किसानों के क्रूर दमन के खिलाफ आज काला दिवस, 14 मार्च को रामलीला मैदान में महापंचायत

संयुक्त किसान मोर्चा ने एक सप्ताह से हरियाणा बॉर्डर पर जारी किसानों के क्रूर दमन, जिसमें एक युवा किसान की मौत हो गई और अनेक गम्भीर रूप से घायल हैं, के खिलाफ आज 23 फरवरी को राष्ट्रव्यापी आक्रोश और काला दिवस का आह्वान किया है। किसान पूरे देश में गृहमंत्री अमित शाह और हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टर का पुतला जलाएंगे और उनके इस्तीफे की मांग करेंगे।

इसी कड़ी में 26 फरवरी को जिस दिन आबूधाबी में डब्ल्यूटीओ (WTO) की बैठक शुरू हो रही है, किसान पूरे देश में अपने ट्रैक्टर लेकर हाइवे पर उतरेंगे और मांग करेंगे कि खेती को डब्ल्यूटीओ से बाहर किया जाय क्योंकि उसकी शर्तें किसानों की एमएसपी (MSP) और गरीबों की पीडीएस (PDS) व्यवस्था के खिलाफ है।

14 मार्च को, जब सम्भवतः आम-चुनाव का बिगुल बज चुका होगा, दिल्ली के राम लीला मैदान में विराट किसान-मजदूर महापंचायत करके देश के किसान-मजदूर 2024 का एजेंडा सेट करेंगे तथा 10 साल की वायदाखिलाफी और दमन का हिसाब चुकता करने के लिए मोदी सरकार की विदाई के अभियान में उतरने का ऐलान करेंगे।

संयुक्त किसान मोर्चा की राष्ट्रीय समन्वय समिति की कल चंडीगढ़ में हुई बैठक बेहद खास रही। ऐतिहासिक किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले लगभग सारे शीर्ष नेता 2 साल के बाद फिर एक साथ एक मंच पर मौजूद थे। दिसम्बर 2021 में आंदोलन खत्म होने के बाद से किसान-संगठनों में जो अनवरत बिखराव की प्रक्रिया चल रही थी, कल न सिर्फ उस पर विराम लग गया बल्कि वृहत्तर एकता की सकारात्मक प्रक्रिया इस बैठक से शुरू ही गयी। संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने आज देश के सभी किसान संगठनों को फिर एक मंच पर ले आने के लिए 6 सदस्यीय कमेटी का गठन किया जिसमें हन्नान मौला, बलबीर सिंह राजेवाल, डॉ. दर्शन पाल, जोगिंदर सिंह उगराहाँ समेत वरिष्ठ नेता हैं।

उधर किसान युवक की शहादत और तमाम किसानों के बुरी तरह जख्मी होने के बाद चौतरफा किसान-आक्रोश के भंवर में घिरती मोदी सरकार ने किसानों से अगले राउंड की वार्ता की पेशकश की है। अब मोदी जी के कृषिमंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा है कि वे MSP पर बातचीत को तैयार हैं। शायद सरकार को किसान की जान लेने के बाद समझ में आया है कि MSP भी उनका मुद्दा है, जबकि यह उनके एजेंडे में पहले दिन से सबसे ऊपर है !

दरअसल, पिछले किसान आंदोलन के समय की आजमाई हुई रणनीति (tactics) मोदी जी फिर आजमा रहे हैं-आंदोलन को अटकाने, भटकाने और लटकाने की! उनकी सरकार का बातचीत किसान संगठनों के एक धड़े के साथ चल रहा है, जबकि आंदोलन की राह पर एक बार फिर सारे ही संगठन और उनका सबसे बड़ा मंच संयुक्त किसान मोर्चा स्वयं है। यही यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि मोदी सरकार पहले की ही तरह किसानों की पीड़ा और उनके मुद्दों को लेकर रत्ती भर भी गम्भीर नहीं है और अपनी पुरानी धूर्तता पर कायम है। वह किसान संगठनों के बीच की खांई को चौड़ा करना चाहती है और एक धड़े से आधी अधूरी मांगों पर अपनी पसन्द के एजेंडा पर समझौते का माहौल बना कर चुनाव में जाना चाहती है।

क्या 2022 यूपी चुनाव के ठीक पूर्व 3 कानून वापसी और एमएसपी आदि पर कुछ गोलमटोल वायदों की तर्ज पर इस बार भी चुनाव पूर्व कुछ जुमलेबाजी करके मोदी किसानों को बरगलाने में सफल होंगे ?

इसके आसार कम दिखते हैं, क्योंकि किसान अब एमएसपी की कानूनी गारंटी और कर्ज़माफ़ी जैसी मूलभूत माँगों से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करेंगे। एक सप्ताह से हरियाणा बॉर्डर पर जारी संवेदनहीनता, क्रूर दमन और शहादतों ने किसानों को सरकार के खिलाफ और आक्रोश से भर दिया है।

इसलिए कोई भी किसान-संगठन अव्वलन तो मूल मांगों से कम पर किसी समझौते के लिए तैयार नहीं होगा और जो ऐसा करेगा वह सरकारी एजेंट के बतौर किसानों के बीच बदनाम हो जाने के लिए अभिशप्त है।

इसीलिए मोदी सरकार अब तक अपने खेल में कामयाब नहीं हो पाई है। पिछले राउंड की वार्ता में पंजाब के किसानों को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जाल में फंसाने, किसान-आंदोलन को बांट कर एक दूसरे से लड़ा देने और एमएसपी की कानूनी गारंटी तथा कर्जमाफी की मूल मांगों से भटकाने की मोदी सरकार की शातिर चाल को किसानों ने विफल कर दिया है।

यह साफ है कि किसानों के तमाम संगठन एक बार फिर बड़ी लड़ाई की ओर बढ़ रहे हैं। वे अलग अलग रास्तों से, लेकिन एक ही दिशा की ओर बढ़ रहे हैं और किसान-आंदोलन एक बार फिर देश में सार्वजनिक विमर्श के केंद्र में आ गया है।

भाजपा- मोदी के लिए किसान-आंदोलन की इससे गलत समय नहीं हो सकती थी। राममय माहौल में जब सरकार विपक्षी गठबंधन में तोड़फोड़ और उनके “भ्रष्ट” नेताओं की धर-पकड़ को रोज हेडलाइन बनाने में सफल हो रही थी और इसी की लहर पर सवार होकर चुनाव में उतरने की तैयारी में थी, तब किसानों से हो रही मुठभेड़ और तेज होते किसान-आंदोलन की खबरों ने अचानक पूरा माहौल बदल दिया है और विमर्श को उल्टी दिशा में मोड़ दिया है। विभाजनकारी, भावनात्मक विमर्श द्वारा जनता के जीवन के जिन ठोस सवालों को चुनाव तक मोड़ देने की साजिश थी, वे फिर सतह पर आ गए हैं।

एक बार फिर 13 महीने चले ऐतिहासिक किसान आंदोलन, उस पर मोदी सरकार के बर्बर दमन-साढ़े सात सौ से ऊपर किसानों की शहादत, लखीमपुर किसान जनसंहार के आरोपी अजय मिश्रा टेनी की मोदी मन्त्रिमण्डल में आज भी मौजूदगी, एमएसपी समेत तमाम मुद्दों पर समझौते के बावजूद मोदी की किसानों से वायदाखिलाफी की याद फिर ताजा हो गयी है। ताजा आंदोलन में सरकारी बर्बरता तथा किसानों की कुर्बानी के और नए अध्याय रोज जुड़ते जा रहे हैं।

यह बहस फिर चल पड़ी है कि कारपोरेट का 15 लाख करोड़ कर्ज़ माफ करने वाली मोदी सरकार किसानों को न उनके फसलों की वाजिब कीमत-एमएसपी की गारंटी देने को तैयार है, न वाजिब कीमत के अभाव में कर्ज़ में डूबे, आत्महत्या करते किसानों का कर्ज़ माफ करने को-क्योंकि यह किसान विरोधी, कॉर्पोरेट/ कम्पनी सरकार है, अडानी-अम्बानी की सरकार है।

प्रतीकों की राजनीति के शातिर खिलाड़ी मोदी जी ने शायद सोचा था कि जाट किसान राजनेता चौ. चरण सिंह और किसान- हितैषी विशेषज्ञ डॉ. स्वमीनाथन को भारत रत्न देकर तथा जयंत चौधरी को तोड़कर वह किसानों को एक बार फिर बरगलाने में सफल हो जाएंगे। लेकिन पेट की आग के आगे सारी भावनात्मक प्रतीकात्मकता काफूर हो गयी। किसानों से यह धूर्तता छिपी न रह सकी कि एक ओर आप स्वामीनाथन को भारत रत्न देने का पाखण्ड कर रहे हैं, दूसरी ओर किसानों के हित में उनके सबसे महत्वपूर्ण अवदान को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। स्वामीनाथन आयोग की संस्तुति लागू करने की मांग करने पर किसानों के ऊपर लाठी गोली चलाई जा रही हैं!

शम्भू बॉर्डर को जिस तरह भाजपा सरकार ने दुश्मन सेना के खिलाफ मोर्चे में तब्दील कर दिया है और पंजाब के किसानों को अपने ही देश के हरियाणा और दिल्ली में प्रवेश से रोक दिया है, वह एक अल्पसंख्यक बहुल, संवेदनशील सीमावर्ती राज्य में भारी तनाव पैदा करके आग से खेल रही है और देश को गम्भीर खतरे की ओर धकेल रही है।

अग्निवीर योजना और महिला पहलवानों के खिलाफ अन्याय जैसे मसलों को लेकर पंजाब-हरियाणा-प. उत्तर प्रदेश की समूची पट्टी में पहले से ही भारी आक्रोश है, अब किसानों के ऊपर दमन और सत्यपाल मलिक जैसे नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करके सरकार आग में घी डालने का काम कर रही है और अपनी कब्र खोद रही है।

आशा की जानी चाहिए कि जिस तरह 2020-21 के नाजुक दौर में फासीवादी आक्रामकता के बेलगाम घोड़े को किसानों ने अपने ऐतिहासिक आंदोलन से लगाम लगाई थी, उसी तरह 2024 में किसान आंदोलन पार्ट-2 मोदी राज की पुनर्वापसी रोकने में अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभाएगा और “देश बचाने, लोकतंत्र बचाने तथा खेती बचाने” के अपने मिशन को अंजाम तक पहुंचाएगा।

(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

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