भारत में मानवाधिकार के हालात पर अमेरिका की वार्षिक रिपोर्ट, मनमानी गिरफ्तारियों और बुलडोजर न्याय पर सवाल

अमेरिकी विदेश विभाग की 2022 में भारत में मानवाधिकार की स्थिति पर जारी एक वार्षिक रिपोर्ट में मनमानी गिरफ़्तारियों, यूएपीए के इस्तेमाल और ‘बुलडोज़र न्याय’ जैसी विभिन्न घटनाओं का ज़िक्र करते हुए भारत में मानवाधिकारों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई है। इसमें प्रयागराज में मुस्लिम कार्यकर्ता जावेद मोहम्मद के घर को प्रयागराज विकास प्राधिकरण द्वारा तोड़ने का भी हवाला दिया गया है।

हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार सोमवार 20 मार्च 23 को वाशिंगटन डीसी में विदेश विभाग की ब्रीफिंग में रिपोर्ट जारी करते समय जब भारत के रिकॉर्ड के बारे में पूछा गया तो लोकतंत्र, मानवाधिकार एवं श्रम ब्यूरो के कार्यवाहक सहायक सचिव एरिन एम. बार्कले ने कहा कि भारत और अमेरिका नियमित रूप से लोकतंत्र और मानवाधिकार पर उच्च स्तरों पर विचार-विमर्श करते हैं।

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, रिपोर्ट और विवरण के स्तर से संकेत मिलता है कि वाशिंगटन न केवल लगभग हर उस बड़ी घटना पर कड़ी नजर रखता है जिसे वह मानवाधिकारों के दायरे में देखता है, बल्कि भारत के मानवाधिकारों के रिकॉर्ड के बारे में चिंताएं भी प्रदर्शित करता है।

बार्कले ने कहा कि हमने भारत से अपने मानवाधिकार दायित्वों और प्रतिबद्धताओं को बनाए रखने के लिए दृढ़ता से आग्रह करना जारी रखा है और जारी रखेंगे। आश्चर्य की बात नहीं है, हम नियमित रूप से अमेरिका और भारत दोनों में सिविल सोसाइटी से मिलते हैं ताकि उनके दृष्टिकोण को सुन सकें और उनके अनुभवों से सीख सकें और हम भारत सरकार को भी उनसे परामर्श करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

मनमानी गिरफ्तारी या हिरासत पर एक खंड में, रिपोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के उपयोग पर बात की है, जिसमें दावा किया गया है कि सिविल सोसाइटी संगठनों ने चिंता व्यक्त की है कि केंद्र सरकार कभी-कभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को हिरासत में लेने के लिए यूएपीए का इस्तेमाल करती है।

रिपोर्ट में कई मामलों का विशेष तौर पर जिक्र किया गया है, जिनमें मानवाधिकार कार्यकर्ता खुर्रम परवेज-मुकदमा शुरू होने से पहले (प्री-ट्रायल) जिनकी हिरासत नई दिल्ली की विशेष एनआईए अदालत द्वारा कम से कम पांच बार बढ़ाई गई है।

इनमें सीएए के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान दिए एक भाषण के चलते उमर खालिद की गिरफ्तारी और एल्गार परिषद-भीमा कोरेगांव विरोध प्रदर्शन से संबंधित साजिश के आरोपों में कैद 16 कार्यकर्ताओं में से अधिकांश को जमानत से इनकार करने संबंधी मामले शामिल हैं।

उचित मुकदमेबाजी से इनकार संबंधी एक खंड में विदेश विभाग ने उन रिपोर्ट्स का हवाला दिया है जिनमें उल्लेख है कि सरकार ने लोगों को उनके निवास स्थान से बेदखल कर दिया, उनकी संपत्ति को जब्त कर लिया या उचित प्रक्रिया या पर्याप्त क्षतिपूर्ति के बिना घरों पर बुलडोज़र चला दिया है।

विशेष तौर पर इसमें मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के हवाले से दावा किया गया है कि सरकार ने इसका इस्तेमाल कथित रूप से मुस्लिम समुदाय से आने वाले मुखर आलोचकों को निशाना बनाने और उनको घरों एवं आजीविका को खत्म करने के लिए किया।

इस संदर्भ में, मुस्लिम कार्यकर्ता जावेद मोहम्मद के घर को प्रयागराज विकास प्राधिकरण द्वारा तोड़ने और जहांगीरपुरी जिले में उत्तरी दिल्ली नगर निगम द्वारा मकान तोड़ने के मामलों का उल्लेख किया गया है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार आम तौर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करती है, लेकिन ऐसे उदाहरण रहे हैं जिनमें सरकार या सरकार के करीबी माने जाने वाले लोगों ने कथित तौर पर सरकार की आलोचना करने वाले मीडिया आउटलेट्स पर दबाव डाला या परेशान किया, जिसमें ऑनलाइन ट्रोलिंग भी शामिल है।

रिपोर्ट में कश्मीर में पत्रकारों की गिरफ्तारी का जिक्र किया गया है। इसमें शरद पवार के बारे में अपमानजनक कविता री-पोस्ट करने के आरोप में मुंबई पुलिस द्वारा केतकी चितले की गिरफ्तारी, दिल्ली पुलिस द्वारा मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी और आव्रजन अधिकारियों द्वारा पुलित्जर पुरस्कार विजेता फोटो पत्रकार सना इरशाद मट्टू को यात्रा करने से रोकने संबंधी मामले शामिल हैं।

रिपोर्ट में ‘इंटरनेट तक पहुंच, इंटरनेट रोक और ऑनलाइन सामग्री की सेंसरशिप’ पर सरकारी प्रतिबंधों को भी उठाया गया है। विदेश विभाग ने उन रिपोर्ट्स का भी हवाला दिया कि सरकार ने ‘निजी संचार को मनमाने ढंग से या गैरकानूनी रूप से या उचित कानूनी अधिकार के बिना’ एक्सेस, एकत्र और उपयोग करके निजता के अधिकार का उल्लंघन किया था।

संघों की स्वतंत्रता पर रिपोर्ट कहती है कि सरकार की बढ़ती निगरानी और विदेशी फंड पाने वाले कुछ एनजीओ के नियमन की सिविल सोसाइटी की तरफ से आलोचना हुई है। रिपोर्ट में पिछले साल ऑक्सफैम इंडिया, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च, केयर इंडिया और इंडिपेंडेंट एंड पब्लिक-स्पिरिटेड मीडिया फाउंडेशन पर आयकर सर्वेक्षणों का उल्लेख किया गया है।

रिपोर्ट में शरणार्थियों की चुनौतियों पर बात करते हुए रोहिंग्या मुसलमानों के साथ हुए दुर्व्यवहार का भी जिक्र है। भेदभाव और हिंसा पर बात करते हुए रिपोर्ट में जबरन धर्मांतरण से संबंधित कानूनों के पारित होने का भी जिक्र किया है और सिविल सोसाइटी द्वारा इन कानूनों को संविधान के खिलाफ बताकर आलोचना किए जाने का भी उल्लेख किया है।

विदेश विभाग ने महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और एलजीबीटीक्यू समुदाय के सदस्यों के खिलाफ लगातार भेदभाव को भी अपनी रिपोर्ट में जगह दी है।

धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी मानवाधिकार ख़तरे में

इसके पहले नवम्बर 22 में आई रिपोर्ट में यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम का कहना है कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और संबंधित मानवाधिकारों पर लगातार ख़तरा बना हुआ है। इस साल अप्रैल में भी कमीशन ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में सिफ़ारिश की थी कि अमेरिकी विदेश विभाग भारत को ‘विशेष चिंता वाले’ देशों की सूची में डाले।

अप्रैल 22 में ही यूएससीआईआरएफ ने अपनी 2022 की वार्षिक रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि अमेरिकी विदेश विभाग भारत को ‘विशेष चिंता वाले’ देशों की सूची में डाले। रिपोर्ट में कहा गया था कि 2021 में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति काफी खराब हो गई थी। 2021 में भारत सरकार ने हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडा को बढ़ावा देकर ऐसी नीतियों का प्रचार किया, जिससे मुस्लिमों, ईसाइयों, सिखों, दलितों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

साथ ही कहा था, (भारत) सरकार ने मौजूदा और नए कानूनों और देश के धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति शत्रुतापूर्ण संरचनात्मक बदलावों के जरिये राष्ट्रीय और राज्य स्तरों पर हिंदू राष्ट्र की अपनी वैचारिक दृष्टि को व्यवस्थित करना जारी रखा।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments