमें एक विशेष महिला और अन्य महिला प्रेस पत्रकारों पर अभद्र और तीखा हमला भी शामिल है, इसलिए आईपीसी की धारा 509 और तमिलनाडु उत्पीड़न निषेध की धारा 4 के तहत अपराध दर्ज किया गया है। महिला अधिनियम, 2002 भी आकर्षित किया गया।
अदालत ने कहा कि संदेश अग्रेषित करने वाले व्यक्ति को संदेश की सामग्री को स्वीकार करना चाहिए। अदालत ने कहा कि जब किसी व्यक्ति को फॉरवर्ड किए गए संदेश पर लाइक देखकर डोपामाइन का स्तर बढ़ जाता है, तो उसे परिणाम भुगतने के लिए समान रूप से तैयार रहना चाहिए, अगर उस संदेश में अपमानजनक सामग्री हो। इस प्रकार, अदालत ने पाया कि शेखर की माफी पर कार्रवाई नहीं की जा सकती और उसके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को केवल इसी आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता। शेखर की इस दलील के संबंध में कि उसने संदेशों को अनजाने में अग्रेषित किया था, अदालत ने कहा कि इसे ट्रायल के दौरान स्थापित किया जाना था। इस प्रकार, अदालत ने शेखर के खिलाफ कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया और याचिका खारिज कर दी। हालांकि, यह देखते हुए कि शेखर को एक ही कारण की कार्यवाही का सामना करने के लिए एक अदालत से दूसरी अदालत में नहीं ले जाया जा सकता है, अदालत ने सभी आपराधिक कार्यवाही को विशेष अदालत, सिंगारवेलर मालीगई में स्थानांतरित कर दिया।
सोशल मीडिया पर कुछ भी शेयर करने से पहले एक बात जान लीजिए कि आपकी ये गलती कौन सी धाराओं में जेल भिजवा देगी!
सोशल मीडिया पर किसी भी सूचना की सच्चाई पता किए शेयर बगैर उसे फॉरवर्ड करना, शेयर करना, आगे बढ़ाना खतरनाक साबित हो सकता है। आपकी ये गलती के कारण कानूनी कार्रवाई हो सकती है?
सोशल मीडिया के दौर में लोग कुछ पोस्ट, ट्वीट, मैसेज, फोटो और वीडियो को आगे फॉरवर्ड कर देते हैं, बिना इस बात की तस्दीक किए कि ये सच या झूठ, अफवाह है या हकीकत? हम ऐसा करते हुए यह नहीं सोचते हैं कि किसी भी झूठ, भ्रामक वायरल मैसेज, वीडियो, फोटो या ट्वीट को शेयर करने से ये सैकड़ों-हजारों लोगों तक पहुंच जाता है। सोशल मीडिया को हम मनोरंजन के तौर पर बेशक इस्तेमाल करते हैं लेकिन जब सूचनाओं का आदान प्रदान होता है, तो हमारी जिम्मेदारी कई गुना बढ़ जाती है। इसलिए हमें पता होना चाहिए कि झूठी खबर को बिना सोचे समझे शेयर करना कितना भारी पड़ सकता है।
किसी भी पोस्ट, विचार या ट्वीट को साझा या रि-ट्विट करने से वो व्यक्ति का विचार बन जाता है। अब सवाल उठता है कि क्या सोशल मीडिया पर किसी भी पोस्ट को शेयर करना, रि-ट्वीट करना या फॉरवर्ड करना अपराध के तहत आता है?
भारतीय कानून के तहत ऐसी कोई डायरेक्ट धारा नहीं है, जो सोशल मीडिया पर किसी भी भ्रामक, अफवाह फैलाने वाली, झूठी या भ्रामक पोस्ट को शेयर करने, फॉरवर्ड करने, साझा करने पर यूजर पर लगती हो। हालांकि ऐसे दूसरे प्रावधान हैं, जो आईटीएक्ट और आईपीसी के तहत आपराधिक दायित्व तय करते हैं। इलेक्ट्रॉनिक रूप में किसी भी आपत्तिजनक और अश्लील सामग्री को पब्लिश करने पर आईटी एक्ट की धारा 67 के तहत कार्रवाई और दंड का प्रावधान है। इसके तहत किसी भी व्यक्ति की सजा को 3 सालों तक बढ़ाया जा सकता है। सिर्फ जेल ही नहीं दोषी के ऊपर जुर्माने का भी प्रावधान है। दूसरी बार या बाद की सजा के हालातों में सजा को बढ़ाकर पांच साल तक किया जा सकता है।
आईटी एक्ट की धारा 67ए के तहत इलेक्ट्रॉनिक तरीके से बच्चों को यौन कृत्य में शामिल करने वाली सामग्री को शेयर करने, पब्लिश करने या फॉरवर्ड करने पर भी सजा हो सकती है। सजा के रूप में दोषी को पांच साल के लिए जेल और जुर्माना लगाया जा सकता है। दूसरी बार या दोबारा दोषी साबित होने पर ये सजा सात साल बढ़ाई जा सकती है, इसके अलावा जुर्माना भी बढ़ाया जा सकता है।
आईपीसी की धारा 153A, 153B, 292, 295A और 499 के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के खिलाफ कोई अपमानजनक और आपत्तिजनक मैसेज साइबर वर्ल्ड में भेजता है तो इन धाराओं के तहत कार्रवाई बनती है। ऐसे अपमानजनक और आपत्तिजनक संदेशों में सांप्रदायिक वैमनस्य पैदा करना, अश्लीलता फैलाना, धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाना और मानहानि जैसे आरोप आते हैं।इन धाराओं के तहत अलग अलग सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
सोशल मीडिया पर किसी आपत्तिजनक और अपमानित करने वाले पोस्ट पर कोई प्रत्यक्ष वैधानिक प्रावधान तो नहीं है लेकिन हर मामले के हालात के आधार पर फैसला लेना कोर्ट पर निर्भर करता है। कोर्ट ने अलग अलग केसों में इस पर फैसला सुनाया है। साल 2017 में ऐसे ही रि-ट्वीट के मामले में आप नेता राघव चड्ढा की याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट खारिज कर चुका है। जस्टिस संगीता ढींगरा ने व्यवस्था दिया था कि रि-ट्वीट करने से आपराधिक दायित्व आकर्षित होगा।
साल 2018 में मद्रास हाईकोर्ट ने एक नेता एसवी शेखर के खिलाफ फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कहा अपने फैसले में कहा था कि सोशल मीडिया में किसी मैसेज को शेयर करना या फॉरवर्ड करना उस विचार को मानना और उनके समर्थन के तहत आता है। ये फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने नेता कीअग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया था। नेता पर आरोप था कि उसने महिला पत्रकारों के खिलाफ लिखी गई अपमानजनक पोस्ट को सोशल मीडिया पर शेयर किया था। निचली अदालत के इस फैसले के बाद एसवी शेखर ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में विशेष याचिका दायर करते हुए कहा कि एक जून 2018 को याचिका निरस्त कर दिया था। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि शेखर निचली अदालत में पेश होंगे, जहां वो जमानत की याचिका डाल सकते हैं।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)