झारखंड का सिमरा जरा गांव तमाम मौलिक सुविधाओं से महरूम

झारखंड। राजधानी रांची से लगभग 100 किमी दूर है हजारीबाग जिला मुख्यालय और जिला मुख्यालय से लगभग 55 किमी दूर है बड़कागांव प्रखंड। और प्रखंड मुख्यालय से लगभग 14 किमी दूर है आंगो पंचायत। बड़कागांव प्रखंड के 23 पंचायतों में से आंगो पंचायत का एक गांव है सिमरा जरा, जो पंचायत मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर पहाड़ों की तलहटी पर स्थित है। यानी यह गांव जिला मुख्यालय से 76 किमी और प्रखंड मुख्यालय से 22 किमी दूर है।

कहना ना होगा कि आजादी के पहले से ही आदिवासी उत्थान की अवधारणा के तहत जो झारखंड अलग राज्य की परिकल्पना की गई थी वह आज भी दम तोड़ती नजर आ रही है। क्योंकि आजादी के 76 साल और झारखंड राज्य गठन के 23 साल बाद भी झारखंड के कई गांव आज भी तमाम मौलिक जन सुविधाओं से महरूम हैं और आंगो पंचायत का यह सिमरा जरा गांव भी ऐसे ही गांवों में शामिल है। जहां सड़क, बिजली, कुआं, तलाब व चापाकल, आंगनबाड़ी केंद्र, जन वितरण प्रणाली की दुकान, स्वास्थ केंद्र व स्कूल के साथ-साथ रोजगार जैसी मूलभूत जन आवश्यकताएं नदारद है।

इस गांव की बदहाली का अंदाजा इसी लगाया जा सकता है कि इस गांव तक जाने की सड़क नहीं होने के कारण इस गांव में न तो कोई जनप्रतिनिधि (विधायक सांसद) और न ही कोई प्रशासनिक अधिकारी जाना चाहता है। सबसे दुखद यह है कि ऐसी स्थिति के बाद भी न तो किसी जनप्रतिनिधि ने और न ही किसी प्रशासनिक अधिकारी ने सिमरा जरा गांव तक जाने के लिए सड़क बनवाने की कभी कोशिश की है। ग्रामीण बताते हैं कि वैसे विभिन्न पार्टियों के नेता वोट मांगने जरूर आते हैं, लेकिन चुनाव के बाद वे गांव आना भूल जाते हैं।

पहाड़ी क्षेत्र स्थित सिमरा जरा गांव में केवल आदिवासी संताल समुदाय का 30 परिवार रहता है, जिनके पूर्वज 1920 में यहां आकर बसे थे। यहां शिक्षा की बात करें तो तमाम जन सुविधाओं से वंचित सरकारी उदासीनता का शिकार इस गांव में मैट्रिक पास 20 और इंटर पास 16 लोग हैं। फिलवक्त 4 युवक स्नातक थर्ड सेमेस्टर में पढ़ाई कर रहे हैं। सरकारी सुविधा के नाम पर यहां 2007 में एक उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय बनाया गया, जहां आज मात्र दो पारा शिक्षक हैं, जबकि 17 बच्चे हैं। यहां पांचवी कक्षा तक प्राथमिक शिक्षा के बाद बच्चे पहाड़ी क्षेत्रों से गुजरते हुए 8 किमी दूर पैदल चलकर बरतुआ के मिडिल स्कूल में पढ़ने जाते हैं। जबकि हाई स्कूल व कॉलेज की पढ़ाई के लिए इन्हें 22 किमी दूर बड़कागांव जाना पड़ता है।

सिमरा जरा गांव की खास्ता हालत

वहीं गांव में बच्चों की पढ़ाई के लिए आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है। आंगनवाड़ी केंद्र में 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का टीकाकरण लगाया जाता है। तथा 3 से 6 वर्ष के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दी जाती है। बच्चों को पौष्टिक आहार दिया जाता है। कुपोषित बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं प्रदान की जाती है। मतलब इन सारी सुविधाओं से यहां बच्चे महरूम हैं।

बताते चलें कि यहां केवल सड़क की ही समस्या नहीं है, बल्कि अन्य मौलिक जन सुविधाओं में शिक्षा, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, रोजगार, आंगनबाड़ी केंद्र, जन वितरण प्रणाली दुकान आदि का घोर अभाव है। 

सिमरा जरा जाने के लिए सड़क नहीं है। लोग पगडंडियों के सहारे ही बाजार, जिला मुख्यालय, प्रखंड मुख्यालय पंचायत, स्कूल, कॉलेज, आंगनबाड़ी केंद्र व स्वास्थ्य केंद्र आना-जाना करते हैं। 

पेयजल की बात करें तो सिमरा जरा गांव में एक भी चापाकल नहीं है। वैसे सरकारी योजना से बना दो कुआं है जो काफी पुराना है। इनमें से एक कुआं बरसात को छोड़कर हर मौसम में पूरी तरह सूखा रहता है, तो दूसरा कुआं गर्मी के आते ही दम तोड़ने लग जाता है। अगर थोड़ा-बहुत पानी रहता भी है तो वह भी गंदा रहता है। यहां एक भी तालाब या पोखर नहीं है, जिससे कम से कम कपड़ा वगैरह साफ करने और नहाने वगैरह का काम हो जाता।

कपड़ा वगैरह साफ करने और नहाने वगैरह के लिए भी लोगों को गांव से बाहर जोरिया (नाला) या खेतों में बना चूंआ पर निर्भर रहना पड़ता है। कहना ना होगा कि इस डिजिटल युग में यहां के लोग आदिम युग में जीने को मजबूर हैं।

एक तरफ जहां देश में राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना के तहत गांवों में बिजली पहुंचाने की घोषणाएं की जा रही हैं, वहीं इस गांव में अब तक बिजली तो दूर बिजली का खंभा तक नहीं पहुंचा है। मतलब गांव के लोगों को आज भी ढिबरी युग में जीना पड़ रहा है। वैसे 4 साल पहले गांव में जरेडा द्वारा सौर ऊर्जा का सोलर लैंप मिला था, वह भी 6 महीने में ही खराब हो गया, जो आज तक खराब है। स्वास्थ्य सेवा की बात की जाए तो सिमरा जरा गांव में किसी तरह की कोई स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध नहीं हैं। अगल-बगल के गांव के क्वैक यानी प्रैक्टिसनर या यूं कहें झोलाछाप डॉक्टर पर किसी भी बीमारी में इनका इलाज आश्रित है। क्योंकि इस गांव से 8 किमी दूर आंगो में एक उप-स्वास्थ्य केंद्र है जो केवल एक नर्स के सहारे चलता है।

यहां कोई डॉक्टर नहीं बैठता। अतः किसी भी तरह की बीमारी के इलाज के लिए 22 किलोमीटर दूर बड़कागांव अस्पताल जाना पड़ता है। गंभीर बीमारी या अन्य किसी भी तरह के इलाज के लिए सड़क नहीं रहने के कारण बीमार व्यक्तियों को खाट पर टांग कर अस्पताल ले जाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में गंभीर बीमार व्यक्ति कभी-कभी रास्ते में ही दम तोड़ देता है।

ग्रामीण मालिक साहिब राम मांझी और जीतन मांझी बताते हैं कि पिछले 7 सालों में अब तक दर्जनों लोगों की मौत अस्पताल ले जाने के क्रम में रास्ते में ही हो चुकी है। वे बताते हैं कि गुल्ली देवी, संझली देवी, 7 वर्षीय कपूर कुमार और 3 वर्षीय राजू हेंब्रम की मौत 2016 में, बोधा राम मांझी, लेटे मांझी, बिगा राम मांझी, शर्मा मानसी की पत्नी आशा हेंब्रम की मौत 2017 में, बिरसा मांझी की पत्नी सधनी देवी, बेनी राम मांझी और मुंशी मांझी की मौत 2018 में तथा दशमी देवी की मौत 2022 के नवंबर माह में अस्पताल जाने के क्रम में रास्ते में ही हो गई।

गांव जन वितरण प्रणाली की दुकान नहीं होने के कारण राशन के लिए लाल कार्ड धारियों को 8 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। ग्रामीणों ने बताया कि डीलर द्वारा 2 किलो चावल काट लिया जाता है। राशन के लिए छोटे बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं को भी पैदल 8 किलोमीटर दूर आंगो जाना पड़ता है।

आवास की बात करें तो यहां 1997 में 7 लोगों को इंदिरा आवास मिला था, जो अब अत्यंत जर्जर हो गया है। ऐसे में यहां के लोग जर्जर मिट्टी के घर में रहने के लिए मजबूर हैं।

विकास की बाट जोहते सिमरा जरा गांव के लोग

यहां के लोगों को किसी तरह का पेंशन नहीं मिलता है, वहीं एक दर्जन लोगों के पास राशन कार्ड नहीं है।

जहां स्वच्छ भारत अभियान के तहत स्वच्छता विभाग की ओर से भारत के हर गांव में शौचालय बनाया जा रहा है। बावजूद सिमरा जरा गांव में किसी के घर में शौचालय नहीं बना है। लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं।

सड़क के अभाव पर ग्रामीण बिरसा मांझी बताते हैं कि मेरे यहां नये रिश्ते के लिए मेहमान लोग आए हुए थे और शादी के लिए छेका भी हो गया था। लेकिन सड़क नहीं होने के कारण रिश्ता टूट गया।

इस गांव की बिडम्बना यह है कि यहां मात्र 2 एकड़ जमीन में धान एवं मकई की खेती होती है जिससे लोगों को जीविका चलाना मुश्किल हो जाता है। यही कारण है कि लोगों को भुखमरी की स्थिति का सामना करना पड़ता है। वहीं यहां एक भी सरकारी नौकरी करने वाला व्यक्ति नहीं है, अतः सभी लोग मजदूरी करते हैं। लोग रोजगार के लिए दूसरे राज्यों चेन्नई, तमिलनाडु जाना पड़ता है। ग्रामीणों ने बताया कि इस साल यहां से अब तक 15 लोग रोजगार के लिए पलायन कर चुके हैं।

ग्रामीणों ने कहा कि हम आप मीडिया के माध्यम से सड़क, बिजली, कुआं व चापाकल, आंगनबाड़ी केंद्र, जन वितरण प्रणाली की दुकान, उप स्वास्थ केंद्र, मिडिल स्कूल व तलाब के साथ-साथ जीविकोपार्जन के लिए पशुधन योजना के तहत बकरी पालन, गाय पालन, मुर्गी पालन, भेड़ पालन आदि की मांग सरकार से करते हैं।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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