कोरबा। कुसमुंडा में भू-विस्थापितों द्वारा कोयला की आर्थिक नाकाबंदी करने के बाद एसईसीएल प्रबंधक बातचीत करने को राजी हो गए हैं। छत्तीसगढ़ किसान सभा, भू-विस्थापित रोजगार एकता संघ और भू-विस्थापितों के अन्य संगठनों ने 11 सितंबर से आर्थिक नाकाबंदी किया था। कोयला की आर्थिक नाकाबंदी मंगलवार यानि 12 सितंबर शाम 4 बजे तक लगभग 36 घंटे चली। आंदोलन को तोड़ने और नेताओं को डराने-धमकाने की तमाम कोशिशों के असफल होने के बाद आखिरकार एसईसीएल प्रबंधक को झुकना पड़ा और जिला प्रशासन की मध्यस्थता में 21 सितम्बर को आंदोलनकारियों की तमाम मांगों पर बातचीत के लिए सहमत होना पड़ा।
इस आंदोलन के कारण कोयले की ढुलाई करने वाले 4000 से ज्यादा ट्रकों के पहिये थम गए और दूसरे दिन साइलो बंद होने से ट्रेन लोडिंग भी प्रभावित हुआ, क्योंकि आंदोलनकारियों ने कोयला खदानों और सायलो पर ही कब्जा जमा लिया था। इसके चलते एसईसीएल को इन दो दिनों में करोड़ों रुपयों का नुकसान पहुंचने का अंदेशा है।
आंदोलन में कोरबा जिले के चारों क्षेत्र कोरबा, कुसमुंडा, गेवरा, दीपका क्षेत्र के भू-विस्थापित शामिल थे। सोमवार को हजारों की संख्या में भू-विस्थापितों ने कुसमुंडा महाप्रबंधक कार्यालय के सामने आम सभा की और उसके बाद खदान से निकलने वाले तीनों रास्तों और सायलो को योजनाबद्ध ढंग से बंद कर दिया।
आर्थिक नाकेबंदी को सफल बनाने के लिए गांव-गांव में चावल-दाल संग्रहण, मशाल जुलूस और अधिकार यात्रा निकालकर नुक्कड़ सभा और पर्चों के जरिये अभियान चलाया जा रहा था।
उल्लेखनीय है कि रोजगार, पुनर्वास, पुनर्वास गांवों में काबिज भू-विस्थापितों को पट्टा और अनुपयोगी भूमि की मूल किसानों को वापसी से जुड़ी मांगों पर पिछले दो सालों से यहां आंदोलन चल रहा है। आंदोलन के दबाव में एसईसीएल प्रबंधन भूविस्थापितों को आश्वासन तो देता रहा है, लेकिन उस पर उसने कभी अमल नहीं किया। इससे ग्रामीणों का आक्रोश बढ़ गया है। इसके बाद क्षेत्र में भूविस्थापितों के छोटे-बड़े सभी संगठन एकजुट हो गए हैं और उन्होंने आर्थिक नाकाबंदी का आह्वान किया था।
इस आह्वान पर खनन प्रभावित 54 गांवों के हजारों ग्रामीण सड़कों पर उतर गए और आंदोलन के दूसरे दिन उन्होंने 8 किमी. लंबे कोयला खदान के अंदर जाकर सतर्कता चौक और सायलो, (जहां से ट्रेनों में परिवहन के लिए कोयला भरा जाता है और साइडिंग में जाता है) पर भू विस्थापितों ने कब्जा जमा लिया था। इस आंदोलन में महिलाएं भी अपने बच्चों को लेकर भारी संख्या में शामिल थी और रात उन्होंने सड़कों पर ही गुजारी। इससे एसईसीएल प्रबंधन की रात में कोयला परिवहन की योजना भी असफल हो गई। आंदोलनकारियों के पक्ष में जिला प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद 21 सितम्बर को त्रिपक्षीय वार्ता की सहमति बनी और 36 घंटे के बाद कोल परिवहन शुरू हो पाया।
छत्तीसगढ़ किसान सभा और भू विस्थापित रोजगार एकता संघ ने कहा है कि यदि 21 सितम्बर को रोजगार और पुनर्वास के सवाल पर प्रबंधन सही रूख नहीं अपनाता, तो फिर से उग्र आंदोलन छेड़ा जाएगा।
माकपा के जिला सचिव प्रशांत झा ने कहा कि रोजगार और पुनर्वास की कीमत पर और ग्रामीणों की लाशों पर एसईसीएल प्रबंधन को मुनाफा कमाने नहीं दिया जाएगा और सार्वजनिक क्षेत्र के नाते सामाजिक कल्याण की जिम्मेदारी को पूरा करने उसे मजबूर किया जाएगा।
किसान सभा के नेता जवाहर सिंह कंवर और दीपक साहू, माकपा पार्षद राजकुमारी कंवर और भू-विस्थापितों के संगठनों से जुड़े नेताओं शिवदयाल कंवर, सुभद्रा कंवर, बसंत चौहान, विजय कंवर, देव कुंवर कंवर, संजय यादव, दामोदर श्याम, रेशम यादव, रघु, दीनानाथ, जय कौशिक, सुमेंद्र सिंह ठकराल, देव पटेल, जयपाल कंवर, अजय पटेल, बलराम यादव, राजू यादव, कोमल खरे, भीर सिंह, संतोष राठौर, दिलहरण दास, बृजेश श्रीवास ने आंदोलन का नेतृत्व किया।
भू-विस्थापितों के 11 सूत्रीय मांगपत्र में भूमि अधिग्रहण से प्रभावित सभी छोटे-बड़े खातेदारों को बिना शर्त स्थायी रोजगार देने, अनुपयोगी अर्जित भूमि को मूल खातेदारों को वापस करने और नई पुनर्वास नीति के अनुसार मुआवजा और अन्य लाभ देने, आउटसोर्सिंग कार्यों में भू-विस्थापितों एवं खनन प्रभावित गांवों के बेरोजगारों को प्राथमिकता के साथ रोजगार उपलब्ध कराने, ग्रामीण महिलाओं को स्वरोजगार योजना के तहत रोजगार उपलब्ध कराने, पुनर्वास गांवों में बुनियादी मानवीय सुविधाएं उपलब्ध कराने की मांगें प्रमुख हैं।
(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)
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