प्रभात पटनायक का लेख: गाजा में इजराइल कर रहा जनसंहार

7 अक्टूबर को हमास द्वारा किये गए हमले के प्रत्युत्तर में इजराइली फौज ने न सिर्फ गाजा पट्टी पर भयानक हमला किया, उसने 2000 फिलिस्तीनियों को मार दिया और कम से कम 7000 लोगों को (इस शुक्रवार की रात तक) जख्मी कर दिया। इसके साथ ही इसने गाजा में भोजन, बिजली, गैस और पानी की आपूर्ति को बंद कर दिया। इसके साथ ही साथ उन्होंने गाजा के उत्तरी हिस्से में रह रहे 11 लाख निवासियों को, जो कुल गाजा की आबादी का लगभग आधा हैं, इलाका खाली करने की चेतावनी भी दे दिया (गाजा की 365 वर्ग किमी की पतली सी पट्टी में 22 लाख लोगों की घनी बस्ती है)।

इतनी बड़ी आबादी को 24 घंटे के अंदर अपने घरों से चले जाने के लिए कहा गया। इजराइल की ओर जाने वाले सारे रास्तों को बंद कर दिया गया। गाजा का एक और रास्ता मिस्र की ओर खुलता है, उस पर बमबारी हो रही थी। इस तरह यह भी रास्ता बंद था (मिस्र ने भी कह दिया कि वह फिलिस्तीनी शरणार्थियों को अपने यहां जगह नहीं देगा)। यह एक ऐसा आदेश था जिसका पालन संभव नहीं था।

यदि हम मान भी लें कि गाजा से निकलना संभव था तब भी लाखों लोगों का इतने कम समय में इस तरह से वहां से उजड़कर जाना भी संभव नहीं लगता है। इस आबादी में बूढ़े, बीमार, महिलाएं और बच्चे हैं। प्रति घंटे 42,000 या कहें कि प्रति सेकेंड 12 लोगों का वहां से निकलना संभव ही नहीं था।

यह आदेश एक चिरकुट की तरह था जो गाजा के निवासियों की उस समय के कत्लेआम को ढंकने का प्रयास कर रहा था जब उसकी फौजें जमीन पर उतरकर यहां घुसेंगी। तब इजराइल कह सकेगा कि उसने तो पहले ही चेतावनी दे रखी थी। इसलिए उसकी फौज की कोई गलती नहीं है।

फौज द्वारा संहार के अलावा भी, इलाका खाली करने के आदेश की वजह से जो हताशा और भगदड़ है, उसका अनुमान किया जा सकता है जिसमें हजारों निरीह लोग अपने घरों से उजड़कर लगातार हो रहे हवाई हमलों के बीच जगह की तलाश में भटकने को मजबूर कर दिये गये। ये हवाई हमले सड़कों पर किये गए जहां से हजारों शरणार्थी गुजर रहे थे। अब जो हम देख रहे हैं वह एक तरह से जनसंहार की एक तैयारी की तरह है।

1948 के संयुक्त राष्ट्र संघ के जनसंहार सम्मेलन में इसे “ऐसी कार्रवाई जो पूरी तरह से या आंशिक तौर पर एक राष्ट्रीयता, एथिनिक, नस्लीय या धार्मिक समूह को खत्म करने के लिए हो” की तरह परिभाषित किया गया था। गाजा में जो रहा है वह जनसंहार की उपर्युक्त परिभाषा के साथ पूरी तरह मिल रहा है।

पश्चिमी साम्राज्यवादी शक्तियां इस जनसंहार का बचाव इस आधार पर कर रही हैं कि इजराइल पर किया गया हमला आतंकवादी हमला है और हमास एक आतंकवादी संगठन है। इसने हमला किया है और भविष्य में भी यह ऐसा कर सकता है। चूंकि हमास गाजा की जनता के बीच छुपा है इसलिए इस तरह के कदम उठाना जरूरी हो गया है जिससे कि हमास को निशाना बनाया जा सके।

तो, हम एक बार को पश्चिमी साम्राज्यवादियों द्वारा हमास को एक आतंकवादी संगठन मानने का तर्क मान ही लेते हैं। नरेंद्र मोदी ने भी उनकी तरह की समझदारी का प्रदर्शन किया। ऐसा हो, तब भी कोई भी अंतर्राष्ट्रीय कानून इजराइल को या किसी भी दूसरे देश को यह अधिकार नहीं देता है कि वह सिर्फ इस आधार पर कि खास जगह पर कोई आतंकवादी चिन्हित हुए हैं, एक पूरी आबादी का जनसंहार करे। इस तरह के सामूहिक दंड उस पूरी जनता पर लाद दिया जाता है जिसे उसने व्यक्तिगत तौर पर अंजाम दिया ही नहीं है।

इस तरह का हमला जेनेवा के चौथे सम्मेलन के अनुसार एक युद्ध अपराध है। यहां तो इजराइल सिर्फ ‘सामूहिक दंड’ ही नहीं वह जनसंहारक हमला भी कर रहा है। इसने पानी, बिजली और गैस की आपूर्ति को बंद कर दिया जो एक ‘सामूहिक दंड’ का रूप है और यह एक युद्ध अपराध है। नागरिकों पर बम गिराना भी युद्ध अपराध है। (और यदि गैर-नागरिक वहां हैं तब भी उसक वर्गीकरण नागरिक क्षेत्र ही है और वहां बम गिराना एक युद्ध अपराध की श्रेणी में ही आता है)।

इसके साथ ही उत्तरी गाजा को पूर्व-सूचित कर इलाके को खाली कराने की असंभव कार्ययोजना का आदेश भी एक अकल्पनीय स्तर का युद्ध अपराध है। खासकर, गाजा के निवासियों को भोजन से वंचित कर देना भी इसी श्रेणी का हिस्सा है। संयुक्त राष्ट्र ने हमास के हमले के बाद इजराइल द्वारा किये हमले अंतर्राष्ट्रीय कानून का उलघंन माना है। और, यह उलघंन कुछ और नहीं एक तरह का जनसंहार है।

वास्तव में पश्चिमी साम्राज्यवादी देश हमास द्वारा किये हमले में नागरिकों के मरने, घायल होने के बारे में खूब बोल रहे हैं, लेकिन इजराइली युद्ध अपराधों के बारे में एक शब्द भी नहीं बोल रहे हैं। खासकर, जब इजराइल फिलिस्तीनी जनता पर जनसंहारक हमला कर रहा है। ऐसा लगता है कि फिलिस्तीनी जनता के जीवन का मूल्य इजराइल की तुलना में कम है।

यह साम्राज्यवादियों की नस्लीय सोच ही है जहां भेदभाव का राज रहा है और यही इजराइल के समर्थन में भी दिख रहा है। यह मानसिकता उन गढ़ी हुई झूठी कहानियों में, जिसे यहां बसे हुए इजराइलियों के बीच फैलाया गया, कि हमास यहूदी बच्चों का गला काट रहे हैं। ऐसे ही दावों को सच बनाकर गाजा पर ‘पूरी तरह से कब्जा’ करने वाला बयान इजराइली रक्षामंत्री योआव गैलेंट ने दिया- “हम पशुओं से लड़ रहे हैं और हम उनके साथ ऐसा ही व्यवहार करेंगे।” (इसे माजोरी कॉह्न ने 12 अक्टूबर को ट्रूथआउट में उल्लेखित किया)।

यदि हम हमास को ‘आतंकवादी संगठन’ कहते हैं तो हम इजराइल के फिलिस्तीनी इलाके पर कब्जा के सदी के तीन हिस्से पर आंख मूंद लेंगे। इन वर्षों में फिलिस्तीनी जनता का भयावह तरीके से दमन किया गया, उन पर हमले हुए, उजाड़ा गया और अपमानित किया गया। मैं हाल ही में अमेरीकी साम्राज्यवाद पर एक अंतर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल में एक जज के तौर पर था। हमने 15 देशों से आये लोगों की गवाहियां सुनीं। वहां अमेरिका और अन्य पश्चिमी साम्राज्यवादी ताकतों ने आर्थिक नाकेबंदी कर रखी है।

यह कुछ ही महीने पहले की बात है, जब गाजा के वादी ने ट्रिब्यूनल के सामने अपनी बात रखना शुरू किया तब वास्तव में पृष्ठिभूमि में बमों के फटने की आवाज आ रही थी। यह बम नागरिकों पर गिराए जा रहे थे और यह एक युद्ध अपराध था। यह एक युद्ध अपराधों की श्रृंखला है जो उन दिनों की याद दिलाता है जब उपनिवेशवाद के दौर में कब्जा जमाने के लिए लोगों को मारा जाता था। इस तहर के हमलों का चरम अल-अक्सा मस्जिद का अपवित्रीकरण था। इसने हमास को इस तरह की कार्रवाई को करने के लिए प्रेरित किया।

अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत फिलिस्तीनी लोगों को प्रतिरोध करने का अधिकार है, इसमें हथियारबंद संघर्ष और इजराइली कब्जाधारियों से अपनी जमीन वापस लेने का भी अधिकार है। यह अवस्थिति संयुक्त राष्ट्र की आमसभा के 1983 के प्रस्ताव में कहा गया है, “जनता को उपनिवेशिक दासता, रंगभेद और विदेशी कब्जा से संघर्ष के द्वारा आजादी, क्षेत्रीय एकता, राष्ट्रीय एकजुटता और स्वतंत्रता हासिल करने के लिए सभी उपलब्ध तरीकों, जिसमें सशस्त्र संघर्ष भी है, वैध है।” (पूर्वोक्त उद्धृत)।

हमास को महज एक आतंकवादी संगठन घोषित करना उपनिवेशवाद विरोधी संघर्षों में शामिल समूह का विरोध है और फिलिस्तीनी जनता पर कब्जा कर लेने के संदर्भ को नजरअंदाज कर देना है। यह संदर्भ उस संगठनों के लिए भी जो हथियारबंद संघर्षों का सहारा लेते हैं, यह उचित है या अनुचित, इसे न तो अवैध घोषित कर या अनैतिक घोषित कर देने से खारिज नहीं किया जा सकता।

इसे कहने का अर्थ यह भी नहीं है कि हमास जो कर रहा है वह मान्य है। यहां यह चिन्हित करना जरूरी है कि इजराइली राज और इसके पश्चिमी साम्राज्यवादी समर्थक, जो जनता पर काबिज हैं और उनकी जमीनों पर अधिकार जमा लिए हैं वह पूरी तरह से अवैध है। वे दिखा रहे हैं कि स्थिति को ‘सामान्य’ करने के लिए ताकत का इस्तेमाल किया जा सकता है। इजराइल में बड़ी और तेजी से बढ़ रहे लोगों में यह विचार बनता भी जा रहा है।

दरअसल, इजराइली शासन द्वारा हमास के हमले का प्रत्युत्तर इसी मानसिकता से भरा हुआ है। कि वे ‘समस्या खड़ा करने वालों’ और ‘आतंकवादी’ संगठनों को बस हटा रहे है जिससे कि समस्या ‘हल’ हो जाये और इजराइल में शांति आ जाये। जबकि सच्चाई क्या है? यह काम इजराइली सत्ता 75 सालों से नहीं कर पाई। अभी जो फिलिस्तीनी जनता के साथ जो जनसंहारक व्यवहार किया जा रहा है, उसके विरुद्ध फिलिस्तीनी संगठनों द्वारा और भी तीखा प्रत्युत्तर आयेगा। यदि वह हमास नहीं होगा तो कोई और संगठन होगा। इस तरह हिंसा की बारम्बारता और भी जिंदगियों के नुकसान का कारण बनेगा।

पूरी दुनिया की जनवादी सोच वाली जनता इतिहास में, और खासकर यूरोप के नाजियों द्वारा जो यहूदी लोगों पर अत्याचार ढाया गया, उसके प्रति बेहद सहानुभूति रखती है। लेकिन, आज इजराइली सत्ता और इसके सत्ताशाली समर्थक समूह इन तकलीफों का प्रयोग साम्राज्यवादी योजनाओं को बढ़ाने के लिए वहशी तरीके से कर रहे हैं, और इस तरह वे इसे और भी उलझा रहे हैं। आज वे जो फिलिस्तीनी जनता के साथ कर रहे हैं, वह नाजियों द्वारा यहूदी लोगों पर ढाये गये जुल्म की याद दिला रहे हैं।

वास्तव में कई सारे लोग गाजा में उठे विद्रोह को नाजियों के खिलाफ 1943 में वारसा घेटो में उठे विद्रोहों जैसा ही देख रहे हैं। लेकिन, पश्चिमी साम्राज्यवादियों द्वारा समर्थित नेतान्याहू पर कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा। उनमें कम दूरदर्शिता से भरे फासीवादी रुझान ही अधिक दिख रहा है। फ्रांस में ‘यहूदी-विरोधी’ प्रदर्शनों को रोकने के लिए वहां की सरकार ने फिलिस्तीनी जनता के साथ हो रहे जनसंहार के खिलाफ प्रर्दशन पर ही रोक लगा दिया। इसके बाद दुनिया में कई जगहों पर इस तरह के प्रदर्शन पर रोक लगा दिया गया।

इस बार के इजराइल और हमास के बीच उठ खड़े हुए युद्ध ने इस बात को एकदम ही सामने ला दिया है कि फिलिस्तीनी मसले का बातचीत से हल निकाल ही लिया जाये। इसके लिए सबसे पहले जरूरी है कि इजराइल द्वारा थोपे गये प्रतिबंधों को हटाया जाये और गाजा में जमीनी हमलों को तुरंत रोक दिया जाये जिससे कि फिलिस्तीनी जनता का जनसंहार रुके। संयुक्त राष्ट्र साम्राज्यवादी देशों द्वारा सुरक्षा समिति को पंगु बना देने से एक मूक दर्शक की तरह हो गया है। ऐसे में, एक ही उम्मीद बचती है और वह हैं दुनिया के लोग, जो अपनी आवाज उठा रहे हैं।

(यह लेख 22 अक्टूबर, 2023 को न्यूजक्लिक पर अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था। हिन्दी अनुवादः अंजनी कुमार)

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