गुमला में बालिका आवासीय विद्यालय की वार्डेन ने करायी छात्राओं से मजदूरी, वीडियो वायरल

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गुमला। झारखंड के गुमला जिला अंतर्गत चैनपुर प्रखंड में स्थित झारखंड बालिका आवासीय विद्यालय, चैनपुर की वार्डेन लिली ग्रेस बा द्वारा विद्यालय की छात्राओं से चावल की बोरी की ढुलाई कराये जाने का एक मामला प्रकाश में आया है। तुर्रा यह कि इस तरह के शर्मसार करने वाले मामले पर विद्यालय की वार्डेन का शर्मनाक बयान आया कि “अपने स्कूल का काम स्कूल की छात्राएं नहीं करेंगी तो कौन करेगा।”

उल्लेखनीय है कि कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय की शुरुआत अगस्त 2004 में केंद्र सरकार द्वारा देश के पिछड़े इलाकों की एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों की लड़कियों के लिए उच्च प्राथमिक स्तर की शिक्षा को लेकर की गई। जिसमें केंद्र सरकार द्वारा कक्षा छठी से आठवीं तक की मंजूरी थी, जबकि राज्य सरकार ने इन स्कूलों को बारहवीं कक्षा तक अपग्रेड कर दिया।

इसी तर्ज पर झारखंड सरकार ने 2015 में राज्य के सुदूर ग्रामीण व पर्वतीय क्षेत्रों में झारखंड बालिका आवासीय विद्यालय स्थापित किया। जो पूरी तरह शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत है।

लेकिन जिला गुमला के चैनपुर स्थित झारखंड बालिका आवासीय विद्यालय की वार्डेन लिली ग्रेस बा को इसका जरा भी ज्ञान नहीं है। शायद यही वजह है कि विद्यालय के लिए आए राशन का चावल ट्रक से लाया गया और स्कूल तक ट्रक के जाने के लिए सड़क के अभाव में लगभग एक किलोमीटर पीछे ही ट्रक को रोक दिया गया। ऐसे में वार्डेन द्वारा चावल की बोरियों को मजदूरों से नहीं ढुलवाकर विद्यालय की छात्राओं से ढुलवाया गया।

गुमला में स्थित बालिकाआवासीय विद्यालय

इस मामले की जानकारी तब सार्वजनिक हुई जब किसी ने इसका वीडियो बनाया और फोटो लेकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। इसके बाद स्थानीय पत्रकारों ने जब वार्डेन से इस बावत बात की तो उन्होंने यह कहते हुए कि “अपने स्कूल का काम स्कूल की छात्राएं नहीं करेंगी तो कौन करेगा।” एक नया विवाद खड़ा कर दिया।

एक स्थानीय पत्रकार द्वारा वार्डेन से की गई बातचीत के ऑडियो के अनुसार- जब पत्रकार ने स्कूल की वार्डेन लिली ग्रेस बा से सवाल किया कि “आपने ट्रक से आए चावल की बोरी को स्कूल की छात्राओं से ढुलवाया है?”

इसपर वार्डेन बेहिचक कहती हैं कि “तो क्या करें, अपना घर ( यानी स्कूल) का राशन है, ढुलवाएंगे नहीं तो क्या गाड़ी में ही छोड़ देंगे।”

पत्रकार – “मजदूर से न करवाइएगा काम।”

वार्डेन – “बच्चे स्कूल के हैं, घर का सामान है तो लाऊंगी न। क्या आप दुकानदार से सामान खरीदते हैं तो क्या सामान दुकानदार घर पहुंचाता है?”

पत्रकार – “आप रोड से ढुलवा रहे हैं।

वार्डेन – “स्कूल तक गाड़ी जाने का रास्ता नहीं है तो क्या करेंगे?”

पत्रकार – “आपको पता है यह शिक्षा अधिकार कानून का उल्लंघन है। शिक्षा अधिकार कानून की आपको जानकारी है कि नहीं?”

वार्डेन – “नहीं, हमें इसकी जानकारी नहीं है।” कहते हुए वार्डेन आगे एक ही राग अलापती है -“स्कूल तक गाड़ी जाने की सड़क नहीं है तो बच्चियों से काम नहीं करवाएंगे तो क्या करेंगे। रोड की मांग कर रहे हैं कोई नहीं दे रहा है, गाड़ी नहीं आ पाती है तो क्या अपना स्कूल का चावल नहीं घुसवाएंगे।”

बोरियां ढोतीं स्कूल की छात्राएं

झारखंड बालिका आवासीय विद्यालय में सुदूरवर्ती पठारी क्षेत्र की दलित, आदिवासी व अत्यंत गरीब छात्राएं पढ़ती हैं। उनसे यहां के वार्डेन के द्वारा मजदूरों की तरह काम कराया जाना बेहद शर्मनाक है।

बच्चियों से इस तरह से काम कराने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही लोगों ने विद्यालय की वार्डेन की आलोचना शुरू कर दी है। लोगों का कहना है कि बच्चों को स्कूल पढ़ने भेजा जाता है ना कि मजदूरी करने के लिए। विभाग की लापरवाही के कारण स्कूली छात्राओं से पढ़ाई के नाम पर मजदूरी कराई जा रही है। कभी चावल धुलवाया जा रहा है कभी घास कटवाया जा रहा है। लोगों का आरोप है कि छात्राओं से इस तरह के काम करवाकर स्कूल प्रबंधन द्वारा मजदूरी की राशि बचाकर कागजों पर मजदूरों से काम दिखाकर बची राशि से अपनी जेबें भरी जाती हैं।

क्षेत्र के लोगों द्वारा कहा गया कि स्कूल की बच्चियों को मजदूर बनाकर काम करवाया जाना काफी गलत है, ऐसे वार्डेन के खिलाफ कठोर कार्रवाई होनी चाहिए।

इस मामले पर चैनपुर प्रखंड की प्रमुख ओलिभा कान्ता कुजूर ने कहा कि “झारखंड बालिका आवासीय विद्यालय में सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्र की अत्यंत गरीब छात्राएं पढ़ती हैं। इनके माता-पिता बेहतर भविष्य के लिए इन्हें पढ़ने भेजे हैं। मगर स्कूल के वार्डेन के द्वारा निजी स्वार्थ और पैसे बचाने की लालच में छात्राओं से मजदूरी कराया जाना बेहद गलत है। बच्चों से मजदूरों की तरह काम करवाने वाले वार्डेन पर कठोर कार्रवाई होनी चाहिए।”

इस मामले में कई स्थानीय मीडिया कर्मियों द्वारा सवाल किये जाने पर वार्डन लिली ग्रेस बा ने बिना किसी लाग-लपेट के तेवर भरे शब्दों में वही बात दुहराती रहीं कि “बच्चों से काम नहीं करवाएंगे तो किससे करवाएंगे? स्कूल तक गाड़ी आने के लिए सड़क नहीं है, चावल भी लाना जरूरी है, इसलिए बच्चों से ही काम करवाना पड़ेगा।”

उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि “मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कौन क्या कहता है। इस तरह के कार्य मैं स्कूली छात्राओं से ही कराती हूं, यह घर का कार्य है इसे छात्रायें नहीं करेंगी तो कौन करेगा?”

उक्त मामले पर हमने वार्डेन का पक्ष जानने के लिए गुमला के एक पत्रकार से नंबर लिया और जब उस नंबर पर काल किया तो काफी देर बाद काल उठाया गया। अपना परिचय देते हुए जब पूछा कि वार्डेन बोल रही हैं? तो उधर से जवाब आया “नहीं, वार्डेन मैम दूसरी जगह हैं, उनके आ जाने के बाद फोन कर लीजिए” और फोन काट दिया गया। पुनः कई बार कॉल करने पर फोन नहीं उठाया गया।

आए दिन इस तरह कि घटनाएं देखने को मिलती हैं जबकि संबंधित शिक्षा विभाग को ऐसे मामलों पर संज्ञान लेकर त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए। ताकि इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।

(विशद कुमार वरिष्ट पत्रकार हैं और झारखंड मे रहते हैं।)

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