गुरमीत राम रहीम को फिर पैरोल: संगीन आरोपी पर इतनी मेहरबान क्यों है बीजेपी सरकार?

रोहतक। बलात्कार और हत्या के संगीन आरोपों के तहत दोहरी उम्रकैद की सजा काट रहा डेरा सच्चा सौदा का मुखिया गुरमीत राम रहीम एकबारगी फिर पैरोल के तहत हरियाणा के रोहतक स्थित सुनारिया जेल की सलाखों से बाहर है। इस बार उसे 50 दिन की पैरोल मिली है।

गौरतलब है कि वह 21 दिन की फरलो काटकर 2023 की 13 दिसंबर को ही वापस जेल पहुंचा था। महज 29 दिन के भीतर ही भाजपा सरकार उसे पर ‘अतिरिक्त मेहरबान’ हुई! पचास दिन की पैरोल उसे पहली बार दी गई है। गुरमीत राम रहीम इस दौरान उत्तर प्रदेश के बागपत स्थित बरनावा आश्रम में रहेगा। रोहतक के डीएसपी विवेक कुंडू के नेतृत्व में पुलिस टीम उसे आश्रम छोड़ने गई।

केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा सरकार इन दोनों पूरे देश को ‘राममय’ बनाने की कवायद में है और सच्चा सौदा मुखिया को फौरी राहत दिए जाने को इस राजनीतिक निहितार्थ से जोड़कर देखा जा रहा है। हरियाणा में भी भाजपा सरकार है और उसी ने गुरमीत राम रहीम की पैरोल सुनिश्चित की है।

डेरा मुखिया पर दो साध्वियों के साथ दुष्कर्म और पत्रकार छत्रपति की हत्या के आरोप साबित हो चुके हैं। वह दोहरी उम्रकैद का सजायाफ्ता है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) और कई अन्य संगठनों ने गुरमीत राम रहीम की ताजा पैरोल का तीखा विरोध किया है।

एसजीपीसी प्रमुख डॉ हरजिंदर सिंह धामी कहते हैं, “लगता है देश में दो कानून चल रहे हैं। क्या वजह है कि साधारण कैदी बरसों पैरोल और फरलो के लिए कतार में खड़े रह जाते हैं और गुरमीत राम रहीम सरीखे रसूखदार लोग आराम से; मनमर्जी के साथ जेल से बाहर आ जाते हैं। इससे समाज को गलत संदेश जाता है।”

जिक्रेखास है कि ‘उम्रकैदी’ गुरमीत राम रहीम ने अपनी अब तक की 6 साल 5 महीने की सजा में 184 बार बाहर की हवा खाई। सन् 2022 और 2023 के बीच वह 182 दिन की फरलो या पैरोल ले चुका है।

उसे 2020 में अक्टूबर में बरोदा उपचुनाव, 2022 में फरवरी में पंजाब विधानसभा चुनाव, नवंबर में आदमपुर उपचुनाव, जुलाई 2023 में हरियाणा पंचायत चुनाव, अक्टूबर में स्थानीय नगर निगम निकाय चुनाव और नवंबर में राजस्थान सहित अन्य प्रदेशों के विधानसभा चुनाव से पहले भी पैरोल या फरलो भाजपा सरकार की ओर से दी गई।

अब लोकसभा चुनाव करीब हैं और भाजपा सरकार देश में राम के नाम पर वोट लूटने की फिराक में है; इस मद्देनजर भी गुरमीत राम रहीम की पैरोल सवालिया घेरे में है। माना जाता है कि डेरा सच्चा सौदा के लाखों अनुयायियों के दम पर गुरमीत राम रहीम बाकायदा (जेल में रहने के बावजूद) एक बड़े वोट बैंक पर काबिज है। इसलिए भी भाजपा के लिए अपरिहार्य!

हरियाणा और पंजाब सहित देश के विभिन्न हिस्सों में गुरमीत राम रहीम की अतीत की करगुजारियों के खिलाफ बाकायदा बड़े आंदोलन हो चुके हैं और लोकाचार का एक बड़ा हिस्सा उसे गुनाहगार मानता है। कानून ने तो खैर उसे दोषी मानते हुए संविधान के तहत सजा तजवीज की ही हुई है। फिर भाजपा उसे पर इतनी मेहरबान क्यों? यक्ष प्रश्न है!

भाजपा का कोई भी नेता इस सवाल के जवाब के लिए तैयार नहीं। जबकि इस संगीन आरोपी को बार-बार पैरोल व फरलो उसकी स्थाई रिहाई का रास्ता पुख्ता कर रही है। जब माननीय अदालत उसे समाज के लिए खतरा बताते हुए जेल की सलाखों के पीछे डालती है तो सरकार उसे बारंबार राहत क्यों देती है? वह भी तब जब सरकार, खासतौर पर भाजपा के लिए कोई विशेष ‘राजनीतिक मौका’ होता है। प्रसंगवश हरियाणा विधानसभा चुनाव भी करीब हैं। 

उल्लेखनीय है कि डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम 24 अक्टूबर 2020 को तय सजा की अवधि के 3 साल बाद 24 घंटे के लिए सीक्रेट पैरोल पर बाहर आया था। 21 मई को 2021 को बीमार मां से मिलने के लिए उसे एक दिन की पैरोल दी गई। 2022 में 7 फरवरी को 21 दिन की फरलो मिली।

फिर उसी साल 17 जून को 30 दिन की पैरोल। पैरोल में इजाफा करते हुए भाजपा सरकार ने उसे 40 दिन के लिए रिहा किया। 2023 में भी यह सिलसिला बरकरार रहा। 21 जनवरी को उसे 40 दिन की पैरोल मिली। 20 जुलाई को फिर वह पैरोल पर बाहर आया। 21 नवंबर को फरलो मिली। अब दो महीने के बाद वह 50 दिन की पैरोल पर बाहर है।

डेरा सच्चा सौदा से जुड़े सूत्र बताते हैं कि गुरमीत राम रहीम पैरोल के दौरान ‘वर्चुअल’ सत्संग करेगा और उसके सत्संगों में राम विशेष रूप से रहेंगे।

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments