विश्वविद्यालय परिसरों में छात्राओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो: पीयूसीएल

मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल उत्तर प्रदेश के अंदर विश्वविद्यालय परिसरों में छात्र-छात्राओं पर बढ़ते दमन के प्रति अपनी चिंता व्यक्त करता है। लगभग एक महीने के अंतराल पर उत्तर प्रदेश स्थित 3 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में घटी घटनाएं यह बताती हैं कि विश्वविद्यालय कैंपस न तो छात्राओं को सुरक्षित माहौल दे पा रहे हैं, न ही छात्र- छात्राओं के मौलिक- संविधानिक- राजनैतिक अधिकारों की रक्षा कर पा रहे हैं।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय परिसरों से छात्रों के राजनैतिक अधिकारों के दमन और छात्राओं पर यौन हमले की खबर लगातार आ रही हैं, जो कि बहुत ही चिंताजनक है। अगर हम छात्र-छात्राओं को उनके अधिकारों और कर्तव्यों का एहसास कराने वाला एक सुरक्षित परिसर नहीं दे सकेंगे, तो हम पूरे देश में भी शांत, समृद्ध, लोकतांत्रिक माहौल की उम्मीद नहीं कर सकेंगे। विश्वविद्यालय के अंदर इसे सुनिश्चित करना विश्वविद्यालय प्रशासन की जिम्मेदारी है। यह चिंताजनक है कि वे इस जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं कर रहे हैं जिसके कारण नकारात्मक घटनाओं में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है।

हाल ही में बीएचयू कैंपस से एक बार फिर एक छात्रा पर गंभीर यौन हमले की बात सामने आई है। 2017 से ही यह परिसर लड़कियों की सुरक्षा को लेकर सवालों के घेरे में है। इसी मुद्दे पर वहां लड़कियों के कई बड़े प्रदर्शन हो चुके हैं, लेकिन बीएचयू प्रशासन लड़कियों की मांगों को लगातार नजरअंदाज करती रही है, यहां तक कि महिला सुरक्षा कानून के आदेशानुसार जीएसकैश तक की स्थापना वह नहीं कर सकी है। इन सभी आंदोलनों में छात्र संगठनों की ओर से एक मांग यह भी लगातार रखी जाती रही है, जो कि बिल्कुल जायज और संवैधानिक मांग है और इसे तुरंत माने जाने की ज़रूरत है।

इसी साल 1 नवंबर की रात यौन हमले की एक गंभीर घटना बीएचयू के आईआईटी कैंपस में घटी। बहादुरी दिखाते हुए पीड़ित लड़की ने एफआईआर दर्ज कराई और अगले ही दिन सुरक्षा के सवाल को लेकर आईआईटी बीएचयू के हज़ारों छात्र छात्राएं सड़क पर उतर आए। आनन-फानन में प्रशासन ने सुरक्षा से जुड़े सभी तकनीकी मांगों को मानकर इस आंदोलन को खत्म करा दिया, लेकिन इसमें दोषियों की पहचान कर उन्हें दंडित किए जाने का कोई आश्वासन न होने के कारण अगले ही दिन से बीएचयू के मुख्य द्वार पर विवि के छात्र-छात्राओं और संगठनों ने धरना देना शुरू कर दिया।

इनकी सभी मांगे संविधानिक होने के बावजूद विवि प्रशासन इनसे बात कर उनकी मांगों को मानने की बजाय इसे लंबा खिंचने दिया, आंदोलन में शामिल लड़कियों पर वार्डन और प्रशासन द्वारा दबाव बनाया। इन सबकी बजाय इसे लंबा खींच कर एक दूसरे छात्र संगठन को, जो सरकार से जुड़ा है, से उनकी झड़प को आमंत्रित किया। 5 नवंबर को एबीवीपी के साथ बीएचयू गेट पर धरना दे रहे छात्र छात्राओं की झड़प के बाद यह महत्वपूर्ण आंदोलन समाप्त हुआ।

गौरतलब है कि आंदोलनकारी छात्रों ने पुलिस आयुक्त को 6 नवंबर की जो आवेदन दिया है, उसमें कहा है कि उन्होंने प्रॉक्टोरियल बोर्ड को इसकी सूचना दी थी कि ‘कुछ अराजक तत्व उनपर हमले की योजना बना रहे हैं।’ लेकिन इसके बाद भी प्रशासन ने मांगे न मानते हुए आंदोलन जारी रहने दिया और हमला होने दिया। प्रॉक्टोरियल बोर्ड इस पूरे मामले में इसलिए भी संदेह के घेरे में आ गया है कि घटना के बाद चीफ प्रॉक्टर का यह बयान अखबारों में प्रकाशित हुआ है कि उन्होंने एबीवीपी से जुड़ी दो लड़कियों जिनके हाथ और पैर टूट गए थे, का ट्रामा सेन्टर में इलाज कराया।

अगले ही दिन इनमें से एक लड़की का घटना के तुरंत बाद एक न्यूज चैनल को दिया जा रहा इंटरव्यू सामने आया, जिसमे उसके दोनों हाथ सही सलामत दिख रहे हैं और वो इसे साधारण मार-पीट का मामला बता रही है। लेकिन इसी लड़की की ओर से अगले दिन भोर में आंदोलनकारी 15 नामजद और कई अज्ञात छात्र छात्राओं पर लिखाई गई एफआईआर में उनपर एससी/एसटी एक्ट सहित गंभीर धाराएं लगाई गई हैं, जिसमें उनकी तुरंत गिरफ्तारी हो सकती है। यह अपनी जायज़ मांगों को लेकर किए जाने वाले शांतिपूर्ण आंदोलनों का अपराधीकरण करने की साजिश हैं, ताकि जायज़ मांगों को लेकर चल रहे आंदोलन को बदनाम किया जा सके।

साथ ही अब जबकि कई वीडियो और बयानों से यह बात सामने आ रही है कि विवि के चीफ प्रॉक्टर एबीवीपी के साथ मिलकर इस मुकदमें को झूठ की बुनियाद पर तैयार कर रहे हैं, यह गंभीर जांच का विषय बन गया है। बिना उच्च स्तरीय कमेटी (जिसमें नागरिक समाज के लोग भी शामिल हों) की जांच के इस मुकदमे में कोई गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए। और जांच में यदि झूठा मुकदमा दर्ज कराने की बात सामने आती है तो मुकदमा निरस्त करने के साथ चीफ प्रॉक्टर सहित सभी शामिल लोगों पर मुकदमा दर्ज होना चाहिए।

दूसरा मामला इलाहाबाद विश्वविद्यालय का है जहां पर छात्र संगठन आइसा से जुड़े छात्र मनीष कुमार को निलंबित कर दिया गया। निलंबन का आधार यह बताया गया कि उक्त छात्र ‘विश्वविद्यालय के अंदर नवागंतुक छात्राओं को राजनीति करके और नेतागिरी करके भड़काने का काम कर रहा हैं’। यह नोटिस एक लोकतांत्रिक देश के अंदर मौजूद किसी भी विवि परिसर के लिए बेहद आपत्तिजनक है।

विश्वविद्यालय परिसर केवल पढ़ने की जगह नहीं होते, बल्कि शांतिपूर्ण तरीके से अपनी संवैधानिक और राजनीतिक मांग को कैसे रखा जाए, इसे सिखाने का भी काम करते हैं। छात्रों के अंदर सामाजिक आदर्श का आगाज़ इन परिसरों से ही होता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश के लिए शहीद होने वाले भगत सिंह भी ऐसे ही एक कैंपस से पैदा हुए थे।

विश्वविद्यालय परिसरों में ऐसे संवैधानिक राजनीतिक काम को ‘नवागंतुक छात्रों को भड़काना, नेतागिरी करना और राजनीति’ बताना एक अलोकतांत्रिक मानसिकता को दिखाता है, जो कि जो कि 18 साल के बालिग को जिम्मेदार नागरिक बताने से इनकार करने की सामंती मानसिकता है। जब इलाहाबाद विवि के छात्र मनीष कुमार के निलंबन वापसी के लिए प्रदर्शन कर रहे थे, तो चीफ प्रॉक्टर द्वारा खुद एक छात्र को लाठी से बुरी तरह पीटा गया, जिसका वीडियो हर जगह वायरल हुआ।

इस घटना के बाद चीफ प्रॉक्टर द्वारा गलती मानने की बजाय विश्वविद्यालय से दो और छात्रों को निलंबित कर दिया गया। सिर्फ ‘राजनीति करने’ के आरोप में विवि से छात्रों का निलंबन बेहद आपत्तिजनक है। राजनीति पर छात्रों से बात होनी चाहिए, उनकी मांगे सुनी जानी चाहिए, न कि उनका निलंबन करना, उन पर फर्जी मुकदमे लादना या उनके उनके खिलाफ किसी तरह की अनुशासनात्मक कार्यवाही की जानी चाहिए। यह छात्रों के मौलिक अधिकारों और उनके मानवाधिकार का हनन भी है यह उसका दमन भी है।

विवि परिसर में राजनीति से जुड़ा एक और मामला अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का है, जहां पर लगभग एक महीना पहले छह छात्रों पर इसलिए मुकदमा दर्ज कर लिया गया, क्योंकि वह फिलिस्तीन के समर्थन में जुलूस निकाल रहे थे। विश्वविद्यालय कैंपस ऐसी जगह है जहां पर कोई भी छात्र या छात्रों का समूह अपनी राजनीतिक अवस्थिति को शांतिपूर्ण तरीके से जाहिर कर सकते हैं। ऐसा करने पर रोक लगाना, उस पर मुकदमा दर्ज करना न सिर्फ आपत्तिजनक है बल्कि उनके लोकतांत्रिक अधिकारों के खिलाफ है। लोकतंत्र में विचारों का गला नहीं घोंटा जा सकता, यह निंदनीय है।

हाल ही में उत्तर प्रदेश के तीन विश्वविद्यालयों के अंदर घटी ये घटनाएं दर्शाती हैं कि उत्तर प्रदेश में विश्वविद्यालय परिसरों का माहौल बेहद आलोकतांत्रिक होता जा रहा है, जो कि बेहद चिंता की बात है। किसी भी मानवाधिकार संगठन के लिए यह और भी चिंता की बात है।

किसी भी विश्वविद्यालय परिसर में छात्रों का मानवाधिकार, अध्यापकों का मानवाधिकार और वहां के कर्मचारियों का मानवाधिकार अवश्य सुरक्षित रहना चाहिए। अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए ही छात्रों के संगठन अध्यापकों के संगठन और कर्मचारियों के संगठन बनाए जाते हैं। इन संगठनों को विश्वविद्यालय में शांतिपूर्ण राजनीति करने से रोकना, उनका उत्पीड़न करना और उन पर प्रतिबंध लगाना कहीं से भी जायज नहीं है।

बीएचयू की घटना तो यह भी बताती है कि विवि प्रशासन रोक लगाने के लिए झूठे मुकदमे गढ़ने वाले वालों के साथ खड़ी ही नहीं है, बल्कि उसमें बढ़ -चढ़ कर भागीदारी कर रही है। यह गैरकानूनी है, यह असंवैधानिक है, यह लोकतंत्र के खिलाफ है अतः इस पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए, ताकि विवि परिसर का माहौल जनवादी और जीवंत बन सके, और इसके माध्यम से देश का भी।

पीयूसीएल की मांग:

1. विश्वविद्यालय परिसरों में लड़कियों को सुरक्षित माहौल देना विवि प्रशासन की जिम्मेदारी है। बिना उन पर पाबंदी लगाए, बिना उन पर निगरानी बढ़ाए उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाय। इसके लिए विवि का माहौल जनवादी बनाया जाय।

2. आईआईटी बीएचयू की छात्रा पर यौन हमला करने वालों को तत्काल गिरफ्तार कर उचित धारा में मुकदमा चलाया जाए।

3. बीएचयू के प्रदर्शनकारी छात्र-छात्राओं पर लगे मुकदमों से संबंधित कई तथ्य/वीडियो मुकदमें के फर्जी होने का पता दे रहे हैं,अतः इस मामले की तत्काल उच्च स्तरीय जांच की जाय। इस जांच कमेटी में नागरिक समाज के लोगों को शामिल किया जाय। जांच के पूरा होने तक गिरफ्तारी पर रोक लगाई जाए। !

4. यदि यह मुकदमा फर्जी पाया जाता है तो इसके लिए दोषी लोगों, जिनमें बीएचयू प्रॉक्टर और पुलिस वाले भी शामिल हैं पर मुकदमा दर्ज किया जाय!

5. विश्वविद्यालय परिसरों में शांतिपूर्ण राजनीतिक गतिविधियों पर रोक लगाना बंद करो!

6. इलाहाबाद विश्विद्यालय में छात्रों का निलंबन वापस लिया जाय।

(पीयूसीएल-उत्तर प्रदेश द्वारा जारी)

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