इजराइल के युद्ध अपराधों को जायज ठहराने के लिए मीडिया ने बच्चों की नृशंस हत्या का झूठ फैलाया

लगभग हर ब्रिटिश अखबार ने इस सप्ताह खबर दी कि हमास लड़ाकों ने पिछले सप्ताहांत किए हमले में 40 बच्चों की नृशंस तरीके से हत्या की। अधिकांश ने यह खबर मुखपृष्ठ पर दी।

यह हमास की बर्बरता के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल किया गया और गज़ा के दमन और फलिस्तीनियों की हत्याओं को न्यायोचित्त करार देने के लिए किया गया।

पर बाद में इस दावे के समर्थन में कोई प्रमाण सामने नहीं आया और पत्रकार और राजनीतिज्ञ इससे भाग रहे हैं। व्हाइट हाउस को बुधवार को राष्ट्रपति जो बाइडेन की टिप्पणियां वापस लेनी पड़ीं। उन्होंने “आतंकवादियों द्वारा बच्चों की हत्या करते तस्वीरें” देखने का दावा किया था। 

एक प्रवक्ता ने वाशिंगटन पोस्ट अखबार से कहा कि बाइडेन ने ऐसी कोई तस्वीरें नहीं देखी हैं। प्रवक्ता के अनुसार उनका दावा इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और समाचारों में किए दावों पर आधारित था।

लेकिन इस खंडन को शायद ही किसी ने महत्व दिया होगा और वैसे भी जो नुकसान होना था, हो चुका है। क़तर के स्कॉलर मार्क ओवेन जोन्स ने कहा कि इस अपुष्ट रिपोर्ट को एक्स (ट्विटर) पर 24 घंटों में चार करोड़ 40 लाख से ज़्यादा बार देखा गया, तीन लाख लाइक मिले और एक लाख बार रिपोस्ट किया गया।

यह एक और झूठ था युद्ध शुरू करने के लिए। बच्चों की नृशंस हत्या का दावा गज़ा सीमा के निकट कफ़र अज़ा नामक जगह के पत्रकारों के मंगलवार के दौरे के बाद सामने आया, जहां हमास ने हमला किया था।

एक इजराइली नेटवर्क आई-24 न्यूज के संवाददाताओं ने सबसे पहले यह दावा किया, उनके अनुसार बच्चों के शव बरामद करने वाले सैनिकों ने उन्हें बताया।

मंगलवार की शाम स्काई के साथ साक्षात्कार में इजराइली अर्थ मंत्री नीर बरकत ने दावा दोहराया, “हमने अभी देखा.. हमने 40 छोटे बच्चों के बारे में सुना। उनमें से कुछ को जिंदा जलाया गया। कुछ के सिर काटे गए। कुछ के सिर में गोली दागी गई।”

तुर्की की समाचार एजंसी अनदोलु ने सबसे पहले रिपोर्ट किया कि इजराइली सेना इस दावे की पुष्टि नहीं कर रही। सेना ने बाद में अन्य संस्थानों को बताया कि वह इन रिपोर्टों की पुष्टि नहीं करेगी क्योंकि यह “मृतकों के प्रति असम्मानजनक होगा।”  

कम से कम दो अन्य पत्रकारों ने बाद में रिपोर्टों से संबंधित ट्वीट डिलीट किए। गार्जियन रिपोर्टर बेथन मैकरनन ने ट्वीट किया, “आज के यूके मुखपृष्ठ देखें। “कफ़र अज़ा में 40 बच्चों की हमास ने की नृशंस हत्या” जैसी सुर्खियों ने मुझे अंदर तक हिला दिया है।”

“हां, कई बच्चों की हत्या हुई है। हां, हमले में कई नृशंस हत्याएं हुई हैं। लेकिन, यह दावा अपुष्ट है और गैर जिम्मेदाराना।” 

इजराइल झूठ बोलने का आदी है। 9 जून 2006 को इजराइली सेनाओं ने गज़ा बीच पर सात नागरिकों को उड़ा दिया। इसमें बच गई एक दस वर्षीय हुदा घालिया की अपने मृत परिजनों के बीच चीखों का फुटेज इतना हृदय विदारक था कि उन्होंने माफी भी मांगी।

लेकिन, यह क्षणिक ही था। सेना ने बीच पर मौतों की जांच के लिए एक कमेटी गठित की और तुरंत इसकी ज़िम्मेवारी से खुद को मुक्त कर दिया। कमेटी ने माना कि सेना ने इजराइल से बेट लहिया बीच के निकट छह बम दागे लेकिन साथ में जोड़ा कि परिवार की मौत एक अन्य विस्फोट, जो शायद हमास के बिछाए माइन से, हुई। यह झूठ था।

एक इजराइल समर्थक अमरीकी दबाव समूह, कैमरा, जो मीडिया कवरेज को प्रभावित करने की कोशिश करता है, ने यहां तक सुझाने की कोशिश की कि हुदा घालिया के चीत्कार की फिल्म फ़र्ज़ी थी। उसने पूछा, “क्या शव अपनी जगह से हिलाए गए थे, क्या लड़की को कैमरा के लिए सबकुछ करने के लिए कहा गया था, क्या वीडियो फ़र्ज़ी था?” यह दूसरा झूठ था।

बच्चों की नृशंस हत्या की कहानी की एक और मिसाल है। सद्दाम हुसैन की सेनाओं के कुवैत पर कब्ज़े के बाद इराक के खिलाफ अमरीकी युद्ध को न्यायोचित्त ठहराने के लिए 1990 में कुवैती बच्चों की कहानी की बात करें। वैसे इसकी जड़ें प्रथम विश्व युद्ध तक जाती हैं जब ब्रिटिश प्रोपेगेंडा ने जर्मनों पर बेलजियम के बच्चों को हवा में उछालकर संगीनों पर पकड़ने का आरोप लगाया था।

खाड़ी युद्ध संस्करण में इराक़ी सैनिकों के एक कुवैती अस्पताल में जाकर समय से पूर्व जन्मे बच्चों का वार्ड खोजने का किस्सा था। पश्चिमी दुष्प्रचार ने दावा किया कि बच्चों को इन्क्यूबेटरों से निकाला गया ताकि इन्क्यूबेटर वापस इराक भेजे जा सकें।

यह खबर पहले डेली टेलीग्राफ ने 5 सितंबर को छपी। लेकिन कहानी के प्रभावी होने के लिए इसमें और मसाला होना था। अफसोस मनाते अभिभावकों के इंटरव्यू या तस्वीरें नहीं थीं। यह बाद में मुहैया कराई गईं।

सिटीजंस फॉर ए फ्री कुवैत नामक एक संस्था को कुवैती निर्वासित सरकार वित्त पोषण कर रही थी। इसने इराक को कुवैत से निकालने के लिए पश्चिमी हस्तक्षेप हेतु अमेरिका की जनसंपर्क कंपनी हिल एंड नॉलटन से 8 मिलियन पौंड का करार किया।

अमरीकी कांग्रेस के मानवाधिकार समर्थकों की बैठक अक्टूबर में थी। हिल एंड नॉलटन ने एक 15 वर्षीय कुवैती लड़की को सांसदों को बच्चों की कहानी बताने के लिए प्रस्तुत किया। जैसा कि फिलिप नाइटली ने लिखा, “उसने यह काम कुशलता से किया, सही मौके पर आंखों में पानी भर आना, आवाज टूटना। सांसदों की कमेटी उसे केवल न्यारा के रूप में जान रही थी और टीवी पर दिखे उसके बयान में सांसदों के चेहरे पर गुस्सा और संकल्प दिख रहा था।”

राष्ट्रपति बुश ने इस किस्से का अगले पांच सप्ताह में छह बार ज़िक्र किया सद्दाम हुसैन शासन की बुराई की मिसाल के रूप में।

सद्दाम को कुवैत से निकालने के लिए सैन्य कार्रवाई को मंजूरी देने के मुद्दे पर सीनेट में बहस के दौरान सात सदस्यों ने इन्क्यूबेटर बच्चों के किस्से का ज़िक्र किया। युद्ध के पक्ष में मार्जिन पांच वोटों का था।

सच दो साल बाद सामने आया। यह किस्सा झूठ था। जिस किशोरी न्यारा को हिल एंड नॉलटन ने सिखाया-पढ़ाया था और रिहर्सल कारवाई थी, वह वास्तव में कुवैत की अमरीकी एम्बेसेडर की बेटी थी। तब तक युद्ध कबका खत्म हो चुका था।

वियतनाम में अमरीकी युद्ध अगस्त 1964 में एक फर्जी खबर के बाद तेज हुआ था। अमरीकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने दावा किया था कि उत्तरी वियतनामी टारपीडो नौकाओं ने दो बार अमरीकी मैडॉक्स पर टॉनकिन की खाड़ी में बेवजह हमला किया था।

कांग्रेस ने जॉनसन को दक्षिण पूर्वी एशिया में युद्ध का पूरे अधिकार दे दिए। बाद में पता चल कि मैडॉक्स उत्तरी वियतनाम के खिलाफ गुप्त अभियान के बाद लौट रहा था और दूसरा हमला हुआ ही नहीं। लेकिन जॉनसन को युद्ध की मंजूरी मिल चुकी थी।

कफ़र अज़ा, कुवैत और बेल्जियम में नागरिकों की मौत हुई थी। लेकिन यह काफी नहीं था। मृत बच्चों के बारे में झूठ की जरूरत पड़ती है दुश्मनों को अमानवीय, जानवर दिखाने के लिए जिनका बेझिझक वध किया जा सके। उनका कहना है कि गज़ा के मलबे से निकाले जा रहे मृत फ़लस्तीनी बच्चों के प्रमाण की अनदेखी की जा सकती है। यह हमारी तरह इंसान नहीं हैं, असभ्य हैं।

और वह बड़े झूठों का सहारा लेते हैं जैसे 1948 में बसने वालों ने वह ज़मीन ली थी जो खाली थी और फलस्तीनियों की थी ही नहीं। जो ऐसे झूठ गढ़ते और फैलाते हैं, खुद हत्या में शामिल हैं।

(Socialistworker.co.uk पर 12 अक्तूबर को प्रकाशित लेख साभार। अनुवाद महेश राजपूत।)

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