राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा: हिंमत बिश्व सरमा की बेशर्मी का सच

भारत जोड़ो न्याय यात्रा के असम प्रवेश करते ही मुख्यमंत्री हिमंत बिश्व सरमा ने जैसी प्रतिक्रियाएं दीं हैं उससे यह प्रतीत होता है कि यहां सब कुछ ठीक नहीं है। मुख्यमंत्री द्वारा दिये गए वक्तव्य किसी सरकार के प्रतिनिधि से ज्यादा व्यक्तिगत खुन्नस की प्रतिध्वनि ज्यादा लगते हैं। मणिपुर, नागालैंड  में भारत जोड़ो न्याय यात्रा को मिले अभूतपूर्व प्यार और समर्थन ने हिमंत बिश्व सरमा की नींद उड़ा ही रखी थी, जिनको भाजपा ने नॉर्थ-ईस्ट प्रदेशों को साधने का जिम्मा भी सौप रखा है।

उपरोक्त कारणों से उपजी उनकी इस खीझ की परिणति बदले की भावना की हद तक जाकर देखने को तब मिली जब राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा असम पहुंची। यात्रा के असम प्रवेश के पहले ही दिन उमड़े जन समर्थन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री के एक कार्यक्रम में पहुंची महिलाओं ने यह पता लगते ही कि राहुल गांधी आये हैं, वे राहुल गांधी को देखने-सुनने के लिए वहां से उल्टे पांव दौड़ पड़ी थीं।

राहुल गांधी की इस लोकप्रियता से बौखलाए हिमंत बिश्व सरमा ने गुस्से से भरा वक्तव्य देते हुए तब कहा कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा गौहाटी में प्रवेश ना करे क्योंकि यहां मेडिकल कॉलेज, अस्पताल आदि हैं। वे बाहर-बाहर जाएं तो हमें कोई दिक्कत नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि अगर वे शहर में घुसने की कोशिश करेंगे तो हम कानून-व्यवस्था के उलंघन का मुकदमा लिख लेंगे लेकिन अभी नहीं बल्कि दो-तीन महीने बाद गिरफ्तार कर लेंगे। यह एक प्रत्यक्ष धमकी थी।

इन गीदड़भभकियों से यात्रा और उसके यात्री डरने से रहे, इसलिए यात्रा अपने पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के तहत आगे बढ़ती रही। पुलिस ने यहां-वहां बैरिकेटिंग कर उसे रोकना चाहा, जिसे हटा कर यात्री स्वतः आगे बढ़ गए। परिणाम स्वरूप सरकार के निर्देश पर पुलिस ने यात्रा के मुख्य व्यवस्थापक के.बी बैजू के खिलाफ कानून-व्यवस्था के उल्लंघन की एफआईआर भी दर्ज किया जो एसपीजी के उच्च अधिकारी भी रह चुके हैं।

उसी शाम सरकारी संरक्षण में कुछ भाजपाई किराए के टट्टुओं को भेज कर रात के अंधेरे में भारत जोड़ो यात्रा के स्वागत में लगाये गए पोस्टर और प्लेकार्डस को तोड़ा-फोड़ा गया। यहां तक कि यात्रा की गाड़ियों पर पथराव भी किया गया जिससे कुछ गाड़ियों के शीशे भी टूट गए। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए राहुल गांधी ने कहा कि यह यात्रा इस देश को अधिनायकवाद से न्याय दिलाने का संघर्ष है जिसे कोई भी सरकार अपनी ऐसी टुटपुंजिया हरकतों से नहीं रोक पाएगी।

यात्रा के अगले ही दिन कुछ भाजपा के कार्यकर्ताओं ने मोदी और जै श्रीराम के नारे लगाते हुए पुनः व्यवधान डालने की कोशिश की। इस मौके पर राहुल गांधी स्वयं बस से उतरे लेकिन प्रदर्शनकारी शीघ्र ही भाग खड़े हुए। हालांकि जाते-जाते राहुल गांधी उनके लिए फ्लाइंग किस हवा में उछलते हुए भी दिखे। इस घटना के बाद मुख्यमंत्री हिमंत बिश्व सरमा ने अपना सुर कुछ बदला और यात्रा को सुरक्षा देने की बात कही, लेकिन यह सिर्फ एक धोखा था जो अगले ही दिन उजागर हो गया।

22 जनवरी को जब नरेंद्र मोदी अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कर रहे थे और संघ-भाजपा पूरे देश को राममय बना कर सरकारी खर्च पर महोत्सव मना रहे थे। जब मोदी सरकार पूरे देश का ध्यान सिर्फ अयोध्या पर केंद्रित करने का हर जतन कर रह थी।

उधर असम में राहुल गांधी को उसी बीच शंकरदेव मंदिर जाने से रोक दिया गया और सरकार ने उनको दी गई पूर्व अनुमति को रद्द कर दिया। जबकि राहुल गांधी अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत नौगांव स्थित श्रीमन्त शंकरदेव की जन्मस्थली बताद्रवा सत्र जा रहे थे। आश्चर्यजनक रूप से सरकार ने अनुमति रद्द करने और उन्हें वहां न जाने देने के पीछे जो कारण बताया वह सफेद झूठ निकला।

सरकार ने कारण बताया कि मंदिर पर भारी भीड़ होने कारण उन्हें वहां जाने की इजाजत नहीं दी जा सकती, जबकि वहां ऐसा कुछ भी नहीं था। जब कांग्रेस के क्षेत्रीय सांसद और सदन के उपनेता गौरव गोगोई मन्दिर प्रांगण गए तो उन्हें वहां शांति दिखी और वहां मंदिर के लोग राहुल गांधी के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे।

भारत जोड़ो न्याय यात्रा रोके जाने पर सड़क पर ही धरनारत राहुल गांधी ने सरकारी अधिकारियों को सिर्फ अकेले ही मंदिर जाने का प्रस्ताव दिया लेकिन उन्होंने इसकी भी अनुमति नहीं दी। परिणामतः राहुल गांधी ने मंदिर को दूर से ही प्रणाम किया और पुनः आगमन का वादा किया, इस तरह भारत जोड़ो न्याय यात्रा ने आगे प्रस्थान किया।

हम हिमंत बिश्व सरमा के इस हद तक प्रतिक्रियावादी आचरण के कुछ खास पहलुओं पर बात करेंगे। उनके आकाओं द्वारा देश की सरकार का दुरुपयोग जिस तरह खुलेआम बहुसंख्यक समुदाय की धार्मिक भावनाओं को उभारने के लिए किया जा रहा है वह एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में कल्पनातीत है।

मोदी सरकार, भाजपा और उनकी मीडिया द्वारा सभी विपक्षी दलों को रामद्रोही ठहराने का खुला अभियान संचालित किया जा रहा है। मोदी सरकार ने राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर को एक राजनीतिक आयोजन में तब्दील कर दिया है। ऐसे में विपक्ष की राजनीति के सबसे लोकप्रिय चेहरे राहुल गांधी भला उसी दिन कैसे किसी मंदिर में जा सकते हैं?

इससे उन्हें रोकना भाजपा की राजनीति का अभिन्न हिस्सा है ताकि वे उन्हें हिन्दू विरोधी घोषित करने के अपने एजेंडे को धार दे सकें। भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा पर नरेंद्र मोदी, योगी और मोहन भागवत के भाषण ने इस पुनीत अवसर के राजनैतिक उद्देश्य को स्वयं बेनकाब कर दिया है। जब तक जनता इसके उन्माद से बाहर निकलेगी तो उम्मीद है कि ये उसे रामनवमी पर भी एक और बड़ी धर्मान्ध खुराक देने की भरसक कोशिश करेंगे।

जहां तक बात हिमंत बिश्व सरमा के इस उच्छृंखल और घटिया आचरण की है तो उसकी पृष्ठभूमि भी कांग्रेस काल के उनके अतीत से जुड़ी हुई है। तमाम घोटालों में नाम आने और ईडी-सीबीआइ द्वारा तलब होने तथा भाजपा में शामिल होने से पहले 2013-2015 के बीच हिमंत बिश्व सरमा ने भ्रष्टाचार से जुटाए अकूत धन के सहारे तरुण गोगोई की सरकार को अस्थिर कर प्रदेश की सत्ता में आसानी से फेरबदल का सपना संजोया था जिसके जरिए वे मुख्यमंत्री बनना चाहते थे।

इसके लिए उन्होंने पार्टी के नौ विधायकों को खरीद कर कांग्रेस नेतृत्व पर दबाव डालने की कोशिश की, कि तरुण गोगोई सरकार के खिलाफ विधयकों में आक्रोश व्याप्त है, लिहाजा मुख्यमंत्री बदला जाय। पार्टी के केंद्रीय नेता के बतौर जब राहुल गांधी ने इस पर कान नहीं दिया तो इन लोगों ने कुछ महीने शांत रहने के बाद पुनः विधायकों को संगठित कर नेतृत्व पर निर्णायक दबाव बनाने की कोशिश शुरू की थी।

कुछ विश्वस्त सूत्र यहां तक कहते हैं कि हिमंत बिश्व सरमा ने एक तत्कालीन केंद्रीय पार्टी प्रतिनिधि को भी पैसे के बल पर अपने पक्ष में कर लिया था, जिनकी असम में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी थी। ऐसा बताया जाता है कि उन्होंने ही दबाव बनाने की इस रणनीति को हरी झंडी दी थी ताकि इसको आधार बना कर केंद्रीय नेतृत्व को मुख्यमंत्री बदलने के लिए कहा जा सके या उसकी सहमति ली जा सके।

जब पानी सर से ऊपर बहने लगा तो राहुल गांधी ने असम के मुख्य पार्टी नेतृत्व और असंतुष्टों के अगुवा यानी हिमंत बिश्व सरमा को दिल्ली तलब किया था।

हिमंत बिश्व सरमा जो कहानी बताते हैं कि उनको सुनने की जगह राहुल गांधी अपने कुत्ते पर ध्यान दे रहे थे, वह इसी बैठक की मजेदार सचाई है। मतलब साफ था कि राहुल गांधी ऐसे आस्तीन में छुपे गद्दारों की शिनाख्त अपनी दूरदर्शिता से कर चुके थे। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ही रहेंगे, जिसको पार्टी छोड़ना हो वह छोड सकता है लेकिन हम सरकार के नेतृत्व में कोई बदलाव नहीं करने वाले।

अपने स्वाभव के मुताबिक़ राहुल गांधी किसी दबाव में राजनीति नहीं करते और न ही गलत विचारों के साथ कोई समझौता करते हैं, चाहे उसकी कीमत राजनैतिक क्षति के रूप में ही क्यों न उठानी पड़े। गलत को स्वीकार करना और उसके आगे अवसरवादी सरेंडर करना उनके संस्कारों का हिस्सा नहीं है।

इस घटनाक्रम का परिणाम यह हुआ कि आसन्न विधानसभा चुनाव आते ही हिमंत बिश्व सरमा अपने सहयोगियों सहित चुनाव पूर्व ही भाजपा में चले आये। आज वे उनके दुलारे हैं जिन्हें राहुल गांधी ने पार्टी की गंदगी कह कर किनारे कर दिया था।

बेशक! उस वक्त के आसन्न चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस के इस भीतरघात और हिमंत बिश्व सरमा के धन शक्ति को बटोर कर सत्ता हासिल कर ली।

फिर भी भाजपा ने हिमंत बिश्व सरमा को वेटिंग लिस्ट में ही रखा और सरकार बनते ही असम गण परिषद से 2011 में भाजपा में आये सर्वानंद सोनेवाल को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी। 

मोदी और शाह के लिए हिमंत बिश्व सरमा की इस तोड़-फोड़ करने वाली छल-छद्म की क्षमता काफी काम की थी जिसका उन्होंने आगे भरपूर फायदा उठाया और पिछले चुनाव में जीत के उपहार स्वरूप हिमंत बिश्व सरमा को मुख्यमंत्री बनाया। उन्हें पूर्वोत्तर प्रदेशों का भी जिम्मा भाजपा ने सौंप रखा है।

उपरोक्त घटनाक्रम यह समझने के लिए काफी है कि असम में भारत जोड़ो यात्रा के साथ हिमंत सरकार क्यों इस तरह का दुर्भावनापूर्ण व्यवहार कर रही है। कुल मिलाकर बात इतनी है कि करेले को चढ़ने के लिए एक अदद नीम नसीब हुई है तो यह सब देखना कोई आश्चर्यजनक नहीं होना चाहिये। राहुल गांधी और गांधी परिवार के प्रति विषवमन से हिमंत अपनी निजी खीझ निकालने के साथ-साथ अमित शाह और मोदी की शाबाशी भी उत्तरोत्तर प्राप्त कर रहे हैं।

लेकिन जो कुछ भी असम में भारत जोड़ो यात्रा के साथ घटित हुआ है वह क्या किसी भी सरकार की राजनैतिक प्रतिद्वंदिता और व्यक्तिगत खुन्नस के आधार पर जायज ठहराया जा सकता है? क्या इससे किसी सरकार को लोकतंत्रतिक अधिकारों के अपहरण की इस तरह खुलेआम इजाजत दी जा सकती है? क्या अपने आकाओं को खुश करने में जिस तरह हिमंत बिश्व सरमा सारी हदें तोड़ रहे हैं उसे असम की जनता यूं ही सहन कर लेगी?

इसका उत्तर जनता ने जगह-जगह प्रतिवाद से दिया है और इसे तानाशाही करार दिया है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा भाजपा और हिमंत बिश्व सरमा की इस खीझ के बावजूद अपनी सफलता की ओर क्रमशः कदम बढाती जा रही है। यह यात्रा जिन उद्देश्यों को लेकर निकली है उसके आगे फिलहाल भाजपा और उसकी सरकरें अपने आचरण मात्र से स्वतः बेनकाब होने को अभिशप्त होती प्रतीत हो रही हैं।

एक तरफ जहां वोट की कीमत पर भाजपा भगवान राम की मर्यादाओं को तार-तार करती हुई दिख रही है तथा सामाजिक-राजनैतिक अपराधियों की संरक्षक बन विधर्मियों को सत्ता का सुरक्षा कवच प्रदान कर रही है, वहीं राहुल गांधी बहुत कुछ दांव पर लगा कर भारत की राजनीतिक मर्यादा को बचाने की जंग में उतरे हैं।

वे एक निडर योद्धा की तरह इस जंग में त्याग, बलिदान, सत्य और न्याय के लिए नरेंद्र मोदी की एकाधिकारवादी और निरंकुश हो चुकी सत्ता से लोकतंत्र और संविधान के मूल्यों की रक्षा के संघर्ष का प्रतीक बन कर हमारी उम्मीद की लौ जलाए हुए हैं।

(क्रांति शुक्ल, वर्ल्ड विजन फाउंडेशन के निदेशक और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य हैं।)

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