ग्राउंड रिपोर्ट: साहब अभी मैं जिंदा हूं!

मुजफ्फरनगर। चेहरे पर उगी झुर्रियां उपर से परेशानी के गहरे भाव, पसीने से सना हुआ चेहरा, हाथों में फाईल लिए हुए घूम रहे उम्र के 83 पड़ाव पर पहुंच चुके वृद्ध की मनोदशा को देख यह भांपने के लिए काफी थे कि वह किसी गंभीर परेशानी से घिरा हुआ है। कभी बुढ़ाना तहसील गेट तो कभी मुजफ्फरनगर जिला मुख्यालय स्थित विकास भवन व जिलाधिकारी कार्यालय के इर्द-गिर्द चक्कर काटते हुए इस वृद्ध को देखा जा सकता है। जो हर उस शख्स को बताता फिर रहा है कि साहब मैं अभी जिंदा हूं.! क्या मैं आपको दिखता नहीं हूं.?

दरअसल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में एक वृद्ध पिछले 6 सालों से अधिकारियों के चक्कर काट रहा है और कह रहा है कि साहब मैं जिंदा हूं! मुझे कागजातों में जीते जी मार डाला गया है, जबकि हकीकत में धरातल पर अभी भी मैं जिंदा हूं। वोट न देने की रंजिश में मुझे तत्कालीन महिला प्रधान के हस्त लिखित लेटर पैड पर बिना किसी जांच के किए ही तहसीलकर्मियों ने आंखें मूंद कर मुझे जीते जी मृत घोषित कर दिया है।

आश्चर्य कि बात है कि इस वृद्ध की वेदना को देख सुन कर हर किसी को हैरानी होती है, लेकिन इस मामले में संबंधित अधिकारी और तहसील के मुलाजिम चुप्पी लगाए हुए हैं। पूछे जाने पर बस टका सा जवाब मिलता है कि जांच की जा रही है। यह जांच कब तक पूरी होगी? इस सवाल पर सभी कन्नी काटते हुए नजर आने लगते हैं।

अपनी जमीन के कागजात दिखाते 83 वर्षीय बुजुर्ग रघुराज

आश्चर्य कि बात तो यह है कि तहसील के मुलाजिम जहां सवालों से कतराते आ रहे हैं तो ऊपर के अधिकारी कहते हैं मामले को संज्ञान में लिया गया है जांच के निर्देश दिए गए हैं। अब अहम बात यह है कि यह जांच कहां तक आकर फंसी पड़ी है, कौन-कौन इसकी राह में रोड़ा बन गए हैं, कोई खुलकर बताने को तैयार नहीं है।

जाने क्या है पूरा यह मामला

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर बुढ़ाना तहसील क्षेत्र के गांव बिराल के 83 वर्षीय रघुराज पुत्र रतन बताते हैं कि वे 6 भाई थे, जिनमें सबसे बड़े वे खुद हैं, दूसरा मास्टर (मृतक), तीसरा श्याम सिंह जो धनबाद (झारखंड) में हैं। चौथा अमन जिसने गांव की तत्कालीन महिला ग्राम प्रधान से सांठ-गांठ कर उसको (रघुराज) मृत घोषित करवा दिया। 5 वें व छठें बलराज व वीर सिंह जो मृतक हैं। सबके नाम 8 बीघा भूमि है।

इस भूमि में रघुराज यानी उनका हिस्सा हड़पने की नीयत से आरोपी छोटे भाई अमन ने तत्कालीन महिला ग्राम प्रधान के पति दीपक से सांठ-गांठ कर महिला प्रधान अर्चना सिंह के लेटर पैड पर यह लिखवाया कि रतन पुत्र न्यादर ग्राम बिराल, तहसील बुढ़ाना जनपद मुजफ्फरनगर का निवासी है इसकी मृत्यु हो चुकी है। इसकी मृत्यु के बाद इसका जायज वारिस इसके पुत्र अमन का पुत्र रतन है। इसके अलावा इसका अन्य कोई वारिस नहीं है।

गांव की तत्कालीन महिला ग्राम प्रधान अर्चना ने अकेले अमन को एकल वारिस बना दिया, जबकि रघुराज या उसके 4 भाइयों का कोई जिक्र उस लेटर में नहीं किया गया है। इसका पता रघुराज को 6 वर्ष पूर्व तब लगा कि 8 बीघा भूमि में उसका छठा हिस्सा नहीं है, बल्कि उसके भाई अमन ने उसको तत्कालीन चकबंदी अधिकारी व‌ अन्य कर्मचारियों की मिलीभगत से ‘मृत’ घोषित करवा दिया है।

महिला ग्राम प्रधान के लेटर दिखाता रघुराज जिस पर इन्हें मृत घोषित कर दिया गया है

इस बात की जानकारी होते ही मानों उसके पैरों तले जमीन खिसकती हुई नजर आने लगी थी। उसने जीते जी भी यह कल्पना नहीं किया था कि उसका अपना छोटा भाई ही उसके जीते जी ऐसा भी कर सकता है। बहरहाल, अब वह कर भी क्या सकता है, लम्बी लड़ाई और भागदौड़ के साथ अधिकारियों के चौखट के चक्कर काट रहा रघुराज अपने जीवित होने का सबूत लेकर फरियाद करता फिर रहा है कि हुजूर मैं अभी भी जिन्दा हूं। मगर कोई भी संबंधित अधिकारी उसकी फरियाद सुनने को तैयार नहीं है। शायद उनके कान बहरे हो, आंखों पर नोटों की पट्टी बांध दी गई हो?

जीवित होने के बाद भी कागजातों में मृत घोषित कर दिए गए आजमगढ़ के लालबिहारी ‘मृतक’

मुजफ्फरनगर के रघुराज प्रकरण में “जनचौक” को बताते हैं कि किस प्रकार से जीवित को मृत घोषित करने का खेल तहसील के राजस्व रिकार्डों में खेला जाता है। बावजूद इसके अभी भी यह खेल प्रदेश के सभी तहसीलों में जारी है। वह बताते हैं कि “सर्वाधिक विवादों की जड़े इन्हीं तहसीलों से पनपती हैं, जिन्हें भरपूर खाद-पानी देने का काम उंचे रसूख वाले लोगों के इशारे पर दलाल कमीशनखोर लोग तहसील कर्मियों की मिलीभगत से अंजाम तक पहुंचाने का काम करते हैं।” तीन दशक से ज्यादा समय तक लम्बी लड़ाई, आंदोलन करने के बाद अब जाकर कागजातों में जीवित हुए लालबिहारी ‘मृतक’ खुद की लड़ाई के साथ अन्य लोगों के लिए भी खड़े होते आएं हैं। जिन्हें जीते जी कागजों में मृत घोषित कर दिया गया था। वह कहते हैं “जीवित होने के बाद भी मृत घोषित कर दिए गए पीड़ितों की पीड़ा को भला यह क्या जाने जो सौ पचास रूपए के लिए अपना ईमान धर्म और ज़मीर तक ताक पर रख देते हैं, भला इनसे कैसे कोई न्याय की उम्मीद करेगा?”

पूर्व महिला प्रधान की करतूत

पंचायत चुनाव में मतदान न करना किसी के लिए कितना घातक साबित हो सकता है यह भला बुढ़ाना तहसील क्षेत्र के बिराल गांव निवासी रघुराज से बेहतर कौन जान समझ सकता है। दरअसल, बिराल के रघुराज के साथ हुई साजिश कोई मानवीय त्रुटि नहीं है, बल्कि सोची समझी साजिश है। धन संपत्ति के लोभी छोटे भाई की कपटपूर्ण नीतियों ने और पूर्व महिला ग्राम प्रधान के पक्ष में मतदान न करना रघुराज को भारी पड़ा है। रघुराज के छोटे भाई अमन को सह देकर पूर्व महिला ग्राम प्रधान और उसके पति ने जहां अपनी चुनावी खुन्नस निकाल ली है वहीं छोटे भाई ने बड़े भाई को मृत घोषित करवा दिया और उनके हक अधिकार पर कुंडली मारकर बैठ गया।

सवाल यह उठता है कि आखिरकार कैसे राजस्व कर्मियों ने ग्राम प्रधान के लेटर पैड को आधार बनाकर जीते जी रघुराज को मृत घोषित कर दिया है? क्या उन्होंने इसकी गहनता से जांच पड़ताल की, रघुराज की मृत्यु कब कहां और कैसे हुई यह जानने का प्रयास किया तब पता चला।  

पीड़ित बुर्जुग रघुराज कहते हैं मृत घोषित किए जाने की जानकारी होने पर मैंने जब तहसील कार्यालय में जाकर साक्षात सामने खड़े होकर मृत होने का दस्तावेज दिखाने की बात कही तो फटकार लगाते हुए भगा दिया गया। बाद में काफी प्रयास से जानकारी हुई कि महिला ग्राम प्रधान ने अपने लेटर पैड पर मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किया है, जिसे आधार बनाकर राजस्व अभिलेखों में मुझे मृत घोषित कर दिया गया है।

विधानसभा के सामने आत्मदाह की दी है चेतावनी

छोटे भाई की करतूत, महिला ग्राम प्रधान की चुनावी खुन्नस और तहसीलकर्मियों की भ्रष्टाचार पूर्ण नीतियों की जुगलबंदी स्वरूप राजस्व रिकॉर्डो में मृत दर्शा दिए गए रघुराज 83 साल की अवस्था में भले ही शरीर से थक-हार चुके हैं, लेकिन मन से दृढ़ संकल्पित हैं। वह कहते हैं “इस अन्याय और मनमानी का अंतिम सांस तक डट कर मुकाबला करते हुए अपने हक अधिकार की लड़ाई जारी रखेंगे। जब तक कि मुझे न्याय और दोषियों व इसमें शामिल रहे लोगों को जेल न हो जाए तब तक पीछे हटने का नाम नहीं लेंगे।”

रघुराज के शब्दों में दर्द, पीड़ा, कसक तो है ही साथ ही साथ दृढ़ता और अन्याय के खिलाफ न्याय को लेकर संकल्प भी दिखलाई देता है। इससे भी बात न बनी तो वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लखनऊ, गोरखपुर में जाकर मिलेंगे और अपनी फरियाद उन्हें सुनाएगें। अगर वहां भी सुनवाई नहीं हुई तो विधानसभा के सामने वह आत्मदाह करने के लिए विवश होंगे।

यूपी की तहसीलें बनी है भ्रष्टाचार की पोषक

कहना ग़लत नहीं होगा कि यूपी की सत्ता संभालने के बाद तहसील और थानों में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने, पीड़ितों को त्वरित न्याय दिलाने की बात करने वाली भाजपानीत योगी आदित्यनाथ की सरकार भी इसे रोक पाने में विफल रही है। बल्कि तहसील कार्यालयों में दलालों और भ्रष्टाचार का बोलबाला बढ़ा है। बुढ़ाना, मुजफ्फरनगर के रघुराज कोई एकलौते पीड़ित नहीं हैं जिन्हें जीते जी राजस्व रिकार्ड में मार डाला गया हो, बल्कि कई ऐसे रघुराज हैं जो अपने को जीवित घोषित करने के लिए दर-दर की ठोकरें खाते फिर रहे हैं।

मुजफ्फरनगर का तहसील बुढ़ाना

कुछ समय पूर्व मिर्ज़ापुर जिले के मड़िहान और सदर तहसील क्षेत्र से जुड़े हुए भी दो मामले सामने आए थे, जिनमें भाई-पाटीदारों और राजस्व कर्मचारी की मिलीभगत से अपनों को जीवित रहते हुए भी सरकारी दस्तावेजों में मृत घोषित कर दिया गया था, जिन्हें जीवित होने के लिए काफी मशक्कत करना पड़ा है। लंबे संघर्ष और आंदोलन के बाद न्याय तो मिला है, लेकिन उन दिनों में मिली हुई पीड़ा की कसक आज भी ज़ेहन में बनी हुई है।

आवाज उठाने पर होते हैं फर्जी मुकदमें

राष्ट्रीय मानव अधिकार कमीशन की जौनपुर जिला इकाई ने तहसीलों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर गहरी चिंता जताई है। कमीशन के जौनपुर जिला महामंत्री बजरंग बहादुर सिंह उर्फ़ बजरंगी ने मुख्यमंत्री से मामले की विशेष जांच समिति से जांच कराकर कार्रवाई की मांग की है।

बजरंगी सिंह की माने तो ‘यूपी की तहसीलें भ्रष्टाचार की पोषक बन चुकी हैं। जहां ना तो कदाचार है ना तो सदाचार यदि कुछ है तो सिर्फ भ्रष्टाचार जिसके आगे गरीब ग्रामीणों की आवाज दबकर रह जाती है। ‘बजरंगी सिंह की शिकायत है कि जौनपुर जिले की केराकत तहसील की वर्तमान एसडीएम तानाशाही कर रही हैं। उनका हाल यह है कि यदि कोई पत्रकार या अधिवक्ता उनके तहसील क्षेत्र की कमियों को दिखाता है तो वह उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करा देती हैं।

बजरंगी ने पेसारा गांव के प्रकरण का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां के गौशाला में गायों के मरने की खबर अख़बार में छापने और सोशल मीडिया में दिखाने पर एसडीएम ने चार पत्रकारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया है। इस प्रकरण को प्रेस कौन्सिल ने संज्ञान में लिया था और प्रदेश तथा जिला प्रशासन से आख्या मांगी थी।

खुद उन्होंने तहसील बार अधिवक्ताओं का मुद्दा भी उठाया और लिखा है कि केराकत तहसील के एक कर्मचारी से अधिवक्ताओं की बहस होने पर उन्होंने अनेक अधिवक्ताओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया। बजरंगी सिंह ने अपने पत्र के माध्यम से मुख्यमंत्री से तहसीलों में व्याप्त भ्रष्टाचार और इसमें संलिप्त अधिकारियों कर्मचारियों सहित समाधान के प्रति उदासीनता बरतने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की है।

 (मुजफ्फरनगर से संतोष देव गिरी की रिपोर्ट)

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