मिजोरम और नागालैंड भी आए मणिपुर की आग की ज़द में

मणिपुर में हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है। इसी संदर्भ में मिजोरम के मुख्यमंत्री की ट्विटर पर मार्मिक अपील ने देश का ध्यान खींचा है। मुख्यमंत्री ने मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को टैग करते हुए एक लंबा पत्र लिखा है, “मई की शुरुआत में मणिपुर में एक बेहद क्रूर, अप्रिय एवं गैर-ज़रूरी घटना देखने को मिली। इस वक्त जब सुबह के 3:30 बजे, 4 जुलाई, 2023 को ऐसा लगता है कि कुछ भी नहीं बदलाव नहीं हुआ है। हम दिन गिन रहे हैं, और आज 62वां दिन है।

अपने ट्वीट में मुख्यमंत्री जोरामथांगा ने लिखा है, “हालांकि जहां हम सद्भावना, प्रत्याशा और बेहतर कल की आशा कर रहे हैं कि चीजें बेहतर हो जाएंगी, लेकिन हालात बद से बदतर होते दिख रहे हैं। यह सब कब रुकेगा? मैं अपने मणिपुरी जो जातीय भाइयों के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त करता हूं। उन लोगों के लिए मेरी हार्दिक प्रार्थनाएं स्वीकार हों जिन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया है, और जिनके घर और परिवार टूटकर बिखर चुके हैं। दयालु ईश्वर आप सभी को इस विनाशकारी घटना से उबरने की शक्ति और विवेक प्रदान करे।

मैं कामना करता हूं कि अब मुझे और किसी चर्च को जलाए जाने, क्रूर हत्याओं और सभी प्रकार की हिंसा की तस्वीरों और वीडियो क्लिप देखने को न मिले, चाहे वह किसी भी लिंग और उम्र का हो। अगर शांति स्थापित करने का केवल एक मात्र रास्ता बचता है, तो क्या हम उसे चुनेंगे? इस हिंसा में अनेकों की जान चली गई है, हर तरफ खून-खराबा हो रहा है, शारीरिक यातनाएं दी जा रही हैं और हिंसा से पीड़ित लोग जहां भी संभव हो शरण की तलाश में भटक रहे हैं।

इस बात में कोई संदेह नहीं कि ये पीड़ित मेरे संबंधी मित्रजन हैं, हमारा अपना खून हैं। क्या हमें चुप बैठकर हालात के शांत होने की उम्मीद करनी चाहिए? मैं ऐसा नहीं समझता! मैं तत्काल शांति और सामान्य स्थिति की बहाली का आह्वान किये जाने के पक्ष में हूँ। यह भारत के जिम्मेदार एवं कानून का पालन करने वाले नागरिकों/संस्थाओं के ऊपर निर्भर करता है और अत्यावश्यक है कि वे शांति बहाली के लिए तत्काल रास्तों को तलाशें। मानवीय संवेदना के साथ विकास और ‘सबका साथ-सबका विकास’ की बात मणिपुर के मेरे ज़ो जातीय जनजातियों पर भी लागू होता है!

मणिपुर में जारी क्रूर हिंसा के चलते आज मिजोरम में 12,000 लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हो गए हैं।

मणिपुर, म्यांमार और बांग्लादेश से आए शरणार्थियों की संख्या 50,000 से पार हो चुकी है। मैं केंद्र सरकार से प्रार्थना और कामना करता हूं कि मानवीय आधार पर हमारी तत्काल मदद की जाये।”

इससे पहले भी मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथांगा 16 मई और 23 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम दो पत्र लिख चुके हैं। अपने पत्र में उन्होंने मणिपुर से भारी संख्या में शरणार्थियों के पलायन के मुद्दे पर केंद्र से 10 करोड़ रूपये की आर्थिक मदद की मांग की थी। दिसंबर, 2023 तक मिजोरम विधान सभा का कार्यकाल खत्म होने जा रहा है। 40 सदस्यीय विधानसभा में मिजो नेशनल फ्रंट के 27 सदस्य हैं। जोराम पीपुल्स मूवमेंट के 6 और कांग्रेस पार्टी के 5 विधायक हैं। भाजपा के पास 1 विधायक है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना राज्यों के साथ-साथ मिजोरम विधानसभा चुनाव के दौर से गुजरने जा रहा है।

कल ही कांग्रेस पार्टी ने भी ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के मुख्यालय में मिजोरम राज्य में विधानसभा चुनाव की तैयारी के सिलसिले में एक बैठक आयोजित की थी। इस बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे सहित पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल, मिज़ोरम के पार्टी इंचार्ज भक्त चरण दास सहित राज्य के नेताओं ने हिस्सा लिया। बैठक के बाद एक ट्वीट में खड़गे ने बताया है कि मिजोरम की जनता बदलाव चाहती है। कांग्रेस का प्रदेश में स्थिर सरकार और विकास का इतिहास रहा है। मिजोरम कांग्रेस एक बार फिर से मिजोरम के कल्याण और विकास के लिए एक नए युग की शुरुआत के प्रति कृत-संकल्प है।

वहीँ दूसरी तरफ सूबे की प्रमुख पार्टी, जोराम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM) की ओर से हाल ही में मणिपुर में बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के द्वारा कुकी-ज़ोमी समुदाय के सफाया अभियान के मद्देनजर विभिन्न प्रदेशों में रह रहे ज़ो लोगों के एकीकरण की अपील ने राजनीतिक समीकरण को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। मणिपुर के कुकी-ज़ोमी समुदाय का संबंध मिजोरम के लुशेई जातीय जनजाति से है, जो संख्या के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। ZPM नेता और मुख्यमंत्री पद के दावेदार लाल्दुहोमा का कहना है, “भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत सभी ज़ो समुदाय के लोगों के लिए अलग से एक प्रशासनिक ईकाई गठित करना संभव है। यही हमारी पार्टी का मिशन है और एक दिन यह संभव होगा। मणिपुर में रह रहे कुकी हमारे ही भाई-बहन हैं। यदि वे हमारे साथ आना चाहते हैं तो उनका हार्दिक स्वागत है।” 

इंडियन एक्सप्रेस ने भी चिन होमलैंड पर प्रकाश डालते हुए बताया है कि म्यांमार के एक क्षेत्र को इंडो-चिन हिल्स के नाम से जाना जाता है। उत्तरी-पश्चिमी म्यांमार का यह इलाका घने वनों से आच्छादित 2,100-3,000 मीटर की ऊंचाई वाला क्षेत्र है। बड़ी संख्या में यहाँ की जनजातियाँ ज़ो जनजाति के तहत आती हैं। ज़ो समुदाय में चिन-कुकी-मिजो जनजाति के लोग हैं जो म्यांमार, भारत सहित बांग्लादेश में निवास करते हैं। ऐसा माना जाता है कि तिब्बत से होते हुए चीन से ये लोग म्यांमार में आकर बसे। चिन, कुकी, मिज़ो, लुशेई सहित ज़ोमी, पैटी, हमार, राल्ते, पावी, लाई, मारा, गंगते, थादौ सहित कई उप-जनजाति के समूह इसके हिस्से हैं। 

इनके बीच चले संघर्षों का नतीजा यह रहा कि इसमें से कुछ समूह 17वीं शताब्दी में आज के मिज़ोरम और मणिपुर में आकर बस गये। भले ही इन्होंने खुद को नए इलाकों में आबाद कर लिया लेकिन सामाजिक एवं संवेदना के स्तर पर वे आज भी खुद को म्यांमार के चिन जनजाति से जुड़ा महसूस करते हैं। म्यांमार में हाल के वर्षों में सैन्य तख्तापलट से पहले ही बड़ी संख्या में ज़ो आबादी ने मिज़ोरम में पलायन किया था, जिसके चलते ही मिज़ोरम के मुख्यमंत्री अपने राज्य में शरणार्थियों की संख्या 50,000 तक पहुंच जाने का दावा कर रहे हैं। यही वजह है कि केंद्र सरकार के निर्देश के बावजूद मिज़ोरम के मुख्यमंत्री जोरामथांगा ने रोहिंग्या शरणार्थियों को प्रदेश से बाहर करने से इंकार कर दिया था। जातीयता और धर्म के अलावा ईसाइयत भी एक वजह है जो इन जनजातियों को एक दूसरे से जोड़कर रखती है। 

मणिपुर से पलायन कर आये इन हजारों कुकी समुदाय के लोगों के मिजोरम में नाते-रिश्तेदारियां हैं। कई लोगों के यहां पर व्यवसाय और आवास तक हैं, और दोनों राज्यों में इनका आना-जाना लगा रहता था। ‘ज़ो एकीकरण’ का आंदोलन हर बार इसके व्यवहार्य न होने के कारण एक दूर का सपना बना हुआ है। मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, म्यांमार में अरकान और बांग्लादेश में चिटगांग को मिलाकर एक ज़ो प्रशासनिक ईकाई बनाना एक दु:स्वप्न सरीखा है, जिसमें तीन-तीन देश शामिल हैं। लेकिन मिज़ोरम के लोगों में आज भी इसको लेकर बेहद संवेदनात्मक अपील बनी हुई है।

यही वजह है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में मिजो नेशनल फ्रंट और ZPM नेता लाल्दुहोमा मणिपुर के कुकी-ज़ोमी समुदाय के लिए अलग प्रशासनिक ईकाई की मांग को हवा दे सकते हैं। बहुत संभव है वे इस क्षेत्र को मिजोरम में शामिल किये जाने की मांग के साथ चुनाव में उतरें। मणिपुर की धधकती आग सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। नागा जनजातीय समूह भी ग्रेटर नागालैंड की अपनी मांग को अब नए सिरे से उठाने जा रहे हैं। नागा जनजाति के लोग नागालैंड के अलावा मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और असम में बिखरे हुए हैं।

नागा होहो नामक संगठन के महासचिव के। इलू न्दंग ने मंगलवार को एक बयान जारी कर मोदी सरकार के 9 वर्षों के जश्न की बधाई देते हुए मांग की है कि नागा राजनीतिक मुद्दे पर प्रस्ताव पारित कर नागा जनजाति की बहुप्रतीक्षित मांग को पूरा किया जाये। समान नागरिक संहिता पर अपनी असहमति व्यक्त करते हुए नागा जनजाति के लिए एकीकृत राज्य की मांग सोये हुए पूर्वोत्तर राज्यों को एक बार फिर से जगाने का काम कर सकती है। ऐसा लगता है भाजपा सरकार की हिंदी बहुल क्षेत्रों पर चुनावी लाभ को पूर्वोत्तर में भी विभाजनकारी मुद्दों को तूल देना बहुत भारी पड़ने जा रहा है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)     

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