ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) ने बीते शुक्रवार को अपना तीन दिवसीय 10वां राष्ट्रीय सम्मेलन कलकत्ता के साल्टलेक स्थित ईस्टर्न जोन कल्चरल सेंटर में ‘युवा भारत को सांप्रदायिक नफरत नहीं, शिक्षा, सम्मान और रोजगार चाहिए; शिक्षा के निजीकरण, केंद्रीयकरण और भगवाकरण पर रोक लगाओ’ नारे के साथ पूरा किया। इस सम्मेलन की शुरुआत कलकत्ता के प्रसिद्ध स्ट्रेट कॉलेज में खुले एवं सांस्कृतिक सत्र के साथ किया गया। जिसमें सैकड़ों छात्र-छात्राओं एवं नौजवानों ने भाग लिया।
वहीं वक्ता के तौर पर जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मानस घोष, भाकपा माले पश्चिम बंगाल के महासचिव अभिजीत मजूमदार, आइसा और जेएनयू की पूर्व अध्यक्ष सुचिता डे और भाकपा माले से बिहार विधानसभा के सदस्य संदीप सौरभ ने भारत की मौजूदा राजनीतिक स्थिति, पिछले नौ वर्षों से नरेंद्र मोदी शासन के फासीवादी हमले और छात्रों की इसमें भूमिका के संदर्भ में अपनी बात रखी। इसके साथ ही, भोजपुर के माले नेता राजू रंजन सहित अन्य लोगों ने क्रांतिकारी गीत गाया और सांस्कृतिक कार्यक्रम को आगे बढ़ाया।
बाकी अगले दो दिन उद्घाटन सत्र एवं ओपन सत्र के साथ सांगठनिक सत्र चला। आखिरी सत्र में निलाशिष को अध्यक्ष और प्रसेनजीत कुमार को महासचिव पद पर चुना गया। उद्घाटन सत्र की शुरुआत रोहित वेमुला, पायल तड़वी, चंद्रशेखर प्रसाद, प्रशांता और हाल में दिवगंत दलित चिंतक, बाबा साहेब आंबेडकर तथा महात्मा ज्योतिबा फूले की रचनाओं के संकलनकर्ता हरि नरके सहित अन्य दिवंगत नेताओं और शहीदों को श्रद्धांजलि देने के साथ हुई।
आइसा के राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा, “ऐसे समय में जब आइसा अपना ऐतिहासिक सम्मेलन कर रहा है- उमर खालिद, गुलफिशा फातिमा जैसे कई स्टूडेंट एक्टिविस्ट, जिन्होंने लोकतांत्रिक कैंपस और नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया- को झूठे मुकदमे में जेलों में बंद कर दिया गया है। भीमा कोरेगांव की तरह, सीएए विरोधी प्रदर्शनों को आपराधिक बनाने की साजिश अंबेडकर के भारत को नष्ट करने की बड़ी योजना का हिस्सा है।”
दीपंकर ने कहा कि “छात्रों पर यह उजागर करने की बड़ी जिम्मेदारी है कि कैसे सरकार मुसलमानों और अन्य उत्पीड़ित समुदायों के खिलाफ अपनी नफरत की राजनीति को अंजाम देने के लिए युवा भारत को भीड़ में बदल रही है”। उन्होंने कहा कि “यह महत्वपूर्ण है कि आइसा इस अवसर पर आगे आए और नफरत की राजनीति के लिए युवाओं का इस्तेमाल किए जाने की इस प्रथा को रोके और एक मजबूत छात्र आंदोलन का निर्माण करे, जो बाबासाहेब अंबेडकर और भगत सिंह के सपनों के भारत का निर्माण करेगा।”
इस मौके पर दीपंकर ने आइसा के तीन दशक से अधिक समय के छात्र आंदोलन सहित अन्य आंदोलनों के इतिहास का भी जिक्र किया।
सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में दोस्तानां वामपंथी छात्र संगठनों के प्रतिनिधि भी शामिल रहे। जिसमें एआईएसएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शुभम बनर्जी ने कहा कि “वामपंथी छात्र संगठनों को मोदी-भाजपा सरकार की जनविरोधी और छात्र विरोधी नीतियों से लड़ने के लिए एक साथ आना चाहिए, जिसने देश के आम लोगों के खिलाफ खुला हमला शुरू कर दिया है”।
एसएफआई के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रतीकुर रहमान ने कहा कि “मोदी-शाह हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान लागू कर देश की एकता, बहुलता और विविधता को नष्ट कर रहे हैं”। उन्होंने कहा, “छात्रों, शिक्षकों, किसानों, श्रमिकों, दलित, आदिवासी और मुसलमानों की एकता ही फासीवादियों को हरा सकती है।”
साउथ एशियन सॉलिडेरिटी ग्रुप की कल्पना विल्सन ने कांफ्रेंस के लिए आइसा को बधाई व शुभकामनाएं देते हुए कहा कि “दुनिया भर के छात्र लगभग वही मार झेल रहे हैं, जो भारत के छात्र झेल रहे हैं। लगातार कोर्स की फीस वृद्धि कर शिक्षा को महंगा किया जा रहा है। इसके साथ ही शैक्षणिक संस्थानों को निजी हाथों में बेचा जा रहा है। भारत में इसके खिलाफ आइसा लगातार लड़ रहा है। यह एक संतोषजनक बात है”।
पीएसयू महासचिव नौफुल सैफुल्ला और डीएसओ के बंगाल राज्य अध्यक्ष मणिशंकर के साथ-साथ शिक्षाविद् कुमार राणा और ऑल बंगाल स्टूडेंट्स एसोसिएशन के संस्थापक सदस्य नीलकांत आचार्य ने इस अवसर पर अपना एकजुटता भाषण दिया।
इंकलाबी नौजवान सभा (आरवाईए) के महासचिव नीरज ने आइसा के सभी साथियों को इस 10वें राष्ट्रीय सम्मेलन के शानदार आयोजन के लिए बधाई देते हुए कहा कि “विद्यार्थियों का यह सम्मेलन ऐसे दौर में हो रहा है जब मोदी सरकार देश की जनता द्वारा संघर्ष और शहादत के दम पर हासिल किए गए तमाम उपलब्धियों- चाहे वो देश का लोकतंत्र हो, संस्थाएं हो, रोजगार के अवसर हों, नागरिकों के अधिकार और शैक्षणिक संस्थाएं हों- सभी को छीन लेने के अभियान में लगी है”।
उन्होंने कहा, “पिछले तीन महीने से मणिपुर जल रहा है। रोजगार और प्रदेश की तरक्की की उम्मीद लगाए बैठे नौजवानों के हाथ में बंदूक थमा कर अपनों के खिलाफ़ ही खड़ा कर दिया गया और पूरे देश को साम्प्रदायिक उन्माद में झोंक कर मणिपुर बनाने की कोशिश चल रही है। हरियाणा में जो साम्प्रदायिक हिंसा हमने देखा वह इसी का नमूना है। रोजगार मांग रहे नौजवानों के हाथ में तलवार थमा कर मुसलमानों का मुहल्ला दिखा दिया जा रहा है। ऐसे समय में हमें पूरी सावधानी और बहादुरी के साथ भाजपा-आरएसएस के नफ़रत के कारोबार पर ताला भी लगाना होगा और शिक्षा-रोजगार के सवाल पर गोलबंदी को बढ़ाना होगा।”
ऑल इण्डिया प्रोग्रेसिव वूमेंस एसोसिएशन (ऐपवा) की बंगाल राज्य सचिव इंद्राणी गुप्ता और भाकपा माले के पॉलिट ब्यूरो सदस्य और आइसा के राष्ट्रीय प्रभारी रवि राय भी सम्मेलन में शामिल रहे। ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों के वामपंथी रुझान रखने वाले छात्र संगठनों के प्रतिनिधि भी सम्मेलन में शामिल हुए। कई नेताओं ने वीडियो संदेश भेजकर इस सम्मेलन के साथ अपनी एकजुटता प्रकट की।
सम्मेलन के तीसरे व अंतिम दिन मसविदा दस्तावेज़ पर चर्चा हुई। जिसमें देश के 21 राज्यों से आए आइसा नेताओं ने संगठन की गतिविधियों के संबंध में अपनी रिपोर्ट पेश की। इसके साथ ही संगठन के अंदर किसी तरह के यौन उत्पीड़न के सवाल से निपटने के लिए जेंडर सेंसटिविटी कमिटी अगेंस्ट सेक्सुअल हैरेसमेंट (जीएस-कैश) के भी संविधान में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव पर चर्चा की गई। इस संबंध में चर्चा के लिए एक अलग सत्र चलाया गया।
(दिल्ली विश्वविद्यालय के रिसर्च फेलो जगन्नाथ की रिपोर्ट।)