दूर की कौड़ी है 50 और 33 फीसदी प्रतिनिधित्व, हर क्षेत्र में बहुत पीछे हैं महिलाएं

नई दिल्ली। महिला आरक्षण विधेयक गुरुवार को राज्यसभा में पास हो गया। कांग्रेस सांसदों ने महिला आरक्षण बिल में पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए अलग से कोटा निर्धारित करने के लिए संशोधन प्रस्ताव पेश किया था। लेकिन यह प्रस्ताव खारिज कर दिया गया। शुक्रवार को कांग्रेस मुख्यालय में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर ओबीसी महिलाओं को आरक्षण में कोटा न देने का आरोप लगाया है। उन्होंने यह भी कहा कि जो ओबीसी सांसद हैं कानून बनाने में उनकी भागीदारी नहीं होती है। ओबीसी के सांसदों को भाजपा ने मूर्ति बनाकर रखा है, उनके पास पावर बिल्कुल नहीं है।

उन्होंने कहा कि हमारी सरकार आएगी तो जातिगत जनगणना कराएंगे। देश को पता चलेगा क‍ि ओबीसी, दल‍ित और आद‍िवासी क‍ितने हैं। उन्हें देश चलाने में भागीदारी मिलेगी। आप किसी भी भाजपा के एमपी (MP) से पूछ लीजिए कि वो कोई निर्णय लेते हैं?

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री कहते हैं कि वो ओबीसी के लिए बहुत काम करते हैं। अगर वे ओबीसी के लिए काम करते हैं, तो 90 सचिवों में से सिर्फ 3 सचिव ओबीसी समुदाय से क्यों हैं? ये ओबीसी आफिसर्स देश के बजट का कितना और क्या कंट्रोल कर रहे हैं? मुझे ये पता लगाना है कि हिन्दुस्तान में ओबीसी कितने हैं और जितने हैं उतनी भागीदारी उन्हें मिलनी चाहिए।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ये सवाल महिला आरक्षण विधेयक में दलितों-आदिवासियों की तरह पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए भी सीटें आरक्षित न करने पर उठाया है। यह सच है कि देश में विभिन्न समुदायों की सरकारी नौकरियों से लेकर लोकसभा, विधानसभा में उपस्थिति बहुत कम है। महिलाओं का प्रतिनिधित्व और भी कम है।

आजादी के 76 वर्ष बाद भी विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में महिलाओं की उपस्थिति बहुत कम है। साथ ही जातीय और क्षेत्रवार विषमता भी है। संसद, सुप्रीम कोर्ट, प्रशासन और पुलिस आदि विभागों पर नजर दौड़ाई जाए तो हर जगह महिलाओं की उपस्थिति नाममात्र की है। कहीं पर यह 15 प्रतिशत तो कहीं पर 10 प्रतिशत तक यह आंकड़ा सिमट जाता है।

केंद्रीय मंत्रिपरिषद में 14.5 प्रतिशत महिलाएं

केंद्रीय मंत्रिपरिषद देश में निर्णय लेने वाली शीर्ष संस्था है। प्रधानमंत्री इसमें सर्वोपरि होता है। केंद्रीय मंत्रालय में महिलाओं का प्रतिनिधित्व हमेशा कम रहा है, पिछले दो दशकों में केवल मामूली वृद्धि हुई है। केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा प्रकाशित एक वार्षिक रिपोर्ट “भारत में महिला और पुरुष 2022” के अनुसार, 1 जनवरी, 2023 तक केंद्रीय मंत्रिपरिषद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 14.47 प्रतिशत था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 76 सदस्यीय मंत्रालय में 11 महिलाएं-जिनमें 2 कैबिनेट मंत्री और 9 राज्य मंत्री शामिल हैं। पिछले 20 वर्षों में केंद्रीय मंत्रिपरिषद में महिलाओं का अनुपात औसतन 12 प्रतिशत रहा है, जिसमें कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए और भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए दोनों सरकारें शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट में 10 प्रतिशत महिला जज

उच्च न्यायपालिका में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम रहा है। महिला और पुरुष 2022 के अनुसार, 29 सितंबर, 2022 तक सुप्रीम कोर्ट के 29 न्यायाधीशों में केवल 3 महिलाएं थीं। रिपोर्ट यह भी दिखाती है कि सितंबर के अंत में देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में महिला न्यायाधीशों का अनुपात पिछले वर्ष मणिपुर, मेघालय, पटना, त्रिपुरा और उत्तराखंड में 0 से लेकर सिक्किम में 33.33 प्रतिशत तक था।

प्रबंधकीय पदों पर महिलाओं का कम होना

प्रबंधकीय पदों पर महिला और पुरुष का अनुपात भी कम है। इसका राष्ट्रीय औसत 18 प्रतिशत था। प्रबंधकीय पदों पर काम करने वाले महिला श्रमिकों का उच्चतम अनुपात कुल श्रमिकों की संख्या मिज़ोरम में (40.8 प्रतिशत) दर्ज की गई और सबसे कम दादर और नगर हवेली (1.8 प्रतिशत) में दर्ज की गई। कुल मिलाकर, 15 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों – मिजोरम, सिक्किम, मेघालय, आंध्र प्रदेश, मणिपुर, कर्नाटक, पुडुचेरी, अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, गोवा, केरल, ओडिशा, दिल्ली, मध्य प्रदेश और गुजरात में पुरुषों की तुलना में महिला श्रमिकों का अनुपात राष्ट्रीय औसत 18 प्रतिशत की तुलना में अधिक है। शेष 19 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश – तेलंगाना, त्रिपुरा, महाराष्ट्र, चंडीगढ़, पश्चिम बंगाल, झारखंड, असम, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, नागालैंड, पंजाब, बिहार, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड और दादरा और नगर हवेली – में राष्ट्रीय औसत से कम आंकड़ा दर्ज किया गया।

महिला पुलिस अधिकारी 8 प्रतिशत

2022 की रिपोर्ट के अनुसार भारत के पुलिस विभाग में महिला एवं पुरुष का अनुपात महज 8.21 फीसदी है। 1 जनवरी, 2021 तक, केंद्र और राज्य स्तर पर कुल पुलिस संख्या 30,50,239 दर्ज की गई थी, जिनमें से 2,50,474 (8.21 प्रतिशत) महिलाएं थीं। ये महिलाएं सिविल पुलिस, जिला सशस्त्र रिजर्व पुलिस, विशेष सशस्त्र पुलिस बटालियन, भारतीय रिजर्व बटालियन पुलिस, असम राइफल्स, सीमा सुरक्षा बल, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड, रेलवे सुरक्षा बल और सशस्त्र सीमा बल सहित विभिन्न पुलिस संगठनों में तैनात हैं।

हर चौथा बैंक कर्मचारी एक महिला है

बैंकिंग उद्योग में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक है। भारत में महिला और पुरुष 2022 की रिपोर्ट के अनुसार अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के 16,42,804 कर्मचारियों में से लगभग एक चौथाई (3,97,005 या 24.17 प्रतिशत) महिलाएं हैं। बताया गया है कि ये महिलाएं अधिकारी, क्लर्क और अधीनस्थ स्तरों पर काम कर रही थीं।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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