बृजभूषण के लोग WFI चुनाव जीत गए तो महिला पहलवान सुरक्षित महसूस नहीं करेंगी: बजरंग पुनिया

नई दिल्ली। टोक्यो ओलंपिक के कांस्य पदक विजेता बजरंग पुनिया डब्ल्यूएफआई में खेलने वाली महिला पहलवानों की सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित हैं। पुनिया ने कहा है कि सरकार को भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) में सत्ता परिवर्तन सुनिश्चित करने के अपने वादे पर कायम रहना चाहिए और अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह का कोई करीबी सहयोगी चुनाव नहीं लड़ेगा, नहीं तो कोई भी महिला पहलवान सुरक्षित महसूस नहीं करेगी।

उत्तर प्रदेश के कैसरगंज से भाजपा सांसद सिंह पर छह महिला पहलवानों ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। जिसके बाद दिल्ली पुलिस ने महिला पहलवानों और गवाहों के बयान का एक चार्जशीट तैयार की थी जिसमें सिंह पर यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़ और महिला पहलवानों का पीछा करने के लिए उनपर मुकदमा चलाने को कहा था।

जून में खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के साथ बैठक के बाद बजरंग पुनिया और देश के कुछ अन्य शीर्ष पहलवानों ने सिंह के खिलाफ अपना विरोध स्थगित कर दिया था। बजरंग के अनुसार, जिन शर्तों पर सहमति बनी उनमें से एक यह थी कि सिंह के ‘परिवार का कोई सदस्य’ या ‘समर्थक’ डब्ल्यूएफआई का चुनाव नहीं लड़ेगा। बृजभूषण शरण सिंह के डब्ल्यूएफआई में कार्यकाल के 12 साल पूरे हो गए हैं और नए अध्यक्ष का चुनाव होना है।

बजरंग पुनिया ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि “बृजभूषण के करीबी लोग चुनाव मैदान में हैं। संजय कुमार सिंह डब्ल्यूएफआई अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। अगर संजय कुमार जीतते हैं तो यह बृजभूषण के चुनाव जीतने के बराबर है। सरकार ने हमसे वादा किया था कि बृजभूषण और उनके परिवार के करीबी लोग चुनाव नहीं लड़ेंगे। लेकिन अब ऐसा नहीं लगता। सरकार अपना वादा पूरा करे, नहीं तो महिला पहलवान सुरक्षित नहीं रहेंगी। महिला पहलवान कब तक डर में जीएंगी?”

संजय कुमार उत्तर प्रदेश कुश्ती संघ के उपाध्यक्ष हैं और अब वो डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। पुनिया ने कहा कि “बृजभूषण उन महिला पहलवानों को चुप कराने के लिए अपने भरोसेमंद सहयोगियों के माध्यम से सत्ता पर कब्जा करना चाहते हैं जो उनके खिलाफ बोलना चाहती हैं लेकिन ऐसा करने से डरती हैं। जिस समय यह स्पष्ट हो जाएगा कि डब्ल्यूएफआई का बृजभूषण से कोई लेना-देना नहीं है, यौन उत्पीड़न के अन्य पीड़ितों को भी इस बारे में बात करने का साहस मिलेगा कि वे किस दौर से गुजरे हैं। बृजभूषण बहुत शक्तिशाली हैं। इसीलिए हम डब्ल्यूएफआई में बदलाव चाहते हैं।”

डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष पद के लिए मुकाबला दोतरफा है, दूसरी की उम्मीदवार 2010 राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता अनीता श्योराण हैं। बृजभूषण के खिलाफ मामले में एक गवाह और पुष्टिकर्ता, अनीता को बजरंग और दो अन्य प्रमुख पहलवानों साक्षी मलिक और विनेश फोगट का समर्थन प्राप्त है जिन्होंने बृजभूषण के खिलाफ दिल्ली के जंतर-मंतर पर कई दिनों तक लगातार धरना दिया और विरोध-प्रदर्शन किया था।

बजरंग ने कहा “अनीता एक पूर्व पहलवान हैं। वह खेल को समझती हैं, जानती हैं कि देश के लिए पदक जीतने के लिए पहलवानों को कितना बलिदान देना पड़ता है और वह पहलवानों की आवाज बनेंगी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि महिला पहलवान सुरक्षित महसूस करेंगी। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि मुझे डब्ल्यूएफआई का अध्यक्ष बना दो। लेकिन सरकार ने हमसे वादा किया था कि जब बात आएगी कि डब्ल्यूएफआई में प्रमुख पदों पर कौन है तो हमारी राय मायने रखेगी। यह एक शर्त और कारण था कि हमने अपना विरोध बंद कर दिया। लेकिन ऐसा नहीं लगता कि वादा पूरा होगा।”

खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने जून में प्रदर्शनकारी पहलवानों के साथ छह घंटे की बैठक के बाद कहा था, “चुनाव के बाद, डब्ल्यूएफआई को अच्छे पदाधिकारियों के साथ एक अच्छे महासंघ के रूप में कार्य करना चाहिए। इस संबंध में खिलाड़ियों की राय ली जानी चाहिए। पहलवानों ने मांग की है कि पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण सिंह, जिन्होंने तीन कार्यकाल पूरा कर लिया है, और उनके करीबी लोगों को नहीं चुना जाना चाहिए।“

सरकार की ओर से पहलवानों को यह आश्वासन देने के बाद कि नई डब्ल्यूएफआई कार्यकारी समिति में प्रमुख पदों पर कौन बैठेगा, यह तय करने में उनकी हिस्सेदारी होगी, यह माना गया कि प्रत्येक श्रेणी में एक सर्वसम्मत उम्मीदवार को नामांकित किया जाएगा, इस प्रकार चुनाव कराने की आवश्यकता दूर हो जाएगी। हालांकि, 15 पदों के लिए बृजभूषण द्वारा चुने गए उम्मीदवारों को 25 राज्य इकाइयों में से कम से कम 20 का समर्थन प्राप्त है। बजरंग ने कहा कि उन्होंने किर्गिस्तान में अपने प्रशिक्षण कार्यकाल को छोटा कर दिया और यह सुनकर भारत लौट आए कि बृजभूषण चुनावों के लिए अपनी पसंद के उम्मीदवारों को मैदान में उतारने से पीछे नहीं हट रहे हैं।

पुनिया ने कहा कि “यह मेरे और विनेश के लिए मानसिक यातना रही है। विरोध प्रदर्शन ख़त्म करने के बाद हम प्रशिक्षण में अपना 100 प्रतिशत देना चाहते थे। लेकिन यह कैसे संभव है जब हम जानते हैं कि बृजभूषण के लोग फिर से महासंघ चला सकते हैं। हम यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार, खेल मंत्रालय और भारतीय खेल प्राधिकरण से बात कर रहे हैं कि बृजभूषण के करीबी लोग चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा न बनें। भारत लौटने के बाद मेरा काफी समय मीटिंग्स और फोन कॉल्स में गुजरा। जब भारत में खेल का भविष्य दांव पर है तो कुश्ती और प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करना बहुत मुश्किल है।”

बृजभूषण के खिलाफ पहलवानों का संघर्ष काफी लंबे समय तक चला है और सरकार के आश्वासन के बाद ही उन्होंने विरोध-प्रदर्शन खत्म किया था। लेकिन अब ऐसा लगता है कि सरकार उनको दिए गए किसी भी आश्वासनों को पूरा नहीं करना चाहती है।

(‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

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