हरियाणा: चुनाव आयोग की वेबसाइट से विपक्ष के लिए गाली-गलौज 

हरियाणा के कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र से इस बार भाजपा के मुकाबले इंडिया गठबंधन से आम आदमी पार्टी चुनावी मैदान में दो-दो हाथ करने की तैयारी कर रही है। भाजपा ने इस बार राज्य में बड़े पैमाने पर आयातित नेताओं का सहारा लिया है। कुरुक्षेत्र से भी भाजपा ने कांग्रेस के पूर्व सांसद और स्टील टाइकून नवीन जिंदल को चुनावी मैदान में उतारा है। आम आदमी पार्टी (आप) से राज्य पार्टी अध्यक्ष और पूर्व राज्य सभा सांसद, डॉ. सुशील गुप्ता को टिकट दिया गया है। भाजपा राज्य की सभी 10 सीटों पर अकेले दम पर चुनाव लड़ रही है, जबकि इंडिया गठबंधन में कांग्रेस 9 और आप पार्टी एकमात्र कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में है। 

बता दें कि आम आदमी पार्टी की ओर से 7 अप्रैल को कैथल और सीवन में दो जनसभा का कार्यक्रम तय किया गया था। चुनावी सभा की इजाजत के लिए आम आदमी पार्टी की ओर से चुनाव आयोग के समक्ष ऑनलाइन आवेदन दिया गया था। इसके जवाब में चुनाव आयोग की वेबसाइट से टिप्पणी में जो जवाब आया, वह भारतीय संसदीय इतिहास के लिए कालिख पुतने जैसा है, क्योंकि इससे पहले शायद ही कभी देश ने इलेक्शन कमीशन ऑफ़ इंडिया को इस कदर सत्ताधारी पार्टी के शोहदों के साथ मिलकर चुनाव प्रकिया को ही ध्वस्त करते हुए देखा हो। 

खबर यह है कि, चुनाव आयोग ने आप पार्टी के आवेदन को ख़ारिज करते हुए दोनों जनसभाओं की मांग को खारिज कर दिया। लेकिन उससे भी बड़ी हैरानी की बात तो तब देखने को मिली जब चुनाव आयोग की वेबसाइट में इसका कारण बताते हुए एक टिप्पणी में लिखा गया ‘कोणी देंदे’ अर्थात नहीं देंगे, और दूसरी टिप्पणी में ‘तेरी माँ का भो…’ लिखा हुआ पाया गया।

आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता इस टिप्पणी को देखकर आग बबूला हैं, और इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। कल 5 अप्रैल को यह मामला तेजी से तूल पकड़ चुका था। इसके बाद खबर आई कि चुनाव आयोग ने आप पार्टी को दोनों स्थानों पर सभा की इजाजत दे दी है, और जिला प्रशासन ने मामले का संज्ञान लेते हुए 5 कर्मचारियों को निलंबित भी कर दिया है। इसके साथ ही जिला प्रशासन ने इस मामले की जांच का काम पुलिस प्रशासन को सौंप दिया है। 

बताते चलें कि लोकसभा में चुनाव प्रचार के लिए अब चुनावी आचार संहिता का कड़ाई से पालन करना आवश्यक बना दिया गया है। किसी भी दल को चुनावी सभा या रैली निकालने के लिए पहले जिला प्रशासन से पूर्व अनुमति आवश्यक है। विपक्षी पार्टियों के लिए ऐसा करना नितांत आवश्यक है, क्योंकि चूक की दशा में उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की तलवार हमेशा लटकी हुई है। उसे न सिर्फ ईडी या आयकर विभाग से कभी भी नोटिस आ सकता है, बल्कि इलेक्शन कमीशन से भी उसे दनादन आचार संहिता भंग करने के नोटिस मिलते रहते हैं। 

चुनाव आयोग की ओर से ऑनलाइन आवेदन और मंजूरी के लिए इ।एन।सी।ओ।आर पोर्टल बनाया गया है, जिसके माध्यम से सारी प्रकिया संपन्न की जा रही है। खबर है कि जिला प्रशासन की ओर से दो दिन पहले ही इस संबंध में कर्मचारियों को प्रशिक्षण भी दिया गया था। 

चुनाव आयोग का इस बारे में अपनी सफाई में कहना है कि उनकी वेबसाइट हैक हो गई थी। लेकिन क्या चुनाव आयोग की इस सफाई पर कोई भी यकीन कर सकता है? सूत्रों के मुताबिक, वेबसाइट का पासवर्ड किसी कर्मचारी ने ही बाहर लीक कर दिया है, या उसके द्वारा ही यह गलत हरकत की गई है। 

आप पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और सांसद गुप्ता ने प्रेस कांफ्रेंस में संवाददाताओं को संबोधित करते हुए बताया है कि, “उनकी पार्टी के द्वारा चुनाव आयोग से 7 अप्रैल के दिन दो चुनावी सभा करने की इजाजत मांगी गई थी। चुनाव आयोग की ओर से गाली-गलौज की भाषा का इस्तेमाल करते हुए हमारे आवेदन को खारिज कर दिया गया। एक आवेदन पर लिखकर आया कि क्या इलेक्शन कमीशन इतना पंगु बन गया है कि वह भद्दी गालियां लिखकर हमारे आवदेन को ख़ारिज करेगा? क्या इस देश में अब निष्पक्ष ढंग से चुनाव नहीं हो सकता है? चुनाव आयोग ऐसी अभद्र भाषा का उपयोग करेगा, इससे अधिक शर्म की बात इस देश में कुछ नहीं हो सकता। आज देश में कुरुक्षेत्र लोकसभा के कैथल के अंदर यह बात आ रही है। यह बेहद शर्मनाक है। मैं इलेक्शन कमीशन ऑफ़ इंडिया से अनुरोध करता हूं कि इनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करे, ताकि इस तरह मां की गाली देकर किसी के आवदेन को रद्द न किया जा सके।”

ऐसा लगता है कि इलेक्शन कमीशन को भी इस भारी चूक से सकते में है, और उसने ताबड़तोड़ कार्रवाई करते हुए मामले को रफादफा करने की कोशिश की है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर कैसे कोई चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट को हैक कर सकता है? अगर वेबसाइट हैक हुई भी है, तो कैसे मान लिया जाये कि इसका दुरुपयोग सिर्फ कुरुक्षेत्र संसदीय सीट तक ही सीमित होगा? सवाल उठता है कि क्या चुनाव आयोग देश में निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने के लिए उपयुक्त हाथों में है? या चुनाव आयोग के भीतर असल में भाजपा समर्थक साइबर सेल ही में देश में चुनाव प्रकिया की देख-रेख संभाल रहा है? प्रथमदृष्टया, मामला तो ऐसा ही लगता है। इसकी जांच हरियाणा पुलिस की बजाय कोर्ट की निगरानी में किये जाने की मांग की जानी चाहिए। लेकिन लगता है चुनावी भागदौड़ में इस गंभीर अपराध की अनदेखी ही होनी है।

चूंकि यह मामला एक संसदीय क्षेत्र तक ही सीमित है, और हरियाणा में आप पार्टी इसी एक सीट पर अपना उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारी है, इसलिए इस विवाद को आसानी से दबाना चुनाव आयोग के लिए आसान है। लेकिन सोचिये, यही काम यूपी, बिहार, महाराष्ट्र या पश्चिम बंगाल में किया जा रहा हो तो क्या होगा?   

आप नेता अनुराग ढांडा ने इस बारे में X पर टिप्पणी करते हुए बहुत ही मौजूं सवाल पूछा है कि क्या पूरे देश में चुनाव आयोग के दफ्तर बीजेपी के लोग चला रहे हैं? कुरुक्षेत्र, हरियाणा में डॉ. सुशील कुमार गुप्ता के चुनाव कार्यक्रम की परमिशन मांगने पर चुनाव आयोग का दफ्तर गाली लिखकर रिजेक्ट करता है? वहीं दिल्ली में मंत्री आतिशी सिंह को नोटिस 30 मिनट बाद मिलता है, जबकि बीजेपी वाले पहले ही खबर चलवा देते हैं?

आप नेता अनुराग ढांडा के अनुसार, ‘चुनाव आयोग भाजपा के हाथों की कठपुतली की तरह पेश आ रहा है। ऐसे कर्मचारियों को तत्काल बर्खास्त कर उनके खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए।”

सवाल ही सवाल हैं, पता नहीं इस बार देश को चुनाव आयोग जैसे स्वतंत्र संवैधानिक संस्थान, जिसे पूर्व में टी।एन। शेषन जैसे मुख्य चुनाव आयुक्त ने आसमान की बुलंदियों तक पहुंचा दिया था, मोदी राज में और कितने निचले स्तर पर जाते देखना पड़ सकता है। 

इस हिसाब से देखें तो हरियाणा के चुनाव आयोग में तो भाजपा और उसके आईटी सेल के लोग ही काम कर रहे हैं। ये भाषा किसी भी सरकारी कर्मचारी की हो भी नहीं सकती, चाहे वह भाजपा का ही समर्थक क्य्यों न हो। 

चुनाव आयोग के अगर इतने बुरे हालात हैं, तो उससे राज्य में निष्पक्ष चुनाव की कल्पना कैसे की जा सकती है? हरियाणा वह राज्य है जहां भाजपा और उसके पूर्व सहयोगी दल जजपा को किसान चुनाव प्रचार करने से रोक रहे हैं। इस बार का चुनावी परिदृश्य तेजी से बदल रहा है, और जहां हाल तक भाजपा-इंडिया गठबंधन के पक्ष में 5:5 के साथ मुकाबला बराबरी पर होने की बात कही जा रही थी, लेकिन अब लगता है यदि चुनाव निष्पक्ष हों तो भाजपा के लिए हरियाणा का चुनाव वाटरलू साबित होने जा रहा है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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