ग्राउंड रिपोर्ट: बनारस में सूखे के कारण गेंदा फूल की खेती को बड़े पैमाने पर नुकसान

उत्तर प्रदेश। बनारस के रिंग रोड पर सरपट दौड़ते मालवाहक वाहन भले ही अर्थशास्त्र की व्याख्या में विकास के योगदान में सहभागी आयाम हो सकते हैं। लेकिन इन हाइवे\रिंग रोड से स्थानीय ग्रामीण किसानों का विशेष वास्ता नहीं है। रिंग रोड से लगी सर्विस लेन के दोनों तरफ आबादी को छोड़कर लगातार खेतों का विस्तार है। राजातालाब तहसील में तकरीबन 50 हेक्टेयर में किसान गेंदा फूल की खेती करते हैं। इन दिनों गेंदे के खेतों में गर्मी की मार झेल चुके पौधे अविकसित, जल जमाव से गलन के कगार पर, मृदा कीट प्रकोप और उकट्ठा की समस्या से परेशान किसानों को देखा जा सकता है। बतौर किसान, मौसम की दोतरफा मार झेल चुके गेंदा फूल किसानों की आय दोगुनी तो छोड़िये, लागत भी निकालना मुश्किल लग रहा है। राजातालाब तहसील के कई गांवों में जाकर जनचौक की टीम गेंदा फूल किसानों से मिली। “पांच-छह साल से गेंदा फूल की खेती में बहुत नुकसान हो रहा है। अन्य कोई रोजी-रोजगार नहीं होने की वजह से सब्जी और गेंदे की खेती करना मजबूरी है। पहले जब बच्चे छोटे थे तब घर की गृहस्थी को आगे बढ़ाने के लिए मेरे पति बुनकरी का काम करते थे। उससे चार बच्चे समेत परिवार का गुजारा नहीं हो पाता था। फिर मैं गांव में दूसरे गेंदा फूल किसानों के खेत में निराई-गुड़ाई के लिए जाती थी। उन लोगों को मैं अच्छे मुनाफे की बातें करते सुनती थी। फिर मुझे लगा कि क्यों न अपनी भी गेंदे की खेती हो।”
गेंदा फूल किसान सावित्री पाल
“फिर साल 2013 में मैंने पांच बिस्वा भूमि बंटाई पर लेकर पांच हजार की लागत और अपने श्रम के बाद कुल 18 हजार रुपए की बचत हुई। अधिक कीमत के लिए मैं स्वयं अपने गांव से 30-35 किमी दूर मलदहिया फूल मंडी फूल बेचने जाती थी। आमदनी बढ़ी तो परिवार का खर्च चलना आसान हो गया था। तब से लेकर अब तक खेती कर रही हूं। बीच में दो बेटियों की शादी भी यथाशक्ति कर दी। अब बेटा बड़ा हो गया है अगले गांव के चौराहे पर रिंग रोड के किनारे जलपान की दुकान चलता है। पारिवारिक जिम्मेदारी से थोड़ी फुर्सत मिली है।” “जनचौक” से अपनी बात कहते हुए गंजारी-हरसोस गांव की पचास वर्षीय सावित्री पाल साड़ी के पल्लू से आंखों की नमी को सूखाने लगीं। शायद कड़ी मेहनत और संघर्ष के दास्तान को कहते हुए उन्हें वे दिन याद आ गए थे, जिन्हें वे बड़ी तकलीफ से काटे थे। सावित्री के खेतों के आसपास के खेतों में छोटे-छोटे रकबे में धान, बाजरा, सब्जी, और गेंदा के फूल लगे हुए हैं। सावित्री ने इस बार 3 बिस्सा में गेंदा की खेती की है। वह बताती हैं “इस खेत में तीन बार फूल के पौधों की रोपाई कर चुकी हूं, लेकिन अब भी पौधों के उकठने और सूखने का सिलसिला नहीं थमा है। कीटनाशक, खाद, पानी, पौधे की खरीद आदि पर अब तक मेरे श्रम को छोड़कर पांच हजार रुपये भी खर्च हो चुके हैं। मुझे उम्मीद थी कि कम से कम इस साल दशहरा और दीवाली पर अच्छी आमदनी हो जाएगी, लेकिन यहां तो पौधों का विकास ही पर्याप्त नहीं हो पाया है। जबकि, इस मौसम में खेत फूलों से लदकद होने चाहिए थे। ऐसा ही रहा तो मध्य नवम्बर में फूल खिलेंगे। तब तक मंडी में फूलों की कीमत बहुत गिर जाती है। जिसकी आमदनी से लागत और मजदूरी काटने के बाद कुछ बचत नहीं होती है। क्या इसे ही दोगुनी आय कहते हैं? मेरे पास कोई काम नहीं होने से यह कर रही हूं, अन्यथा अब कोई बचत नहीं है।”
गेंदा फूल के विकास धीमी होने और जल जमाव से निराश किसान प्रमोद कुमार
बनारस और आसपास के कई जिलों में पिछले डेढ़-दो दशक से गेंदा फूल की खेती ग्रामीण क्षेत्र के किसान कर रहे हैं। पिछले दो-तीन सालों से कभी मौसम की मार तो कभी बाजार के उतार-चढ़ाव के आगे हजारों फूल किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। अमूमन गेंदा फूल की खेतों में सितंबर लास्ट और अक्टूबर के शुरुआत में बहार आ जाती है, लेकिन इस बार तो मानो खेती को किसी की नजर लग गई है। खेत उदास हैं और किसानों को उम्मीद के बीज बोने के अलावा कोई चारा नहीं है। हरसोस से कुछ ही किमी की दूरी पर दीनदासपुर स्थित है। पचपन वर्षीय गेंदा फूल किसान प्रमोद कुमार उर्वरक और कीटनाशक लाने के लिए बाजार जा रहे थे। रास्ते में वह खेत में गेंदा फसल का निरिक्षण कर रहे थे, तभी “जनचौक” की टीम उनके खेत पर पहुंचती है। वह कहते हैं “मैं पंद्रह साल से गेंदा फूल की खेती कर रहा हूं। हाल के कई सालों में गेंदा की खेती से घाटा लग रहा है। चूंकी बाजार की उपलब्धता और कम लागत की वजह से मुझे इसकी खेती अच्छी लगती है। यही वजह है कि घाटे के बाद भी इस उम्मीद में जुटा हुआ हूं कि शायद इस वर्ष अच्छी आमदनी हो जाए। चालू खरीफ में 5 बिस्वा में 7 की लागत के बाद भी पौधे काफी छोटे हैं, जबकि इनकी खातिदारी में मैंने कोई कसर नहीं छोड़ी है। तब भी दिसंबर के मध्य में फूल आएंगे। तब तक दशहरा और दीपावली हाथ से निकल जाएगा। इस मानसून की बेरुखी और सीजन के अंत समय की बारिश-उमस ने काफी परेशान किया है।”
वाराणसी उद्यान विभाग अधिकारी ज्योति कुमार सिंह
पिंडरा क्षेत्र के भड़ाव गांव के युवा किसान दिलीप सैनी दोपहर के वक्त फूल की खेती में निराई-गुड़ाई में जुटे हुए थे। वह बताते हैं “मेरे परिवार में कई पीढ़ियों से लोग-बाग़ फूल की खेती करते आ रहे हैं। मैंने 30 बिस्वा (एक एकड़) में गेंदा की खेती की है। अब तक 20 हजार की लागत आ चुकी है। मेरे गेंदे के पौधों में आगामी 15-20 दिन में फूल खिलेंगे। मंडी में अभी फूलों की कीमत ठीक मिल रही है, लेकिन जैसे ही हमलोगों के खेतों से फूलों का उत्पादन शुरू होगा, ठीक वैसे ही मंडी में फूलों की खरीद औने-पौने दामों में होने लगेगी। किसानों से अधिक मुनाफा आढ़ती और व्यापारी कमाते हैं। मान लीजिये वे (आढ़ती), हमसे 10 रुपए प्रति माला खरीदेंगे तो वे अपना माल सीधे दुगना दाम यानी 20 रुपए प्रति माला बेचेंगे। अब आप ही बताइये। क्या इसी तरह से किसानों या कैश क्रॉप की खेती करने वालों किसानों की आय दोगुनी होगी ? हमलोग भूमि, कीटनाशक, खाद, पानी, श्रम, किराया-भाड़ा आदि खर्च करने बाद क्या कमा रहे हैं ? वहीं, आढ़ती बैठे-बैठे हमारे माल को दुगने दाम पर बेचकर हमसे ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं। सरकार और स्थानीय प्रशासन को इन कमियों को दूर करना चाहिए ताकि, मुनाफे का सही भाग किसानों तक पहुंचे, न कि मुनाफाखोर आढ़तियों के पास।” बनारस में फूल उत्पादन के लिए मशहूर, जिला उद्यान विभाग के आंकड़ों में बड़ागांव, राजातालाब, चिरईगांव, चोलापुर, हरहुआ, कशी विद्यापीठ, पिंडरा और सेवापुरी विकासखंड और लखीमपुर, सरहरी, मिल्कीपुर, काशीपुर, भद्रकला, कैथी, इंद्रपुर, लोहता, भट्ठी में बड़े पैमाने पर हजारा गेंदे की खेती होती है। सुखाड़ हालात और लौटते मानसूनी बारिश की मार से धन्नीपुर, गोपालपुर, दीनापुर, चिरईगांव और फूलपुर में बड़े पैमाने पर देसी-विदेशी गुलाब की खेती करने वाले किसानों के चेहरे मुरझाये हुए हैं। सैकड़ों गांवों में 30 हजार से अधिक किसान फूल की खेती करते हैं। इनमें गेंदा और गुलाब प्रमुख है। वाराणसी जनपद में विकासखंडवार गेंदा फूल के खेती का रकबा, विकासखंड  क्षेत्रफल (हेक्टेयर में), बड़ागांव- 36, चिरईगांव- 65, आराजीलाइन- 72, चोलापुर- 30, हरहुआ- 42, काशी विद्यापीठ- 70, पिंडरा- 52, सेवापुरी- 43 । क्या कहते हैं अधिकारी वाराणसी जिला उद्यान निरीक्षक ज्योति कुमार सिंह “जनचौक” से कहते हैं कि “जनपद में वर्ष 2021 के रबी, जायद और खरीफ सीजन को मिलकर 410 हेक्टेयर में दो हजार से अधिक किसान खेती कर रहे हैं। मौसमी आपदा यथा बाढ़, सूखा या अन्य बीमारी की वजह से फसल के 30 फीसदी से अधिक नुकसान होने पर राजस्व कर्मियों द्वारा सर्वेक्षण कराया जाता है। इसके बाद नुकसान की भरपाई की जाती है। वहीं, मौजूदा समय में गेंदा फूल की खेती फसल बीमा योजना के तहत कवर में नहीं आती है। इसलिए फूल किसानों को नुकसान आदि भरपाई आदि के तौर पर बीज, एग्रो किट, अगली फसल पर सब्सिडी और अन्य सुविधाएं दी जाती हैं, ताकि किसान भाई नई फसल या खेती में समय से जुटकर अच्छी उपज प्राप्त कर लें। जनपद में जो भी फूल की खेती करना चाहते हैं, वे यूपी हॉर्टिकल्चर की वेबसाइट पर जाकर आवेदन करें या जिला उद्यान कार्यालय कचहरी आकर आधार कार्ड, बैंक खाता पासबुक, वोटर कार्ड की छायाप्रति जमा कर रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं।” (उत्तर प्रदेश के वाराणसी से पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट।)
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