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झारखंड विधानसभा चुनावों से गायब हैं जनता के मुद्दे

झारखंड में पहले चरण का मतदान 30 नवंबर को संपन्न हो चुका है। दूसरे चरण का मतदान सात दिसंबर को है। इस बीच राज्य के विभिन्न जन संगठनों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के मंच और झारखंड जनाधिकार महासभा के भारत भूषण चौधरी, डेविड सोलोमन, एलिना होरो, मंथन, मो. जियाउल्लाह और सिराज द्वारा विधानसभा चुनाव के लिए जारी विभिन्न राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों का आकलन किया गया। बाद में इसकी समीक्षा रिपोर्ट जारी की गई।

रिपोर्ट में कहा गया है कि विपक्षी दलों ने भुखमरी, कुपोषण और कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित होने के मुद्दोंपर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है। किसी भी दल ने जन वितरण प्रणाली और सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनाओं के कवरेज को बढ़ाने की बात नहीं की है। कल्याणकारी योजनाओं को आधार से जोड़ने के कारण व्यापक स्तर पर लोग अपने अधिकारों से वंचित होते रहे हैं, बावजूद किसी भी दल ने आधार को योजनाओं से हटाने की बात नहीं की है। नागरिक अधिकारों पर लगातार हो रहे हमलों पर भी विपक्षी दलों की चुप्पी है।

किसी भी दल ने स्पष्ट रूप से देशद्रोह मामलों के क्लोजर, पुलिस छावनियों को स्कूलों से हटाने और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की घोषणा नहीं की है। समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि झारखंड विधान सभा चुनाव का प्रचार प्रसार पहले चरण से ही बड़े जोर-शोर से शुरू हो गया। पहले चरण के मतदान में अच्छी संख्या में नागरिक अपने वोट के संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल करने निकले थे। यह चुनाव झारखंड में लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। पिछले पांच सालों में जन अधिकारों और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों पर लगातार हमले हुए।

जैसे सीएनटी—एसपीटी में संशोधन की कोशिश, भूमि अधिग्रहण क़ानून में बदलाव लैंड बैंक नीति, भूख से हो रही मौतें, भीड़ द्वारा लोगों की हत्या, आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक और महिलाओं के विरुद्ध बढ़ती हिंसा, सरकार द्वारा प्रायोजित संप्रदायिकता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले, आदिवासियों के पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था पर प्रहार एवं बढ़ता दमन आदि।

ऐसे महत्त्वपूर्ण चुनाव में, यह समझना अत्यंत आवश्यक है कि राजनीतिक दलों की जन मुद्दों के सवालों पर क्या प्रतिक्रिया है। झारखंड जनाधिकार महासभा, विभिन्न जन संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के मंच ने लोक सभा और वर्तमान विधान सभा चुनावों के पहले जन मुद्दोंपर आधारित मांग पत्र निर्गत किया था और विपक्षी दलों से जन मुद्दों पर स्पष्ट प्रतिबद्धता दर्शाने की मांग की थी।

महासभा ने राजनीतिक दलों द्वारा विधानसभा चुनाव के लिए निर्गत घोषणा पत्रों का आकलन किया है। भाजपा के घोषणा पत्र से यह स्पष्ट झलकता है कि पार्टी पिछले पांच सालों में हुए जन अधिकारों के लगातार हनन को न मानने को तैयारहै और न ही उनके निराकरण के लिए कुछ करने को।

भाजपा द्वारा एनआरसी लागू करने की बात से पार्टी की गरीब विरोधी और सांप्रदायिक सोच झलकती है। आजसू पार्टी के घोषणा पत्र में भी अधिकांश जन मुद्दों पर चुप्पी है। कुछ मुद्दों का ज़िक्र है, जैसे वन अधिकार अधिनियम का कार्यान्वयन, मॉब लिंचिंग के विरुद्ध कानून एवं पिछड़ों के लिए आरक्षण।

विपक्षी दलों में कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) और भाकपा (माले) द्वारा कई जन मुद्दों को घोषणा पत्र में जोड़ने का महासभा स्वागत करती है, लेकिन कांग्रेस, झामुमो और झाविमो के घोषणा पत्रों में अनेक जन मांगों (जो पिछले पांच सालों की समस्याओं पर आधारित थीं) पर चुप्पी है।

हालांकि भाकपा (माले) ने विधानसभा के लिए विस्तृत घोषणा पत्र निर्गत नहीं किया है (जैसा लोकसभा चुनाव के लिए किया था), लेकिन उनके संकल्प पत्र में पिछले पांच वर्षों के सभी मूलभूत मुद्दे झलक रहे हैं।

लैंड बैंक नीति के विरुद्ध लोगों द्वारा लगातार विरोध के बावजूद, किसी भी दल ने उसे निरस्त करने की बात नहीं की है। कांग्रेस द्वारा जन विरोधी परियोजनाओं जैसे अडानी पावर प्लांट, मंडल डैम और ईचा खरकई डैम को रद्द करने की घोषणा स्वागत योग्य है, लेकिन झामुमो ने केवल इन परियोजनाओं की समीक्षा की बात की है, लेकिन झाविमो ने इस पर कुछ भी घोषणा नहीं की है।

आदिवासियों की एक मूल मांग रही है, पांचवीं अनुसूची प्रावधानों को लागू करना, लेकिन झाविमो के अलावा किसी भी दल ने इसको अपने घोषणा पत्र में शामिल नहीं किया है। वर्तमान डोमिसाइल नीति को रद्द कर आदिवासियों-मूलवासियों के हित में नीति बनाने पर भी किसी भी दल ने स्पष्ट घोषणा नहीं की है।

सभी विपक्षी दलों द्वारा माब लिंचिंग के विरुद्ध कानून बनाने की घोषणा का महासभा स्वागत करती है, लेकिन गोवंश पशु हत्या निषेध कानून को निरस्त करने की मांग पर सभी दलों में चुप्पी है। यह गौर करने की बात है कि कई मॉब लिंचिंग के पीड़ितों पर इस कानून के अंतर्गत मामला दर्ज कर उनकी परेशानियों को और बढ़ाया गया है। इस कानून का सीधा असर मवेशियों के व्यापार पर भी पड़ रहा है। यह दर्शाता है कि विपक्षी दलों की राजनीति में भी धर्मनिरपेक्षता और समानता के मूल्यों के विपरीत धार्मिक बहुसंख्यकवाद की विचारधारा बढ़ती जा रही है। इसका एक और उदहारण है धर्म स्वातंत्र्य कानून को रद्द करने के मांग पर दलों की चुप्पी।

भाजपा द्वारा लगातार विकास के दावों के बीच ही झारखंड में पिछले पांच वर्षों में कम-से-कम 23 भूख से मौतें हो गईं, लेकिन विपक्षी दलों ने भुखमरी, कुपोषण और कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित होने के मुद्दों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया, केवल कांग्रेस ने जन वितरण प्रणाली अंतर्गत राशन की मात्रा को बढ़ाकर 35 किलो प्रति माह और दाल जोड़ने की बात की है। किसी भी दल ने जन वितरण प्रणाली और सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनाओं की कवरेज को बढ़ाने की बात नहीं की है।

हालांकि कुपोषण में झारखंड देश के अव्वल राज्यों में से एक है, किसी भी दल ने मद्ध्यान भोजन और आंगनबाड़ी में मिलने वाले अंडों की संख्या बढ़ाने की घोषणा नहीं की है। कल्याणकारी योजनाओं को आधार से जोड़ने के कारण व्यापक स्तर पर लोग अपने अधिकारों से वंचित होते हैं, लेकिन किसी भी दल ने आधार को योजनाओं से हटाने की बात नहीं की है।

हालांकि पिछले पांच वर्षों में नागरिक अधिकारों पर लगातार हमले हुए हैं। विपक्षी दल इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए हैं। महासभा लगातार पत्थलगड़ी गावों में हो रहे सरकारी दमन और मानवाधिकारों के उल्लंघनों के विरुद्ध आवाज़ उठाती रही है। हज़ारों अज्ञात लोगों, खास कर आदिवासियों पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया है, लेकिन किसी भी दल ने स्पष्ट रूप से देशद्रोह मामलों के क्लोज़र, पुलिस छावनियों को विद्यालयों से हटाए जाने और दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की घोषणा नहीं की है।

यह चिंताजनक है कि चुनावी मौसम में, राजनीतिक दलों का ध्यान, जन मुद्दों के बजाए, दूसरे दलों से नेताओं का दल-बदल करवाने पर है। विपक्षी दलों ने अपने घोषणा पत्रों में जो भी जन मुद्दों को शामिल किया है, वे भी उनके चुनावी अभियान की चर्चाओं में नहीं झलक रहे हैं। दूसरी ओर भाजपा अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए राम मंदिर और 370 को मुद्दा बना कर वोटों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रही है।

समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि झारखंड जनाधिकार महासभा सभी विपक्षी दलों से मांग करती है कि वे धार्मिक ध्रुवीकरण के विरुद्ध स्पष्ट प्रतिबद्धता दर्शाएं और अपने चुनावी अभियान में जन मुद्दों पर अपनी प्रतिक्रिया को लोगों के समक्ष रखें। महासभा राज्य के नागरिकों से अपील करती है कि वोट डालने से पहले जन मुद्दों पर राजनीतिक दलों की प्रतिबद्धता का आकलन ज़रूर करें। महासभा आशा करती है कि इस बार झारखंड में लोकतंत्र और संविधान के संरक्षण और जन मांगों को पूर्ण करने वाली सरकार बनेगी।

(रांची से जनचौक संवाददाता विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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