लोकसभा चुनाव को एक आंदोलन की तरह लड़ना होगा: दीपंकर भट्टाचार्य

पटना। “आज जो डिसास्टर हमारे सामने है, उसके प्रति पहले रेस्क्यू और फिर पुनर्निर्माण की लड़ाई लड़नी होगी। फासिस्ट ताकतें केवल 5 या पचास साल नहीं बल्कि अगले सौ साल तक की सोच रही हैं। ऐसे में लोकतंत्र की हिमायती ताकतें महज चुनाव के नजरिए से चीजों को नहीं देख सकतीं, बल्कि हमें भी इसे एक युद्ध व एक आंदोलन के बतौर देखना होगा। आजादी की परिभाषा हमारे लिए भी अब बदलनी चाहिए। संविधान में जो हमारे लक्ष्य हैं, ठीक उस तरह का देश बनाने की लड़ाई लड़नी होगी, पुराने को केवल रिस्टोर करने की बात से काम नहीं चलेगा। जो था, वह केवल रिस्टोर नहीं होने वाला है। फासीवाद का जो विध्वंस है, उसका कहीं कोई अंत नहीं है। जितना ज्यादा वे कर सकते हैं, कर चुके हैं। अब इससे हमें सीधे तौर पर टकराना होगा।” यह विचार भाकपा-माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य के हैं। वह ‘आजादी के 75 साल: देश किधर’ विषय पर आयोजित एक परिचर्चा में बोल रहे थे।

यह परिचर्चा पटना के जगजीवन राम शोध संस्थान में आयोजित हुई। परिचर्चा में दिल्ली से प्रो. शमसुल इसलाम, आईआईटी बॉम्बे के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. राम पुनियानी और भाकपा-माले के महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य, कांग्रेस विधायक दल के नेता डॉ. शकील अहमद खान, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदयनारायण चौधरी और ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी ने मुख्य वक्ता के बतौर हिस्सा लिया। परिचर्चा की अध्यक्षता एआइपीएफ के गालिब ने की, जबकि उसका संचालन संगठन के संयोयक कमलेश शर्मा ने किया। मंच पर एआइपीएफ से जुड़े पंकज श्वेताभ, प्रो. शमीम अहमद, केडी यादव, विश्वनाथ चौधरी आदि भी मौजूद रहे। विषय प्रवेश संगठन के कुमार परवेज ने की।

डॉ. शकील अहमद ने कहा कि बिहार से एक उम्मीद की रौशनी फैल रही है। बिहार आंदोलनों की धरती है और विपक्षी दलों की पहली बैठक यहीं हुई। दूसरी बैठक में ‘इंडिया’ बना। जो भी दल संविधान व लोकतंत्र के पक्ष में हैं, वे इंडिया के साथ हैं।

राम पुनियानी ने कहा कि फासिस्ट ताकतें इतिहास तो बहुत पीछे धकेल सकती हैं। यदि हिटलर 25 वर्ष पीछे धकेल सकता है, तो यहां की ताकतें तो और ज्यादा खतरनाक हैं। हजारों प्रचारक व स्वयंसेवक इसी काम में लगे हुए हैं। यदि ये आगे का चुनाव जीत गए तो इस प्रकार की बैठक करना भी आसान नहीं होगा। सामाजिक आंदोलनों ने समाज का विकास किया। उन्होंने कहा कि सामाजिक आंदोलनों के बिना लोकतंत्र संभव नहीं और लोकतंत्र के बिना सामाजिक आंदोलन नहीं चल सकते। हमें ऐसी सभी ताकतों को एकताबद्ध करना होगा।

उदय नारायण चौधरी ने कहा कि ब्राह्मणवादी ताकतों से गंभीर खतरा है। वे 2015 में आरक्षण को खत्म करना चाहते थे। हमने उनको चुनौती दी थी। लेकिन आज धीरे-धीरे करके आरक्षण को लगभग समाप्त कर दिया गया। अब आरक्षण नाम की कोई चीज नहीं रह गई। आज के नौजवानों, कमजोर वर्ग व दलित समुदाय के लोगों को बताना होगा कि भाजपा-आरएसएस दरअसल करना क्या चाहते हैं।

प्रो. शमसुल इसलाम ने मनुस्मृति के कई उद्धरणों को उद्धृत करते हुए कहा कि हिंदुवाद से सबसे ज्यादा खतरा हिंदू महिलाओं और दलितों को है। उन्होंने अपने वक्तव्य में आजादी के आंदोलनों के दौरान आरएसएस की नकारात्मक भूमिका पर फोकस किया। कहा कि कट्टरपंथी किसी भी समुदाय का हो, वह धर्मनिरपेक्षता व लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। मुसलमानों के लिए कई झूठ फैलाए जाते हैं। 1940 में मुसलमानों की सबसे बड़ी सभा हुई थी, जो पाकिस्तान बनाए जाने के खिलाफ था।

मीना तिवारी ने कहा कि मणिपुर में औरतों के शरीर को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। यह बीजेपी की राजनीति है। आज का पूरा दौर है, उसमें विभिन्न तरीकों से व तमाम क्षेत्रों में आरएसएस औरतों की गुलामी को बढ़ावा दे रहा है। केवल तीन तलाक के खिलाफ कानून नहीं बनाए जा रहे बल्कि ये दंड संहिता को जो आज न्याय संहिता कह रहे हैं, यह पूरी तरह से अन्याय को स्थापित करने की कोशिशें है। इस न्याय संहिता में औरतों की तमाम आजादी को कुचल देने की साजिश है।

परिचर्चा फासीवादी हमले के खिलाफ लोकतंत्र व संविधान के पक्ष में वैचारिक मोर्चे को मजबूत बनाने के उद्देश्य से की गई है। जिसमें पटना शहर के बुद्धिजीवियों, छात्र-नौजवानों और दलित-बुद्धिजीवियों ने भी बड़ी संख्या में हिस्सा लिया और भाजपा-आरएसएस के खिलाफ निर्णायक संघर्ष में एकताबद्ध होकर आगे बढ़ने का संकल्प भी लिया।

कार्यक्रम को सफल बनाने में एआइपीएफ के कार्यकर्ताओं ने बड़ी भूमिका अदा की। मुख्य रूप से संतोष आर्या, गालिब, अभय पांडेय, आसमा खान, रजनीश उपाध्याय, संजय कुमार, पुनीत कुमार आदि कार्यक्रम में पूरी तरह से सक्रिय रहे। कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन पंकज श्वेताभ ने किया।

(भाकपा-माले की प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

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