अन्याय के 1000 दिन, प्रतिरोध और आंदोलन के हजार दिन!

नई दिल्ली। “यह 1000 दिनों की कैद के साथ-साथ 1000 दिनों का प्रतिरोध भी है। उमर खालिद यह सुनकर बहुत खुश होगा कि इस चिलचिलाती गर्मी में लोकतंत्र के बचाव के लिए सैकड़ों लोग जमा हो गए हैं। यह एकजुटता सिर्फ उमर के लिए नहीं है, बल्कि हर राजनीतिक कैदी के लिए है।” प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में “डेमोक्रेसी, डिसेंट एंड सेंसरशिप” विषय़ पर आयोजित कार्यक्रम में राज्यसभा संदस्य मनोज झा  ने इन शब्दों में अपने विचार व्यक्त किए।

उमर खालिद समेत कई लोगों के जेल में कैद होने के 1000वें दिन के अवसर पर प्रेस क्लब में इस परिचर्चा का आयोजन किया गया था। उमर खालिद समेत  उन सभी राजनीतिक कैदियों के प्रति एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए दिल्ली के नागरिकों ने यह आयोजन किया था। एक हजार दिन से विभिन्न जेलों में बंद इन कैदियों की एकमात्र ‘अपराध’ सत्ता के समक्ष  सच बोलना था, फिर  चाहे वह उमर खालिद , गुलफिशा, फातिमा, खालिद सैफी, शरजील इमाम, मीरान हैदर और अन्य ही क्यों न हों।

वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने कहा कि “इन 1000 दिनों को याद करो जो बीत चुके हैं। याद रखें कि ये सिर्फ 1000 दिन उमर खालिद की कैद के बाद के दिन ही नहीं है, ये भारतीयों के लिए शर्म के 1000 दिन भी हैं। उमर खालिद जैसे लोगों के लिए न्याय के दरवाजे का रास्ता बहुत लंबा खिंच गया है।

रवीश कुमार ने भीमा कोरेगांव मामले में जेल में बंद लोगों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से “फादर स्टेन स्वामी उस दरवाजे तक भी नहीं पहुंच सके।“

सलाखों के पीछे बंद लोगों के लिए आवाज उठाते रहने की जरूरत जताते हुए उन्होंने कहा, “आप लोगों ने उस जगह को बनाए रखा जहां उमर और उनके साथ हर राजनीतिक कैदी को याद किया जाता है।”

अन्याय के हजार दिन बीत गए। लेकिन ये न्याय के संघर्ष के भी हजार दिन हैं। लोगों को जेल में रखा गया है। उन पर गजब-गजब आरोप हैं। किसी पर पीएम की हत्या की साजिश रचने का आरोप है तो किसी के ऊपर देशद्रोह का आरोप है। राज्य की ताकत बहुत है लेकिन आज आप लोगों के उत्साह को देखकर लगा कि आप लोगों की ताकत भी कम नहीं है।

उमर खालिद के पिता और वेलफेयर पार्टी एसक्यूआर इलियास के अध्यक्ष ने अपने भाषण में कहा कि  “1000 दिनों की जेल ने उमर के आत्मविश्वास को डगमगाया, क्या इसने उसके दोस्तों के हौसले को कम किया? कदापि नहीं। जब मैं उन सभी को देखता हूं जो जेल में बंद हैं, तो मैं देखता हूं कि उनके चेहरे पर विश्वास है, वे जानते हैं कि वे एक कारण से जेल में हैं। उमर खालिद, जिसका सामना एक ऐसी प्रणाली से होता है, जो उसके विरोध में होने के अलावा मुस्लिम नाम और ‘इंकलाब’ शब्द के प्रयोग से चिढ़ा हुआ है। चाहे वह कार्यकर्ता भीमा कोरेगांव मामले में  गिरफ्तार हुआ हो या सीएए के खिलाफ समान नागरिकता के लिए हो। जिन्हें संविधान की प्रबल रक्षा की भावना के लिए दंडित किया जा रहा है।”

जहां तक ​​कानून व्यवस्था की बात है, आज की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए शाहरुख आलम ने कहा, “हम नागरिक अधिकारों के संदर्भ में नहीं सोच रहे हैं, नागरिक स्वतंत्रता के संदर्भ में नहीं सोच रहे हैं। आज हम केवल कानून और व्यवस्था बनाए रखने के बारे में सोचने के लिए बने हैं। कानून  और लोकतंत्र के साथ व्यवस्था को संयमित करना होगा।  

प्रभात पटनायक ने कहा कि “जब भी आपके सामने कोई संकट आया हो पूंजीवाद, फासीवाद पहले से कहीं ज्यादा मजबूत होकर उभरता है और पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ किसी भी तरह के प्रतिरोध को दबा देता है। आज इसने अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत का रूप ले लिया है।

उन्होंने कहा, “मैं सुप्रीम कोर्ट से अपील करता हूं कि किसी के भी मामलों का स्वत: संज्ञान लिया जाए 1 वर्ष से अधिक समय तक जेल में मुकदमे की प्रतीक्षा में, ऐसे व्यक्तियों को स्वतः ही जमानत का हकदार होना चाहिए।

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद के रिहाई के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। ‘डिसेंट अंडर ट्रायल: हंड्रेड डेज ऑफ इनजस्टिस’ नाम से होने वाला यह कार्यक्रम 1000 से ज्यादा दिनों तक जेल में बंद उमर खालिद पर केंद्रित था। इसके अलावा भीमा कोरेगांव मामले में अलग-अलग जेलों में बंद लोगों की रिहाई का मुद्दा भी इस मंच से उठाया गया।

जेलों में बंद सामाजिक कार्यकर्ताओं की रिहाई के लिए पहले यह कार्यक्रम दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में रखा गया था। लेकिन एक दिन पहले यानि गुरुवार को पुलिस प्रशासन ने गांधी शांति प्रतिष्ठान को नोटिस देकर कार्यक्रम को रद्द करवा दिया। सूत्रों की मानें तो पुलिस ने हस्तक्षेप किया और उसकी धमकी के आगे गांधी शांति प्रतिष्ठान ने समर्पण कर दिया। और इसके साथ ही उसने पहले से कार्यक्रम के लिए दी गयी अपनी अनुमति वापस ले ली।

इस कार्यक्रम में प्रभात पटनायक, प्रशांत भूषण फरहा नकवी जैसे जाने-माने बुद्धिजीवियों शिरकत किया। दिल्ली का प्रेस क्लब ऑफ इंडिया पत्रकारों का क्लब है। दिन भर यहां पर पत्रकारों और बुद्धिजीवियों का आना- जाना लगा रहता है। लेकिन शुक्रवार को यहा पर छात्रों, नौजवानों, सामाजिक कार्यकर्ताओं की भीड़ उमड़ पड़ी।

देश की जेलों में दो साल से भी ज्यादा समय से कई सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी और छात्र बंद हैं। उन पर अलग-अलग धाराओं में केस लगाया गया है। कुछ कार्यकर्ता और बुद्धजीवी भीमा- कोरेगांव मामाले में जेल की सालाखों के पीछे कैद हैं, तो कुछ पर माओवादियों के समर्थन का आरोप है। ऐसे लोगों में जेएनयू के छात्र उमर खालिद भी है।

उमर खालिद पर दिल्ली दंगे के साजिश का आरोप लगाकर गिरफ्तार किया था। एक हजार से ज्यादा दिन हो गए लेकिन अभी तक उमर की रिहाई नहीं हुई है। साल 2020 के फरवरी महीने में नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में हुए दंगों को लेकर दिल्ली पुलिस ने उमर खालिद को सितंबर 2020 में गिरफ्तार किया था। शरजील इमाम और कुछ अन्य लोगों के साथ ही दिल्ली पुलिस ने उमर खालिद को मुख्य आरोपियों में शामिल करते हुए आईपीसी की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था।

उमर खालिद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र और डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स यूनियन (डीएसयू) के पूर्व नेता हैं। CA और NRC विरोधी जनांदोलन में उनकी सक्रिय हिस्सेदारी थी। देश मेहनतकशों और वंचितों के आवाज उठाने और संघर्ष करने वाले व्यक्तित्व के रूप में उनकी देश-दुनिया में पहचान रही है। जेएनयू के वे एक जुझारू छात्र नेता के रूप में जाने जाते रहे हैं। उन पर पुलिस ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के तथाकथित देशद्रोह विवाद में शामिल होने आरोप लगाया था। खालिद यूनाइटेड अगेंस्ट हेट (यू.ऐ.एच) से भी जुड़े हुए रहे हैं, जो एक अभियान है जो जुलाई 2017 में लिंचिंग की श्रृंखला के जवाब में शुरू किया गया था।

उमर खालिद का जन्म नई दिल्ली के जामिया नगर में हुआ था और वह पिछले कई दशकों से वहीं रह रहे थे। उनके पिता, सैयद कासिम रसूल इलियास, महाराष्ट्र से हैं, जबकि उनकी मां पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हैं। खालिद ने दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में इतिहास का अध्ययन किया। बाद में उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में इतिहास में परास्नातक और एम.फिल. किया। खालिद की पीएचडी थीसिस का शीर्षक “झारखंड के आदिवासियों पर शासन के दावों और आकस्मिकताओं का चुनाव” था।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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