नई दिल्ली। तेलंगाना विधानसभा चुनावों के बीच भाजपा सबसे अधिक मुस्लिम आरक्षण पर चर्चा कर रही है। भाजपा तेलंगाना में मुसलमानों के आरक्षण को खत्म करने और पिछड़ों के आरक्षण को बढ़ाने का वादा किया है। इसके साथ ही समान नागरिक संहिता लाने और पार्टी के राज्य चुनाव जीतने पर राज्य के लोगों के लिए अयोध्या की मुफ्त यात्रा कराने का वादा किया है। भाजपा राज्य में अपने जनाधार के अभाव में मुस्लिमों पर हमला करके हिंदुओं का ध्रुवीकरण कराना चाह रही है। इसीलिए भाजपा का हर नेता राज्य में मुसलमानों को मिलने वाले 4 प्रतिशत आरक्षण पर हमलावर है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य में चुनाव प्रचार करते समय कई बार कहा है कि सरकार बनते ही भाजप 4 फीसदी मुस्लिम आरक्षण हटा देगी और इसे एससी, एसटी और ओबीसी में बांट देगी। उन्होंने कहा कि “केसीआर ने मुस्लिमों को धर्म के आधार पर आरक्षण दिया जो संविधान के खिलाफ है। यदि आप भाजपा सरकार चुनते हैं, तो हम धर्म के आधार पर आरक्षण के स्थान पर ओबीसी और एससी/एसटी के लिए आरक्षण बढ़ाएंगे। ”
भाजपा ने मुस्लिम आरक्षण को बताया असंवैधानिक
भाजपा के तेलंगाना चुनाव के लिए घोषणापत्र में कहा गया है कि “वह राज्य में सभी असंवैधानिक धर्म-आधारित आरक्षणों को हटाने और इसे पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को फिर से आवंटित करने के लिए प्रतिबद्ध है।”
पार्टी ने सरकारी नौकरियों और राज्य शैक्षणिक संस्थानों में मुसलमानों के लिए आरक्षित 4 प्रतिशत कोटा को “असंवैधानिक” और धर्म-आधारित बताया है।
कांग्रेस ने किया अल्पसंख्यक कल्याण बजट बढ़ाने का वादा
कांग्रेस ने तेलंगाना में सत्ता में आने के छह महीने के भीतर अल्पसंख्यक कल्याण के लिए बजट को सालाना 4,000 करोड़ रुपये तक बढ़ाने और जाति जनगणना कराने का वादा किया है। साथ ही बेरोजगार अल्पसंख्यक युवाओं और महिलाओं को रियायती ऋण प्रदान करने के लिए प्रति वर्ष 1,000 करोड़ रुपये का भी वादा किया।
पार्टी ने अल्पसंख्यक समुदाय को अन्य लाभ देने का भी वादा किया, जिसमें अल्पसंख्यक छात्रों को वित्तीय सहायता, धार्मिक पुजारियों के लिए मासिक मानदेय, “तेलंगाना सिख अल्पसंख्यक वित्त निगम” की स्थापना, उर्दू माध्यम के शिक्षकों को भरने के लिए विशेष भर्ती और अन्य लाभ शामिल हैं।
अन्य पार्टियों ने क्या कहा है
इस साल अप्रैल में अमित शाह द्वारा मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा उठाने के बाद कांग्रेस, बीआरएस और एआईएमआईएम ने उन पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ को “कमजोर” करने का आरोप लगाया, जिसके समक्ष यह मुद्दा लंबित है।
शाह पर निशाना साधते हुए तेलंगाना कांग्रेस नेता शब्बीर अली ने कहा कि भाजपा को राज्य में मुस्लिम कोटा के बारे में कोई जानकारी नहीं है। शब्बीर ने कहा है कि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े मुसलमानों को नौकरियों और शिक्षा में 4 प्रतिशत कोटा सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए स्टे के आधार पर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में लागू किया गया है।
एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा, “बीजेपी आरक्षण को लेकर झूठ बोल रही है। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में मुसलमानों को उनके धर्म के आधार पर नहीं बल्कि उनके सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण मिल रहा है। हर मुसलमान को यह नहीं मिल रहा है। पिछड़े मुसलमानों की सूची में शामिल जातियों को ही मिल रहा है।”
कांग्रेस और एआईएमआईएम दोनों ने तर्क दिया कि मौजूदा कोटा मुस्लिम समुदाय के भीतर अगड़े वर्गों को नहीं मिल रहा है, यह सामाजिक और शैक्षिक क्षेत्रों में मुसलमानों के पिछड़े वर्गों को ही दिया जाता है। यह कोटा कसाई, धोबी, नाई सहित अन्य लोगों के लिए लागू है।
बीआरएस के प्रवक्ता रावुला श्रीधर रेड्डी ने कहा, “अमित शाह ने मुस्लिम आरक्षण को एक धार्मिक मुद्दे में बदल दिया है। वह संवैधानिक और असंवैधानिक कोटा के बीच अंतर नहीं जानते क्योंकि 4 प्रतिशत कोटा संवैधानिक है और 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन नहीं करता है।
तेलंगाना में मुस्लिम आरक्षण की पृष्ठभूमि
मुसलमानों को आरक्षण के दायरे में लाने का पहला प्रस्ताव तेलंगाना के गठन से पहले 1960 के दशक का है। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, तत्कालीन आंध्र प्रदेश सरकार अन्य पिछड़े वर्गों के पिछड़ेपन का अध्ययन कर रही थी और पाया कि मुसलमानों के कुछ वर्ग जैसे धोबी और बुनकर शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक मोर्चों पर अनुसूचित जाति से अधिक पिछड़े थे।
1994 में, मुख्यमंत्री कोटला विजय भास्कर रेड्डी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने धोबी और बुनकर जैसी मुसलमानों की दो श्रेणियों को ओबीसी सूची में शामिल किया।
2004 में, वाईएस राजशेखर रेड्डी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने मुसलमानों को ओबीसी मानकर 5 प्रतिशत कोटा प्रदान किया। पिछड़ा वर्ग आयोग ने मुसलमानों की 14 श्रेणियों के बीच सामाजिक-शैक्षिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण की सिफारिश की, लेकिन यह भी कहा कि आरक्षण को 50 प्रतिशत सीमा के भीतर रखने के लिए इसे 4 प्रतिशत तक लाया जाना चाहिए।
वर्तमान में, तेलंगाना में मुसलमानों को 4 प्रतिशत आरक्षण है, जबकि तेलंगाना में मुसलमानों की आबादी का 12.7% है। 2014 के विधानसभा चुनाव के दौरान जब राज्य नवगठित हुआ था, टीआरएस (अब बीआरएस) ने वादा किया था कि वह नौकरियों और शिक्षा में मुसलमानों के लिए आरक्षण को बढ़ाकर 12% कर देगी।
अप्रैल 2017 में, तेलंगाना विधानसभा ने मुसलमानों के लिए आरक्षण को 4 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियों के लिए 6 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत करने के लिए एक विधेयक पारित किया। इसके बाद विधेयक को मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के पास भेजा गया। हालांकि, केंद्र ने यह कहते हुए मंजूरी देने से इनकार कर दिया कि वह धर्म-आधारित आरक्षण की अनुमति नहीं दे सकता।
(जनचौक की रिपोर्ट।)