हरियाणा में आई बाढ़ ने सरकार व प्रशासन की कार्यशैली पर खड़े किए सवाल

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हरियाणा के कई जिलों में बाढ़ की स्थिति ने बता दिया है कि मनोहर लाल खट्टर सरकार कृषि प्रधान राज्य और नागरिकों को लेकर कितनी गंभीर है। राज्य सरकार ने प्राकृतिक आपदाओं से बचने व निपटने का पुख्ता प्रबंध समय रहते हुए नहीं किया जिसका खामियाजा प्रदेश की जनता को भुगतना पड़ा रहा है। बारिश के पानी का भंडारण करने और रिहायशी इलाकों से जल-निकासी की योजनाओं में सरकार व प्रशासन द्वारा हुई चूक ने नागरिकों को परेशान कर दिया है। एक कृषि प्रधान देश में नदियों, बरसाती नालों, बांधों के रख-रखाव के प्रति कितना गैर ज़िम्मेदाराना दृष्टिकोण केंद्रीय व राज्य सरकारों द्वारा अपनाया जाता है। पानी का प्रबंधन किस प्रकार उपेक्षित रहता है ये बरसात के मौसम में हर साल बार-बार उजागर होती है।

हरियाणा में बाढ़ नियंत्रण बोर्ड का गठन 1980 में हुआ था। बोर्ड के चेयरमैन स्वयं मुख्यमंत्री व बोर्ड में 21 स्थाई सदस्यों में सरकार के उच्च अधिकारी, 6 सदस्य गैर सरकारी और एक अतिथि सदस्य शामिल किये गए थे। बाद में जिसका नाम बदल कर हरियाणा प्रदेश सूखा राहत व बाढ़ नियंत्रण बोर्ड कर दिया गया है।

इसी वर्ष 19 जनवरी को चंडीगढ़ में बोर्ड की 54 वीं वार्षिक बैठक मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की अध्यक्षता में हुयी थी जिसमें 2026 तक प्रदेश को बाढ़ मुक्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।

इसी मीटिंग में बोर्ड ने 528 योजनाओं को मंजूरी दी थी जिन पर 1100 करोड़ रुपये खर्च करने को भी मंजूर किया गया था। 312 करोड़ रुपये जल निकासी व खड़े पानी के पुन: प्रयोग किये जाने के लिए खर्च किये जाने का प्रावधान रखा गया था।

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा था कि इस वर्ष में विशेष योजना शुरू की जाएगी जिस से जल भराव की समस्या के स्थाई समाधान किया जा सके। सीएम मनोहर लाल ने मीटिंग के बाद कहा था की 110 करोड़ रुपये की लागत से 59 योजनाओं के अंतर्गत जल बहाव को सही करने के लिए नए निर्माण व पुराने निर्माणों की मरम्मत के लिए रखे गए हैं।

सवाल ये है कि बाढ़ की चेतावनी व रोकथाम के लिये कोई प्रभावी तकनीक प्रदेश के इतने बड़े विभाग जिसमें 50 उच्चतम नौकरशाह, लगभग 1100 राजपत्रित अधिकारी हैं, के पास नहीं है। सिंचाई व जल संसाधन मंत्रालय स्वयं मुख्यमंत्री के अधीन हैं। हरियाणा जल संसाधन (संरक्षण नियंत्रण व प्रबंधन) प्राधिकरण भी बाढ़ की स्थिति का कोई प्रभावी हल निकालने में सफल नहीं हो पाया।

17 मार्च, 2020 में मुख्यमंत्री ने स्वयं हथनीकुंड बैराज का निरीक्षण किया था और मानसून के समय आने वाले जल के समुचित प्रबन्ध के लिए उचित निर्माण किये जाने की योजना बनाने के निर्देश दिए थे लेकिन 3 साल बीत जाने के बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुयी है।

हरियाणा में प्रति वर्ष सामान्यतः 624 मिलीमीटर बारिश होती है। जिसमें से लगभग 80 प्रतिशत मानसून (जून-सितंबर) के समय में होती है। पंचकूला, यमुनानगर, अंबाला, कुरुक्षेत्र, करनाल, कैथल, सिरसा और फतेहाबाद के क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों से कुछ अधिक बरसात होती है। साथ लगते पहाड़ी क्षेत्र से बरसात के पानी का बहाव यमुना व घग्गर के भौगोलिक क्षेत्र की ओर होता है।

यमुना, घग्गर, टांगरी और मारकंडा के अलावा अन्य बरसाती नालों के द्वारा पानी की निकासी सामान्यतः होती है। प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में भी कई बरसाती नाले हैं जिनसे बरसाती पानी की निकासी में सहायता मिलती है। इन सभी स्त्रोतों की क्षमता के उचित प्रबंधन से ही प्रदेश को किसी विकट प्राकृतिक आपदा से बचाया जा सकता है।

(हरियाणा से जगदीप सिंह सिंधु की रिपोर्ट।)

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