आखिर बीजेपी को इस बार सत्ता क्यों जरूरी है ?

सत्ता तो सभी को चाहिए। सत्ता के बिना राजनीति कैसी? धनधारी और राजदार जब एक हो जाते हैं तो कोई भी सत्ता ज्यादा मुश्किल नहीं होती। लोकतंत्र में कहने के लिए भले ही जनता मालिक है लेकिन मालिक की नकेल धनधारियों के हाथ में हो तो आप लोकतंत्र को कैसे परिभाषित करेंगे? बीजेपी राजदार पार्टी है तो देश के बहुत से कारोबारी बीजेपी के लिए बहुत कुछ लुटाने को तैयार भी है। इन कारोबारियों में कौन बड़ा है और कौन छोटा यह कोई मायने नहीं रखता। मायने यह है कि बीजेपी के सपोर्ट के लिए देश के भीतर जनता के लिए क्या-क्या उपाय किए जा सकते हैं।

गांव-देहात में एक कहावत है कि नया मुल्ला ज्यादा प्याज खाता है। कई लोग इसका मतलब कई तरह से निकाल सकते हैं। लेकिन इस कहावत का सबसे साधारण मतलब यही है कि जब कोई आदमी किसी नए काम को अपनाता है तो दिखावा ज्यादा करता है। बीजेपी के साथ ही कुछ इसी तरह की बात है। 1980 में इस पार्टी की स्थापना हुई। अटल और आडवाणी की जोड़ी खूब चर्चा में रही। अटल जी सात साल तक पीएम रहे। कह सकते हैं कि अटल जी ने पहली एनडीए की सरकार चलाई। यह सरकार तीन किश्तों में थी। लेकिन चली और चर्चित भी रही। अच्छाई और बुराई के रूप में भी एनडीए की वह सरकार जानी गई।

फिर दस साल तक कांग्रेस की सरकार चली। मनमोहन सिंह पीएम रहे। मनमोहन सिंह सरकार भी कई मायने में बदनाम हुई। लेकिन उस सरकार की खासियत यह थी कि देश की अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ी थी। लेकिन भ्रष्टाचार ने इस सरकार को इतना बदनाम किया कि जनता ऊब सी गई। देश में किसी बात की कोई समस्या तो नहीं थी लेकिन सरकार की बदनामी ने कांग्रेस की जड़ को हिला दिया।

तब गुजरात में नरेंद्र मोदी की ही सरकार थी। मोदी तब मनमोहन सिंह की सरकार पर खूब बोलते थे। कांग्रेस सरकार पर हमला करने से नहीं चूकते थे। ऐसा कोई विषय नहीं था जिस पर बहुत जानकारी नहीं रहने के बाद भी मोदी साधिकार बहुत कुछ बोल जाते थे।

साल 2013 में कहा जाता है कि संघ के कुछ नेताओं के साथ मोदी की बैठक हुई और इस बैठक में कई कारोबारी शामिल हुए। हालांकि इस बैठक की कोई आधिकारिक जानकारी अभी तक किसी को नहीं मिली है लेकिन गुजरात से लेकर दिल्ली तक के सियासी गलियारों में इस बात की पुष्टि होती है कि बैठक हुई थी। इस बैठक में मोदी के साथ ही उनके कुछ और कट्टर समर्थक शामिल थे। संघ के लोग थे और आधा दर्जन कारोबारी। ये सभी कारोबारी गुजरात से ही थे।

सूत्रों के मुताबिक इस बैठक में ही नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार बनाने की बात हुई और ऐसा हुआ भी। लोग कहते हैं कि मोदी के साथ संघ के जिन नेताओं की बैठक होती थी उसमे एक बड़ा मुद्दा संघ के शतक वर्ष को लेकर भी था। 2025 में संघ की स्थापना के सौ साल पूरे होने को हैं।

2013 में मोदी की राजनीति खुद को पीएम बनने के लिए की गई थी। मोदी जानते थे कि अगर एक बार देश की सत्ता उनके कब्जे में आ गयी तो खेल को पलटा जा सकता है। अपने ऊपर लगे कई आरोपों को खत्म किया जा सकता है। गुजरात दंगों के दाग को धोया जा सकता है और अटल के उस राजधर्म वाले बयान को भी लोगों के दिमाग से हटाया जा सकता है। लेकिन इसके लिए सत्ता की जरूरत थी। जैसे ही 2014 में मोदी के हाथ सत्ता लगी सब कुछ उनके अनुकूल होता चला गया।

पीएम मोदी ने शुरुआत के पांच साल में तो देश के सभी संस्थाओं को पहले अपने हाथ में किया। अपने लोगों को बैठाया और कांग्रेसियों को खदेड़ा। फिर दूसरे टर्म में मोदी वह काम करने लगे जो बीजेपी और संघ की पुस्तकों में दर्ज थे। यानि मोदी सरकार ने हिंदुत्व की कहानी को नए सिरे से विस्तारित किया। ऑपरेशन लोटस चलाकर कई राज्य की सरकारें बनाईं और गिराईं। प्रेस और मीडिया को अपने कब्जे में करके देश के लोगों को वही सब दिखाया और बताया जो बीजेपी और संघ चाहते थे। सबकुछ एकतरफा। हालांकि कांग्रेस के जमाने में भी मीडिया प्रबंधन का काम होता था लेकिन बीजेपी और मोदी के काल में मीडिया की भूमिका को खत्म ही कर दिया गया।

यहां अब सबकुछ मैनेज है। विपक्ष को तोड़ दिया गया। जो नहीं टूटा उसे खरीद लिया गया। जो न टूटा और न बिका उसे जांच एजेंसियों के जरिए जेल भेजा गया। बड़ी संख्या में विपक्षी नेताओं को बीजेपी में लाने का अभियान चला। यह अभियान आज भी जारी है। लेकिन अब जबकि मोदी दस साल तक देश के पीएम रह चुके हैं उन्हें एक और टर्म की जरूरत है। उन्हें तीसरे टर्म की जरूरत है इसकी जानकारी मोदी खुद नहीं देते। 75 साल वाले नेताओं को टिकट नहीं देते लेकिन खुद को 75 साल होने पर भी पीएम उम्मीदवार बनने से बाज नहीं आते। इस खेल को आप जो भी कहें लेकिन सच यही है कि पहले पीएम मोदी जहां खुद के लिए राजनीति कर रहे थे वहीं अबकी बार वे संघ के लिए पीएम बनना चाहते हैं।

संघ को अब मोदी की जरूरत है। संघ को पीएम मोदी चाहिए ताकि 2025 में संघ का सौवां स्थापना दिवस धूमधाम से मनाया जाए। संघ को पता है कि मोदी की सरकार नहीं बनी तो संघ को स्थापना दिवस मनाने में भी मुश्किल आ सकती है। संघ को यह भी पता है कि सत्ता बदलते ही उनके जो लोग देश के विभिन्न संस्थानों में बैठे हुए हैं उन्हें भी हटना होगा। संघ को यह भी पता है कि उनके कई लोगों पर बड़ी कार्रवाई भी हो सकती है।

मोदी के साथ ही अमित शाह को भी पता है कि सत्ता अगर चली गई तो खेल इतना बुरा होगा जिसकी कल्पना भी नहीं को जा सकती। बीजेपी के लोगों को यह भी पता है कि विपक्ष के जितने नेताओं को जेल में भेजा गया है उससे कहीं ज्यादा बीजेपी और संघ के नेता जेल पहुंच जायेंगे। बीजेपी को अब देश और जनता के कल्याण की फिक्र नहीं है। खुद का कल्याण और खुद का बचाव कैसे हो सकता है इसकी चिंता कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। फिर चिंता तो इन कारोबारियों को भी है जो मौजूदा समय में लाभ कमा रहे हैं और मोदी और बीजेपी के साथ खड़े होकर देश को अपने नजरिए से हांक रहे हैं।

(अखिलेश अखिल स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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