बीजेपी और उसकी मौजूदा सरकार अंतरविरोधों का पिटारा है। उसका कोई एक चेहरा नहीं है बल्कि उसने हजार मुखौटे ओढ़ रखे हैं। और हर मुखौटे की उसकी तस्वीर भी अलग-अलग है। संघ के साथ मिलने के बाद उसका यह चेहरा और भी ज्यादा बदरंग हो जाता है। पार्टी और सरकार का भारत के लिए एक चेहरा है तो विदेश के लिए बिल्कुल दूसरा। घरेलू मोर्चे पर अगर पार्टी अल्पसंख्यकों के खिलाफ अभियान चला रही है और उसकी राजनीति की पूरी धुरी मुस्लिम विरोध पर टिकी है। तो बाहर मोदी की सऊदी अरब के सुल्तान से गहरी यारी है। वैश्विक मोर्चे पर उसको अकबर और तमाम मुगल शासकों की प्रशंसा से भी कोई परहेज नहीं है। घर में उसके नेता गोडसे की पूजा करते हैं और बाहर गांधी के सामने सिर नवाते हैं। यह दोहरापन अब बीजेपी-संघ के स्थाई चरित्र का हिस्सा बन गया है।
जी-20 की बैठक के दौरान भी यह चीज खुलकर सामने आयी है। यह बात किसी से छुपी नहीं है बल्कि अब तो ह्लाट्सएपिया यूनिवर्सिटी का बच्चा-बच्चा इस बात को जानता है कि गांधी को अपमानित करने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देना है। और गोडसे तथा सावरकर कितने बड़े राष्ट्रभक्त थे इसको साबित करने के लिए कुतर्कों की अपनी पूरी झोली खोल देनी है। चूंकि मौका वैश्विक था और सभी देशों से आए प्रतिनिधि और उसके राष्ट्राध्यक्ष महात्मा गांधी और उनके विचारों से परिचित। लिहाजा मजबूरी वश ही सही पीएम मोदी को उन सभी को राजघाट ले जाना पड़ा। और सभी ने एक साथ मिलकर गांधी की समाधि के सामने अपना शीष झुकाया।
लेकिन मोदी के दोहरेपन के इस सिलसिले की कड़ी यहीं नहीं टूटी। मुगलों समेत पूरे मुस्लिम मध्यकाल को पानी पी-पी कर गाली देने वाली बीजेपी और उसकी सरकार ने जी-20 की बैठक के मौके पर जो किया है वह किसी संघी कार्यकर्ता के लिए दिन में सपने देखने जैसा हो सकता है।
जी-20 की एक बुकलेट में न केवल मुगल शासक अकबर का नाम दिया गया है बल्कि उनके शासन के विभिन्न पक्षों की जमकर तारीफ की गयी है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि अभी हाल में 15 अगस्त के मौके पर पीएम मोदी ने लाल किले से 1000 सालों की गुलामी से छुटकारा पाने का जिक्र किया था। और यह बात किसी से छुपी नहीं थी कि उनका इशारा देश में मुस्लिम शासकों के दौर की ओर था। लेकिन यह क्या? अभी उस समय को बीते एक महीना भी नहीं हुआ है कि मोदी सरकार ने उसी दौर के एक शासक को अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश के आदर्श के तौर पर पेश कर दिया।
बताया जा रहा है कि जी-20 के मौके पर “भारत: लोकतंत्र की मां” नाम से जारी एक बुकलेट के 38वें पेज पर अकबर और उनके शासन का जिक्र किया गया है। बुकलेट में कहा गया है कि “अच्छे प्रशासन को धर्म का ख्याल किए गए बगैर सभी के कल्याण के लिए काम करना चाहिए। तीसरे मुगल शासक ने जो प्रैक्टिस किया वह इसी तरह का लोकतंत्र था।”
बुकलेट में कहा गया है कि अकबर ने धार्मिक आधार पर भेदभाव के खिलाफ सुलह-ए-कुल जैसा सार्वभौमिक शांति का सिद्धांत दिया।
इसमें आगे कहा गया है कि “एक एकताबद्ध समाज के निर्माण के लिए दीन-ए-इलाही या ईश्वरीय आस्था नाम के एक नये धर्म का प्रतिपादन किया। उन्होंने एक ऐसा इबादतखाना (पूजा का घर) स्थापित किया जिसमें अलग-अलग संप्रदायों के बुद्धिजीवी बैठते थे और आपस में विचार-विमर्श करते थे। नौरत्न नाम से नौ लोगों का एक समूह था जो जनपक्षधर योजनाओं को लागू करने के लिए उनके सलाहकार का काम करता था।”
इसमें कहा गया है कि “अकबर की लोकतांत्रिक सोच अप्रत्याशित थी और वह अपने समय से बहुत आगे थी।”
इस पूरे प्रकरण को लेकर लोगों ने बीजेपी पर चुटकी लेनी शुरू कर दी है। राज्यसभा सांसद और मशहूर वकील कपिल सिबल ने सरकार की घेरेबंदी करते हुए एक्स पर कहा कि मोदी सरकार का एक चेहरा दुनिया के लिए है और दूसरा ‘इंडिया दैट इज भारत’ के लिए है।
सिबल ने कहा कि “जी20 मैगजीन: सरकार शांति और लोकतंत्र के समर्थक के तौर पर मुगल बादशाह अकबर की तारीफ करती है! एक चेहरा दुनिया के लिए और दूसरा इंडिया जो भारत है उसके लिए! कृपया हमें अपने असली मन की बात के बारे में बताइये!”
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