कर्नाटक में 3 दिन के काम के लिए 5 करोड़ के बिल पर हाईकोर्ट हैरान

कर्नाटक। कर्नाटक जहां अब तक 40 फीसद कमीशन को लेकर दो ठेकेदार आत्महत्या कर चुके हैं कई मंत्री आरोपों के घेरे में हैं। एक मंत्री पुत्र गिरफ्तार हो चुके हैं। यहां 3 दिन के काम के लिए 5 करोड़ रुपये का बिल बनता है। अब नया मामला कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पकड़ा है।

उच्च न्यायालय ने सोमवार को हेमवती नहर इकाई के एक सरकारी कार्यकारी अभियंता द्वारा नहर के काम के लिए लगभग 5 करोड़ रुपये के भुगतान को मंजूरी देने के भुगतान विवरण पर आश्चर्य व्यक्त किया, जो कथित तौर पर तीन दिनों में पूरा हो गया था। अब आप अंदाजा लगायें कि इसमें सरकारी धन का किस अनुपात में बंदरबांट किया गया होगा।

जस्टिस नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश की पीठ ने राज्य को निर्देश दिया कि वह इंजीनियर के. श्रीनिवास पर मुकदमा न चलाने के अपने फैसले को सही ठहराने वाले रिकॉर्ड पेश करे, जिन्होंने कोविड लॉकडाउन अवधि के दौरान धन जारी किया था।

पीठ ने कहा कि 27 मार्च, 2020 को नहर और वीयर में कुछ निर्माण के लिए एक पी के शिवरामू को कार्य आदेश के रूप में रिकॉर्ड पर सामग्री के अवलोकन ने अदालत के “विवेक को झकझोर दिया”। जब महामारी के बीच में इसे जारी किया गया था। उस समय पूरे देश को बंद कर दिया गया था।

वर्क ऑर्डर जारी होने के तीन दिन बाद काम पूरा होने की उम्मीद थी और 5.02 करोड़ रुपये का बिल जमा किया गया और तुरंत मंजूरी दे दी गई। एकल पीठ ने कहा कि यह तब किया गया जब सभी काम निलंबित थे और कार्यालय बंद थे।

याचिकाकर्ता नागेगौड़ा ने राज्य सरकार के मार्च 2022 के उस आदेश को रद्द करने की मांग की थी जिसमें लोकायुक्त के समक्ष मामला लंबित होने का हवाला देते हुए इंजीनियर के खिलाफ मुकदमा चलाने से इनकार कर दिया था। हालांकि लोकायुक्त ने वास्तव में यह कहते हुए मामले को बंद कर दिया था कि मामले में कुछ भी अनुचित नहीं है।

प्रतिवादी ने तर्क दिया कि उसने सार्वजनिक खरीद अधिनियम में कर्नाटक पारदर्शिता के तहत धन स्वीकृत किया था, और यह कि लोकायुक्त ने निर्णय लिया था कि कानून में कोई समस्या नहीं थी। यह भी प्रस्तुत किया गया था कि विचाराधीन याचिकाकर्ता का इस मामले में कोई अधिकार नहीं था।

एकल पीठ ने कहा कि उपरोक्त तथ्यों के साथ, यह और भी चौंकाने वाला है कि कैसे सक्षम प्राधिकारी ने इस आधार पर मंजूरी देने से इनकार कर दिया है कि लोकायुक्त के समक्ष एक समान मामला लंबित है। इस तथ्य के बावजूद कि उक्त तिथि पर लोकायुक्त के समक्ष कार्यवाही पहले ही बंद कर दी गई थी।

प्रतिवादी ने अपने पैसे का आदान-प्रदान नहीं किया है या सक्षम प्राधिकारी, जिसने मंजूरी को खारिज कर दिया है, ने अपना पैसा नहीं खोया है। जिस चीज की अदला-बदली की जाती है वह जनता का पैसा है।

कांग्रेस ने कर्नाटक में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के एक विधायक के पुत्र की भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तारी के बाद कहा कि यह साबित हो गया है कि प्रदेश में ‘40 प्रतिशत कमीशन सरकार’ है। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने कहा, ‘‘यह बहुत खराब स्थिति है।”

कांग्रेस ने कहा कि भाजपा की कृपा से मैसूर के संदल साबुन में भ्रष्टाचार की दुर्गन्ध भर गई है। कर्नाटक में भाजपा विधायक के बेटे 40 लाख की घूस लेते हुए पकड़े गए। ठेकेदार से 81 लाख की घूस मांगी गई थी और बीते 24 घंटे में 7 करोड़ 20 लाख बरामद हो चुके हैं।

कांग्रेस ने कहा कि हमने कर्नाटक की भाजपा सरकार को ’40 प्रतिशत कमीशन सरकार’ कहा तो इन्हें बुरा लगा, जबकि कर्नाटक के ‘कांट्रैक्टर एसोसिएशन’ ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर कहा था कि राज्य में निविदा के लिए 40 प्रतिशत कमीशन देना पड़ता है। इसके चलते भाजपा के एक कार्यकर्ता ने आत्महत्या कर ली और आरोप लोक निर्माण मंत्री पर था।

दरअसल कर्नाटक में लोकायुक्त अधिकारियों ने भारतीय जनता पार्टी के विधायक मदल विरुपक्षप्पा के बेटे प्रशांत कुमार को 40 लाख रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में पकड़े जाने के बाद मारे गये छापे में विधायक पुत्र के घर से छह करोड़ रुपये से अधिक की बेहिसाब नकदी बरामद की।

भाजपा विधायक ने अपने बेटे के खिलाफ लोकायुक्त की कार्रवाई के बाद केएसडीएल के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। हालांकि उन्होंने दावा किया कि भ्रष्टाचार-निरोधक एजेंसी द्वारा की गई छापेमारी उनके और उनके परिवार के खिलाफ एक साजिश है।

कॉन्ट्रैक्टर एसोसिएशन का आरोप है कि ठेकेदारों को सरकार में शामिल अधिकारियों को 40 फीसदी कमीशन देने के लिए मजबूर किया जाता है। इस मामले में ठेकेदारों ने पिछले साल भी पीएम मोदी को खत लिखा था। उनका कहना है कि बीते एक साल में इस मामले में कोई राहत नहीं मिली है।

कर्नाटक में विधानसभा चुनाव में कुछ ही महीनों का वक्त बचा है और बसवराज बोम्मई सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हुई है। कर्नाटक के कॉन्ट्रैक्टर एसोसिएशन ने एक बार फिर 40 फीसदी कमीशन मांगने का आरोप लगाते हुए कर्नाटक सरकार को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया। आरोप है कि ठेकेदारों को सरकार में शामिल अधिकारियों को 40 फीसदी कमीशन देने के लिए मजबूर किया जाता है।

कर्नाटक स्टेट कॉन्ट्रैक्टर एसोसिएशन ने किसी मंत्री या अधिकारी का नाम नहीं लिया है हालांकि कुछ दिन पहले इसने बागवानी मंत्री एन मुनिरत्ना पर ठेकेदारों से पैसे वसूलने के लिए धमकाने का आरोप लगाया था। मुनीरत्ना ने आरोपों के साबित न होने पर एसोसिएशन के खिलाफ केस दर्ज करने की चेतावनी दी है।

सीएम बसवराज बोम्मई ने इसे बेबुनियाद बताया। उन्होंने कहा कि संघ ने नेता प्रतिपक्ष से मुलाकात के बाद आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे दावों में कोई विश्वसनीयता नहीं है। उन्होंने कहा, ‘आधारधीन आरोप और कुछ नहीं बल्कि राजनीति से प्रेरित हैं।’ पिछले दिनों एनडीटीवी से बातचीत में संघ के कुछ सदस्यों, जो ठेकेदार भी हैं, ने कैमरे पर अधिकारियों को काम शुरू करने के एवज में रिश्वत देने की बात कबूली।

6 जुलाई को लिखे खत में केपन्ना ने कहा था कि स्थानीय ठेकेदारों को टेंडर राशि का 25 से 30 फीसदी कमीशन काम शुरू होने से पहले देना पड़ता है। काम पूरा होने के बाद बकाया बिल के एवज में लेटर ऑफ क्रेडिट जारी करने के बदले 5-6 फीसदी हिस्से के लिए उत्पीड़न किया जाता है।

अप्रैल 22में उडुपी में एक सिविल ठेकेदार संतोष पाटील ने आत्महत्या कर ली। उन्होंने एक सड़क परियोजना के लिए अधिकारियों पर 40 फीसदी कमीशन देने के लिए बाध्य करने का आरोप लगाया था। आत्महत्या से एक महीने पहले पाटील ने केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह को खत लिखा था और बीजेपी के तत्कालीन मंत्री के एस ईश्वरप्पा पर आरोप लगाया था। पाटील की मौत के बाद ईश्वरप्पा को पद से इस्तीफा देना पड़ा था।

कर्नाटक में ठेकेदार की मौत के मामले में मंत्री और भाजपा नेता ईश्वरप्पा के ऊपर ठेकेदार संतोष पाटिल को सुसाइड के लिए उकसाने का आरोप लगा है। इस मामले में ईश्वरप्पा के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज कर ली गई है। यह प्राथमिकी ठेकेदार संतोष के भाई प्रशांत की शिकायत पर दर्ज की गई है।

इस बीच एक और ठेकेदार ने भी आत्महत्या कर लिया है। कॉन्ट्रैक्टर की पहचान टीएन प्रसाद के रूप में हुई है। उन्हें स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अंतर्गत 16 करोड़ रुपये की सरकारी योजना पर काम करना था।

मौजूदा मामले में पुलिस का कहना है कि ठेकेदार को साहूकारों बकाया चुकाना था। काम के आवंटन में देरी और साहूकारों के दबाव ने उसे एक निरीक्षण बंगले में अपना जीवन समाप्त करने का कदम उठाने के लिए मजबूर किया, उसी इमारत का वह जीर्णोद्धार कर रहा था।

(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार एवं कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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