ग्राउंड रिपोर्ट: बिहार में न शराब बंद हुई है और न ही इसका अवैध कारोबार

बिहार। मुख्यमंत्री नीतीश सरकार ने भले ही बिहार राज्य में पूर्ण रूप में शराब बंदी का सख्त आदेश लागू कर रखा है। लेकिन बिहार में न तो शराब की बिक्री थमी है और न ही पीने वाले लोगों में कमी आई है। अलबत्ता अवैध शराब का कारोबार पहले से और भी तेज गति से फलता-फूलता देखने के लिए मिलता है। काफी हद तक सरहदी राज्य उत्तर प्रदेश की बिहार से लगने वाली सीमा मददगार साबित होती आ रही है। यूपी के रास्ते बिहार में व्यापक पैमाने पर अवैध शराब का कारोबार पनपा हुआ है।

पंजाब, हरियाणा से लेकर मध्य प्रदेश इत्यादि राज्यों की शराब की खपत बिहार में धड़ल्ले से हो रही है। जिसे रोकने के सारे प्रयास अभी तक फेल होते हुए नजर आए हैं। यूं कहें कि ‘शासन-प्रशासन डाल-डाल तो अवैध शराब कारोबारी पात-पात’ की तर्ज पर अपने कारोबार को बढ़ाते हुए आए हैं।

मधुमक्खी पालन के खाली डिब्बे में छिपा बिहार जा रही शराब

अलबत्ता, इस अवैध शराब से अनगिनत गरीब, शोषित दलितों, मज़लूम के परिवार उजड़ कर मौत के मुहाने पर पहुंच चुके हैं तो कुछ अवैध शराब की खातिर जेल की सलाखों तक पहुंच चुके हैं। बावजूद इसके न तो शराब बंद हुई और न ही इसका अवैध कारोबार। शराब बंदी की घोषणा से लेकर अब तक यह जैसे पहले चल रहा था आज भी चलता आया है, बस बदलाव हुआ है तो चोरी छुपे उपलब्ध कराने का वह भी सिर्फ और सिर्फ दिखावे के तौर पर। वरना क्या मजाल कि शराब की एक शीशी नजर आए, लेकिन कहा गया है कि जब हुक्मरानों की आंखों पर नोटों की गड्डी की पट्टी बांध दी गई हो तो भला यह कैसे नज़र आ जाए?

शराब बंदी के 7 साल बाद भी जारी है धंधा

गौरतलब हो कि बिहार में तत्कालीन नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली महा गठबंधन की सरकार ने 1 अप्रैल, 2016 को बिहार में पूर्ण रूप से शराब बंदी की घोषणा की थी। बाद में भाजपा के साथ भी मिलकर सरकार चलाई, मौजूदा समय में तेजस्वी यादव के साथ मिलकर बिहार में नीतीश कुमार की सरकार चल रही है। शराब बंदी का अध्यादेश भी लागू है, बावजूद इसके न तो बिहार में शराब बंद हुआ और इसका अवैध कारोबार यह बदस्तूर जारी है।

बिहार के चौसा गांव निवासी उजागर कहते हैं “राउर बिहार में शराब बवाल मचइले बा, एकरा के रोके बदे कुछू बड़ काम (ठोस कदम उठाना होगा) करेके पड़ी। यूपी क शराब इहवा आवत बा त केकरा के कहले पर आवत बा, जांच त होखे के चाहिए ना कि जब शराब बिहार में बंद बा त आवत केने से बा?”

शराब की पेटीयां

उजागर करने वाले अपना फोटो देने से तो रोकते हैं, लेकिन बिंदास होकर ठेठ बिहारी भोजपुरी बोल वाले अंदाज में शराब को लेकर छलके दर्द को बयां करने से पीछे नहीं हटते हैं। दरअसल, बिहार के बक्सर जिले से उत्तर प्रदेश की लगने वाली गाजीपुर चंदौली सहित अन्य रास्ते से बिहार में धड़ल्ले से अवैध शराब की खपत की जा रही है। तमाम धड़ पकड़ की कार्रवाई के बाद भी न तो अवैध शराब की आपूर्ति थमी है ना अवैध शराब का कारोबार, जिसका सीधा असर बिहार की कानून व्यवस्था से कहीं ज्यादा लोगों की जिंदगी पर पड़ रहा है।

मधुमक्खी पालन के खाली डिब्बे में छिपा बिहार जा रही थी शराब

बिहार में शराब बंदी और तमाम धर पकड़ अभियान के बाद भी शराब तस्करों का अभियान थमा नहीं है। उत्तर प्रदेश के रास्ते पंजाब से बिहार के लिए डीसीएम ट्रक में भेजी जा रही अवैध शराब की खेप की बरामदगी करने के बाद अवैध शराब को ले जाने के तरीके को देख पुलिस भी हैरत में पड़ गई है। उत्तर प्रदेश के भदोही में क्राइम ब्रांच और ज्ञानपुर कोतवाली की संयुक्त पुलिस टीम ने 410 पेटी अवैध अंग्रेजी शराब बरामद किया है। बताया गया है कि पंजाब से बिहार शराब की एक बड़ी खेप भेजी जा रही थी। मौके से एक शराब तस्कर गिरफ्तार किया गया है, जबकि एक तस्कर भागने में सफल हुआ है जिसकी तलाश पुलिस कर रही है।

भदोही जनपद की पुलिस अधीक्षक डॉक्टर मीनाक्षी कात्यायन ने की माने तो पुलिस टीम ने जो बरामद की है उसमें शराब और ट्रक की कीमत करीब 70 लाख रुपए है। 45 लाख रुपए से ज्यादा की कीमत की अवैध शराब बरामद की गई है। पंजाब राज्य से शराब की बड़ी खेप बिहार भेजी जा रही थी जहां इसे महंगे दामों में खपाने की योजना शराब तस्करों की थी, कि इसके पहले यह पुलिस के हत्थे चढ़ गए।

पुलिस अधीक्षक डॉक्टर मीनाक्षी कात्यायन

बताते चलें कि अवैध शराब की तस्करी के लिए शराब तस्कर कई तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। भदोही में शराब तस्करों के पकड़े जाने के बाद कुछ ऐसा ही देखने को मिला। ट्रक के पिछले हिस्से में मधुमक्खी पालन के 120 खाली डब्बे रखे गए थे, ताकि चेकिंग के दौरान पुलिस को चकमा दिया जा सके। भदोही पुलिस की टीम को मुखबिर से सटीक सूचना मिली थी उसी के आधार पर ट्रक को रोककर जब उसके अंदर तलाशी ली गई तो 410 पेटी अवैध अंग्रेजी शराब बरामद किया गया। जिसे ट्रक के पिछले हिस्से में मधुमक्खी पालन के 120 खाली डब्बे में छुपा कर रखा गया था, ताकि देखने से यह मधुमक्खियों के पालन का डिब्बा दिखाई दे और इस ओर किसी का ध्यान भी न जाए।

पंजाब से बिहार तस्करी की जा रही अंग्रेजी शराब

भदोही में पकड़ी गई अंग्रेजी शराब को बिहार में खपाने के लिए ले जाया जा रहा था। बेशक इसमें कोई संदेह नहीं कि इस कारोबार में बड़े कारोबारी से लेकर सफेदपोश और शासन सत्ता से जुड़े हुए लोगों का इसमें गठजोड़ न हो। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और यूपी से बिहार में अवैध शराब की तस्करी पुरजोर जारी है। समय-समय पर पकड़े जाने की कार्रवाई भी होती आई है। इतने सब के बाद भी अवैध शराब का कारोबार थमा नहीं है। और आगे भी इसके रुकने की कोई उम्मीद दूर-दूर तक फिलहाल तो नजर आ भी नहीं रही है।

सवाल उठता है कि पंजाब हरियाणा से होते हुए बिहार को भेजी जा रही अवैध शराब के पीछे किन सफेदपोश लोगों का, तस्करों का हाथ है तथा इनको किनका संरक्षण मिलता आ रहा है ? आखिरकार इन पर कब कार्यवाही होगी, कब यह पर्दे के पीछे से बेनकाब होंगे?

तस्करी का ट्रक

अवैध शराब की बरामदगी के समय अक्सर एक दो शराब तस्कर भागने में सफल होते हुए आएं हैं। तो दूसरी ओर वाहन चालक और एकाध पकड़ में आ जाते हैं, वरना अन्य तो पुलिस की सारी सुरक्षा बेड़े को धता बताते हुए बच भागते हैं। अहम सवाल यह है कि आखिरकार मुख्य सरगना तक पुलिस क्यों नहीं पहुंच पाती है, जिसके इशारे पर अवैध शराब का खेल चल रहा है। वैसे भी भदोही में पकड़ी गई अवैध शराब की बरामदगी कोई पहली बार नहीं है, इसके पूर्व भदोही, मिर्ज़ापुर, सोनभद्र, चंदौली, गाजीपुर, बलिया सहित अन्य बिहार को जोड़ने वाले जिलों और रास्ते से शराब की बरामदगी की जा चुकी है।

बिहार-यूपी के सरहदी गांव बने हुए हैं मुफीद

अन्य राज्यों से लाकर बिहार में अवैध शराब को खपाने के लिए सड़क मार्ग, हाइवे सुगम हैं, तो सीमावर्ती क्षेत्रों के गांव, नदी-नालों से लेकर गांव की गलियां और पगडंडी भी काफी मुफीद और सुगम बने हुए हैं। सोनभद्र, चंदौली के जंगल के रास्ते, कर्मनाशा नदी का कछार, गाजीपुर का गहमर का इलाका और गंगा नदी का किनारा, बलिया जनपद का भरौली अवैध शराब तस्करों के लिए सुगम होना बताया जा रहा है। जिसके रास्ते अवैध शराब की खेप को बिहार भेजा जाता है।

अवैध शराब की तस्करी में लग्जरी वाहनों से लेकर मालवाहक वाहनों मसलन, कंटेनर, ट्रक, डीसीएम, कार इत्यादि वाहनों का तो उपयोग किया ही जाता है, सवारी वाहनों से लेकर रेलमार्गों खासकर पैसेंजर ट्रेनों के जरिए अवैध शराब की तस्करी होती आई है। पूर्व में उत्तर प्रदेश के मुगलसराय (अब पं दीनदयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन) रेलवे स्टेशन से बिहार की तरह जाने वाली पैसेंजर ट्रेनों के जरिए न केवल अवैध शराब की खपत होती थी, बल्कि गहमर, दिलदार नगर गाजीपुर, बलिया, देवरिया आदि इलाकों में आकर बिहार के मदिरा प्रेमी अपना गला भी तर करते आए हैं।

यूपी-नेपाल से लगनी वाली सीमा भी बनी हैं मददगार

बिहार में शराब बंदी का भरपूर लाभ और राजस्व वृद्धि उन राज्यों को हो रहा है जो बिहार से लगती हैं। पंजाब, हरियाणा सहित अन्य राज्यों से भले ही अवैध शराब यूपी व अन्य राज्यों की बिहार से लगने वाली सीमाओं के रास्ते बिहार में भेजी जा रही हैं, लेकिन सबसे ज्यादा राजस्व का लाभ यूपी को होना बताया जा रहा है। यूपी की सीमा से लेकर नेपाल देश के रास्ते भी बिहार में अन्य राज्यों की अवैध शराब को खपाया जा रहा है।

इससे आस-पास के शराब दुकानदारों को काफी लाभ होता है। शराब प्रेमियों की माने तो वह सरहद पार कर नजदीकी हाट-बाजार करने के बहाने अपने घर गृहस्थी के सामानों की खरीदारी करते हुए गला तर कर कुछ शराब की बोतलें भी ले आते हैं। जिससे कुछ दिन के लिए उन्हें काफी सहूलियत हो जाती है, हालांकि लोगों खासकर मदिरा प्रेमियों के पैंतरे को भांप बिहार से लगने वाले जनपदों के सीमावर्ती इलाकों में स्थित शराब की दुकानों तथा आस-पास में पुलिस की चौकसी बढ़ने से शराब पीने वालों की मुश्किलें बढ़ गई हैं, लेकिन फिर भी अवैध की उपलब्धता गांव गलियों से लेकर बाजारों में होने से इसका कोई खास असर नहीं पड़ा है।

महिलाओं और कमजोर लोगों को बनाया जाता है ढ़ाल

अवैध शराब के कारोबार में बड़े और शातिरों की जहां संलिप्तता होती है तो वहीं अवैध शराब की खपत के लिए महिलाओं और कमजोर तबके के लोगों को ढ़ाल बना कर आगे खड़ा किया जाता है। ताकि उन तक कोई पहुंच न पाए। दूसरे महिलाओं के आगे होने से धंधे में कोई अड़चन नहीं होता है। इसलिए ज्यादातर महिलाओं से लेकर कमजोर मेहनतकश लोगों को इसमें जोड़ा जाता है। जिन्हें मुफ्त की शराब के साथ जेब में भी कुछ मिल जाता है, ऐसे में उनके लिए यह धंधा भले ही गंदा हो सकता है, लेकिन उनके लिए तो यह ‘न रंग लगे न फिटकरी, रंग लगे चोखा’ के बराबर होता है।

पुलिस के कब्जे में ट्रक ड्राइवर

वरिष्ठ पत्रकार अनजान मित्र बताते हैं “अवैध शराब के कारोबार में कमजोर वर्ग के लोगों को शुरू से ही ढाल बनाया जाता रहा है। अशिक्षा, जागरूक का अभाव और रुढ़िवादी परंपराओं में जकड़े गरीब दलित पिछड़े समाज के लोग इससे ज्यादा प्रभावित और पीड़ित हुए हैं, बावजूद इसके ठोस रणनीति के अभाव में न केवल बिहार में शराब बंदी मज़ाक बनकर रह गया है बल्कि पहले से कहीं ज्यादा तबाही भी मचाएं हुए है। जिस पर कब और कैसे रोक लग पायेगा कहना मुश्किल लगता है।”

(य़ूपी-बिहार सीमा से संतोष देव गिरी की रिपोर्ट)

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