पंजाब में राष्ट्रपति शासन की धमकी क्यों दे रहे हैं राज्यपाल?

चंडीगढ़। पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान को ‘अंतिम पत्र’ लिखकर सूबे में राष्ट्रपति शासन लागू करवाने की खुली धमकी दी है। मुख्यमंत्री को लिखे आखिरी पत्र की भाषा काफी तल्ख है। इन पंक्तियों को लिखे जाने तक राज्य सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की गई है। किसी भी मंत्री या आला प्रशासनिक अधिकारी से बात कीजिए तो जवाब मिलेगा कि यह बड़ा मामला है और इस पर मुख्यमंत्री ही कुछ कह सकते हैं।

सरगोशियों के मुताबिक राज्य सरकार में कहीं न कहीं सहमी हुई है। जबकि आम आदमी पार्टी (आप) के प्रतिद्वंद्वियों की प्रतिक्रियाएं जरूर सामने आनी शुरू हुईं है। ‘आप’ प्रवक्ता भी इस प्रकरण पर सामने आए हैं।

अवाम से लेकर ऊपर तक पूछा जा रहा है कि पंजाब में ऐसा संवैधानिक संकट दरपेश हुआ ही क्यों? मुख्यमंत्री भगवंत मान और राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित के बीच कई मामलों को लेकर, सरकार के गठन के वक्त से ही ठनी हुई है। दोनों एक-दूसरे को नीचा दिखाने का आरोप लगभग एक साल से लगा रहे हैं। भगवंत मान की एप्रोच है कि राज्यपाल केंद्र और भाजपा के एजेंट हैं। इसलिए एक गैरभाजपाई और भाजपा विरोधी निर्वाचित सरकार के कामकाज में बेवजह दखलअंदाजी करते हैं।

राज्यपाल का कहना है कि वह अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कुछ नहीं करते। मुख्यमंत्री उन पर भाजपा का ठप्पा लगाकर उनका अपमान करते हैं और संविधान और व्यवस्था के दायरे में रहकर राजभवन की ओर से मांगी गई जानकारियों की इस हद तक अपमानजनक उपेक्षा करते हैं कि उनके लिखे पत्रों को एक ‘निठल्ले का प्रेम पत्र’ बताते हैं। 

पंजाब कानून-व्यवस्था के लिहाज से एक अति संवेदनशील सरहदी सूबा है। सियासी वजहों से यहां पूर्व में नौ बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है। किसी राज्य के लिए शायद यह है एक रिकॉर्ड है। उत्तर प्रदेश में भी दस बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है लेकिन दिनों की गिनती के लिहाज से पंजाब पहले नंबर पर है। 1950 से लेकर अब तक भारत का कोई न कोई राज्य राष्ट्रपति शासन के अधीन रहा है। राष्ट्रपति शासन एक तरह से केंद्र द्वारा निर्वाचित, निरस्त की गई सरकार को खुद केंद्र से चलना है। 

पहली बार यहां 20 जून 1951 को राष्ट्रपति शासन लागू हुआ। उसके बाद 5 मार्च 1966, 30 अगस्त 1968, 14 जून 1971, 30 अप्रैल 1975, 17 फरवरी 1980, 10 अक्टूबर 1983 और 11 जून 1987 में राष्ट्रपति का शासन रहा। राज्यपाल और मुख्य सचिव शासन-व्यवस्था के मुखिया थे। इनमें ज्यादातर राष्ट्रपति शासन के पीछे कानून-व्यवस्था के बिगड़ने को भी मुख्य कारण बताया गया।

प्रसंगवश, राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के पीछे कुछ अन्य वजहें, मसलन सियासत भी थी। आतंकवाद के काले दौर में लगे राष्ट्रपति शासन को यहां के बाशिंदे कभी नहीं भूलते। कहने को सरकार राज्यपाल और मुख्य सचिव चलाते थे लेकिन हावी पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) थे। तब राष्ट्रपति राज का मतलब खुला ‘पुलिस आतंकी राज’ था। खासतौर पर कंवरपाल सिंह गिल (केपीएस गिल) के वक्त।

केपीएस गिल आए दिन राज्यपाल के हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल करते थे और दिल्ली के अलावा किसी की नहीं सुनते थे। खुद तो वह बेकाबू थे ही, पुलिस को भी उन्होंने बेकाबू कर दिया था और एक बार राज्यपाल को उनके खिलाफ लिखना पड़ा कि वह संविधान से बाहर जाकर काम करते हैं। जिससे पंजाब की जनता को लगता है कि उसे कॉलोनी बना दिया गया है।

एक बार सूबे में राष्ट्रपति शासन कायम हुआ तो पंजाब के पुराने कद्दावर कांग्रेसी ज्ञानी जैल सिंह राष्ट्रपति थे। तब राज्यपाल और मुख्य सचिव हाशिए पर थे और पंजाब का सारा राजकाज दिल्ली से ज्ञानी जैल सिंह खुद चलाते थे। अतीत की बात है। तब पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाया ही उन्हीं की वजह से गया था। सच्चाई है कि तब राज्य की कानून-व्यवस्था खासी गड़बड़ थी। तब के मुख्यमंत्री दरबारा सिंह पूरी मेहनत और ईमानदारी के साथ आतंकवाद को काबू करने में लगे थे।

राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद पर बैठने के बावजूद ज्ञानी जैल सिंह की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं थीं और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कतिपय वजहों से इससे एतराज नहीं था। पंजाब में ज्ञानी जैल सिंह के कुछ ‘खासमखास’ और प्रत्यक्ष रूप से राजनीति से दूरी बनाकर चलने वाले लोगों को मुख्यमंत्री दरबारा सिंह की सख्ती नागवार लगती थी। खालिस्तान कमांडो फोर्स के हाथों 34 हिंदू बस यात्रियों के नरसंहार के बहाने दरबार सिंह की सरकार गिरा दी गई।

इसके बाद प्रत्यक्ष रूप से राज्यपाल का और परोक्ष रूप से ज्ञानी जैल सिंह का राज सूबे में शुरू हो गया। यह पुरानी सच्ची कहानी इसलिए कि जाना जा सके कि किस तरह राष्ट्रपति शासन को पंजाब में बतौर हथियार इस्तेमाल किया जाता रहा है। कहीं इस बार भी तो यही खेल नहीं हो रहा? 

आतंकवाद के दिनों में पंजाब का सबसे बड़ा राष्ट्रपति शासन चला था जो 3510 दिन लागू रहा और वर्षों के हिसाब से देखें तो यह दस साल बनता है। राज्य में 1987 से 1992 तक 5 वर्षों तक राष्ट्रपति शासन रहा। 

राज्य के हर पहलू से वाकिफ पंजाब के वरिष्ठ पत्रकार जतिंदर पन्नू कहते हैं कि, “अब पंजाब में राष्ट्रपति शासन नहीं लागू होना चाहिए क्योंकि यह हो गया तो राज्य भाजपा के अधीन चला जाएगा। भाजपा की मनमर्जी से सरकार चलेगी और विकास के मामले में हम बहुत पीछे चले जाएंगे। भाजपा अपने एजेंडे यहां लागू करेगी। किसी तरह मौजूदा विवाद का समाधान आपसी सहमती से हो जाना चाहिए। अवाम के लिए यही बेहतर है।” 

राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित की चेतावनी के बाद पंजाब के सियासी गलियारों में धीरे-धीरे हलचल तेज हो रही है। सुखबीर सिंह बादल की सरपरस्ती वाले शिरोमणि अकाली दल के मुख्य प्रवक्ता और पूर्व मंत्री डॉ. दलजीत सिंह चीमा के अनुसार, “आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल एक रणनीति के तहत चाहते हैं कि पंजाब में भारी बहुमत से बनी सरकार गिर जाए और राष्ट्रपति शासन लागू हो जाए। वह विधानसभा चुनावों में ‘पीड़ित कार्ड’ खेलना चाहते हैं और भगवंत मान को गुमराह कर रहे हैं।”

चीमा ने कहा कि “अगर राज्यपाल ने अनुच्छेद-356 के तहत कार्यवाही की सिफारिश की तो पंजाब का माहौल बिगड़ जाएगा। राष्ट्रपति शासन किसी के लिए भी फायदेमंद नहीं। इससे राज्य को भारी नुकसान होगा। मुख्यमंत्री भगवंत मान को अपनी अकड़ त्याग कर राज्यपाल के पत्रों का जवाब देना चाहिए और उनके खिलाफ भद्दी शब्दावली का इस्तेमाल बंद करना चाहिए।”

सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता मालविंदर सिंह कंग का कहना है कि, “राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित बेवजह परेशानी खड़ी कर रहे हैं। केंद्र को मणिपुर और हरियाणा में राष्ट्रपति शासन लागू करना चाहिए; जहां हिंसा का नंगा नाच हुआ। पंजाब का माहौल एकदम शांत है। नशे के बड़े सौदागर बड़ी खेप के साथ रोजाना पकड़े जा रहे हैं।” वहीं मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल का कोई भी सदस्य इस प्रकरण पर फिलहाल अभी तक खामोश है। 

खास ही नहीं बल्कि आम लोगों का भी मानना है कि अनुच्छेद-356 के तहत कार्रवाई की राज्यपाल की चेतावनी के पीछे कोई न कोई रणनीति जरूर है। कुछ दिन पहले पंजाब के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले पंजाबी अखबार ‘अजीत’ को दिए विस्तृत एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में भी पुरोहित इशारा कर चुके हैं कि पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है। उस पर भी सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।

एक बड़ा सवाल है। पंजाब तकरीबन दो महीने से भीषण बाढ़ से जूझ रहा है। नुकसान के अंदाज के करीब भी जाएं तो अब तक अरबों रुपये का नुकसान हो चुका है। सौ से ज्यादा लोग मारे गए हैं और पांच सौ के करीब लापता हैं। खुद सरकारी महकमें बताते हैं कि 25 हजार से ज्यादा पशुधन खत्म हो गया है। हजारों पोल्ट्री फार्म तहस-नहस हो गए हैं। कुल मिलाकर आपातकाल के हालात हैं। पीड़ित लोग मुआवजे के लिए तरस रहे हैं अथवा भटकते फिर रहे हैं। गिरदावरी आधी-अधूरी हुई है। 

संकट की इस विकट घड़ी में राज्यपाल ने संवैधानिक संकट पैदा करने की कवायद क्यों की? सरकार गिराने की चेतावनी क्यों दी? कहना पड़ेगा की कम से कम यह तो माकूल मौका नहीं। बातचीत में आम लोग भी ऐसा मानते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार हरजिंदर सिंह लाल के अनुसार एक पूरे षडयंत्र के तहत यह सब किया जा रहा है। लुधियाना के उद्योगपति अरविंद जैन मानते हैं कि सब कुछ अचानक नहीं हो रहा। टाइम्स ऑफ़ इंडिया से जुड़े रहे पत्रकार गुरु कृपाल सिंह अश्क का कहना है कि अभी भी भूमिका ही लिखी जा रही है। पंजाब को रातों-रात मालूम होगा कि उसे राष्ट्रपति शासन के हवाले कर दिया गया है।

जालंधर के व्यापारी नसीब सिंह के अनुसार भगवंत मान को विनम्रता से कम लेना चाहिए और राज्यपाल को भी संयम रखना चाहिए। पंजाब के लोग हरगिज राष्ट्रपति शासन नहीं चाहते।

(अमरीक वरिष्ठ पत्रकार हैं और पंजाब में रहते हैं।)

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