योगी सरकार महिलाओं को चारदीवारी में कैद कर उन्हें सुरक्षित करना चाहती है?

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने कोचिंग संस्थानों को छात्राओं के लिए देर शाम कक्षाएं आयोजित करने से प्रतिबंधित कर दिया है। यूपी सरकार द्वारा जारी ‘सेफ सिटी प्रोजेक्ट’ के नए गाइडलाइंस के माध्यम से यह महिला विरोधी एवं लैंगिक भेदभावकारी फरमान लाया गया है। ‘सेफ सिटी प्रोजेक्ट’ भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा निर्भया फंड स्कीम के अंतर्गत ली गई पहल है जिसमें राज्य सरकारों के सहयोग से शहरों को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाने का दावा किया गया है। लेकिन कैसे? क्या सरकार महिलाओं को कैद कर उन्हें सुरक्षित करना चाहती है?

निर्भया आंदोलन में देशभर की महिलाओं ने ‘बेखौफ आजादी, और ‘महिलाओं के कपड़े नहीं, अपनी सोच बदलो’ जैसे नारे दिए। ऐसा देशव्यापी जनआंदोलन खड़ा हुआ जिससे संसद को यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून बनाना पड़ा और सार्वजनिक स्थानों पर महिला सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिहाज से निर्भया फंड बनाया गया। दुःखद है कि उसी निर्भया फंड का दुरुपयोग कर महिलाओं को फिर से कैद करने की कवायद की जा रही है।

एक तरफ भाजपा सरकार स्मार्ट सिटी और 24×7 सिटी बनाने, दुरुस्त कानून व्यवस्था तथा महिला सुरक्षा के बड़े-बड़े दावे कर रही है, वहीं दूसरी तरफ सुरक्षा के नाम पर महिलाओं को कैद कर उन्हें समान अवसर प्राप्त करने के अधिकार से वंचित करने की कवायद चल रही है। अगर हम शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, सार्वजनिक स्थानों एवं अन्य शहरी सुविधाओं को 24 घंटे खोलने की बात कर रहे हैं तो यह किसके लिए होंगे और इसमें महिलाएं कहां हैं? यह बड़ा सवाल है।

भाजपा और आरएसएस की राजनीति हमेशा से महिला विरोधी रही है। एक तरफ आरएसएस और इससे जुड़े संगठन महिलाओं को बराबरी का अधिकार देने वाले बाबा साहब अंबेडकर और हमारे संविधान को भारतीय संस्कृति के खिलाफ बताकर इसका विरोध करते रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ ये लोग महिला और दलित विरोधी दस्तावेज मनुस्मृति से देश चलाने की वकालत करते आए हैं। इनके संस्थापक सदस्यों से लेकर वर्तमान नेताओं तक के महिला विरोधी बयानों की एक लंबी फेहरिस्त है।

खुद योगी आदित्यनाथ का बयान है कि “महिलाओं को हमेशा उनके पिता, पति या बेटे द्वारा संरक्षण की जरूरत होती है। अगर उन्हें खुला छोड़ दिया जाए तो उनकी ऊर्जा व्यर्थ हो जाएगी।” ये महिलाओं को पुराने पितृसत्तात्मक ढांचे में ही रखना चाहते हैं जहां उनको पुरुषों की निजी संपत्ति समझा जाता है। इनका मानना है कि महिलाएं अपने जीवन के फैसले लेने में सक्षम नहीं हैं इसलिए इनके द्वारा महिलाओं के पहनावे, साथी के चुनाव आदि को नियंत्रित करने की कोशिश की जाती रही है।

‘घर वापसी’ और ‘एंटी रोमियो स्क्वॉड’ जैसे सरकारी अभियान इसी मानसिकता को दिखाते हैं। विश्व हिन्दू परिषद व बजरंग दल जैसे संगठनों द्वारा प्रेमी जोड़ों के साथ छेड़खानी एवं मारपीट का सघन अभियान चलाया जाता है, जिसे योगी सरकार द्वारा किए गये ‘एंटी रोमियो स्क्वॉड’ जैसे प्रयोग से संस्थागत रूप दे दिया गया। हम ऐसे अभियानों के परिणाम के गवाह रहे हैं और इनकी मंशा को बखूबी समझते हैं।

एनसीआरबी द्वारा 2020 में जारी की गयी रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है। यौन हिंसा, घरेलू हिंसा और रेप के मामले प्रदेश में लगातार बढ़ रहे हैं। गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी खुद योगी आदित्यनाथ के पास है, जो यूपी में अपराध की रोकथाम और अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने में पूरी तरफ से असफल साबित हुए है।

उत्तर प्रदेश में अब यह आम बात है की ऐसे मामलों में दोषियों पर कार्रवाई करने के बजाय सच्चाई उजागर करने वाले पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं एवं प्रदर्शनकारियों पर ही फर्जी मुकदमे लाद दिए जाते हैं। हाल में बीएचयू में हुए गैंगरेप मामले में पुलिस दोषियों की पहचान तक नहीं कर पायी है, उलटे पीड़िता को न्याय दिलाने की माँग करने वाले छात्र-छात्राओं को फर्जी मुकदमें में फंसाया जा रहा है।

आज जब हम मंगल ग्रह पर पहुंचने का जश्न मना रहे हैं तभी विश्वविद्यालयों की छात्राएं अपना कर्फ्यू टाइमिंग खत्म करने जैसी बुनियादी मांग के लिए संघर्ष करने पर मजबूर हैं। सरकारों द्वारा समाज में एक आम समझदारी बनाने की कोशिश की जाती रही है कि चारदीवारी के भीतर ही महिलाओं को सुरक्षित रखा जा सकता है।

सरकारी सर्वे NFHS के अनुसार तो यौन हिंसा के 99 फीसदी से अधिक मामले दर्ज नहीं हो पा रहे हैं, वहीं ऐसे प्रत्येक तीन में से एक अपराध पति द्वारा किए जा रहे हैं। सुरक्षा को एकांत या अलगाव में नहीं बल्कि समूह में रहकर सामूहिक प्रयासों से ही सुनिश्चित किया जा सकता है। सरकार को लैंगिक संवेदनशीलता और जागरूकता के कार्यक्रमों को व्यापक स्तर पर चलाना चाहिए।

इसके अलावा सार्वजनिक परिवहन को 24 ×7 संचालित किया जाए, महिलाओं के लिए फ्री बस सेवा, महिला पुलिसकर्मियों एवं महिला पुलिस बूथ की संख्या बढ़ाई जाए, रास्तों में प्रकाश की उचित व्यवस्था हो, रात के समय पठन-पाठन से लेकर सभी कार्य संस्थान में महिलाओं के लिए अनिवार्य रुप से परिवहन की व्यवस्था हो तथा कोचिंग संस्थानों में भी विशाखा गाइडलाइंस को प्रभावी ढंग से लागू कराया जाए। स्थानीय बाजार एवं अधिक से अधिक सेवाओं को देर रात तक खोला जाए जिससे लोगों का आवागमन बना रहे। यूपी के महिला हेल्पलाइन की स्थिति का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि इसके कर्मचारी अपने तनख़्वाह बढ़ाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं।

महिला हेल्पलाइन को प्रभावी और उत्तरदायी बनाया जाए, शिकायतों के निवारण की एक निश्चित समय सीमा हो और निवारण न कर पाने की स्थिति में शिकायतकर्ता के प्रति जवाबदेही तय किया जाए। उचित कानूनी सहायता, सलाह, कॉउंसलिंग आदि के लिए सोशल वर्कर्स एवं पेशेवर लोगों की टीम हो तथा पुलिस को ऐसे मामलों को संवेदनशीलता से डील करने का प्रशिक्षण दिया जाए। ऐसे ही कुछ ठोस प्रयासों से, बिना किसी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को छीने, महिला सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जा सकते हैं।

केंद्र की मोदी सरकार हो या यूपी में योगी सरकार, नागरिक अधिकारों पर चौतरफा हमले जारी हैं। अपराध की रोकथाम के नाम पर महिलाओं को ही कैद करना दिखाता है कि सरकार अपराधियों के खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई करने में पूरी तरह नाकाम साबित हुई है। आइसा ऐसे किसी भी शासनादेश, नीति या कानून का विरोध करता है जो महिला अधिकारों का हनन करते हैं।

सुरक्षा हर नागरिक का अधिकार है और इसे सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है। ‘सुरक्षा’ व्यक्तिगत स्वतंत्रता में इजाफा करता है जबकि सुरक्षा के नाम पर ‘संरक्षण’ सामंती एवं श्रेणीबद्ध समाज का परिचायक है। हम इस प्रकार के संरक्षण के खिलाफ हैं और यूपी सरकार से यह मांग करते हैं कि इस सर्कुलर को तत्काल वापस लिया जाए।

(आइसा -उत्तर प्रदेश द्वारा जारी)

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