हिंसा के शिकार मणिपुर के आदिवासियों की पुकार सुनने के लिए सुप्रीकोर्ट के पास समय नहीं है, लेकिन ईडी के लिए समय है

उच्चतम न्यायालय की प्राथमिकता क्या है? क्या देश का कोई राज्य जल रहा हो और वहां आदिवासियों की सुरक्षा की गुहार सुप्रीम कोर्ट से लगाई गई हो तो उसकी सुनवाई न करके सुप्रीम कोर्ट उसकी सुनवाई करेगा जिसमें तमिलनाडु के एक मंत्री की ईडी से गिरफ्तारी के बाद ईडी गुहार लगा रही हो कि मंत्री को निजी अस्पताल के बजाय उसकी सुपुर्दगी में दिया जाए। उच्चतम न्यायालय में दो मामले सुनवाई के लिए आए, जिसमें तमिलनाडु के गिरफ्तार बिजली मंत्री सेंथिल बालाजी को निजी अस्पताल में ट्रांसफर करने की अनुमति देने वाले मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 21 जून को सुनवाई करने के लिए राजी हो गया है। जबकि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एमएम सुंदरेश की अवकाश पीठ ने छुट्टियों में मणिपुर जनजातीय फोरम द्वारा दायर इंटरलोक्यूटरी एप्लिकेशन (आईए) को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार कर दिया।

पीठ ने मामले की सुनवाई कल या परसों करने की मांग वाली याचिका भी खारिज कर दी। मणिपुर मामले का उल्लेख सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंजाल्विस ने किया, जिन्होंने मामले की तात्कालिकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हिंसा रोकने के लिए सरकार द्वारा दिए गए आश्वासनों के बावजूद 70 आदिवासी मारे गए। उन्होंने कहा कि अगर अदालत ने मामले की तत्काल सुनवाई नहीं की तो और आदिवासी मारे जाएंगे।

इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सुरक्षा एजेंसियां जमीन पर काम कर रही हैं। इसी तरह की याचिकाएं छुट्टियों से पहले की जा रही थी। अदालत ने कोर्ट के फिर से खोलने के बाद सुनवाई करने का फैसला किया। इसे छुट्टियों के बाद सुना जाए। गोंजाल्विस ने तर्क दिया कि उन्होंने पहले आश्वासन दिया था। मैं सेना की सुरक्षा की मांग कर रहा हूं। यह 17 जुलाई को सूचीबद्ध है। तब तक 50 और आदिवासी मारे जाएंगे। और इसे तीन जुलाई के लिए सूचीबद्ध करने के लिए कहा।

तमिलनाडु के गिरफ्तार बिजली मंत्री सेंथिल बालाजी को निजी अस्पताल में ट्रांसफर करने की अनुमति देने वाले मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ई़डी) ने अब सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। ईडी द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 21 जून को सुनवाई करने के लिए राजी हो गया है। सेंथिल बालाजी को ईडी ने 13 जून को कैश फॉर जॉब स्कैम के केस में गिरफ्तार किया था। यह मामला कथित तौर पर 2011-2016 के बीच का है। जब वह एआईएडीएमके सरकार में परिवहन मंत्री थे।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एमएम सुंदरेश की अवकाश पीठ के समक्ष सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने मामले का उल्लेख किया। उन्होंने तर्क दिया कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। इसके अलावा, बालाजी को प्राइटवेट हॉस्पिटल में ट्रांसफर करना अनुचित है, क्योंकि सीबीआई बनाम अनुपम जे. कुलकर्णी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, जांच एजेंसी को गिरफ्तारी की तारीख से 15 दिनों के बाद कस्टडी नहीं मिलेगी।

एसजी मेहता ने कहा, “माई लॉर्ड का निर्णय कहता है कि एक बार किसी व्यक्ति को हिरासत में भेज दिया जाता है, बंदी झूठा नहीं होता है। यह यह भी कहता है कि वापसी की तारीख के समय नजरबंदी की वैधता को देखना होगा … वह सीनियर मंत्री हैं, काफी प्रभावशाली हैं … मद्रास हाईकोर्ट ने आरोपी को गिरफ्तार करने के बाद बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर विचार किया और उन्हें हिरासत में भेज दिया गया। अब आरोपी अस्पताल में है और कुलकर्णी के फैसले के अनुसार, हमारे 15 दिन शुरू हो गए हैं। याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, यह हमारा मामला है।”

यह देखते हुए कि हाईकोर्ट ने अभी तक इस मामले में कोई आदेश पारित नहीं किया है, पीठ ने याचिका पर विचार करने के प्रति अपनी अनिच्छा व्यक्त की और कहा कि पहले हाईकोर्ट को मामले में आदेश पारित करने की अनुमति दी जानी चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की, “यदि हम इसे सरल वादकालीन आदेशों में अनुमति देते हैं तो कोई अंत नहीं होगा।”

इस पर एसजी मेहता ने कहा, “दोनों पक्षों को सुनने के बाद और बाध्यकारी निर्णय दिखाए जाने के बाद हाईकोर्ट द्वारा न्यायिक आदेश पारित किया गया। हाईकोर्ट का आदेश रिमांड आदेश का आधार है, जो कहता है कि आप उनसे पूछताछ कर सकते हैं, लेकिन केवल डॉक्टर की सलाह पर और उनके स्वास्थ्य को परेशान किए बिना ही, जो पूछताछ को व्यर्थ कर देती है। मैं केवल अत्यावश्यकता पर बहस कर रहा हूं। एक बार कागजात उपलब्ध होने के बाद मैं अवैधता को पेटेंट कराने पर बहस करुंगा।

मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी ने डीएमके नेता सेंथिल बालाजी के करूर स्थित आवास और राज्य सचिवालय स्थित उनके कार्यालय पर छापेमारी की थी। इसके बाद ईडी ने उन्हें गिरफ्तार किया था। 13 जून को गिरफ्तारी के बाद का उनका एक वीडियो भी सामने आया था, जिसमें वो रोते नजर आ रहे थे।

ईडी द्वारा गिरफ्तारी के खिलाफ बालाजी के परिवार द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की गई। इस मामले को मद्रास हाईकोर्ट द्वारा 22 जून, 2023 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है। मद्रास हाईकोर्ट ने 15 जून को बालाजी को अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया था, लेकिन उनके परिवार के अनुरोध पर इलाज के लिए उन्हें प्राइवेट हॉस्पिटल कावेरी में ट्रांसफर करने की अनुमति दी थी। बालाजी को उनके आधिकारिक आवास, राज्य सचिवालय स्थित उनके आधिकारिक कक्ष और उनके भाई के आवास पर 18 घंटे की व्यापक तलाशी और पूछताछ के बाद 13 जून को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तार किया गया था।

मद्रास हाईकोर्ट ने पिछले साल नवंबर में घोटाले की नए सिरे से जांच का आदेश दिया था, जिसमें कहा गया कि इसमें अनियमितताएं हुई हैं। हाईकोर्ट ने उस समय मंत्री द्वारा डिस्चार्ज याचिका को भी यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि आरोप तय करने के लिए पर्याप्त सामग्री है और यह मामला समाज को प्रभावित करता है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और ईडी की कार्यवाही पर रोक लगाने के हाईकोर्ट का एक और निर्देश भी रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने एजेंसी को भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत अपराधों को शामिल करके जांच को आगे बढ़ाने की अनुमति दी।

मणिपुर ट्रिब्यूनल फोरम ने सुप्रीम कोर्ट में एक नया इंटरलोक्यूटरी एप्लिकेशन (आईए) दायर किया है जिसमें कहा गया है कि कोर्ट भारत संघके “कोरे आश्वासन” पर भरोसा न करे क्योंकि भारत संघ और राज्य के मुख्यमंत्री दोनों ने संयुक्त रूप से कुकी की जातीय सफाई का एक सांप्रदायिक एजेंडा शुरू किया है। इंटरलोक्यूटरी एप्लिकेशन में कहा गया है कि कुकी जनजाति समूह को एक सशस्त्र सांप्रदायिक संगठन द्वारा जातीय रूप से साफ किया जा रहा है इसलिए यह आवेदन भारतीय सेना द्वारा जनजाति की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करता है, क्योंकि राज्य और इसके पुलिस बल पर आदिवासियों का भरोसा नहीं है। संगठन की दलील है कि पिछली सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल द्वारा आश्वासन दिए जाने के बावजूद अब तक कोई राहत नहीं दी गई है।

आवेदन में कहा गया, “इन आश्वासनों के देने के बाद 81 कुकी मारे गए, 237 चर्च और 73 प्रशासनिक भवन/क्वार्टर जलाए गए और 141 गांव नष्ट हो गए और 31410 कुकी अपने घरों से विस्थापित हो गए। अधिकारियों के आश्वासन अब उपयोगी नहीं हैं और उनका इन्हें लागू करने का गंभीर इरादा भी नहीं है।”

फोरम केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा दिए गए आश्वासनों पर भी निराशा व्यक्त की। आवेदन में कहा गया, “जिस तरह भारत संघ के वकील द्वारा दिए गए आश्वासन खाली और अर्थहीन रहे और पूरी किये जाने के इरादे से नहीं दिए गए थे, उम्मीद है कि गृह मंत्री के आश्वासन ऐसे नहीं होंगे। गृह मंत्री को यांत्रिक रूप से दोहराने के अलावा और भी बहुत कुछ करना है। गृह मंत्री को मणिपुर के आदिवासियों को विश्वास दिलाना चाहिए कि वे इसे लेकर गंभीर हैं।

फोरम ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के पूर्व सीजे अजय लांबा के नेतृत्व में केंद्र द्वारा गठित जांच आयोग पर अविश्वास व्यक्त किया और प्रार्थना की कि इसे रद्द कर दिया जाए और दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और कानून आयोग के अध्यक्ष एपी शाह वाले एकल सदस्यीय आयोग द्वारा प्रतिस्थापित किया जाए।

आवेदन में आगे कहा गया है कि दो समुदायों, मैतेई और आदिवासियों के बीच “संघर्ष”, जैसा कि मीडिया में दिखाया गया है, सच्चाई से बहुत दूर है क्योंकि दोनों समुदाय अपने मतभेदों के बावजूद एक दूसरे के साथ सह-अस्तित्व में हैं। आईए के माध्यम से फोरम ने आरोप लगाया है कि सभी हमलों के पीछे दो समूह “अराम्बाई तेंगगोल” हैं, एक ऐसा समूह जिसे राज्य मशीनरी का समर्थन प्राप्त है और “मेइतेई लीपुन” जो मेइती राष्ट्रवादी एजेंडे वाला संगठन है।

राज्य में हिंसा के चार पीड़ितों की गवाही देते हुए फोरम यह स्थापित करने का प्रयास करता है कि राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है क्योंकि यह अभी भी मुख्यमंत्री द्वारा संचालित राज्य सरकार के हाथों में है, जो राज्य के प्रमुख समुदाय से संबंधित है।

आईए ने चुराचानपुर, चंदेल, कांगपोकपी, इम्पाल पूर्व और इंफाल पश्चिम जिलों में कानून और व्यवस्था और सार्वजनिक व्यवस्था की स्थिति पर पूर्ण नियंत्रण रखने के लिए भारतीय सेना को दिशा-निर्देश देने की प्रार्थना की है। इसने आगे मणिपुर में आदिवासी समुदाय पर हमलों के लिए जिम्मेदार लोगों की स्वतंत्र रूप से जांच करने और उन पर मुकदमा चलाने के लिए एक एसआईटी की स्थापना की मांग की। आईए “अराम्बाई तेंगगोल” के प्रमुख कौरौंगनबा खुमान और “मीतेई लीपुन” के अध्यक्ष एम प्रमोत सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने के लिए भी प्रार्थना की गई। साथ ही इसने भारत संघ और मणिपुर राज्य से अन्य बातों के साथ-साथ हमलों में मारे गए आदिवासियों के निकटतम परिजनों को भुगतान किए जाने के लिए संयुक्त मुआवजे की भी मांग की।

पीठ ने कोर्ट की छुट्टियों में आईए की याचिका पर सुनवाई करने में अपनी अनिच्छा व्यक्त की। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यह विशुद्ध रूप से कानून और व्यवस्था की स्थिति है। सेना के हस्तक्षेप के लिए आदेश पारित करने के लिए अदालत की आवश्यकता नहीं है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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