मोदी के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष के हिसाब से टमाटर के दामों में लगी आग का कोई अर्थ नहीं

“सावन के अंधे को हर तरफ हरा ही हरा नजर आता है”- यह कहावत भले ही आपने अपने स्कूली जीवन में पढ़ रखी हो, लेकिन इसकी बानगी हम आज भी जीवन के हर क्षेत्र में देख सकते हैं। देश में 8,000-15,000 रुपये मूल्य के रेफ्रिजरेटर की बिक्री में भारी गिरावट देखी जा रही है, लेकिन 1-1.50 लाख रुपये मूल्य के फ्रिज की बिक्री रिकॉर्ड स्तर पर देखने को मिल रही है। कल ही अखबार की सुर्ख़ियों में मर्सिडीज की हाई-एंड मॉडल के बारे में सूचना थी कि 1.5 करोड़ रुपये और ऊपर की लक्जरी गाड़ियों के मामले में भारत में मांग सबसे अधिक बनी हुई है। जर्मनी की मर्सिडीज बेंज कार की बिक्री इस साल देश में पहली छमाही में 8,523 की संख्या तक पहुंच गई है। पिछले वर्ष की तुलना में यह 13% अधिक है और आज तक किसी भी छमाही में कंपनी को ऐसा उछाल देखने को नहीं मिला। पिछले साल कंपनी ने इसी अवधि में 7,573 कारें बेची थीं।

लेकिन सबसे बड़ा कमाल 1.5 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के हाई-एंड ब्रांड में देखने को मिला है। मर्सिडीज बेंज को इस रेंज में 54% का उछाल मिला है, और जनवरी-जून में कंपनी 2,000 लक्ज़री कार बेच चुकी है। 

दूसरी तरफ मोदी सरकार 80 करोड़ लोगों को 5 किलो राशन देने का दावा भी जोर-शोर से करती है। लेकिन कोई विपक्षी राज्य की सरकार इसी काम को करे तो उसकी मनाही है। हाल ही में कर्नाटक की राज्य सरकार ने 5 किलो अतिरिक्त अनाज देने के लिए केंद्र के भारतीय खाद्य निगम से मांग की थी, जिसे सरकार ने ठुकरा दिया। ये वे लोग हैं जो न तो फ्रिज खरीद सकते हैं और न ही कार। लेकिन सबसे दुखद तथ्य यह है कि चावल और गेहूं से इंसान सिर्फ जिंदा रह सकता है, लेकिन मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ्य बने रहने के लिए कार्बोहाइड्रेट के अलावा मनुष्य को उचित मात्रा में विटामिन, मिनरल और प्रोटीन तत्वों की भी उतनी ही जरूरत होती है।

टमाटर भी उसी में से एक है। आम भारतीय परिवारों में टमाटर का उपयोग अधिकांश सब्जियों, दाल सहित सलाद में प्रयुक्त होता है। लेकिन टमाटर के दाम पिछले दो सप्ताह से आसमान छू रहे हैं। 10 दिन पहले उपभोक्ता मामलों के विभाग की ओर से सफाई दी गई थी कि 100 रुपये किलो का भाव सप्लाई चैन में व्यवधान की वजह से है। अगले 4-5 दिनों में स्थिति सामान्य हो जाएगी। लेकिन गुरुवार को टमाटर के दाम 100 रुपये प्रति किलो से वापस 20-30 रुपये किलो होने के बजाय 200-240 रुपये किलो तक जा चुके हैं। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भारत में 90% परिवार 25,000 रुपये मासिक आय या इससे कम पर गुजारा कर रहे हैं। इसका अर्थ है 90% परिवार टमाटर खरीदने की स्थिति में ही नहीं हैं।

तमिलनाडु सरकार ने पिछले सप्ताह रियायती दरों पर टमाटर की सार्वजनिक बिक्री की घोषणा की थी। दो दिन पहले केंद्र सरकार ने भी शुक्रवार तक देश के चुनिंदा शहरों में इसी प्रकार की घोषणा की है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ने अंग्रेजी के अखबार में अपने लेख के माध्यम से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) को लेकर जैसी विवेचना प्रस्तुत की है, वह पूरी तरह से मर्सिडीज बेंज के हाई-एंड मॉडल के ग्राहकों के हिसाब से लिखी गई है।

देबरॉय साहब अपने लेख की शुरुआत में ही एक अनोखी मिसाल पेश करते हैं और लेख का अंत भी उसी से करते हैं। वे हमें एक ऐसे बक्से की सैर कराते हैं जिसमें पुराने कैसेट्स और रेडिओ सेट पड़े हैं, जिनका आज कोई मोल नहीं है, भले ही आज से 30 वर्ष पहले इनका काफी मोल था। इसे नजीर बनाते हुए देबरॉय साहब उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में मुद्रास्फीति के निर्धारण के लिए कुछ वस्तुओं पर आज भी जरूरत से ज्यादा महत्व देने को एक भूल के रूप में साबित करने लगते हैं।

उनके अनुसार (बेस ईयर) 2012 से सीपीआई में खाद्य एवं पेय वस्तुओं पर (45.86) वेटेज वर्तमान स्थिति से मेल नहीं खाता। इसके लिए वे खुदरा महंगाई के लिए खाद्य वस्तुओं पर 1960 में 60.9, 1982 में घटाकर 57.0 और 2001 में 46.2 का उदाहरण पेश करते हैं। देबरॉय मानते हैं कि भारत में आर्थिक संपन्नता बढ़ी है और जैसे-जैसे इसमें वृद्धि होती है, खान-पान पर लोगों को कम खर्च करना पड़ता है। इसी को आधार बनाते हुए आपका तर्क है कि खुदरा महंगाई को आंकने के लिए खाद्य-पेय वस्तुओं के वेटेज में कटौती करनी चाहिए, और इसके स्थान पर आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, डिजिटल सेवाओं को ज्यादा वेटेज दिया जाना चाहिए। उन्हें तो सबसे अधिक आश्चर्य अनाज पर 9.69 वेटेज दिए जाने पर है, क्योंकि उनके हिसाब से मोदी सरकार ने तो बड़ी आबादी को पहले ही मुफ्त अनाज के दायरे में ला दिया है। 

उन्हें इंतजार है घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (सीईएस) के आंकड़ों का, यह सर्वेक्षण दो किश्तों में किया जाता है। इसकी एक किश्त जुलाई 2023 में और दूसरी एक साल बाद होनी है। उन्हें अफ़सोस है कि मंत्रालय भी इस पर 3-4 महीने लगाकर दिसंबर 2024 तक जारी करेगा। इसके आधार पर ही सीपीआई में शामिल 260 वस्तुओं के वेटेज में बदलाव संभव हो सकेगा। इसका आशय क्या यह लगाना सही नहीं होगा कि यदि आज उन्हें यह मौका मिल जाये तो वे टमाटर जैसे खाद्य वस्तु को निहायत ही गैर जरूरी वस्तु के रूप में दोयम वेटेज की श्रेणी में नहीं डाल देने वाले हैं? क्या इसे देश के सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक नीति-निर्धारक की चोटी से बैठकर काफी नीचे देखने की समझ न माना जाये?

इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह तो यह है कि चूंकि आज देश उत्तरोत्तर नव-उदारवादी अर्थनीति की गिरफ्त में जा चुका है, और पिछले सात वर्षों से मोदी सरकार की नीतियां बार-बार आपूर्ति पक्ष की अर्थव्यस्था को मजबूती देने की कोशिश में PLI जैसी योजनाओं, कॉर्पोरेट टैक्स में छूट सहित विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए श्रम कानूनों में व्यापक बदलाव की दिशा में आगे बढ़ती जा रही हैं, ऐसे में उनके पास देश की 90% आबादी के लिए 5 किलो अनाज से अधिक कुछ नहीं है।

ऐसा लगता है सरकार, कॉर्पोरेट और नौकरशाही ने इस बात को गहराई से आत्मसात कर लिया है कि अब 5 ट्रिलियन डॉलर से लेकर 30 ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी का सफर वास्तव में देश के चंद करोड़ लोगों और विदेशी पूंजी और तकनीक के सहारे ही करना है। 95% आबादी वैसे भी नाकारा है, उसे देश के बहुमूल्य संपदा, जमीन, खनिज-संपदा से क्या लेना-देना? इनकी जितनी बड़े पैमाने पर लूट होगी, भारत उतनी ही तेजी से विश्वगुरु की दहलीज पर बढ़ने की दिशा में प्रस्थान कर सकता है। ऐसे में खुदरा महंगाई जैसी चीज वास्तव में 2 लाख या 2 करोड़ रुपये प्रति माह कमाने वाले वर्ग के लिए कोई खास मायने नहीं रखती है।

अब आते हैं मौजूदा परिदृश्य पर, जिससे देश की 90% आबादी जूझ रही है। 15 जून, 7 जुलाई और 12 जुलाई को सब्जियों के दाम में आये बदलाव के बारे में आंकड़े प्रस्तुत किये गये हैं। 15 जून तक टमाटर 30-40 रुपये किलो बिक रहा था, 7 जुलाई को 120-140 रुपये किलो और 12 जुलाई तक इसके दाम 240 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गये हैं। फूलगोभी भी 50, 140 से 12 जुलाई तक 280 रुपये किलो जा चुकी है। बीन्स पहले भी महंगे दाम में बिक रहा था, लेकिन इसमें भी 15 जून के 120 रुपये प्रति किलो से भारी उछाल देखा जा रहा है, और 275 रुपये प्रति किलो भाव है।

अदरक भी इस सीजन काफी ऊंचाई पर था, लेकिन इसमें भी 100% की मूल्य वृद्धि पिछले एक माह में देखने को मिली है। 200 रुपये प्रति किलो की जगह आज बाजार भाव 400 रुपये प्रति किलो चल रहा है। 3 महीने पहले तक शिमला मिर्च दिल्ली में 20 रुपये किलो बिक रहा था, क्योंकि पंजाब में किसानों ने इसकी बंपर पैदावार की थी, और 1-2 रुपये किलो के भाव पर भारी घाटा उठाकर वे इसे बेचने के लिए मजबूर थे। लेकिन 15 जून तक दिल्ली में शिमला मिर्च 80 रुपये किलो बिक रहा था, वहीं 7 जुलाई तक 175 और 12 जुलाई को 280 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। पत्ता गोभी 30 फिर 50 और अब 100 रुपये किलो छू चुकी है। मूली ही सबसे सस्ती है जो 50, 70 और अब 80 रुपये किलो बिक रही है। बैंगन भी 100 रुपये किलो के भाव को छू रहा है।

देबरॉय साहब शायद 120 करोड़ भारतीयों को अपनी गिनती में ही नहीं रखते हैं। उन्हें अहसास होता तो वे इस बात को जानते कि आज देश की 80% आबादी ने टमाटर, अदरक खाना ही बंद कर रखा है। इसी तरह चावल, आटा खाने के लिए, दाल के चुनाव में भी उसे बड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। अरहर थाली से बाहर का आइटम हो चुका है। विटामिन और प्रोटीन के अभाव में देश कुपोषित और बीमार हो रहा है।

बीमार और अपाहिज भारत को आप चीन से प्रतिस्पर्धा में खड़ा करने के सपने देखने के लिए स्वतंत्र हैं। आपका सावन आपको मुबारक हो, लेकिन 2024 के अंत तक आप खुदरा महंगाई को निर्धारित करने के लिए देश के नागरिकों की थाली को ही गायब कर देंगे, देश ऐसी अपेक्षा वर्तमान सरकार से नहीं करता है, क्योंकि उसे आपकी तरह उच्च शिखर से देखने की अभी भी आदत नहीं बन पाई है। समय-समय पर उसे खुद को अधिकार-संपन्न करने के लिए जनता की अदालत में आने की अनिवार्यता अभी भी बनी हुई है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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